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परदेशी राजाकी चे.पाही जी॥ चि० ए॥ श्ररथ पुढे निरणो करे, सांचे श्ररथ करे ढंगो जी । हाड़ हाड़ मीजी बहुरङ्गी, जिसो किरमची रङ्गो जी.॥ चि० ए॥. गुरुदेव पासे धारियो, एह थरथ परमंमो जी। पुत्र कलत्र धन धानतें, जाण्या सहु अनरयो जी ॥ चि० एए ए गुण दरशन समकित ना कह्या, चारितमा गुण एमों जी। चउदश थापम पुनिममावस्या, पोषध करे धर पेमो जी ॥ वि० १००॥ कल्याण कारिणी तिथि तीनुं बड़ी, चउमासानी संधै जी। तिनमे प्रति पूरण पोसा करे, बोडि संसारना फन्दो जी चि०१॥ दान देवानि मती निरमसी, बागल नोगल बारो जी। स्फाटक नीपरे हियो निरमलो मुक्या अजङ्गवारो जी॥ चि० ॥ श्रप्रतिती घरमे पईसे नही, पैग नही अप्रतीतो जी। सम पनि ग्रंथने फासुए घणा, दान देवै सुबिनीतो जी चि०३॥ असण पानने षादम सादमे, पीढफलग संथारो जी। शम्या वस्त्र पात्रने कारलि, श्रोस नेषज सारो जी॥ चि०४॥ इत्यादिक दान प्रतिक लाजता, घणों शील श्राचारो जी। नान्द्रा,मा साँस वरतमे, सेंनी सरधा धारो जी लि...
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