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जम्बु चरित्र।
वहुत मुलक का पाया राज । बहुत रायकी पुत्री वरी, उसको विद्या सिध हुइ खरी ॥ ए० (दोहा नया मेघरथ तव सुखी, जम्बू कहे सुन नार । तुमरी जोग जानिया, चण्डाक्षी निरधार ॥ ए१ हंतो चूको नहि कदा, मेघरथ परें जान। अनेक सुख है सिद्धके, ते पालं शिवधान ॥ १॥ विद्यन माली चूकीयो, सुख पायो विस्तार । तिम हूं नोगन जोगवी, नहि नर संसार ॥ ए३ ॥ नोग तजे संसारको, जोग कर जो कोय । ते पावे सुख सासता, नरक बास नहि होय ॥ ए॥ श्ह सिका सुन लीजिये, तीजी त्रिया सुजान । चेतनता सुध होयके, लीजे अविचल थान ॥ ए५ ॥ ( चौपाइ चौथी कामिण बोली ताम, कनक सेना है ताको नाम । जम्बू खामोसुं तव कहे, हमकुं बोड़ मुक्त सुख गहे ॥ ए६ ॥ खामी लोन मती तुम करो फिर पाउ परतावो खरो । जैसे एक खेत रखवाल ते सुख पायो बहुत बिहाल ॥ एy ॥ जम्बू कहे कौन खेतिहार, बनिता ना जरत मकार । सुर पुर नामे नगरी जिहां. पांवर एक बसें है तिहां ए ॥ खेती करन हार है तेह, करे खेतको रक्षा
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