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परदेशी राजाकी चौपाई।
जीत्या चारि कषाय नली पर जी, तृष्णा लोन नो त्याग ॥ ०४ए ॥ जीती निंदा पथैनी दमी जी, परी सावली वावीस । जीवन आसामरणरो जय नही जी, तपस्या करण साहसीक ॥ ज०५० सञ्जम पालता बहुगुण पड्या जी, चरण करण परधान । निसेध डे अनाचार नो जी, तत्वनो निर्नय मान ॥ ०५१॥ मान माया दवटे राखी जी, रुध्यो क्रोधने लोन। किरिया तणी खप वहुली करे जी, खंत्यादिक गुण सोज ॥ ज०५५ बिद्या मंत्र करी नरपुर था जी, ब्रह्मचर्य परधान
आगम बेद करीने श्रागला जी, साते नयना जाण ॥ ज०५३ ॥ नियम अनिग्रहमें काग घणा जी, सेगे काल्यो साच । सुच प्रधान अव्य जांव थी जी, निकलङ्क काळ नवाच ॥ ज०५४ ॥ नाण प्रधान मत्यादिक निरमला जी, दरशन चारित्र एम। चारि ज्ञान चौदे पुरव धणी जी, अधिक दया धर्म प्रेम ॥ न० ५५ ॥ साध पांचसै साथ परिवस्या जी, करता उग्र बिहार । गाम नगर उलकता नी, सुर्षे तिहां लार ॥ ना ५६ ॥ जिहां पिण सावथी नगरी कने जी, कोष्टक बनके
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