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परदेशी राजाकी चौपाइ।
तब विलखो होईने बोलतो ए। थे कारज गया बतायने ए, मोसुं गरज सरी नहीं काय ए॥ १० ॥ निशा काष्ठ अगमि तणी ए, सहु वात कही साथ्या जणी ए। श्रग्नि निकली नहीं काठ मांदि ए, तिणसु फुःख पडियो आय ए ॥ ११ ॥ इण कारण दीलगिर हुवो ए, जाई जिहां उखे तिहां पीड ए। मांहोमांहि सहु श्म जणे ए,
आपां रह्या जागसे जड तणे ए ॥ १५ ॥ एटलामें डाह्यो एक ए, चतुराई वात विशेष बै ए। जाण कला सरव तणी ए, काष्ठमें लाकडी मथी ए॥ १३ ॥ अगन सधखी पाड ए, निपजावी चार थाहार ए । स्नान संपाडा करी सेव ए, पढे पूज्या घरका देव ए ॥ १४ ॥ नला होई नोजन करे ए, सहु चलु कर मुबण मुख धरे ए। सब जीमे ताजा होश ए, तिण मूर्खने कहे जोइ ए ॥ १५॥तें क्रोध कीधा दिल मांहि ए, पिण अकल नहीं तुझ मांहि ए । इम पाडिजे श्राग ए, सैसा चतरना माग ए ॥ १६ ॥ कठीयारो मूढ अजाण ए, लकडीसुं मांडी ताण ए । थग्नि पाडण नहीं पारखो ए, राजा तुं कठीयारा सारीखो ए ॥१७॥
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