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जम्चु चरित्र।
चरित्र सांजली, सद्दह सीजे कोय । ते श्राराधक जानिये, नब्य जीवसो होय ॥ १५ ॥ जम्बुना अध्येनमे, श्कविसमा उद्देस । तिहां बहुत विस तार है, यामे ले लबलेस ॥ १५॥ चाषा जम्बु चरित्र ए. पूरो जयो सुजान । जणे गुणे जे सांजवें ते पावे बहु ज्ञान ॥ १६ ॥ वाचक पद धारकांनए शद्धि विजय गुरुदेव । तिनके सिप चेतन विजय नही ज्ञानको नेव ॥ १७ ॥ श्री गुरुदेव दया किया उपजा मनमे शान । नाषा जम्बु चरित्रकी, रचना रची सुजान ॥ १७॥ ज्ञान कलुजानो नही. कियो बुद्धि विस्तार । यामें जो कबु चूक है, पमित लेहु सुधार ॥ १५॥ संबत अगरे बावने, श्रावनको है मास। सुकल तीज रविवार को, पूरो ग्रन्थ बिलास २०॥ बङ्गादेस गङ्गा निकट, गञ्ज अजिम पवित्र । श्री चिन्तामणि पासको, देवल रचा विचित्र ॥२१ सतरे सिखर सुहावनो, गुमटी च्यार सुचङ्ग । सोने कलस सुवर्ण के, कश्स रूप अनङ्ग ॥२५ बिम्ब मनोहर सोजतो, पारस परम दयाल । नर नारी दरशन करें, सदा होय उजमाल ॥ ५३ ॥ ऊपर चौमुख राजते, श्री सीमन्धर देव !
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