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जम्बु चरित्र ।
देव गुरु थासातना तजे, मन बचन कायासु नित जजें । जो बोल सदा मनलाय. संयम पालें जे मुनिराय ॥ ४५ ॥ उएढा ऊह्ना बांबें नही, धूप शीत होवे जो कहो । तीजी बोल साध मन धरें ते संसार सुंदेला तरें ॥४६॥ परिग्रह बिन साध मार्गे चलें, पुरमत पाप सबी ते दलें । चार वोल एकाकी जान, पालें मुनि पावें शिवथान ॥ ४ ॥ लोच करावें पञ्चम बोल, ते मुनि सहसें अधकी तोल । नमो तेइने सीस नवाय, नवर का पातिक सव जाय ॥४०॥ एकवार जीमे मुनि सदा, रोगादिक श्रावे नहि कदा । उहा बोलकी एही रीत रस इन्त्रीको मुनिवर जीत ॥ ४ ॥ सिसा जूम करें मुनिराय, जय नहि थाने मन वचकाय । सात वोलके खंबन कहें, साध सोइ जो श्न बिध रहें ५० ॥ विलादिक तपस्या करें, अष्टम बोल मुनि मन धेरै । कर्म थाउ नहि थावे तिहां, करें तपस्या मुनिवर जिहां ॥ ५१ ॥ सदा योगमे मुनि वर रहें, नवमो बोल सुधर्मा कहें। जे पालें ते साध कहाय, ते मुनि बन्दो मन बचकाय ॥ ५५ सहत परीसह जे वावीस, ते अणगार नमो निस
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