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३.२
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जम्बु चरित्र |
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यात कें विस्तार, सुद्ध चेतना पायें पार ॥ ७२ ॥ दोहा) तत्र जम्बू तियसो कहे, सुनो बात गुणनेह विद्युनमासी हूं नही, हास्यो विद्या जेइ ॥ ७३ ॥ विद्युनविद्या खोयके, पायो मुख्य अपार । तैसें हूं नत्रि चूकिड़ों तुमरे वचन लिगार ॥ ७४ ॥ कई पद्मनात, विशुनमाली नाम | कैसे विद्या हारियो, ते जापो सुऊ खाम ॥ ७५ ॥ तत्र जम्बू स्वामी कड़े, सुनो त्रिया तुम बात । विधुनमासी की कथा, सर्व कहुं विख्यात ॥ ७६ ॥ चतुराचित दे सजिलो, मोह काम तजि थाज । चेतनता सुध होय. कीजो पनो काज ॥ 99 ॥ ( चौपाइ ) जम्बूद्रीप बहुत विस्तार, जरत क्षेत्र सोने सुख कार | तिहां इक नगर बसें सुनाम, हे कुष्टपुर नाम इक गाम ॥ ७८ ॥ तिहां बसे ब्राह्मन सुत दोय नाम कहुं सुनियो सबकोय । श्क विद्यनमाली है नाम, पुत्र मेघरथ पूजा ताम ॥ ७९ ॥ दोनो है विद्या धनहीन, महा दुखी दुखसो अधीन । इक दिन पुरके बाहर गया, विद्याधरसुं मिलना नया ॥ ८० ॥ दो मूरख विद्याधर देख, कड़े बचन तव एक विसेष | जो मानो मेरा तुम बात, तो
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