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जम्बु चरित्र।
मिले तुमको शिवराज ॥ ३५ ॥ जगके सुखवी योगे खोय, सिद्धी सम पछतावा होय । श्वात महसेना कही, चतुर लोक तुम सुनियो सही ३६ ॥ ( दोहा ) अव जम्बू खामी कहे, सुनो पञ्चमी नार । जातवन्त इयकी तरे. हूं चालुं निर धार ॥ ३३ ॥ कु राह मग चाचं नही, चालों पन्थ सुपन्थ। कोन तुरङ्गम तिय कहे, ते तुम ज्ञापो कन्थ ३०॥ जम्बू कहे तिय सांजलो, अद्भुत बात अनूप संतनपुर इक नगरमे, जितसत्रु तिहां जूप ॥ ६॥ नृपके एक तुरङ्ग है, जातवन्त बहु मोल । राजा हयसुंरञ्जिला, यामे तो बहु तोल ॥ ४० ॥ ते घोड़ा जिनदत्तको, दिया सिस्वावन चाल । हंस चाल सीख्योजत्रे, कुमग दियो सब टाल ॥४१॥(चौपाइ सोल्यो हंससु मारग चाल, सबकु पन्थको दीन्हा टाल । सुना रायका बैरी जवें, नली चाल घोड़ेका तवें ॥ ४२ ॥ जितसत्रु नृपके श्रावास, घोड़ा एक थमोलिक खास । मेरा सेवक असा कोय, उह घोड़ाकू लावे सोय ॥ ५३॥ तव श्क चाकर बीड़ो लियो, रेनसमे जा खातर दियो। तव उह बाह खोल से चला, घोड़ा जातवन्त है जला ॥ ४ ॥ इयत
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