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परदेशी राजाकी चौपाइ। १०३ ज्योति माहि रहे जी, बाहेर ज्योत न होय ॥ मु० ५७ ॥ शाला मध्य उद्योत डेजी, नहीं शालानी बहार । श्ण दृष्टांते जीवडो जी, बांध्या कर्म अनुसार ॥ मु० ५७ ॥ जेहवो शरीर बांध्यो हुवे जी, जीव असंख्यात प्रदेश । नानी मोटी देहमें जी, सचेतन करे प्रवेश ॥ मु० ५तिण कारण सरदहो जी, जूदा जीवने काय । राय कहे में सरदह्या जी, पण मत बोड्यो नवि जाय ॥ मु० ६० ॥ दोहा ॥ प्रश्न अग्यारमो पूढीयो, मुनिवर दीधो जाब । लोह वणीक बेहडे कह्यो, तब आयो धर्म जाव ॥ ६१॥ राय प्रदेशी गुरु प्रते, बोस्यो जोडी हाथ । धरम खरो में जाणीयो, पण बुजो मुनि वात ॥ ६ ॥ दादा परदादा तणो, दरपिढी नो राह । बडा बडेरा सेवीयो, किम बूटे स्वामीनाथ ॥३॥ में तो खरो धर्म जाणीयो, थारो थे धर्म सार । पण मोसं बूटे नहीं, मारा बडा बूढारो जार ॥ ६३ ॥ में तो घणां दिन जालीयो, बोडता आवे लाज। जिम बै तिमही रहन द्यो, गई करो मुनिराय ॥ ६४ ॥ वचन सुणी राजा तणा, गुरु बोच्या वलि
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