________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
परदेशी राजाकी चौपाइ।
पधारिया, विचरत केशी वाम ॥ ४ ॥ नाम गोत्र बुझी करी, थानक थाझा दीध। तिन थावि चितने कही, जाणु अमृत पीध ॥ ४ ॥ सुनता हे उतस्यो, स्तुति बन्दन बहु कीध । रथ बैसी बन्दन चलो, जिन गुण मारग लीध ॥ ४ए ॥ करि चन्दन बैव्यो तिहां, गुरु दीधो उपदेश । नीजी सब परिषद सुणी, जीव दया धर्म एष ॥ ५० ॥ साजल सहु हरषित हुवा, फिर प्रणम्यां गुरु पाय धर्म दलाली चित करे, ते सुनज्यो चितलाय ॥ ५१॥ ( ढाल ५ ननदरी देशी ) हाथ जोड़ी करे वीनति, सांजल जो मुनिराय हो । स्वा । राय प्रदेशो पापीयो, थाणो मारग नाई हो ॥ ५२ स्वा० ॥ म्हारे राजाने धर्म सुणावज्यो, होसी घणो उपगार हो । स्वा० । उपद चोपद पसु पंखिया, साता उपजै सार हो ॥ ५३ स्वा० म्हाण. मंग करने थोड़ो लेवै, जीवनी जयणा थाय हो स्वा । पशु पंखी मिरग बंदर नोलिया, उपजे दया दिलमाहे हो ॥५४ स्वाग म्हा॥ सरव प्रजा साता लहै, देश बिदेश सुख होय हो । स्वा । लाज गुण होसी घणो, टलसी घणानो पुःख हो
For Private and Personal Use Only