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परदशी गनाकी चौपाइ।
तिण थवसर चित्त स्वारथी जी, सुणि जन शब्द बिसेष। चिन्ता मन माहि एहवउपनी जी, बहु जन जाता देष ॥ न० ६५ ॥ सावथी नगरी में याज किसो अने जी, ई महोदय कोइ । कार्तिक हरि चतुरानन रूजनो जी. नाग वैश्रमण होय ॥ जा ६६॥ जुन यद कोइ जैरव को देहरोजी, वृक्ष परबत गुफा कूर । नदी तलाव नाहाह समुनो जी, एता प्रमुख अनूप ॥ न० ६७ ॥ लोग उग्रक्षत्री कुल उपना जी, इक्षाग बंशी आय । सजि बाजरण चढ्या निज बांहने जी, टोले मिल ५ जाय ॥ ज०६७ ॥ चित मनमे श्म तेवडी जी, सेवक पुरष बुलाय । चित उपनी सो मामी कहि जी, करि प्रणाम बहुलाय ॥ च ६ए ॥ केसी
या नो निहचो दुतो जी, सेवक बोच्यो सोय । ईजादिक सस्वर तनो नही जी, श्राज महोब्ब कोय ॥ ज०॥ केशी स्वामी पांचसै साधूसों जी, बाग पधास्या तेह । उपादिक कुल बहुजन बन्दिवा जी, जाइ सबद हुवे जेह ॥ ज० १ ॥ गुरू आयानो हरष हुवो घणो जी, सेठ सेनाधिष जाइ । बन्दन पुजन विधि मामि कहि जी, चित
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