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।। कोबातीर्थमंडन श्री महावीरस्वामिने नमः ।।
।। अनंतलब्धिनिधान श्री गौतमस्वामिने नमः ।। ।। योगनिष्ठ आचार्य श्रीमद् बुद्धिसागरसूरीश्वरेभ्यो नमः ।।
।। गणधर भगवंत श्री सुधर्मास्वामिने नमः ।। ॥चारित्रचूडामणि आचार्य श्रीमद् कैलाससागरसूरीश्वरेभ्यो नमः ।।
आचार्य श्री कैलाससागरसूरिज्ञानमंदिर
पुनितप्रेरणा व आशीर्वाद राष्ट्रसंत श्रुतोद्धारक आचार्यदेव श्रीमत् पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा.
जैन मुद्रित ग्रंथ स्केनिंग प्रकल्प
ग्रंथांक:१
आराधना
वीर जैन
श्री महावी
कोबा.
अमृतं
अमृत
तु विद्या
तु
श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र
शहर शाखा
आचार्यश्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर कोबा, गांधीनगर-श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र आचार्यश्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर कोबा, गांधीनगर-३८२००७ (गुजरात) (079) 23276252, 23276204 फेक्स : 23276249 Websiet : www.kobatirth.org Email : Kendra@kobatirth.org
आचार्यश्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर शहर शाखा आचार्यश्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर त्रण बंगला, टोलकनगर परिवार डाइनिंग हॉल की गली में पालडी, अहमदाबाद - ३८०००७ (079)26582355
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॥ नमः अनन्तलब्धिानेधानाय भगवते इन्दभूतये । निःशेषनिग्रन्थागमामरसरिहिमाचलभगवछीसुधर्मस्वामीसुत्रित
- गूर्जरभाषानुवादयुतं
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* श्रीमद्भगवतीसूत्रम् ॥ ॥ व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥ ( चतुथों भागः)
प्रकाशक:-जामनगरवास्तव्यपंडित 'हीरालाल हंसराज' इत्यस्य 'श्रीजैनभास्करोदय प्रेस'
इति मुद्रणालये मेनेजर बालचंद्र हीगलाल इत्येतेन मुद्रितम् विक्रम संबद १९९५
पण्यं रुप्यकत्रयम्
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९सके
बाख्याप्राप्ति 1८३७॥
उद्देशान Ilow
498A%AGRA
॥ अहम् ॥ श्रीमद्गणधरवरसुधर्मखामिप्रणीता। ॥ व्याख्याप्रज्ञप्तिः॥
॥ श्रीभगवतीसूत्रं भाग-४. ॥ (मूल सूत्र अने तेना गुजराती भाषान्तर सहित ) (शतक ९.) उद्देशक ६.
(त्रीजा भागनुं अनुसंधान चालु तए णं से जमाली खत्तियकुमारे समणेणं भगवया महावीरेणं एवं वुत्ते समाणे हट्ठतुढे समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो जाव नमंसित्ता तमेव चाउरघंट आसरहं दुरूहेइ दुरूहित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियाओ बहुसालाओ चेयाओ पडिनिक्खमह पडिनिस्त्रमित्ता सकोरंदजाव धरिजमाणेणं महया भडचडगर
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प्रवतिः
उदेश 1610
कायस्थेसि तुम जाया
जावपरिक्खित्ते जेणेव खत्तियकुंडग्गामे नयरे तेणेव उवागच्छह तेणेव उवागच्छित्सा खत्तियकुंडग्गाम नगरं याख्या
मज्झमज्झेणं जेणेव सए गिहे जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला तेणेव उवागच्छह तेणेव उवागच्छित्ता तुरए नि
लागिण्हह तुरए निगिण्हित्ता रहं ठवेह रहं ठवेत्ता रहाओ पच्चोकहइ रहाओ पचोरुहित्ता जेणेव अभितरिया उव८३८॥
Pाणसाला जेणेव अम्मापियरो तेणेव उवागच्छइ तेणेव उवागच्छिता अम्मापियरो जएणं विजएणं बद्धावेह
वद्धावेत्ता एवं वयासी-एवं खलु अम्मताओ! मए समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्मे निसंते, सेवि
य मे धम्मे इच्छिए पडिच्छिए अभिरुइए, तए णं तं जमालिं वत्तियकुमारं अम्मापियरो एवं वयासी-धन्नेसि जणं तुमं जाया! कयत्थेसिणं तुम जाया! कयपुन्नेसि णं तुम जाया ! कयलक्खणेसि णं तुम जाया! जन्नं तुमे |समणस्म भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्मे निसंते सेवि य धम्मे इच्छिए पडिच्छिए अभिरुइए,
ज्यारे श्रमण भगवंत महावीरे जमालिने ए प्रमाणे का त्यारे ते प्रसन्न अने संतुष्ट थइ श्रमण भगवंत महावीरने प्रणवार प्रदक्षिणा करी यावत् नमस्कार करीने चारघंटावाळा अश्वरथ उपर चढे छे, चढीने श्रमण भगवंत महावीरनी पासेथी अने बहुशालक | चैत्यधी नीकळे छे. नीकळीने माथे धराता यावत् कोरंटपुष्पनी मालावाळा छत्रसहित, मोटा सुभोभटोना समूहथी वींटायलो ते जमालि | ज्यां क्षत्रियक्डग्राम नामे नगर छे त्यां आवे छे. आवीने क्षत्रियकुंडग्राम नामे नगरनी मध्यभागमां थइने जे स्थळे पोतार्नु घर छे
अने ज्यां बह्मरनी उपस्थानशाला छे त्यां आवे छे. त्या आवीने घोडाओने रोकीने रथने उभो राखे छे. उभो राखीने रथथी नीचे 8 उतरे छे. उतरीने ज्यां अंदरनी उपस्थानशाला छे, ज्यां माता-पिता (वेठा) छे त्यां आवे छे, आवीने माता-पिताने जय अने विज
पासत सेवि य धम्मे हम यह श्रमण भगवंत महावार ने बहुश
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सके उद्देशा ॥८३९॥
Acharya यथी वधावे छे. वधावीने ते जमालिए आ प्रमाणे कड्यु-हे माता पिता! ए प्रमाणे में श्रमण भगवंत महावीर पासेथी धर्म सांभळ्यो
छे, ते धर्म मने इष्ट छे, अत्यन्त इष्ट छे, अने तेमां मारी अभिरुचि थइ छे. त्यारपछी ते जमालि कुमारने तेना माता पिताए आ व्याख्या
६ प्रमाणे कयु-'हे पुत्र ! तुं धन्य हे, हे पुत्र ! तुं कृतार्थ छे, हे पुत्र ! तुं कृतपुण्य छे अने हे पुत्र ! तुं कृतलक्षण छे के जे ते श्रमण 8
भगवंत महावीरनी पासेथी धर्मने सांभळ्यो छे, अने ते धर्म तने प्रिय छे, अत्यन्त प्रिय छे अने तेमां तारी अभिरुचि थई छे.' ८३९॥
. तए णं से जमाली खत्तियकुमारे अम्मापियरो दोचंपि एवं वयासी-एवं खलु मए अम्मताओ! समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्मे निसंते जाव अभिरुइए, तए णं अहं अम्मताओ! संसारभउविग्गेभीए जम्मजरामरणाणं तं इच्छामि णं अम्मताओ! तुज्झेहिं अब्भणुनाए समाणे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं मुंडे
भवित्ता आगाराओ अणगारियं पब्वइत्तए । १ पछी ते जामलि क्षत्रियकुमारे वीजीवार पण पोताना माता-पिताने आ प्रमाणे का के-'हे माता-पिता ! ए प्रमाणे में श्रमण ला भगवंत महावीरनी पासेथी धर्म सांभळ्यो छे, यावत् तेमां मारी अभिरुचि थइ छे. तेथी हे माता-पिता ! हुं संसारना भयथी उद्विग्न
थयो छु, जन्म जरा अने मरणथी भय पम्यो छु, तेथी हे माता-पिता ! तमारी आज्ञाथी हुँ श्रमण भगवंत महावीरनी पासे दीक्षा | लेइने, गृहवासनो त्याग करी, अनगारिकपणाने ग्रहण करवा इच्छु छु. हा तए णं सा जमालिस्स स्खत्तियकुमारस्स माता तं अणिटुं अकंतं अप्पियं अमणुन्नं अमणाम असुयपुव्वं *गिरं सोचा निसम्म सेयागयरोमकूवपगलतविलीणगत्ता सोगभरपवेवियं गर्मगी नित्तया दीणविमणवयणा
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व्याख्याप्रज्ञप्तिः
८४० ॥
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करयलमलियन्च कमलमाला तक्खणओलुग्गदुब्बलसरीरलायन्नसुन्ननिच्छाया गयसिरीया पसिढिलभूसणपडतखुण्णिय संचुश्नियधचलवलयपन्भट्ट उत्तरिज्जा मुच्छावसणटुचेतगुरुई सुकुमालविकिन्नकेसहत्था परसुणियतव्व चंपगलया निव्वत्तमहे व्व इंदलङ्की विमुकसंधिबंधणा कोट्टिमतलंसि घसत्ति सव्वंगेहिं संनिषडिया, तए णं सा जमालिस्स खत्तियकुमारस्स माया ससंभमोयत्तियाए तुरियं कंपणभिंगार मुहविणिग्गयसीय| लविमलजलधारापरिसिंचमाणनिव्ववियगायलट्ठी उक्खेवयतालियंटबीयणगजणियवाएणं सफुसिएणं अंतेउर परिजणेणं आसासिया समाणी रोयमाणी कंदमाणी सोयमाणी विलवमाणी जमालिं खत्तियकुमारं एवं वयासी तुमंसि णं जाया ! अम्हं एगे पुत्ते इट्ठे कंते पिए मणुन्ने मणामे थेजे वेसासिए समए बहुमए अणुमए भंडकरंडगसभाणे रयणे रगणन्भूए जीविऊसविये हिययानंदिजणणे उंबरपुप्फमिव दुल्लभे सवणयाए, किमंग पुणे पासणयाए ?, तं नो खलु जाया । अम्हे इच्छामो तुज्झं खणमवि विप्पओगं, तं अच्छाहि ताव जाया! जाव ताव अम्हे जीवामो, तओ पच्छा अम्हेहिं कालगएहिं समाणेहिं परिणयवये वड्डियकुल वसतंतुकमि निरवयक्खे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं मुंडे भवित्ता आगाराओ अणगारियं पव्वइहिसि ।
त्यारबाद जमालि क्षत्रियकुमारनी माता अनिष्ट, अकांत, अप्रिय, अमनोज्ञ, मनने न गमे तेवी अने पूर्वे नहीं सांभळेली एवी वाणीने सांभळी अने अवधारीने रोमकूपथी झरता परसेवाथी भीना शरीरवाळी थइ, शोकना भारथी तेनां अंगो अंग कंपना लाग्या, ते निस्तेज थई, तेनुं सुख दीन अने शोकातुर थयुं, करतलवडे चोळायेली कमलमालानी पेठे तेनुं शरीर तत्काळ ग्लान अने दुर्बल
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९ शतके
उद्देश६ 1168 H
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सके
व्याख्याप्राप्ति ८४१॥
४१
थियु. ते लावण्यशून्य, प्रभारहित अने शोभाविनानि थइ गइ. तेना आभूषणो ढीलां थह गया, अने तेथी तेना निर्मल वलयो पड़ी गयां अने भांगीने चूर्ण थइ गया. तेनु उत्तरीय वस्त्र शरीर उपरथी सरी गयुं, अने मूविडे तेनुं चैतन्य नष्ट थयु होवाथी ते भारे शरीरवाळी थइ गई. तेनो सुकुमाल केशपाश विसराइ गयो. कुहाडीना घाथी छेदाएली चंपकलतानी पेठे अने उत्सव पूरो थता इन्द्रध्वजदंडनी जेम तेनां संधिबंधनो शिथिल थह गयां, अने ते फरसबंधी उपर सर्व अंगोवडे 'वस्' दइने नीचे पडी गइ. त्यार पछी
ते जमालि क्षत्रियकुमारनी माताना शरीरने (दासीवडे) व्याकुलचित्ते त्वराथी ढळाता सोनाना कलशनामुखथीनीकळेली शीतल भने ६ निर्मल जलधाराना सिंचनवडे स्वस्थ कर्य, अने ते उत्क्षेपक (वांसना बनेला),तालवृंत (ताडना पांदडाना ननेला) पंखा अने वीजणाना
जलबिन्दुसहित पवनवडे अंतःपुरना माणसोथी आश्वासनने प्राप्त थइ. रोती, आक्रंदन करती, शोक करती अने विलाप करती ते जमालि क्षत्रियकुमरनी माता एप्रमाणे कहेवा लागी-'हे जात ! तुं अमारे इष्ट, कांत, प्रिय, मनोन, मन गमतो, आधारभूत, विश्वासपात्र, संमत, बहुमत, अनुमत, आभरणनी पेटी जेवो, रत्नस्वरूप, रत्नना जेवो, जीवितना उत्सव समान अने हृदयने आनंदजनक एमज पुत्र छो. वळी उंबरानापुष्पनी पेठे तारा नामनु श्रवण पण दुर्लभ छे, तो तारुं दर्शन दुर्लभ होय एमां शुं कहे ? माटे हे पुत्र ! खरेखर अमे तारो एक क्षण पण वियोग इच्छता ना. तेथी हे पुत्र ! ज्यां मुधी अमे जीवीए छीए त्यांसुधी तुं रहे. अने अमे कालगत थया पछी वृद्धावस्थामा कुलवंचतन्तुनी वृद्धि करीने निरपेक्ष एवो तुं श्रमण भगवंत महावीरनी पासे दीक्षा ग्रहण करी गृहवासनो त्याग करी अनगारिकपणाने स्वीकारजे.'
