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जम्नु चरित्र ।
जग वन मे नरजीव निधान ॥ ४ ॥ काल गयन्द जनम है कूप, अजगर सही नरकको रूप । सर्प कषाय चार है जान, बिषिया सुख मधु बिन्छ समान ॥ ५ ॥ बड़ तरु है श्राऊषा ऐन, स्वाम स्वेत उंदर दिन रैन । मधुमाषी परिवार घने एता पुख नर सुख करि गिने ॥ ६ ॥ विद्या धर गुरु धर्म विमान, इह संजोग मिलाद थान नहि नीसरिय जम्बु कही, प्रजव कहें निकलिये सही ॥ ७ ॥ (दोहा) प्रजव कहें जम्बु प्रतें सुनो बचन तुम एक । नाता तोड़ो शाउसुं, ऐसो कहा विवेक ॥ ७ ॥ अगर नाता जम्बु कहें मथुरा नगरी गाम । तिहां एक बेस्या बसें कुबरसेना नाम ॥ नए ॥ तिन पुत्र अरु पुत्रिका जोड़े जनिया माय । सन्मुकमे दोऊं धस्या, पैश दिया बहाय ॥ ए ॥ ते सिन्छक सोरीपुरें आये तटके तीर । एहावेंखें दो बाणिया, पेइ देखी नीर ए॥ ततखिण पेइ खोलियो, निकले दोय सरुप क बालक इक बालिका, सुन्दर रूप अनूप ॥ ए ॥ एक महाजन पुत्रको, लीन्हा अपने पास जा बाणिया बालिका, राखी निज श्रावास
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