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मम्वु चरित्र। तिहां बसें रजपूत इक, घोड़ी उसके गेह। तिसका सहीस चोरके, दाना बेचे तेह ॥ ६३ ॥ उह घोड़ी नूखी मरे. थाखिर कियो काल । मरके एकज गाममे, हुश्ते बेस्या वाल ॥ ६४ ॥ ते सहीस जव काल कर, जनमे ब्राह्मण गेह। पुत्र पने ते अवतरा हु यौवन देह ॥ ६५ ॥ ( चौपाइ) इक दिन उह बेस्याको देख, रूपवन्त है अतिहि बिसेष बेस्यासो प्रार्थना करें, बेस्या उसको मन नहि धरें ६६ ॥ उसको करज पूर्वमा सही, बेस्यासो बहु तेरा कही। दिख रञ्जनको करता काम, उसके घरका हुवा गुलाम ॥ ६७ ॥ उसके घरका फूग स्वाय, नाचकाम करता मनलाय । जातबि खोइ अपना तझी, मैतो जैसा मूरख नहीं ॥ ६७ ॥ जो तुमरा फूला श्रादरं, गुलाम होके सेवा करूं। शिव सुखका मै लोजी सही, सुद्ध चेतना जम्बू कही ६ए ॥ ( दोहा ) जव बोली त्रिया सातमी, रूप स्त्री ते नाम । स्वामी तुम जैसा करो, मासाहस सब काम ॥०॥ मासाहस पंखेरुघा, साहस निर नय थाय । छदन ब्याघ्रके पैठके, मांस दादको साय ॥ १ ॥ सूता मुहमे बाघके, खगा मांस जो
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