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परदेशी राजाकी चौपाइ ।
मुकति घरमने देत जाव दलाली दिव सुनो होय घणा सावचेत ॥ ३२ ॥ ( ढाल ४ रसिया नीदेशी ) चित इम लेई राजाने जेटलो, आया गुराजीने पास हो । महामुनि । सेतं विकाने आता जावसुं बन्दन करे हुलास हो ॥ म० पूज पधारो जी नगरी हम तणी ३३ ॥ होसी घणो उपगार हो । म० । घणा जीवाने मारग धानस्यो, देस्यो: पार उतार हो । म० पू० ३४ ॥ सेतंबिका नगरी दो सामी दीपती, सदाई देखिवा जोग हो । म० तिणमे खाया नफो बहु नीपजे, सुखी बसे बहु लोग हो | म० पू० ३५ ॥ परदेशी ने मेख्यो जेट णो ले चाल्यो बे जेम हो । म० । इकवार दोवार किधी बिनती, गुरु नही बोल्या तेम हो । म० पू० ३६ तीजी वार करतां बिनती, दृष्टांत दे मुनिराय हो म० । फलियौ फूल्यो कोई बाग बै, पशु पंखी जाय कै न जाय हो ॥ म० चतुर नर दे उत्तर हमने इस बातरो ३५ ॥ दां सांमी जाय इम चित कहै, बक्षि बोल्या श्राम हो । च० । तिण बागमे कोई पारबी बसै, तो जाय के नहि जाय हो ॥ च० ३८ ॥ नहि जाय पंखी चित इस कड़े, जय जपने विधाय
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