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परंदशी राजाको चौपाइ।
सुणी हरषित थाय ॥ १२ ॥ (दोहा) सेवक नरने तडिन चित्त कहे एदवी बात । रथने साज तयार कर, च्यार घंटारो रथ ॥ ७३ ॥ सेवक सुनि हरषित थयो, रथ सजि कियो तयार । स्नान बिले पन चित करी, सज गहणा कस्या सिणगार,॥७४ अलप चार बहु मोलना, अछूत सजि सिरोपाव रथ बैसी चित चालियो, बन्दन नो धरि चाव ॥ ७५ ॥ सूर सुजट नर परिवस्या, कोरंट फूलनी माल । माथे बत्र धरावतो, सावथी नयरी विचालि ७६ ॥ चित बलिने तिहां आवियो, कोष्टक नाम उद्यान । रथ यापीने निकट थी, बंद्या गुरू बहु मान ॥ ६ ॥ तीन प्रदक्षिणा दे करी, बंद्या श्री गुरूदेव । करतो सनमुख बेसिने, तीन प्रकारनी सेव ॥ ७ ॥ चित प्रमुख परिषद जणी, केशी दे उपदेश । जव्य जीवां समझायवा, जीवदया धर्म वेस ॥ ॥चारि महाव्रत धर्म मे, मामि कहै बिसतार । चोपे चित धारापता, हुवे जीव निस तार ॥ ७ ॥ परिषदा सुन हरषित थई, बन्दी निज पुर जाय। चित्त पिण सुनि रीज्यो हों, जिन धरम आयो दाय ॥ ॥ चित बंदीने श्म
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