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परदेशी राजाकी चौपाइ ।
स्थानक राजान | देखे तो श्रीकेवली जी, जीवकाया जूदा मान ॥ मु० ४७ ॥ प्रश्न दशमो राजा कहे जी, सांजलजो मुनिराय । जीव समो हाथी कुंथवो जी, ढुंतो किम मुनिराय ॥ मु० ० ॥ राय कहे हाथी थकी जी, कुंथवा ने थोडा कर्म । क्रिया याश्रव आहारनो जी, श्वासोश्वास कध जर्म ॥ मु० ५१ ॥ हाथी ने कुंथवा थकी जी, क्रिया कर्म बहु थाय । जावक्रांत रिध यति घणो जी, हुतो कड़े मुनिराय ॥ मु० ५२ ॥ राय कड़े जीव सारिखो जी, न्यूनाधिक क्यों क्रांत। तब गुरु राजाने कड़े जी, दीवानो दृष्टान्त ॥ मु० ५३ ॥ श्रति मोटी शाला मध्ये जी, दीवा मेलो जोय । आडा जडे किवाडने जी, बिड न राखे कोय ॥ मु० ५४ ॥ मांदि दीवो उजालवे जी, भेटलो करे प्रकाश । बाहेर ज्योत दीसे नहीं जी, इम जिय लगि यावास ॥ मु० ५५ ॥ सुडो कुंडो सरावलो जी, वाढो पाढो जाय । चोथो जवाने सोलमो जी, बत्तीस चोस प्रमाण ॥ मु० ५६ ॥ बिद्र दीवानो ढांकणो जी, दीघो ढांके कोय । तोहि
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