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परदेशी रानाकी चौपाइ।
माहि । यथाजोग्य थानक लेइ जी, उतरा डे तिहां श्राय ॥ ज० ५॥ विचरे सञ्जम चोखो पालता जी, आतमई चाव । किणबिधि श्रावे परिषदा बांदवा जी, सुगजो सहु धरि चाव ॥ ज०५७ ॥ तिण अवसर नगरी सावथी तणाजी त्रिक चोकादिक बाट । लोक कहे कसी गुरू थाविया जी, पांचसे मुनीने थाट ॥ ज० एए॥ माहो माहे चरचा ईणविध.करेजी, नाम लिया निसतार । जिनना दरशन वाणी सुण्या धकांजी निदचे होय जवणर ॥ ज० ६० ॥ के कहे दरशन देखस्यांजी, केश कहे सुनस्यां बाण।। केश कहे मनना संसा जांजस्यां जी, केई कौतुहल जानि जय ६१ ॥ एक अदर आरजनो सानो जी, इण जव परजव खेम । घणा अरथ धास्यां शिव सुख दुवै जी, नही संसो शहां केम ॥ ज०६५ ॥ ईम बिचारि घोड़ा चढ्या जी, केश रथने सुखपाल । के पासिकि याके घुम वहलमे जी, गया तिण बागवि चाल ॥ ज०६३ ॥ पांच अनिगम विधी सुं साचवै जी. मन बचनने काय । सेवा करता तिन प्रकारनी जी, जिम उववाश् माहि ॥१०६४
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