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परदेशी राजाकी चौपाई |
तो हुं न्यारो सरधतो, तुम कह्यो जे श्राम ॥ प्र० ८५ ॥ तो ते मो मत बै खरो, जोब काया ढै एक । एहनो उत्तर मुनि कहे, युगत मेलि विशेष ॥ प्र० ८६ ॥ मसक वाय जर मुंदिया. सुनि देखि राय | हां दिवी नृप कहे, बोल्या फिर मुनिराय ॥ प्र० ८9 ॥ पर उपगारी इम कड़े, समजावण हेत । आप तरे पर तारहि, खुल्या ज्ञाननां नेत्र ॥ प्र० ८८ ॥ वाय जरी तोले दवडी, पढे काढ देवाय । वलि तराजु तोलवे, किसो फेर दिखाय ॥ प्र० ८ ॥ राय कड़े प्रभु ना घटे, नहीं बडे तिल मात । वलि गुरु जाखे नूप तुं, देख लेने साख्यात ॥ प्र० ए० ॥ हलको जारी ना हुवे. वायु काढे राजान । तो अन्तर नहीं जिय गये, इम श्रद्धा चित्त न || प्र० १ ॥ राय परदेश | इम कदे, ज्ञाने पूरा ढो आप | देत युगत जाणो घण, ज्ञान तणे प्रताप ॥ प्र० २ ॥ इम मो बेस नहीं, शंका बै मुनिराय । प्रश्न यामो, वलि कहे सुणज े ते चित्तलाय ॥ प्र० ३ ॥ दोहा ॥ वाको प्रश्न आमो कहे गुरासुं राय । हुं मोटो मंडाण कारी, बेगे परिषद
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