तए णं से जमाली बत्तियकुमारे अम्मापियरो एवं क्यासी-तहावि णं तं अम्मताओ! जण्णं तुझे मम
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शतके उदेश TICBRA
एवं वदह तुमंसि णं जाया! अम्हं एगे पुत्ते इढे कंतेत चेव जाव पब्वइहिसि, एवं खलु अम्मताओ! माणुस्सए व्याख्या- ६ भवे अणेगजाइजरामरणरोगसारीरमाणसपकामदुक्खवेयणवसणसतोवद्दवाभिभूए अधुए अणितिए असासए प्राप्तिः संझन्भरागमरिसे जलवुब्बुदसमाणे कुसग्गजलबिंदुसन्निभे सुविणगर्दसणोवमे विज्जुलयाचंचले अणिच्चे सडणप॥४॥ डणविद्धंसणधम्मे पुन्धि वा पच्छा वा अवस्सविप्पजहियव्वे भविस्सइ, से केस णं जाणइ अम्मताओ! के पुब्धि
गमणयाए १, के पच्छा गमणयाए ?, तं इच्छामि णं अम्मताओ! तुज्झेहिं अन्भणुनाए समाणे समणस्स भग-1 है वओ महावीरस्स जाव पञ्चइत्तए। का त्यार पछी ते जमालि क्षत्रियकुमारे पोताना माता-पिताने आ प्रमाणे कयु के-'हे माता-पिता! हमणां मने जे तमे ए प्रमाणे कांके-हे पुत्र ! तुं अमारे इष्ट तथा कांत एक पुत्र छो-इत्यादि यावत् अमारा कालगत थया पछी तुं प्रव्रज्या लेजे." पण हे माता -पिता! ए प्रमाणे खरेखर आ मनुष्यभव अनेक जन्म, जरा, मरण अने रोगरूप शारीर अने मानसिक दुःखोनी अत्यन्त वेदनाथी | अने सेंकडो व्यसनोथी पीडित, अध्रुव, अनित्य, अने अशाश्वत छे, तेम संध्याना रंग जेवो, पाणीना परपीटा जेवो, डाभनी अणी | उपर रहेला जलबिन्दु जेवो, स्वप्नदर्शनना समान, विजळीनी पेठे चंचळ अने अनित्य के. सडवू पडवु अने नाश पामयो ए तेनो धर्म के. पहेलां के पछी तेनो अवश्य त्याग करवानो छे; हे माता-पिता! ते कोण जाणे छ के-कोण पूर्वे जशे, अने कोण पछी जशे | | माटे हे माता-पिता ! हुं तमारी अनुमतिथी श्रमण भगवंत महावीरनी पासे यावत् प्रव्रज्या ग्रहण करवाने इच्छु छु.
तए णं तं जमालिं खत्तियकुमारं अम्मापियरो गवं वयासी-इमं च ते जाया! सरीरगं पविसिहरू
ॐ4523964ॐॐ
*
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व्याख्याप्रज्ञतिः
॥८४३ ॥
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वलक्खणवंजणगुणोववेयं उत्तमबलवीरियसत्तजुत्तं विष्णाणवियक्खणं ससोहग्गगुणसमुस्सियं अभिजाय मह| क्वमं विविवाहिरोगरहियं निरुवहयउदत्तलठ्ठे पंचिंदियपडुपढमजोब्वत्थं अणेगउत्तमगुणेहिं संजुत्तं तं अणुहोहि ताव जाव जाया ! नियगसरीररूवसोहग्गजोवणगुणे, तओ पच्छा अणुभूयनियगमरीररूवसोहग्गजोव्वणगुणे अम्हेहिं कालगएहिं समाणेहिं परिणयवये वडियकुलवंसतंतुकज्जमि निरवयक्खे समणस्स भग ओ महावीरस्स अंतियं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइहिंसि, तए णं से जमाली खत्तियकुमारे अम्मापियरो एवं बयासी - तहावि णं तं अम्मताओ! जन्नं तुज्झे ममं एवं बदह इमं च णं ते जाया सरीरगं तं चैव जाव पव्वइहिसि एवं खलु अम्मताओं! माणुस्सगं सरीरं दुक्खाययणं विविवाहिसयसंनिकेतं अट्ठियकडुट्टियं छिरा पहारुजाल ओणद्धसंपिणद्धं मत्तियभंड व दुब्बलं असुइकिलिडं अणिट्ठविय सव्वकालसंठप्पियं जराकुणिमजज्ज| रघरं व सडणपडणविद्धंसणधम्मं पुर्वि वा पच्छा वा अवस्सविप्पजहियव्वं भविस्सह, से केस णं जाणति ? अममताओ ! के पुचि तं चैव जाव पव्वइत्तए ।
त्यापछी ते जमालि क्षत्रियकुमारने तेना माता पिताए आ प्रमाणे कछु के-" हे पुत्र ! आ तरुं शरीर उत्तम रूप, लक्षण, व्यंजन (मस, तल वगैरे) अने गुणोथी युक्त छे, उत्तम बल, वीर्य अने सत्त्वसहित छे, विज्ञानमां विचक्षण छे, सौभाग्य गुणथी उन्नत छे, कुलीन छे, अत्यन्त समर्थ छे, अनेक प्रकारना व्याधि अने रोगथी रहित छे, निरुपहत. उदाच, अने मनोहर छे, पटु (चतुर) एवी पांच इन्द्रियोथी युक्त अने उगती युवावस्थाने प्राप्त थयेलुं छे, अने ए शिवाय बीजा अनेक उत्तम गुणोथी भरपूर छे. माटे हे पुत्र !
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९ शतके उद्देशः ६
॥ ८४३॥
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R
ज्यां सुधी तारा पोताना शरीरमा रूप, सौभाग्य तथा यौवनादि गुणो के त्यांसुधी तेनो तुं अनुभव कर, अने अनुभव करी अमो. व्याख्या- IF कालगत थया पछी वृद्धावस्थामा कुलवंशरूप तन्तुनी वृद्धि करीने निरपेक्ष एवो तुं श्रमण भगवान् महावीर पासे दीक्षा लइने गृहवा-18९ शतके प्राप्तिः सनो त्याग करी अनगारिकपणाने स्वीकारजे. त्यारपछी ते जमालि क्षत्रियकुमारे पोताना माता-पिताने ए प्रमणे कयु के- उदेश ॥८४४॥
माता-पिता! ते बरोबर छे, पण जे तमे मने ए प्रमाणे कयु के-'हे पुत्र ! आ करुं शरीर (उत्तमरूप, लक्षण व्यंजन अने गुमोबी 116888 युक्त छे) इत्यादि यावत् (अमारा कालगत थया पछी) तुं दीक्षा लेजे.' पण ए रीते तो हे माता-पिता! खरेखर आ मनुष्यनुं शरीर दुःख घर छे, अनेक प्रकारना सेंकडो व्याधिोनुं स्थान छे, अस्थिरूप लाकडानुं बनेलं छे, नाडीओ अने स्नायुना समूहथी अत्यन्त विटाएल छे, माटीना वासणनी पेठे दर्बल छे, अशुचिथी भरपूर छे, जेनुं शुश्रूषा कार्य हमेशां चालु छे. जीर्ण मृतक अने जीर्ण घरनी
पेठे संड, पडवू अने नाश पामवो-ए तेनो सहज धर्मो छे. वळी ए शरीर पहेलां के पछी अवश्य छोडवानुं छे. तो हे माता-पिता! दाते कोण जाणे छ के कोण पहेलां (जशे अने कोण पछी जशे. १) इत्यादि.
तए णं जमालि खत्तियकमारं अम्मापियरो एवं क्यासी-इमाओ य ते जाया! विपुलकुलबालियाओसरित्तयाओसरिव्वयाओ मरिसलावन्नरूवजोवणगुणोववेगाओ सरिसएहितो कुलहितो आणिएल्लियाओ कलाकुसलसव्वकाललालियसुहोचियाओ मद्दगुणजुत्तनिउणविणओवयारपंडियवि यक्खणाओ मंजुलमियमहरभणियषिहसियविप्पेक्खियगतिविसालचिट्ठियविसारदाओ अविकलकुलसीलसालिणीओ विसुद्धकुलवंससंताणतंतुवद्धणप्पग (भु) भवप्पभाविणीओ मणाणुकूलहियइच्छियाओ अट्ठ तुज्झ गुणवल्लहाओ उत्समाओ निचं भावाणुत्त.
