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अम्बु चरित्र ।
दीस । दशें बोल संयमके कहें, सहे परीसह मन थिर रहे ॥ ५३॥ चौबिहार रैनको करे, रात्री जोजन मुनि परिहरे। बोल ग्यारे पाले मुनि, सुद्ध चेतना होवे गुनी ॥ ४ ॥ तजे प्रमाद साध निज अङ्ग, बार बोल पाले मनरङ्ग । साध होय थालस नहि करे, नव सागर सुंदेला तरे ॥ ५५ ॥ बन्ध रहित नित करे बिहार, श्म मुनिवर पालें आचार तेरे बोल साधके कहें, अष्टकर्म सुंन्यारा रहें ॥५६ पर घरका लेवें थाहार, नोजन करे सदा इकवार चौद चोख पाने मुनिराज, श्रातम साध न करते काज ॥ ५५ ॥ जहा पानी पीवे सदा, जीव दया बगड़े नहि कदा। पनर बोल को एह विचार, सचित वस्तु नहि वे धनगार ॥५॥ जिम तिम नाषा बोले नही, असञ्जम बेम कहे नहि कहीं सोल बोल निज मनमे धरें, मिथ्या बचन सदा परिहरें ॥ ५५ ॥ वैन लोक ना सहियो सही. बोल सतरमा इनविध कही । इह बिध मुनिवर पालें धर्म, तो नहि लागेको कर्म ॥६०॥ एक स्थानक मुनि नदि रहें, यती मार्गमे यैसा कहें। बोल अगरे एही चाल, जो पाले सो दीन दयाल ॥६१
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