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लम्बु चरित्र ।
प्रजब मामे चोर सिरदार, परिकर जहां पांच
सार ॥ १६ ॥ से सुनियो जम्बूकी बात, अर्थ निवाणू कोड़ि विख्यात । व्याह करी जम्बू ध्याय, प्रजव चोर सिहां तव धाय ॥ ७७ ॥ प्रजव चोर पांचसें सर्व, कोड़ि निवाएं बांधे दवे । तब से देखे जम्बू तिहां, बांधे चोर गांवड़ी जिहां ॥ 90 अम्बू मनमे करें विचार, लोगन मे अपजस सिर धार। जब सब दर्व चौर से गया, तब से दिक्षा को मन जया ॥ १ ॥ इम जानि सुमिरें नवकार सर्वे चोर थंज्या सेवार । तद प्रजवो जाहिर हो कहे, जम्बू कुमार विद्या बहु स ॥ ० ॥ यंत्र नि विद्या मोकों देय, अनेक विद्या मुकसे क्षेय कहें जम्बू प्रजव सुन पात, विद्या धन सुरू कोन सुहात ॥ ८१ ॥ काम न यावे मेरे कोय, व्रत यादरों प्रात जय होय । क्या दुख तुमको प्रजयो कहें, स्त्री ध्याव तेरे सङ्ग रहें ॥ ८२ ॥ एता धन है कर तूं जोग, मतढोड़े पाथे संजोग । तत्र जम्बु बोले करि ज्ञान, जग सुख है मधु बिन्दु समान ८३ ॥ प्रजव करें क्या है मधु बिन्ध, हम कहो. धारणी नम्द । कहें जम्बु मधु बिन्दु समान
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