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९ पतके
उद्देश ॥८४५॥
है रसवंगसुंदरीओ भारियाओ, तं भुंजाहि ताव जाया! एताहिं सद्धिं विउले माणुस्सए कामभोगे, तओ पच्छा याख्या
मुत्तभोगी विसयविगययोज्छिन्नकोउहल्ले अम्हेहिं कालगएहिं जाव पब्वइहिसि । प्राप्तिः त्यारपछी तेना माता-पिताए ते जमालि क्षत्रियकुमरने आ प्रमाणे का के-'हे पुत्र ! आ तारे आठ स्त्रीओ छे, ते विशाल कुलमां १८४८॥ उत्पन्न थवेली अने बाळाओ छे, ते समान त्वचावाळी, समान उमस्वाळी, समान लावण्व, रूप अने यौवनगुणथी युक्त छे; वळी ते
समान कुलथी आणेली, कलामां कुशल, सर्वकाल लालित अने सुखने योग्य छे; ते मार्दवगुणथी युक्त, निपुण, विनयोपचारमा पंडित
अने विचक्षण छे; सुंदर मित, अने मधुर बोलबामां, तेंमज हारय, विप्रेक्षित, (कटाक्ष दृष्टि), गति, विलास अने स्थितिमा विशारद दछ उत्तम कुल अने शीलथी सुशोभित छ; विशुद्ध कुलरूप बंशतंतुनी वृद्धि करवामां समर्थ यौवनवाळी छे मनने अनुकूल अने हृद
यने इस ; वळी गुणो वडे प्रिय अने उत्तम छे, तेमज हमेशां भावमां अनुरक्त अने सर्व अंगमा सुंदर छे. माटे हे पुत्र ! तुं ए स्त्रीओ | साथे मनुष्यसंबन्धी विशाल कामभोगोने भोगव अने त्यारपछी भुक्तभोगी थइ विषयनी उत्सुकता दूर थाय त्यारे अमारा कालगत थया पछी यावत् तुं दीक्षा लेजे.
तए णं से अमाली स्वत्तियकुमारे अम्मापियरो एवं वयासी-तहावि ण तं अम्मताओ! जन्नं तुज्झे मम एवं वयह-इमाओ ते जाया विपुल कुलजावपब्वइहिसि, एवं खलु अम्मताओ। माणुस्सय कामभोगा असुई असा. सया वंतासवा पित्तासवा खेलासवा सुक्कासवा सोणियासवा उच्चारपासवणखेलसिंघाणगवंतपित्तपूयसुक्कसोणियसमुन्भवा अमणुन्नदुरूवमुत्तपूइयपुरीसपुन्ना मयगंधुस्सासअसुभनिस्सासा उब्वेयणगा बीभत्था अप्पकालिया
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प्रज्ञप्तिः ||८४६ ॥
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लहसगा कलमलाहिया सदुक्ख बहुजणसाहारणा परिकिलेस किच्छदुक्खसज्झा अबुजणणिसैविया सदा साहूगरहणिज्जा अणतसंसारवणा कडुग फलविवागा चुडलिव्व अमुयमाणदुक्खाणुबंधिणो सिद्धिगमण विग्धा, से केस णं जाणति अम्मताओ! के पुव्वि गमणयाए?, के पच्छा गमणयाए ?, तं इच्छामि णं अम्मताओ ! जाव पवस्तए । त्यारपछी ते जमालि नामे क्षत्रियकुमारे पोताना माता पिताने आ प्रमाणे कछु के- 'हे माता-पिता ! हमणा तमे जे मने कछु | के है पुत्र तारे विशाल कुलमां (उत्पन्न थयेली आ आठ स्त्रीओ छे) - इत्यादि यावत् तुं दीक्षा लेने, से ठीक छे. पण हे माता-पिता ! ए प्रमाणे खरेखर मनुष्य संबन्धी कामभोगो अलुची अने अशाश्वत छे; वात, पित्त, श्लेष्म, वीर्य अने लोहीने झरवावाळा छे; विष्ठा, सूत्र, श्लेष्म, नासिकानो मेल, वमन, पित्त, परु, शुक्र अने शोणितथी उत्पन्न थयेलां ; वळी ते अमनोन, खराब मूत्र अने दुर्गन्धी विष्ठाथी भरपुर छे; मृतकना जेवी गंधवाळा बच्चासथी अने अशुभ निःश्वासथी उद्वेमने उत्पन्न करे छे, बीभत्स, अल्पकाळस्थायी, हलका, अने कलमल - ( शरीरमां रहेल एक प्रकारना अशुभ द्रव्य)ना स्थानरूप होवाथी दुःखरूप अने सर्व मनुष्योने साधारण छे; | शारीरिक अने मानसिक अत्यंत दुःखवडे साध्य छे; अज्ञान जनथी सेवाएला छे; साधु पुरुषोथी हमेशां निंदनीय छे; अनंत संसारनी वृद्धि करनारा छे, परिणामे कटुकफळवाळा छे, बळता थासना पूळानी पेठे न झुकी शकाय तेवा दुःखानुबंधी अने मोक्षमार्गमा विनरूप छे. बळी हे माता-पिता ! ते कोण जाणे छे के कोण पहेलां जशे अने कोण पछी जशे ? माटे हे माता-पिता ! हुं यावद् दीक्षा लेवाने इच्छु छु.'
तए णं तं जमालिं खत्तियकुमारं अम्मापियरो एवं वयासी - इमे व ते जाया ! अजयषज्जयपिउपज्ञयागएसु
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९ शतके
उद्देशः५ ॥८४६॥
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तके उरेशा 1८४७०
बहु हिरन्ने यसुबन्ने य कसे य दुसे याविउलधणकणगजाव संतसारसावएज्ज अलाहि जाव आसत्तमाओकुलवंसाओ म्याख्या- पकामं दाउं पकाम भोपकामं परिभाएउ तं अणुहोहि ताव जाया! विउले माणुस्सए इड्डिसकारसमुदए, तओ प्राति पच्छा अणुहूयकल्लाणे वड्डियकुलतंतु जाव पब्वहहिसि । तए णं से जमाली खत्तियकुमारे अम्मापियरो एवं बयासी८४७॥ तहावि णं तं अम्मताओ! जन्नं तुझे ममं एवं वदह-इमं च ते जाया! अजगपज्जगजावपब्वइहिसि, एवं खलु
अम्मताओ। हिरन्ने य सुचन्ने यजाब सावपजे अग्गिसाहिए चोरसाहिए रायसाहिए मच्चुसाहिए दायसाहिए एवं अग्गिसामन्ने जाव दाइयसामन्ने अधुवे अणितिए असासए पुविधा पच्छा वा अवस्सविप्पजहियन्वे भविस्सइ, से केस ण जाणइ तं चेव जाव पब्वइत्तए।
त्यारपछी ते जमालि नामे क्षत्रियकुमारने तेना माता-पिताए आ प्रमाणे कयु के 'हे पुत्र ! आ अर्या (पितामह), पर्या (प्रपि18/ तामह) अने पिताना पर्या-(प्रपितामह-) थकी आवेलुं घj हिरण्य, सुवर्ण, कांस्य, वस्त्र, विपुल धन, कनक यावत् सारभूत द्रव्य
विद्यमान छे, अने ते तारे सात पेढी सुधी पुष्कळ दान देवा भोगववाने अने वहेंचवा माटे पूरतुं छे. माटे हे पुत्र! मनुष्यसंबन्धी विपुल ऋद्धि
अने सन्मानने भोगव, भने त्यारपछी सुखनो अनुभव करी, अने कुलवंशने वधारी यावत् तुं दीक्षा लेजे.' त्यारवाद जमालि नामे | क्षत्रियकुमारे पोताना माता-पिताने आ प्रमाणे को के-'हे माता-पिता ! तमे जे ए प्रमाणे कयु के, 'हे पुत्र ! आ हिरण्यादि द्रव्य तारा पितामाह अने प्रपितामहथी यावत् आवेलुं छे, इत्यादि यावत् तुं दीक्षा लेजे. ए ठीक छे, पण हे माता-पिता! ए प्रमाणे खरेखर ते हिरण्य, सुवर्ण, यावत् सर्व सारभूत द्रव्य अभिने साधारण छे, चोरने साधारण छे, राजाने साधारण छे, मृत्युने साधारण
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उद्देश II Can
|छे, दायाद (भायात) ने साधारण छ, अग्रिने सामान्य छे, यावद् दायादने सामान्य छे. वळी ते अध्रुव, अनित्य, अने अशाश्वत छे. व्याख्या- ६ पहेलां के पछी ते अवश्य छोडवानुं छे, तो कोण जाणे छे के पहेला कोण जशे अने पछी कोण जशे ? इत्यादि बापत् हुं प्रव्रज्या प्रवतिः लेवाने इच्छु छु.' 11८४८॥ ना तए णं तं जमालिं खत्तियकुमारं अम्मताओ जाहे नो संचाएन्ति विसयाणुलोमाहिं बहहिं आघवणादि य
पन्नवणाहि य सन्नवणाहि य विनवणाहि य आघवेत्तए वा पन्नवेत्तए वासन्न वेत्तए वा विन्नवेत्तए वा ताहे विसहै यपडिकूलाहिं संजमभयुव्वेयणकराहिं पन्नवणाहिं पनवेमाणा एवं बयासी-एवं खलु जाया! निगंथे पावयणे
सचे अणुत्तरे केवले जहा आवस्सए जाव सम्वदुक्खाणमंतं करेंति अहीव एगंतदिट्ठीए खुरो इव एगंतधाराए लोह| मया जवा चावयम्वा वालुयाकवले इव निस्साए गंगा वा महानदी पडिसोयममणयाए महासमुद्दे वा भुवाहिं दुत्तरो तिक्खं कमियध्वं गरुयं लंबेयव्वं असिधारग वतं चरियब, नो खलु कप्पइ जाया! समणाण निग्गंथाणं आहाकम्मिएत्ति वा उद्देसिएइ वा मिस्सजाएइ वा अज्झोयरएइ वा पूइएइ वा कीएइ वा पामिचेइ वा अच्छेन्जेद वा अणिसट्टेइ वा अभिहडेइ वा कंतारभत्तेइ वा दुन्भिवभत्तइ वा गिलाणभत्तेह वा वहलियाभत्तेइ वा पाहुण. गभत्तइ वा सेजायरपिंडेइ बा रायपिंडेइ वा मूलभोयणेइ वा कंदभोयणेइ वा फलभोयणेइ वा बीयभोयणेइ वा हरियभोयणेह वा भुक्षए वा पायए वा, तुमचणं जाया! सुहसमुचिए, णो चेव णं दुहसमुचिते, नालं सीयं नालं उण्हं नालं खुहा नालं पिपासा नालं चोरा नालं वाला नालं दंसा नालं मसया नालं वाइयपित्तियसेंभियसन्नि
वालयाकवले इव प्रिसिधारगं वक्तं चरियइ वा पूहराइ वा कोरडा वाइलियाभत्तेह वा पाया ।
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व्याख्याप्राप्ति ॥८४९॥
उद्देश ॥८४९॥
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वाइए विविहे रोगायंके परिसहोवसग्गे उदिन्ने अहियासेत्तए, तं नो खलु जाया! अम्हे इच्छामो तुझ खणमवि विप्पओगं, तं अच्छाहि ताव जाया! जाव ताव अम्हे जीवामो, तओ पच्छा अम्हेहिं जाव पब्बइहिसि ।
