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जम्मु चरित्र
एकाकी थया, बांधी पुरुष पकड़ ले गया। नाच सिखाया बांधी जवें, सीखा नाचन बन्दर तवें ७३ ॥ बन्दर बांधी लाया तहां, राजा गणी बैठा जिहां । लगा नचावन बांधी जवें, निज तिय बन्दर देखी तवें ॥ ४ ॥ राणी बन्दर चिन्दा सही, रोने लगा बन्दर रही। राणी बन्दर नाषा कहें, अव पळताया कबु नहि लहें ॥ ५ ॥ तैं नहि माना मेरी बात, किया लोन तें अति विख्यात। ताते तूंतो बन्दर रहा, ते नहि माना मेरा कहा ॥ ७६ मेरा तेरा नया बिजोग, मत रोवें नहि कीजें सोच तव बांदर सुनके चुप रहा, जो राणीने बातें कहा ७७ ॥ ( दोहा ) जैसा स्वामी मतकरो, हमको तजके लोज । चाहो सुख तुम मुक्तिका, कैसे पायो सोन ॥ ॥ जिम बांदर पडतावते, तैसा करते थाप। अधिक लोन नहि कीजिये, होवे पछाताप नए ॥ तव तियको जम्बू कहे, सुनो बचन चितलाय । कवाड़ी जैसा हूं नही, मूर्ख विवेक रहाय ए ॥ कामिनी जम्बूने कहे, कौन कवाड़ी जीव मूर्खतातें किम कियो, ते तुम नाषो पीव ॥ ए१ चौपाइ ) जम्बू कहें एक बन माहि, कठियारो
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