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परदशी गनाकी चौपाइ।
काम सरव विधिशु ए ॥ ॥ एम शिदा दीधी घणी ए, श्राया चाली अटवी तणी ए। एटले जागीने देखीयो ए. अग्नि खोरो बुझीयो देखीयो ए ॥ ३ ॥ हिवे किम निपजावु आहार ए, तो काढुं काष्ठने फाड ए। बांधी कमर फरसी कालने ए, थायो काष्ठ पे चालने ए ॥ ४ ॥ घणे जोर थकी तसु दोय ए, टुकडा कीधा तिनि सोय ए । नजर पड़ी नहीं आग ए, जब चार आठ सोल नाग ए ॥ ५ ॥ जब संख्याता खंड किया ए, तो नी अग्नि दिखाई नवि दियो ए। श्म कहि मुखी ते होय ए, सोंपी कुण विपदा मोय ए॥ ६ ॥ हुं अधन्य अपुन्य अनाग ए, दिवे काढुं किहांथी आग ए। मोंने संप्यो कुण जंजाल ए, फरसी हेली नाखी राल ए॥ ७ ॥ भारत करे श्रण वातरा ए, मोने कासुं कहेला सायरा ए। आरत रुष ध्यान रह्यो काल ए, करी निचो माथो घाल ए ॥ ॥ ज्युं २ आर्त्त करे जिवे ए, बांसु दोय चार पडे तिठे ए । एटले कठियारा श्रावीया ए, भारतरा लखण पिडानीया ए ॥ ए॥ कहे भारत ध्यान किम करे ए.
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