____ ज्यारे जमालि क्षत्रियकुमारने तेना माता पिता विषयने अनुकूल एवी घणी उक्तिओ, प्रज्ञप्तिओ, संज्ञप्तिओ अने विज्ञप्तिओथी ४ से कहेवाने, जणाववाने, समजावयाने, विनववाने समर्थ न थया त्यारे तेओए विषयने प्रतिकूल, अने संयमने विषे भय अने उद्वेग | करनारी एवी उक्तिओथी समजावता आ प्रमाणे कडं के 'हे पुत्र ! ए प्रमाणे खरेखर निग्रंथ प्रवचन सत्य, अनुत्तर अने अद्वितीय
अदिती | छे. इत्यादि आवश्यक सूत्रमा कह्या प्रमाणे यावत् ते सर्व दुःखोनो नाश करनारु छे. परन्तु ते सर्पनी पेठे एकांत-निश्चित दृष्टिवालु, अस्त्रानी पेठे एकांत धारवालु, लोढाना जवने चाबवानी पेठे दुष्कर, अने वेल्लुना कोळीयानी पेठे निःस्वाद छे, वळी ते गंगा नदीना सामे प्रवाहे जवानी पेठे, अने बे हाथथी समुद्र तरवाना जेवं ते प्रवचन- अनुपालन मुश्केल छे. तीक्ष्ण खड्गादि उपर चालवाना जेवू [ दुष्कर ] मे, मोटी शिलाने उचकवा बरोबर छ अने तरवारनी धारा ममान व्रतर्नु आचरण करवान छे. हे पुत्र ! श्रमण निर्गथोने १ आधार्मिक, २ औद्देशिक, ३ मिश्रजात, ४ अध्यवपूरक, ५ पूतिकृत, ६ क्रीत, ७ प्रामित्य, ८ अच्छेद्य, ९ अनिःसृष्ट, १० अभ्याहृत, ११ कांतारभक्त, १२ दुर्भिक्षभक्त, १३ ग्लानभक्त, १४ वार्दलिकाभक्त, १५ प्राघूर्णकभक्त, १६ शय्यातरपिंड अने १७ राजपिंड, तेमज मूलनु भोजन, कंदर्नु भोजन, फलनु भोजन, बीजनुं भोजन अने हरित-(लीलीवनस्पति) में भोजन खावु के पीयूँ कल्पतुं नथी, वळी हे पुत्र! तुं सुखने योग्य छो पण दुःखने योग्य नथी. तेमज टाढ, तडका, भुख, तरश, चोर श्वापद, डांस अने मच्छरना उपद्रवोने, तथा बातिक, पैत्तिक, श्लैष्मिक अने संनिपातजन्य विविध प्रकारना रोगो अने तेना दुःखोने, तेमज परिषह अने
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व्याख्याप्रशतिः ॥८५०॥
९ शतके उद्देश 1८५०॥
SACROBAC
उपसर्गोने सहवाने तुं समर्थ नथी. माटे हे पुत्र ! अमे तारो वियोग एक क्षण पण इच्छता नथी; तेथी ज्यांसुधी अमे जीविए त्यांसुधी सातुं रहे अने अमारा कालगत थया पछी यावद तुं दीक्षा लेजे'. है तए णं से जमाली खसियकुमारे अम्मापियरो एवं वयासी-तहाविणतं अम्मताओ। जन्नं तुझे मम
एवं वयह-एवं खलु जाया ! निग्गंथे पावयणे सचे अणुत्तरे केवले तं चेव जाव पव्वहहिसि, एवं खलु अम्मताओ! निग्गंथे पावयणे कीवाणं कायराणं कापुरिसाणं इहलोगपडिबदाणं परलोगपरंमुहाणं विसयति. सियाणं दुरणुचरे पागयजणस्स, धीरस्म निच्छियस्स ववसियस्स नो खलु एत्थं किंचिवि दुकरं करणयाए, तं इच्छामि णं अम्मताओ! तुज्झेहिं अन्भणुनाए समाणे समणस्स भगवओ महावीरस्स जाव पव्वइत्तए । तए णं जमालिं खत्तियकुमारं अम्मापियरो जाहे नो संचाएंति विसयाणुलोमाहि य विसयपडिकूलाहि य यहूहि य आघवणाहि य पन्नवणाहि य ४ आघवेत्तए वा जाव विनवेत्तए वा ताहे अकामए चेव जमालिस्स खत्तियकुमारस्स निक्खमणं अणुमन्नित्था ॥ (सूत्रं ३८४) ॥
त्यारपछी ते जमालि नामे क्षत्रियकुमारे पोताना माता-पिताने आ प्रमाणे कयु के-'हे माता-पिता ! तमे मने जे ए प्रमाणे कमुके-हे पुत्र ! निग्रंथप्रवचन सत्य, अनुत्तर अने अद्वीतीय के-इत्यादि यावत् अमारा कालगत थया पछी तुं दीक्षा लेजे. ते ठीक छे, पण हे माता-पिता! ए प्रमाणे खरेखर निर्ग्रन्थ प्रवचन क्लीन-मन्दशक्तिवाळा, कायर अने हलका पुरुषोने, तथा आ लोकमां आसक्त, परलोकथी पराङ्मुख एवा विषयनी सृष्णावाला सामान्य पुरुषोने (तेनुं अनुपालन) दुष्कर छे; पण धीर, निश्चित अने प्रय
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M९सके
व्याख्याप्राप्तिः ८५१॥
उन
www.kobatirth.org नवान् पुरुषने तेनुं अनुपालन जरा पण दुष्कर नथी. माटे हे माता-पिता ! हुं तमारी अनुमतिथी श्रमण भगवंत महावीरनी पासे यावद् दीक्षा लेवाने इच्छु छु. ज्यारे जमालि क्षत्रियकुमारने तेना माता-पिता विषयने अनुकूल तथा विषयने प्रतिकूल एवी घणी उक्तिओ, प्रशप्तिओ, संज्ञप्तिओ अने विनतिओथी कहेवाने यावत् समजाववाने शक्तिमान् न थया त्यारे वगर इच्छा ए ओए जमालि क्षत्रियकुमारने दीक्षा लेवानी अनुमति आपी. ॥ ३८४ ॥
तए णं तस्स जमालिस्स खत्तियकुमारस्स पिया कोडुंबियपुरिसे सद्दावेह सद्दावेत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! खत्तियकुंडग्गामं नगरं सम्भितरबाहिरियं आसियसंमजिओवलित्तं जहा उववाइए जाव पचप्पिणति, तए णं से जमालिस्स खत्तियकुमारस्स पिया दोचंपि कोइंचियपुरिसेसद्दावेह सहावइत्ता एवं वयासीखिप्पामेव भो देवाणुप्पिया जमालिस्स खत्तियकुमारस्स महत्थं महग्धं महरिहं विपुलं निक्खमणाभिसेयं उबहवेह, तए णं ते कोडुंबियपुरिसा तहेव जाव पञ्चप्पिणंति, तए णं तं जमालिं खत्तियकुमारं अम्मापियरो सीहासणवरंसि पुरत्याभिमुहं निसीयाति निसीयावेत्ता अट्टसएणं सोवनियाणं कलसाणं एवं जहा रायप्पसेणइज्जे जाव अदृसएणं भोमेजाणं कलसाणं सब्बिड्डीए जाव रवेणं महया महया निक्खमणाभिसेगेणं अभिसिंचन्ति निक्खमणाभिसेगेणं ॥
त्यार पछी ते जमालि क्षत्रियकुमारना पिताए कौटुंबिक पुरुषोने बोलाव्या. अने बोलावीने एम कडु के-'हे देवानुप्रियो ! शीघ्र आ क्षत्रियकुंडग्राम नगरनी बहार अने अंदर पाणीथी छंटकाव करावो, वाळीने साफ करावो, अने लीपावो'--इत्यादि जेम औप
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व्याख्याप्रद्यप्तिः ८५२॥
|९ शतके उद्देश HIGHRH
सोनाना कलशाया इत्यात्रियङ्गमारने तेना माता-पिता उत्तम सिंड्यारनाद ते कौटुंबिक पुरुषो कद्या प्रमाण
पातिक सूत्रमा काछे तेम करीने यावत् ते कौटुंबिक पुरुषो आज्ञा पाछी आपे छे. त्यारवाद फरीने पण जमालि क्षत्रियकुमारना पिताए कौटुंबिक पुरुषोने बोलाव्या, अने बोलावीने आ प्रमाणे कह्यु के-'हे देवानुप्रियो ! जलदी जमालि क्षत्रियकुमारनो महार्थ, महामूल्य, महापूज्य अने मोटो दीक्षानो अभिषेक तैयार करो.' त्यारबाद ते कौटुंबिक पुरुषो कह्या प्रमाणे करीने आज्ञा पाछी आपे | छे. त्यारवाद जमालि क्षत्रियकुमारने तेना माता-पिता उत्तम सिंहासनमा पूर्व दिशा सन्मुख बेसाडे छे, अने वेसाडीने एकसो आठ सोनाना कलशोथी-इत्यादि राजप्रश्नीयक्षेत्रमा कह्या प्रमाणे यावत् एकसोने आठ माटीना कलशोधी सर्व ऋद्धिवडे यावद् मोटा शब्दमोटा २ निष्क्रमणाभिषेकथी तेनो अभिषेक करे छे.
अभिसिंचित्ता करयल जाव जएणं विजएणं बद्धान्ति, जएण विजएण वद्धावेत्ता एवं वयासी-भण जाया! किं देमो? किं पयच्छामो? किंणा वा ते अट्ठो?, तर णं से जमाली खत्तियकुमारे अम्मापियरो एवं वयासी-इच्छामि णं अम्मताओ! कुत्तियावणाओ रयहरणं च पडिग्गहं च आणिउं कासवगं च सद्दाविउं,तए णं से जमालिस्स स्वत्तियकुमारस्सपिया कोटुंबियपुरिसे सद्दावेइ सद्दावेत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! सिरिघराओ तिनि सयसहस्साई गहाय दोहि सयसहस्सेहिं कुत्तियावणाओरयहरणं च पडिग्गहच आणेह सयसहस्सेणं कासवगं च मद्दावेइ, तए णं ते कोटुंबियपुरिसा जमालिस्स खत्तियकुमारस्स पिउणा एवं बुत्ता समाणा हद्वतुहा करयल जाव पडिसुणेत्ता खिप्पामेव सिरिघराओतिन्नि सयसहस्साई तहेव जाव कासवगं सद्दावेंति । तए णं से कासवए जमालिस्स खत्तियकुमारस्स पिउणा कोटुंबियपुरिसेहिं सदाविए समाणे हवे तुट्टे
AA
ARAS
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९ शतके
| उद्देशान
शख्याराप्ति ८५३॥
पहाए कयलिकम्मे जाच सरीरे जेणेव जमालिस्स खत्तियकुमारस्स पिया तेणेव उवागच्छद तेणेव उवागच्छित्ता
अभिषेक कर्या बाद ने जमालि क्षत्रियकुमारना माता-पिता हाथ जोडी यावत् तेने जय अने विजयथी वधावे छे. वधावीने दू तेओए आ प्रमाणे कां के–'हे पुत्र ! तुं कहे के तने अमे शुं दइए, शुं आपीए, अथवा तारे कांड प्रयोजन छे ? त्यारे ते जमालि
क्षत्रियकुमारे पोताना माता-पिताने आ प्रमाणे कयु के-हे माता-पिता ! हुं कुत्रिकापणथी एक रजोहरण अने एक पात्र मंगाववा तथा एक हजामने वोलावघा इच्छु छु; त्यारे ते जमालि क्षत्रियकुमारना पिताए कौटुंबिक पुरुषोने बोलाव्या अने बोलावीने का के-'हे देवानुप्रियो ! शीघ्र आपणा खजानामांथी त्रण लाख (सोनैया) ने लड़ने तेमांथी वे लास (सोनया) वडे कुत्रिकापणी एक रजोहरण अने एक पात्र लावो, तथा एक लाख सोनैया आपीने एक हजामने बोलावो. ज्यारे जमालि क्षत्रिकुमारना पिताए ते कौटुंचिक पुरुषोने ए प्रमाणे आज्ञा करी त्यारे तेओ खुश थया, तुष्ट थया, अने हाथ जोडीने यावत् पोताना स्वामीनुं वचन स्वीकारीने तुरतज खजानामांथी त्रण लाख सुवर्णमुद्रा लइने यावत् हजामने बोलावे छे, त्यारबाद जमालि क्षत्रियकुमारना पिताए कौटुंबिक पुरुपो द्वारा बोलावेलो ते हजाम खुश थयो, तुष्ट थयो, न्हायो, अने बलिकर्म (देवपूजा) करी, यावत् तेणे पोतानुं शरीर शणगायु, अने पछी ज्यां जमालि क्षत्रियकुमारनो पिता छे त्यां ते आवे के.
