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जन्बु चरित्र ।
जम्बू तरु सार, नाम दियो तस जम्बू कुमार ॥ ५७॥ जली लांत जव कियो, बहुन दान याचक ने दियो। अनुक्रम बांधे कमर सुजान यौवनवंत नयो गुणखान ।। ५७॥ पिता देख बालक को रूप, ए सुत सुन्दर अधिक अनूप ! कन्या
आठ सोधक लियो, जम्बूको विबाइ धापियो । ५॥ तिन अवसर वाहर आराम, समोसस्या सुधर्मा स्वाम । जम्बू बन्दन आया तवें, धर्मदेस ना सुनियो जवें ॥ ६० ॥ सुन्यो धर्म सुधर्मा पास मन बैरागें नए उदास , नगर मादि आवे तेवार अकस मात इक वुर्ज मजार ॥ ६१ ॥ गोलो एक लोहको ट्रट, पड्या कुमरके सनमुख बूट । झपन दत्त सुत अचरिज देख, हुढं चित्त वैराग बिसेष ६५ ॥ (दोहा) इह संसार असार है सार एक जिन नाम.। फिर पाठे पाए तिहां जिहां सुधर्मा स्वाम ॥ ६३ ॥ बारे ब्रत धारण किया स्वामि सुधर्मा पास । अनि बन्दन करि श्रावियो जम्बू निज आवास ॥ ६४ ॥ मात पितासुं वोनवें अनु मत दीजें थाज । संयम मारग आदरं करुं धर्म को काज ॥ ६५ ॥ मात कहें सुन बछ तूं व्याह
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