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॥श्रो॥
॥ अथ श्री जम्बू चरित्र प्रारम्नते ॥
(दोहा) श्री अरिहन्त नमो सदा, अरी न आवे पास । अष्टकर्म पूरें टले, बाठों गुण पर काश ॥ १॥ सिद्ध नमो बदु जावसुं सिद्ध होय सब काम । अन्तर ध्यान लग यके, सदा जपों तुम नाम ॥२॥ याचारज को बन्दिये थातम निर्मल होय । लक्ष चौरासी नरमना, फेर न आयें सोय ॥३॥ उबकाया पद नित ननो, पावें उत्तम झान । मन बचन कायासुद्ध कर, निलदिन कीजे ध्यान ॥४॥ साध सकल बन्दो सवा, पाप सवें मिट जाय । पञ्चनाम जपतां चको, पायें सुख अधिकाय ॥५॥
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