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परदेशी रानाकी चौपाह।
दिश ब्रत धारो जी ॥ चि० नए ॥ मरजादा बोल बवीसनी, पनरै करमा दानो जी। अनरथ दन्म त्याग थाठमो, सामायक ब्रत नवमोजी॥चि०ए दशमो देशावगासिया, म्यारमो पोषध सारो जी अतिथ संबिजाग ब्रत विधि करी, एह व्रत बारों जी॥चि ॥ पञ्च पकार अणुव्रत कह्या, तिन गुण ब्रत रीतो जी। सिख्या ब्रत चविधि धन्यो वारह कह्या बिनोती जी। चि० ॥ ॥ श्रावक धर्म श्म यादन्यो, बांद्या गुरु हुलासो जी। चल घंटा रथ बैग्नेि, पहुंत्यो निज श्रावासो जी॥ चि० ए३ ॥ तवतै चित श्रावक हुवो, नवतत्व जीव अजीवो जी। पुन्य पाप आश्रव संवरो, निरजरा ने बंध मोषो जोचिए ॥ एनवतत्व धान्य निरमला, किरिया अधिक रण जाणो जी। माहो विचक्षण झानो करी, पतलो कपटने मानो जी चि० एए ॥ आपदा कष्ट पड्या थकां, न बांडे देबनो. साजो जी। सुर नागादि चलावै धर्मसुं तो न चले धरम जाजो जी॥ चि० ए६ ॥ जिन प्रवचन मे सका नही, पर पाखंमनी नहि चाहो जी। फल प्रतें मनना.धारे, सांधा थरम प्रायो
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