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परदेशी राजाकी चौपाइ ।
पू०५३॥ बिनय नाव कोइ नही जी, नही आसन नी म। जो निजपर नादे समे जी, करे आकरो दंग हो ॥ गोपू०२४॥ कर आकरो लगावतो जी, बिचरतो इन रीत । धाप जिसा झानी कह्या जी, तिन बिरियानी नीत हो ॥ गो० पू०२५॥ पटराणी ने रायनी जी, सूरीकन्ता नाम । हाथ पाव सुकमाल बे जी, धारणी परे नवश्राम हो गो० पू० ५६ ॥ राजा सु अति रागीणी जी, सबदादिक बहु प्रीत । सुख बिलसें संसारना जी, न गमे काल बिदीत हो ॥ गो पू० २७ ॥ सुत परदेशी रायनो जी, राणी नो अङ्गजात । सुरीकन्त नाम हुतो जी, सूपकला विख्यात हो ॥ गो० पू० ३७॥ इद्धि दाने बहु दीपतो जी, लोक कहै धन धन्न । कोगरी जन्डारनो जी, उमराव दे बहु मान हो ॥ गो० पू० श्ए ॥ परदेशी राजा तने जी हाथी घोड़ा देश । रथ पायक बहुला हुंता जी माल नन्डार बिसेष हो ॥ गोपू० ३० ॥ राजानो जाइ बड़ो जी, हुतो चित्र प्रधान । मित्र सखा सम जानिज्यो जी, बुद्धिवन्त गुणवान हो ॥ गो पू॥ ३१ ॥ दानादिक करि दीपतो जी, लोकांमे
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