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जम्बु चरित्र ।
तेंडे राणी श्राज, कुमर कहें मेरो नहि काज। मोरी विच फसा था तिहां, मैने जूग खाया जिहां २७॥ सो मुख मुझको भूला नही, मै नहि जाउं अवतो तहीं । बहु उपाय राणीने किया, ललिता कुमर दिल नहि दिया ॥ ॥ नहि माना राणी बहु कही, कहे जम्बु मै तैसा नही । कामिन सवें सुनो विख्वात, मै नहि नानो तुमरी वात ॥ २ संसार रूप मोरी माह, कौन पड़े उत्तम नर तांद दिदा लेस्युं जम्बु कही, सुन यावे प्रतिबोधी सही ३०॥ प्रनवो चोर पांचसे सवें, बचन सुनी प्रति घोध्या तवें । श्राप तियाके मातरु तात, ते पायो प्रतिबोध विख्यात ॥ ३१ ॥ एवं पांचवें सत्ताइस दिदा लेस्ये विस बावीस । परिवार सहित प्रनयों खास, जास्ये कोनिक राजा पास ॥ ३२ ॥ बीर प्रनु श्रेणिक सुं कहे, जे तो परधन प्रजवो गहें । ते लोकने आपमें सही, श्रेणिक पागल नगवन कही ॥ ३३ ॥ कोणिकने क्षमा वसें आय, धमना थानक देवें बताय । राजाने देखाड़ी सर्ब, प्रजव जला बीने बहु दर्ष ॥ ३४ ॥ कोणिक यादि सरव तिहां, प्रनवो आयो जम्बु जिहा । श्रावी कहे
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