करयल• जमालिस्म खत्तियकुमारस्स पियरं जगणं विजएणं बद्धावेइ जएणं विजएणं बद्धावित्ता एवं वया. सी--संदिसंतु ण देवाणुपिया! जमा करणिज्जं, ताण से जमालिस्स खत्तियकुमारस्स पियात कासवगं एवं वयासी-तुम देवाणुप्पिया! जमालिस्स खत्तियकुमारस्स परेणं जत्तणं चउरंगुलबजे निक्खमणपयोगे अग्गकेसे
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९
शतके उद्देशा ॥८५४॥
पडिकप्पेह, तए ण से कासवे जमालिस्स खत्तियकुमारस्स पिउणा एवं वुत्ते समाणे हद्वतुढे करयल जाव एवं पाख्या- सामी! तहत्ताणाए विणएण वयणं पडिसुणेइ २ त्ता सुरभिणा गंधोदएणं हत्थपादे पक्खालेइ सुरभिणा २
प्तिः | सुद्धाए अपडलाए पोत्तीए मुहं बंधह मुहं बंधित्ता जमालिस्म खत्तियकुमारस्स परेण जत्तेणं चउरंगुलवले नि- ५४॥
क्खमणपयोगे अग्गकेसे कप्पइ । तए ण साजमालिस्स खत्तियकुमारस्समाया हंसलक्खणेणं पडसाउएणं अग्गकेसे पडिच्छह अग्गकेसे पडिच्छित्ता सुरभिणा गंधोदएण पक्खालेइ सुरभिणा गंधोदएणं पक्खालेत्ता अग्गेहिं वरेहिं गंधेहिं मल्लेहिं अचेति २ सुद्धवत्थेणं बंधेह सुद्धवत्थेणं बंधित्ता रयणकरंडगंसि पक्खिवति २ हारवारिधारासिंदु. बारछिन्नमुत्तावलिप्पगामाई सुयवियोगदूसहाई अंसूई विणिम्मुयमाणी २ एवं वयासी-एस अम्हं जमालिस्स
खत्तियकुमारस्स बहसु तिहीसु य पब्वणीसु य उस्सवेसु य जन्नसु य छणेसु य अपच्छिमे दरिसणे भविस्सतीहै| तिकटु ओसीसगमूले ठवेति, । आवीने हाथ जोडीने जमालि क्षत्रियकुमारना पिताने जय अने विजयथी वधावे छे; वधाच्या पछी ते हजाम आ प्रमाणे बोल्यो के–'हे देवानुप्रिय ! जे मारे करवान होय ते फरमावो'. त्यारपछी ते जमालि क्षत्रियकुमारना पिताए ते हजामने आ प्रमाणे का के-'हे देवानुप्रिय ! जमालि क्षत्रियकुमारना अत्यन्त यत्नपूर्वक चार अंगुल मूकीने निष्क्रमणने (दीक्षाने) योग्य आगळना वाळ कापी नाख. त्यारपछी ज्यारे जमालि क्षत्रियकुमारना पिताए ते हजामने ए प्रमाणे कात्यारे ते खुश थयो, तुष्ट थयो अने हाथ जोडीने ए प्रमाणे बोल्यो-'हे खामिन् ! आज्ञा प्रमाणे करीश' एम कहीने विनयी ते वचननो स्वीकार करे छे. स्वीकार करीने
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९ शतके | उद्देशः६ 1८५५॥
सुगंधी गंधोदकथी हाथ पगने धुए छे, धोइने शुद्ध आठ पडवळा वनधी मोढाने बांधी अत्यंत यत्नपूर्वक जमालि क्षत्रियकुमारना
निष्क्रमण योग्य अग्रकेशो चार आंगळ मूकीने कापे छे. त्यार पछी जमालि क्षत्रियकुमारनी माता हंसना जेवा श्वेत पटशाटकथी ते राख्या
अग्रकेशोने ग्रहण करे छे. ग्रहण करीने ते केशोने मुगंधी गंधोदकथी धृए छे. धोइन उत्तम अने प्रधान गंध तथा मालावडे पूजे छे. राप्तिः
पूजीने शुद्ध वस्त्रवडे बांधे छे. बांधीने रत्नना करंडियामा मृके छे. त्यार पछी ते जमालि क्षत्रियकुमारनी माता हार, पाणीनी धारा, ८५५॥
सिंदुवारना पुष्पो अने तूटी गएली मोतीनी माळा जेवां पुत्रना वियोगी दुःसह आंसु पाडती आ प्रमाणे चोली के-आ केशो
अमारा माटे घणी तिथिओ, पर्वणीओ, उत्सवो, यज्ञो, अने महोत्सवोमां जमालिकुमारना वारंवारं दर्शनरूप थशे' एम धारी तेने ४ ओशीकाना मूळमां मूके छे.
तए णं तस्स जमालिस्म खत्तियकुमारस्म अम्मापियरो दोचंपि उत्तरावकमणं सीहासणं रयाति १२ दोचंपि जमालिस्स खत्तियकुमारस्स सीयापीयएहिं कलसेहिं नाण्हेंति सीयापीयएहिं कलसेहिं नाण्हेत्ता
पम्हसुकुमालाए सुरभिए गंधकासाइए गायाई लूहेंति सुरभिए गंधकासाइए गायाइं लूहेत्ता सरसेणं | गोसीसचंदणेणं गायाई अणुलिंपित्ता नासानिस्सासवायवोज्झं चक्खुहरं वन्नफरिसजुत्तं हयलालापेलवातिरेगं धवलं कणगखचियंतकम्मं महरिहं हंसलक्खणपडसाडगं परिहिंति २ हारं पिणटुंति २ अद्धहारं पिणद्धति २ एवं जहा सूरियाभस्स अलंकारो तहेव जाव चित्तं रयणसंकडुक्कडं मउडं पिणद्वंति, किं बहुणा?, गंथिमवेढिमपूरिमसंघातिमेणं चउब्विहेणं मल्लेणं कप्परुक्खगं पिच अलंकियविभूसियं करेंति ।
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ख्या
शतिः
८५६॥
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त्यार बाद ते जमालि क्षत्रियकुमारना माता-पिता पुनः उत्तर दिशा सन्मुख बीजुं सिंहासन मूकावे छे. मूकावीने फरीवार जमालि क्षत्रियकुमार ने सोना अने रूपाना कलशो वडे न्हवरावे छे. न्हवरावीने सुरभि, दशावाळी अने सुकुमाल सुगंधी गंधकापाय (गन्धप्रधान लाल) व वडे तेनां अंगोने लूंछे छे, अने अंगोने लुंछीने सरस गोशीर्ष चंदनवडे गावनुं विलेपन करे छे. विलेपन करीने नासिकाना निःश्वासना वायुथी उडी जाय एवं हलकुं, आंखने गये तेनुं सुंदर, वर्ण अने स्पर्शथी संयुक्त, घोडानी लाळ करतां पण वधारे नरम, धोळं, सोनाना कसबी छेडावाळं, महामूल्यबाळु, अने हंसना चिह्नयुक्तएवं पटशाटक ( रेशमी वख) पहेरावे . पहेरावीने हार अने अर्धहारने पहेरावे के ए प्रमाणे जेम सूर्यामना अलंकारतुं वर्णन करेलुं छे तेम अहिं करवुं यावत् विचित्र रत्नोथी जडेला उत्कृष्ट मुकुटने पहेरावे छे. वधारे शुं कहेतुं ? पण ग्रंथिम-गुंथेली, वेष्टिम-वींटेली, पूरिम पूरेली अने संघातिम- परस्पर संघात बडे तैयार थयेली चारे प्रकारनी माळाओ बडे कल्पवृक्षनी पेठे ते जमालि कुमारने अलंकृत--विभूषित करे छे.
तपणं से जमालिस खत्तियकुमारस्स पिया को बियपुरिसे सहावेइ सदावेत्ता एवं व्यासी-स्त्रिप्पामेव भो देवाणुपिया ! अणेगखं भसय सन्निविद्धं लीलट्ठियसालभंजियागं जहा रामप्पसेणइज्जे विमाणवन्नओ जाव मणिर यमघंटियाजालपरिक्खित्तं पुरिससहस्सवाहणीयं सीयं उबट्टवेह उवद्ववेत्ता मम एयमाणत्तियं पचपण, तणं ते कोडुंबियपुरिसा जाव पञ्चष्पिणति । तए णं से जमाली खत्तियकुमारे केसालंकारेणं चत्थालंकारेण मल्लालंकारेणं आभरणालंकारेणं चउच्विहेणं अलंकारेणं अलंकारिए समाणे पडिपुन्नालंकारे सीहासणाओ अब्भुट्ठेह सीहा सणाओ अभुट्टेत्ता सीयं अणुष्पदाहिणीकरेमाणे सीयं दुरूह २ सीहासणवरंसि पुरत्याभिमुहे सन्निसणे ।
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९ शतके
उद्देश६ ||८५६॥
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व्याख्या
९ शतके
प्रतिः
| उश६ | ॥८५७०
1८५७॥
त्यार बाद ते जमालि क्षत्रियकुमारना पिता कौटुंबिक पुरुषोने बोलावे छे. अने बोलावीने तेणे आप्रमाणे कझुके-'हे देवानुप्रियो ! शीघ्र सेंकडो स्तंभोबडे सहित लीलापूर्वक पुतळीओधी युक्त -इत्यादि राजप्रश्नीयसूत्रमा विमाननु वर्णन कर्यु छे तेवी यावत् मणिरत्ननी घटिकाओना समूह युक्त, हजार पुरुपोथी उंचकी शकाय तेबी शीविका पालखीने तैयार करो अने तैयार करीने मारी आज्ञा पाठी आपो.' त्यारबाद ते कौटुंबिक पुरुषो यावत् आज्ञाने पाछी आपे छे. त्यार पछी ते जमालि क्षत्रियकुमार केशालंकार, वखालंकार माल्यालंकार अने आभरणालंकार ए चार प्रकारना अलंकारथी अलंकृत थइ प्रतिपूर्ण अलंकारथी विभूपित थइ सिंहासनथी उठे छे. उठीने ते शिविकाने प्रदक्षिणा दइने तेना उपर चढे के. चढीने उत्तम सिंहासन उपर पूर्व दिशा मन्मुख बेसे छे.
