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मम्बु चरित्र।
धन्य बो तुमे, चोरी बिसन मुकायो हमे ॥ ३५ दोहा ) जम्बुने प्रजवो कहे, संयम लेसु सङ्ग । तव ते कोणिक बोलियो, सुनो बंऊनो अङ्ग ॥ ३६ बंकराय नो पुत्र बो, तुमसु संयम होय। चोर बिसम को मूकियो, उत्तम मारग जोय ॥ ३ ॥ पहिले तुम कुल ने विषे, सदा धर्म आचार । म प्रसंसा सब करे, राजादिक निरधार॥३८॥ हिवें तिहां थी चालियो, बायो गुरुने गम । धर्माचार्य गुरू जिहां नाम सुधर्मा स्वाम ॥ ३५ ॥ जम्बु स्वामी श्रावियो थाजरणादिक गेड़। चेतनता सुध होयके, बांदे दो कर जोड़ ॥४०॥ (चौपाई) जम्बु कहे स्वामी मुकतार, जग सागर थी पार उतार। तिहांसुधर्मा स्वामी कहें, संयम नार जम्बु निरवहें । ४१ ॥ संयम मुक्कर अति घना, मैण दंतसुं लोहा चना लोद चना चावें नदि कोय, संयम मारग डुक्कर होय ॥४२॥ जम्बु सुनो साध आचार, जैनि ग्रंथ होय श्रणगार । ते चौवीस बोल मन धरे, जाव जीव लगते नव तरे ॥ ५३॥ पांचे सुमति गुपति जै तीन, ए आराधे मुनि परवीन । प्रथम बोत्र साधे जे जती, ताको पाप न लागे रती ॥५॥
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