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१५ मा चरित्र । ९३ ॥ अनुक्रमे दोय वाधिया, हवे योवन पन्त माहो माहे व्याहिया, ऐसो मिलियो तन्त ॥ ए४ चौपाइ) श्कदिन रमते पासा सार. दीनी मुंजी नाम निहार । कुबेरदत्त बालक को नाम, कुबेर बत्ता पुत्रिका ताम ॥ एए॥ ब्रात बहिन थापसमे जान, पूढे मात पितासों धान । तव कहि मात पिता सब बात, सुन कुवरदत्ता अकुलात ॥९६ कुवेरदत्ता दिक्षा लिया, उद्धर किरिया तप बहु किया । तप जप करतां उपजा ज्ञान, सब विरतंत जातको जान ॥ ए ॥ कवरदत्त गेड़ घरवास मथुरा नगर गयो व्यापार । तिहां एक देस्याको धाम, कुवेरसेना ताको THE ए॥ रूप देख मोह्यो ततखेर, कवरदन जान नहि जब । निज माताहुँ सङ्गम को, विहां पुत्र एक श्रवत ॥ एए द सब कुवेरदमा जार, शिग्धुनि कहती हैं श्रज्ञान । हाहा विर्षे सुख एसा होय, करें अनर्थ साप नहि जोय ॥ १३ ॥ तो में जा प्रतियोg सही थाइ मथुरा माके रहि । साधवी कहें बेस्यासुं पात, हमकुं जगां देहु विख्यात ॥ ११॥ दियो नगां बेस्या निजगेह, रही साधवी निर्मल देह
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