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परदेशी राजाको चौपाइ।
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कहे, मे सरध्या तुम बैण । सुरय मुकति दायक सही, डोसाचा थे सेण ॥१॥ रूच्यो धरम परितीतसुं, तहत जाणि निसन्देह । श्लो पुछो बलि बली, धर्म कहो तुम एह ॥ २॥ सेठ सेनाधिप राजवी, उग्र कुलादिक सार । धन बाहन देशादितजि, लीधो सञ्जम जार ॥ ३ ॥ जैसी पुंह चन माइरी, तनुं अथिर संसार । पिण मुझने समाश्यो, श्रावक ब्रत स्यो बार ॥ ४ ॥ ढील करो मति गुरू कहे, जो है ताहरा लाव । चित्त हाथ जोड़ी कहे, ब्रत सीधा करी चाव ॥ ५ ॥ ढाल ३) कहीये मेलसी श्रावकना ब्रत वार एदेशी देव धरम गुरु साचा धारिने, तजीयो चित्त मिथ्या तो जी। खरी पारषा आइ धरमनी, जेदी सातें धातो जी॥ चित उजलाविरे निजातमा ७६ केशी गुरु दिल धारो जी। सुगरु सङ्गति किया थकां, निहचे खेवों पारो जी॥ चि०७ ॥ त्याग कियो तस मारण तणो, जाने पिनि थाकुड़ो जी। पांच फूल तजा मोटका, मोटी चोरी करि बुटोजी चि०७ ॥ परनारी नो त्याग न कियो, श्रापणी नी मरजादो जी। परिग्रह मरजाद पांचमै, उगे
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