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परदेशी राजाकी चौपाइ। ६३ माने बात हो ॥ गोपू०१५ ॥ जीव इने खड़गें' की जी, लालासुं करे नेद । क्रोधे रीस चढ़ायने, जी, सूज क्षुध हुवे खेद हो ॥ गो० पू० १६ ॥ होस्या जीव जु मारता जी, होय घणो साहसीक हाथ खरड्या सोही थकी जी, श्सी लगावे लीक हो ॥ गो पू०१७ ॥ लांच सुंक लेतो थको जी, कर लगावतो लार । निंद्या करतो परतणी जी. क्रुड़ कपट जएढार हो ॥ गो० पू० १७ ॥ परचण्ड, पाखन्डी हुतो जी, मनग्राही अनिमान । सील, रहित ब्रतको नहि जी, नहि पोषद पञ्चखाण हो गोग पू० १ए ॥ कबहु उपवास न कियो जी. नहो दिमा मरजाद । निरगुण घनो ओगुण ग्रही जी; कूड़ो बाद विवाद हो ॥ गो ०.२० ॥ घणा उपद चोपद नणी जी, मिरमादिकनी जात । खेचर जंदर नो बियो जी, करे इत्यादिक घात हो, गो० पू०३१॥ अकड़ी करते. मारतो जी, चावा, दिक सो कूट । खाल उपाड़े जीवतां जी, पाप; किया सन्तुष्ट हो ॥ गो० पू० २५॥ अधरम नी, बांधी धजा जी, केतु ग्रह सम जान । साधरमी थाया थकांजी, तु नही अनिमान हो ॥ गोष
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