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अन्धु चरित्र ।
क्षमा करे साधु नित मेव, जैन धर्मको जाने लेब तजें क्रोध समतामें रहे. जगनीस बोल इन बिध कहे ॥ ६॥ नित पडि लेहन कीजे ताम, पूंजि प्रमार्जन करिये काम । सबै जीवकी दया बिचार बीस बोल पाले निरधार ॥ ६३ ॥ गुरुको बचन करे परमान, बोल कवीस नपरि जान । जो मुनि पालें ज्ञानी होय, शिव थानकमे पहुचे सोय ६५ ॥ श्रागम सूत्र जणे नित मेव, जिन बाणीके जाने नेव । इह बावीस बोल गुणखान, पाले मुनिवर चतुर सुजान ॥ ६५ ॥ गुरु कुलवास बसे नित मेव, सदा करे मुनि गुरुकी सेव । तस बोल साध मन धरे, जनम के पातिक हरे ॥ ६६ ॥ पञ्च महाबत पाले यती, नितको पाप न लागे रती। इह चौवीस बोलकी रीत, चेतन सुद्ध कियो परतीत ॥ ६७ ॥ (दोहा.) इण पर दिदा दोहिलो कहे सुधर्मा स्वाम । मेघ कुमर पलताश्या, थिर मन कीजै काम ॥६०॥ जिम अरणक साधू थयो थिर चित सास्यो काज । कहे जम्बु गुरुदेव ने कुण धरणक मुनिराज ॥ ६॥ ॥ श्री गुरु कहे जम्बु प्रतें, तगरा नामे गाम । दत्त नाम विव
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