तएणं तस्स जमालिस वत्तियकुमारस्स माया पहाया कयबलि जाब सरीरा हंसलक्खणं पडसाडगं गहाय | सीयं अणुप्पदाहिणीकरेमाणी सीयं दुरूहद सीयं दुरूहित्ता जमालिस्स ग्वत्तियकुमारस्स दाहिणे पासे भद्दासण| वरंसि संनिसना, ताण नस्स जमालिस्स वत्तियकुमारस्म अम्मधाई पहाया जाच सरीरा रयहरणं च पडिग्गहं च गहाय मीयं अणुप्पदाहिणी करेमाणी सीयं दुरूहइ सीयं दुरूहित्ता जमालिस्स स्वत्तियकुमारस्स वामे पासे भद्दा. सणवरंसि संनिसन्ना । तए णं तस्स जमालिस्स खत्तियकुमारस्स पिट्ठओ एगा वरतरुणी सिंगारागार चारुवेसा संगयगय जाच रूवजोधणविलासकलिया सुंदरथण हिमरययकुमुदकुंदेंदुप्पगासंसकोरेंटमल्लदामं धवलं आयवत्तं गहाय सलील उवरि धारेमाणी २ चिट्ठति, तए णं तस्स जमालिस्स उभओपासिं दुवे वरतरुणीओ सिंगारागाराचरुजावकलियाओ नाणामणिकणगरयणविमल महरिहतवणिज्जुजलविचित्तदंडाओ चिलियाओ संखंककुदद.
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गरयअमयमहियफेणपुंजसंनिकासाओ धवलाओ चामराओ गहाय सलील वीयमाणीओ चिट्ठति, व्याख्या- ____ त्यापछी ते जमालि क्षत्रिकुमारनी माता स्नान करी पलिकर्म करी यावत् शरीरने अलंकृत करी, हंसना चिट्सवाना पटशाटकने 61९ शतके प्रज्ञप्ति
है। लइ शिविकाने प्रदक्षिणा करी नेना उपर चढे छे अने चढीने ते जमालि क्षत्रियकुमारने जमणे पडखे उत्तम भद्रासन उपर बेठी. ওয়া ८५८॥ पछी जमालि क्षत्रिययुःमारनी धावमाता स्नान करी यावत् शरीरने शणगारी रजोरहण अने पात्रने लइ ते शिविकाने प्रदक्षिणा करी |*
॥८५८ ४ातना उपर चढे ने, अने चढीने जमालि क्षत्रियकुमारने डाबे एडखे उत्तम भद्रासन उपर बेठी. त्यारपछी ते जमालि क्षत्रियकुमारनी
पाछळ मनोहर आकार अने सुंदर पहेरवेशवाळी, संगतगतिवाळी यावद रूप अने यौवानना विलासथी युक्त, सुंदर स्तनवाळी एक युवती हिम, रजत, कुमुद. मोगरानुं फुल अने चंद्रसमान कोरंटकपुष्पनी माळायुक्त, घोढुं छत्र हाथमा लइ तेने लीलापूर्वक धारण | करती उभी रहे है. त्यारपछी ते जमालिने बन्ने पडखे शृंगारना जेवा मनोहर आकारवाळी अने सुंदर वेशवाळी उत्तम वे युवती सीओ यावर अनेक प्रकारना मणि, कनक, रत्न अने विमल, महामूल्य तपनीय रक्त सुवर्ण-) थी बनेला, उज्ज्वल विचित्र दंडवाळां,
दीपतां, शंख, अंक, मोगराना फुल, चंद्र, पाणीना बिन्दु अने मथेल अमृतना फीणना समान धोळां चामरोने ग्रहण करी लीलापू. हाक वींजती उभी रहेछ. । तए तस्स जमालिस्म खत्तियकुमारस्स उत्तरपुरच्छिमेणं एगा वरतरुणी मिंगारागारजाव कलिया सेतरय पामयविमलसलिलपुपणं मत्तगयमहामुहाकितिममाणं भिंगारं गहाय चिट्टइ, नए णं तस्स जमालिस्स खत्तियकुमारस्स दाहिणपुरच्छिमेणं एगा वरतरुणी सिंगारागारजाव कलिया चित्तकणगदंड तालवेंट गहाय चिट्ठति, तए
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९ शतके
| उद्देशा ॥८५९॥
Achary |णं तस्स जमालिस्म खत्तियकुमारस्स पिया कोटुंबियपुरिसे सहावेइ को० २त्ता एवं बयासी-खिप्पामेव भो|
देवाणुप्पिया! सरिसयं सरित्तयं मरिग्वयं सरिसलावन्नरूवजोव्वणगुणोबवेग एगाभरणं वसणगहियनिनीय कोडे व्याख्या
|बियवरतरुणमहस्सं सद्दावेह, तए णं से कोडुबियपुरिसा जाब पडिसुणेत्ता स्थिप्पामेव सरिमयंमरित्तयं जाव सदाति, प्राप्तिः
तए ण ते कोटुंबियपुरिसा जमालिस्स ग्वत्तियकुमारस्स पिउणकोदुथियपुरिसेहिं सद्दाविया समाणा हतुट्ठ पहाया ॥८५९॥
किय बलिकम्मा कयकोउयमंगलपायच्छित्ता एगाभरणवसणगहियनिलोया जेणेव जमालिस्म खत्तियकुमारस्सपि-1 ४|या तेणेव उवागच्छन्ति ते०२त्ता करयलजाव बद्धावेत्ता एवं वयासी-संदिसंतुणं देवाणुप्पिया! अम्हेहिं करणिज,
पछी ते जमालि क्षत्रियकुमारनी उत्तरपूर्व दिशाए शृंगारना गृह जेवी उत्तम वेपवाळी यावत् एक उत्तम स्त्री श्वेत रजतमय, पवित्र पाणीथी भरेला अने उन्मत्त हस्तीना मोटा मुखना आकारवाला कलशने ग्रहण करीने यावद उभी रहे छे. त्यारपछी ते जमालि क्षित्रियकुमारनी दक्षिणपूर्वे शंगारना गृहरूप उत्तम वेपवाळी यावत एक उत्तम स्त्री विचित्र सोनाना दंडवाळा पिंजणाने लइने उभी रहे रे, पछी ते जमालि क्षत्रियकुमारना पिताए कौटुंबिक पुरुषोने बोलाच्या अने बोलावीने आ प्रमाणे कयुके - 'हे देवानुप्रियो ! शीघ्र सरखा, समानत्वचावाळा, समानउमरवाळा, समानलावण्य, रूप अने यौवान गुणयुक्त, अने एक सरखा आमरण अने वस्वरूप परि करवाळा एक हजार उत्तम युवान कौटुंबिक पुरुषोने बोलायो'. पछी ते कौटुंबिक पुरुषोए यावत् पोताना स्वामीनुं वचन स्वीकारीने जलदी एक सरखा अने सरखी त्वचावाळा यावत् एक हजार पुरुषोने बोलाव्या. त्यारपछी ते जमालि क्षत्रियकुमारना पिताए कौटुंबिक पुरुष द्वारा बोलावेला ते कौटुंबिक पुरुपो हर्पित अने तुष्ट थया. स्नान करी, बलिकर्म (पूजा) करी, कौतुक अने मंगलरूप प्रायश्चित्त
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प्रज्ञप्तिः ॥८६॥
करी, एकसरखाघरेणां अने वखरूप परिकरवाळा थईने तेओ ज्यां जमालि क्षत्रियकुमारना पिता छे त्यां आवे छे. आवीने हाथ जोडी | यावत् वधावी तेओए आ प्रमाणे कयु के-'हे देवानुप्रिय ! जे कार्य अमारे करवानुं होय ते फरमावो.'
४९ शतके ताणं से जमालिस्स खत्तियकुमारस्सपियातं कोडुपियवरतरुणसहस्संपि एवं वदासी-तुज्झेणं देवाणुप्पियाउरेशा |पहाया कय बलिकम्मा जाव गहियनिजोगा जमालिस्स खत्तियकुमारस्स सीयं परिवहह, तए णं ते कोडुंबियपुरिसा ॥८६॥ जमालिस्म खत्तियकुमारस्स जाब पडिसुणेत्ता पहाया जाव गहियनिजोगा जमालिस्म स्वत्तियकुमारस्स सीय परिवहंति। तए णं तस्स जमालिस्स खत्तियकुमारस्स पुरिमसहस्सवाहिणी सीयं दुरूढस्स समाणस्स तप्पढमयाए इमे अट्ठमंगलगा पुरओ अहाणुपु बीए संपट्ठिया, तं०-सोस्थिय सिरिवरुछ जाव दप्पणा, तदाणतरं च ण पुन्नकलसभिंगारं जहा उववाइए जाव गगणतलमणुलिहंती पुरओ अहाणुपुवीए संपट्ठिया, एवं जहा उववाइए तहेव भाणियब्वं जाव आलोयं वा करेमाणा जय २ सदं च पउंजमाणा पुरओ अहाणुपुवीए संपट्टिया । तदाणतरं च ण बहवे उग्गा भोगा जहा उव वाइए जाव महापुरिसबग्गुरपरिक्वित्ता जमालिस्म वत्तियस्स पुरओय मग्गओ य पामओ य अहाणुपुञ्चीए संपट्ठिया।
पछी ते जमालिकुमारना पिताए ते हजार कौटुंबिक उत्तम युवान पुरुषोने आ प्रमाणे कयु के-'हे देवानुप्रियो ! स्नान करी, | बलिकर्म करी अने यावत् एक सरखां आंभरण अने वखरूपपरिकरवाळा तमे जमालि क्षत्रियकुमारनी शिबिकाने उपाडो.' पछी ते जमालि क्षत्रियकुमारना पितानुं वचन स्वीकारी स्नान करेला यावत् सरखो पहेरवेष धारण करेला ते कौटुंबिक पुरुषो जमालि क्षत्रिय
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व्याख्याप्रासि ॥८६॥
९ शतके उमेशा 11८६१५
कुमारनी शिविका उपडे छे. पछी ज्यारे ते जमालि क्षत्रियकुमार हजार पुरुषोथी उपाडेली शीविकामां बेटो त्यारे सौ पहेला आ आठ आठ मंगलो आगळ अनुक्रमे चाल्या. ते आ प्रमाणे १ स्वस्तिक, २ श्रीवत्स, यावद् ८ दर्पण. ते आठ मंगळ पछी पूर्ण कलश चाल्यो-इत्यादि औपपातिकसूत्रमा कह्या प्रमाणे यावद् गगन तलनो स्पर्श करती एवी वैजयंती-ध्वजा आगळ अनुक्रमे चालीइत्यादि औषपातिकसूत्रमा कह्या प्रमाणे यावत् जय जय शब्दको उच्चार करता तेओ आगळ अनुक्रमे चाल्या. त्यारपछी घणा उग्रकुलमा उत्पन्न थयेला, भोगकुलमा उत्पन्न थयेला पुरुषो औपपातिकमूत्रमा कह्या प्रमाणे यावत् मोटा पुरुषो रूपी वागुराथी वींटायेलि* जमालि क्षत्रियकुमारनी आगळ, पाछळ अने पडखे अनुक्रमे चाल्या.
तएणं से जमालिस्स स्वत्तियकुमारस्स पिया पहाए कयपलिकम्मे जाव विभूसिए हत्यिस्त्रंधवरगए सकोरेंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरित्रमाणेण सेयवरचामराहिं उधुब्वमाणे २ हयगयरहपवरजोहकलियाए चाउरंगिणीए सेणाए सद्धिं संपरिबुडे महयाभडचडगर जाच परिक्खित्ते जमालिस्स खत्तियकुमारस्स पिट्ठओ २ अणुः गच्छइ । तए णं तस्स जमालिस्स खत्तियकुमारस्स पुरओ महं आसा आसवरा उभओ पासिं णागा णागवरा पिट्टओ रहा रहसंगेल्ली। तए णं से जमाली वत्तियकुमारे अन्भुग्गभिंगारे परिग्गहियतालियंटे ऊसवियसेतछत्ते पवीइयसेतचामरवालवीयणीए सब्विड्डीएजाव णादितरवेणं । तयाणतरं च णं बहवे लडिग्गाहा कुतग्गाहा जाब पुत्थयगाहा जाव वीणगाहा, तयाणंतरं च णं अहसयं गयाणं अट्ठसयं तुरयाणं अट्ठसयं रहाणं, तयाणंतरं च णं लउडअसिकोतहत्याणं बहणं पायत्ताणीणं पुरओ संपट्टियं, तयाणंतरं च णं बहवे राईसरतलवरजावसत्यवा
MARATHACHECK
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व्याख्याप्राप्तिः ८६२॥
९ शतके उदेश ॥८६॥
CHUNCAKACC+
हप्पभिइओ पुरओ संपट्ठिया जाव णादितरवेण खत्तियकुंडग्गामं नगरं मज्झमजणं जेणेव माइणकुंडग्गामे नयरे जेणेव बहुसालए चेहए जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव पहारेत्य गमणाए।
त्यारपछी ते जमालिकुमारना पिता स्नान करी, बलिकर्म करी यावद् विभूषित थइ हाथीना उत्तम स्कंध रपर चडी, कोरंटक पुष्पनी माला युक्त, (मस्तके) धारण कराता छत्रसहित, बे श्वेत चामरोथी वीजाता २, घोडा, हाथी, रथ अने प्रवर योद्धाबो सहित चतुरंगिणी सेना साथे परिवृत थइ, मोटा सुभटना वृन्दयी यावत् वींटायेला जमालि क्षत्रियकुमारनी पाछळ चाले के, त्यारपछी ते जमालि क्षत्रियकुमारनी आगळ मोटा अने उत्तम घोडाओ, अने बने पडखे उत्तम हाथीओ, पाछळ रथो अने रथनो समूह चाल्यो. त्यार बाद ते जमालिकुमार सर्व ऋद्धिसहित यावत् वादिनना शब्दसहित चाल्यो. तेनी आगळ कलश अने तालवृन्तने लइने पुरुषो चालता हता, तेना उपर उंचे श्वेत छत्र धारण करायुं हतुं, अने तेना पडखे श्वेत चामर अने नाना पंखाओ वीजाता हता. त्यार पछी केटलाक लाकडीवाळा, भालाबाळा, पुस्तकवाळा यावत् वीणवाळा पुरुषो चाल्या. त्यारपछी एकसो आठ हाथी, एकसो आठ घोडा अने एकसो आठ रथो चाल्या, त्यारपछी लाकडी, तरवार अने भालाने ग्रहण करी मोडें पायदळ आगळ चाल्यु, त्यारपछी घणा है युवराजो, धनिको, तलबरो, यावत् सार्थवाह प्रमुख आगळ चाल्या. यावद् क्षत्रियकुंडग्राम नगरनी बच्चे थइने ज्या ब्रह्मणकुंडग्राम नामे | नगर छे, ज्या बहुशालक चैत्य के अने ज्यां श्रमण भगवंत महावीर छे त्यां जवानो विचार कयों.
तए णं तस्स जमालिस्स खत्तियकुमारस्स खत्तियकुंडग्गामं नगरं मझमज्झणं निग्गच्छमाणस्स सिंघाडगतियचउक्कजाव पहेसु बहवे अस्थत्थिया जहा उववाइए जाव अभिनंदंता य अभित्थुणता य एवं वयासी-जय
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९ शतके उद्देशा
दो जय णंदा! धम्मेणं जय जय गंदा तवेण जय जय गंदा ! भई ते अभग्गेहिं णाणदंसण चरित्तमुत्तमेहि अजियाई
जिणाहि इंदियाइं जियं च पालेहि समणधम्मं जियविग्धोऽवि य बसाहि तं देव! सिद्धिमज्झे णिहणाहि य व्याख्या
पारागदोसमल्ले तवेण धितिधणियबद्धकच्छे महाहि अट्ट कम्मसत्त झाणेणं उत्तमेणं सुकेणं अप्पमत्तो हराहि यारा
हणपडागं च धीर! तेलोकरंगमज्झे पावय वितिमिरमणुत्तरं केवलं च णाणं गच्छय मोक्खं परं पदं जिणवरोव॥८६॥
दिट्टेणं सिद्धिमग्गेणं अकुडिलेणं हता परीसहचमू अभिभविय गामकंटकोबसग्गाणं धम्मे ते अविग्धमत्थुत्तिमाकड अभिनंदति य अभिथुणंति य।। । त्यारपछी क्षत्रियकुंडग्राम नगरनी वचोवच निकळता ते जमालि क्षत्रियकुमारने शंगाटक, त्रिक, चतुष्क यावत् मार्गोमा घणा धनना अर्थिओए, कामना अर्थिओए-इत्यादि औपपातिकसूत्रमा कह्या प्रमाणे यावत् अभिनंदन आपता, स्तुति करता आ प्रमाणे कह्यु के-'हेनंद -आनन्ददायक ! तारो धर्म वडे जय थाओ, हे नन्द ! तारो तपवढे जय थाओ, हे नन्द तारुं भद्र थाओ, अभन्न -अखंडित
अने उत्तम ज्ञान, दर्शन अने चारित्र वडे अजित एवी इन्द्रियोने तुं जित, अने जीतिने श्रमण धर्मनुं पालन कर. हे देव ! विनोने |जीती तुं सिद्धिगतिमां निवास कर. धैरूप कच्छने मजबूत बांधीने तपवडे रागद्वेषरूप मल्लोनो घात कर. उत्तम शुक्ल ध्यानवडे अष्टकभामरूप शत्रुनु मर्दन कर. वळी हे धीर ! तुं अप्रमत्त थइ त्रणलोकरूप रंगमंडप मध्ये आराधनापताकाने ग्रहण करी निर्मळ अने अनुत्तर
एवा केवलज्ञानने प्राप्त कर, अने जिनवरे उपदेशेल सरल सिद्धिमार्गवडे परमपदरूप मोक्षने प्राप्त कर. परीषहरूप सेनाने हणीने! * इन्द्रियोने प्रतिकूल उपसर्गोनो पराजय कर. तने धर्ममा अविप्न थाओ'-ए प्रमाणे तेओ अभिनंदन आपे छे अने स्तुति करे छे.
TECCA%AGAGAR-CHH-CA
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व्याख्या
प्रज्ञप्तिः
१८६४॥
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तर णं से जमाली खत्तियकुमारे नयणमालासहस्सेहिं पिच्छिलमाणे २ एवं जहा उववाइए कूणिओ जाव णिग्गच्छति निग्ग च्छित्ता जेणेव माहणकुंडरगामे नगरे जेणेव बहुसालए चेइए तेणेव उवागच्छइ तेणेव उवागच्छित्ता छत्तादीए तित्थगरातिसए पासह पासिता पुरिसहस्सवाहिणीं सीयं ठवेइ २ पुरिससहस्सवाहिणीओ सीयाओ पचोरुह, तए णं तं जमालिं खत्तियकुमारं अस्मापियरो पुरओ कार्ड जेणेव ममणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ तेणेव उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो जाव नमंसित्ता एवं वदामी- एवं खलु भंते । जमाली स्वत्तिकुमारे अम्हं एगे पुत्ते हे कंते जाव किमंग पुण पासणयाए ? से जहानामए - उप्पलेड़ वा पउमेइ वा जाव पउम सहस्त्रपत्तेइ वा पंके जाए जले संवुड्ढे णोवलिप्पति पंकरएणं गोवलिप्पइ जलरएणं एवामेव जमालीवि वत्तियकुमारे कामेहिं जाए भोगेहिं संबुड्ढे गोवलिप्पह कामरएणं णोवलिप्पइ भोगरएणं णोवलिप्पड़ मित्तणाईनियगसपण संबंधिपरिजणेणं, एस णं देवाणुपिया ! संसारभव्विग्गे भीए जम्मणमरणाणं देवाणुप्पियाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए, तं एयन्नं देवाणुप्पियाणं अम्हे भित्रखं दलयामो, पडिच्छंतु णं देवाणुप्पिया ! सीसभिक्खं,
स्यारबाद ते जमालि क्षत्रियकुमार हजारो नेत्रोनी मालाओथी वारंवार जोवातो-इत्यादि औपपातिकसूत्रमांकूणिकना प्रसंगे कछु छे तेम अहिं जाणवुं; यावत् ते [जमालि] नीकळे छे. नीकळीने ज्यां ब्राह्मणकुंडग्राम नामे नगर छे, ज्यां बहुशाल नामे चैत्य छे त्यां आवे छे. त्यां आवीने तीर्थकरना छत्रादिक अतिशयोने जुए छे, जोइने हजार पुरुषोथी वहन करावी ते शिविकाने उभी राखे छे.
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९ शतके
उद्देशः६
॥८६४॥
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उभी राखीने ते शिविका थकी नीचे उतरे छे. त्यारपछी ते जमालि क्षत्रियकुमारने आगळ करी तेना माता-पिता ज्यां श्रमण भगभयाख्या- वान् महावीर छे त्यां आवे छे. त्यां आवीने श्रमण भगवंत महावीरने त्रण बार प्रदक्षिणा करी यावत् नमी ओ आ प्रमाणे बोल्या काशतके प्राप्ति
के-'हे भगवान् ! ए प्रमाणे खरेखर आ जमालि क्षत्रियकुमार अमारे एक इष्ट अने प्रिय पुत्र , जेनुं नाम श्रवण पण दुर्लभ छ, उद्देशा
तातो दर्शन दुर्लभ होय तेमांशु कहे ? जेम कोइ रक कमळ, पद्म, यावत् सहस्रपत्र कादवमां उत्पन्न थाय, अने पाणीमां वधे, तोपण हूँ ४६५॥
ते पंकनी रजथी तेम जलना कणथी लेपातुं नधी र प्रमाणे आ जमालि क्षत्रियकुमार पण कामथकी उत्पन्न थयो छे अने भोगोथी वृद्धि पाम्यो छे, तो पण ते कामरजथी अने भोगरजथी लेपातो नथी, तेमज मित्र, ज्ञाति, पोताना स्वजन, संवन्धी अने परिजनयी पण लेपातो नथी. हे देवानुप्रिय ! आ जमालि क्षत्रियकुमार संसारना भयथी उद्विग्न थयो छे, जन्म मरणथी भयभीत थयो छे, अने देवानुप्रिय एवा आपनी पासे मुंड-दीक्षित थइने अगारवासथी अनगारिकपणाने स्वीकारवाने इच्छे छे. तो देवानुपियचे अमे 12 आ शिष्यरूपी भिक्षा आपीए छीए. तो हे देवानुप्रिय ! आप आ शिष्यरूप भिक्षानो स्वीकार करों'.
तए णं समं० ३ तं जमालिं खत्तियकुमारं एवं वयासी-अहासुहं देवाणुप्पिया। मा पडिबंधं । तए णं से जमाली स्वत्तियकुमारे समणेणं भगवया महावीरेणं एवं बुत्ते समाणे हद्वतुढे समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो जाव नमंसित्ता उत्तरपुरच्छिमं दिसीभागं अवक्कमइ २ सयमेव आभरणमल्लालंकारं ओमुयइ, ततेणं सेजमालिस्स खत्तियकुमारस्स माया हंसलक्खणेणं पडसाइएणं आभरणमल्लालंकारं पडिच्छति पडिच्छित्ता हारवारिजाव विणिम्मुयमाणा वि.२ जमालिं खत्तियकुमारं एवं वयासी-घडियव्वं जाया! जइयव्वं जाया!
मरणयी भयभीत
आ शिष्यरूप भिक्षणाने स्वीकारवाने
मालिं खत्तिय
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प्रतिः
उदेश ॥८६॥
परिकमियच्वं जाया अस्सि प णं हे'को पमायेतध्वंतिक जमालिस्स खत्तियकुमारस्सं अम्मापियरो समण व्याख्या-1 भगवं महावीरं दहणमंसह पंक्त्तिा णमंसित्ता जामेव दिसं पाउन्मूथा तामेव दिसि पडिगया।सए णं से ज
मालिखत्तियए सयमेव पंचमुट्टियं लोयं करेति २ जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उपागच्छद तेणेव उवागच्छित्ता एवं जहा उसमदत्तो तहेव पव्वइओ नवरं पंचहिं पुरिससएहिं सद्धिं तहेव जाव सव्वं सामाइयमाझ्याई द्रा एक्कारस अंगाई अहिबह सामाइयमा० अहिलेत्ता यहूहिं नउत्थछट्टमजावमासमासखमणेहिं विचित्तोहिं तवोकम्मेहि अप्पाणं भावेमाणे विहरइ ॥ (सूत्रं ३८५)॥
त्यारे श्रमण भगवंत महावीरे ते जमालि क्षत्रियकुमारने आ प्रमाणे का के-'हे देवानुप्रिय ! जेम सुख उपजे तेम करो, प्रति-12 पन्ध न करो'. न्यारे श्रमण भगवान महावीरे जमालि क्षत्रियकुमारने ए प्रमाणे कधु स्पारे ते हर्षित बह, तुष्ट थइ, यावत् श्रमण भगवंत महावीरने त्रण चार प्रदक्षिणा करी यावद् नमस्कार करी, उत्तरपूर्व दिशा तरफ जाय के. जइने पोतानी मेळे आभरण, माला अने अलंकार उतारे छ. पछी ते जमालि क्षत्रियकुमारनी माता हंसना चिहवाळां पटशाटकथी आभरण, माला अने अलंकारोने ग्रहण करे छे. ग्रहण करीने हार अने पाणीनी धारा जेवा आंसु पाडती २ तेणे पोताना पुत्र जमालिने आ प्रमाणे कयु के-'हे पुत्र ! संय| मने विवे प्रयत्न करजे, हे पुत्र ! यस करजे, हे पुत्र ! पराक्रम करजे, संयम पाळवामां प्रमाद न करीश. ए प्रमाणे (कहीने) ते जमालि
क्षत्रियकुमारना माता-पिता श्रमण भगवंत महावीरने वादे के, नमे के बांदी अने नमीने जे दिशाथी तेओ आव्या हता ते दिशाए| पाछा गया. त्यारपछी ते जमालि क्षत्रियकुमार पोवानी मेळे पंच मुष्टिक लोच करे छे, करीने ज्यां श्रमण भगवान महावीर हे त्यां
का स्यारे ते हनि सुख उपजे तेम करो
433
र करी, उत्तरपूर्वी
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१ शतके
प्राप्ति ८६७॥
उद्देशा ॥८६७
आवे छे, आवीने ऋषमदत्त ब्रामणनी पेठे तेणे प्रव्रज्या लीधी. परन्तु जमालि क्षत्रियकुमारे पांचसो पुरुषो साथे प्रव्रज्या लीधी-इत्यादि। | सर्व जाणवू. यावत् ते जमालि अनगार सामायिकादि अगीआर अंगोने भणे छे. भणीने घणा चतुर्थ भक्त, छट्ठ, छट्ठम, अने यावत् मासार्ध तथा मासक्षमणरूप विचित्र तपकर्मवडे आत्माने भावित करता विहरे छे. ॥ ३८५॥
तए ण से जमाली अणगारे अन्नया कयाई जेणेव समण भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छह तेणेव उवागइत्ता समणं भगवं महावीरं वंदति नमसति वंदित्ता २ एवं बयासी-इच्छामि णं भंते ! तुज्ोहिं अन्भणुनाए समाणे पंचहि अणगारसएहिं सद्धिं बहियो जणवयविहारं विहरित्तए, तए ण से समणे भगवं महावीरे जमालिस्स अणगारस्स एयमढ णो आढाइ णो परिजाणाइ तुसिणीए संचिट्ठइ । तए णं से जमाली अणगारे समण भगवं महावीरं दोचंपि तचंपि एवं वयासी-इच्छामिणं भंते ! तुज्झहिं अम्भणुनाए समाणे पंचहि अणगारसएहिं सद्धिं जाब विहरित्तए, ताण समणे भगवं महावीरे जमालिस्स अणगारस्स दोचपि तचंपि एयम8 णो आढाइ जाव तुसिणीए संचिट्ठइ । तए णं से जमाली अणगारे समणं भगवं महावीरं वंदह णमंसह वंदित्ता णमंसित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियाओबहुसालाओ चेइयाओ पडिनिक्खमइ पडिनिक्खमित्ता पंचहि अणगारसरहिं सद्धिं बहिया जणवयविहारं विहरह,
त्यार बाद अन्य कोइ दिवसे ते जमालि अनगार ज्यां श्रमण भगवान् महावीर छे त्यां आवे छे, आवीने श्रमण भगवंत महावीरने वांदे छे, नमे छ. वांदी अने नमीने तेणे आ प्रमाणे कयु के-'हे भगवन् ! तमारी अनुमतिथी हुं पांचसे अनगारनी साथे
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व्याख्याप्राप्तिः ८६८॥
९ शसके उदेश ॥८६॥
बहारना देशोमा विहार करवाने इच्छं छु.' त्यारे श्रमण मगवान् महावीरे जमालि अनगारनी आ वातनो आदर न कों, स्वीकार न कों, परन्तु मौन रखा. त्यार पछी ते जमालि अनगारे श्रमण भगवंत महावीरने बीजी वार, त्रीजी वार पण एप्रमाणे कलुके-। | भगवान् ! तमारी अनुमतिथी हुं पांचसो साधु साथे यावर विहार करवाने इच्छु छु.' पछी श्रमण भगवान् महावीरे जमालि अनगारनी आ वातनो नीजी वार, त्रीजी वार पण आदर न कर्यो, यावत् मौन रह्या. त्यारबाद जमालि अनगार श्रमण भगवंत महावीरने वांदे थे, नमे छे. वांदीने-नमीने श्रमण भगवंत महावीर पासेथी अने बहुशाल नामे चैत्यथी नीकळे छे, नीकळीने पांचसो साधुओनी साथे बारना देशोमा विहार करे छ. .
तेणं कालेणं तेणं समएणं सावत्थीनाम णयरी होत्या वन्नओ, कोहए चेइए वन्नओ, जाव वणसंडस्स, तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नाम नयरी होत्था वन्नओ पुन्नभद्दे चेहए वन्नओ, जाव पुढविशिलावद्दओ। तए णं से जमाली अणगारे अन्नया कयाइ पंचहिं अणगारसएहिं सद्धिं संपरिखुडे पुवाणुपुईि चरमाणे गामाणुगामंदूइजमाणे जेणेवसावत्थी नरीय जेणेव कोढए चेइए तेणेव उवागच्छइ तेणेव उवागंच्छित्ता अहापडिरूवं उग्गहं उग्गिण्हति अहापडिरूवं उग्गहं उग्गिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरह।तएणं समणे भगवं महावीरे अन्नया कयावि पुवाणुपुब्बि चरमाणे जाव सुहं सुहेणं विहरमाणे जेणेव चंपानगरी जेणेव पुनभद्दे चेहए तेणेव उवागच्छद तेणेव उवागच्छित्ता अहापडिरूवं उग्गहं उग्गिण्हति अहा. २ संजमेणं बसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ ।।
ते काले अने ते समये श्रावस्ती नामे नगरी हती. वर्णन. त्यां कोष्ठक नामे चैत्य हतुं. वर्णन यावत् वनखंड सुधी जाणवू. ते
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व्याख्या- प्रालि N८६९॥
९ शतके उदेश 1८६९॥
4ऊन
काले अने तें समये चंपा नामे नगरी हती, वर्णन. पूर्णभद्र चैत्य हतुं. वर्णन. यावत् पृथिवीशिलापट्ट हतो. हवे अन्य कोइ दिवसे ते जमालि अनगार पांचसो साधुओना परिवारनी साथे अनुक्रमे विहार करता, एक गामथी बीजे गाम जता ज्यां श्रावस्ती नामे नगरी छे, अने ज्या कोष्ठक चैत्य छे त्यां आवे छे. त्या आधीने यथायोग्य अवग्रहने ग्रहण करीने संयम अने तपवहे आत्माने भावित करता विहरे छे. त्यारवाद अन्य कोई दिवसे श्रमण भगवान महावीर अनुक्रमे विचरता यावत् मुखपूर्वक विहार करता ज्यां चंपानगरी छे, अने ज्यां पूर्णभद्र चैत्य के त्यां आवे छे आवीने यथायोग्य अपग्रहने ग्रहण करी संयम अने तपनडे आत्माने भावित | करता विचरे छे.
तए णं तस्स जमालिस्म अणगारस्स तेहिं अरसेहि य विरसेहि य अंतेहि य पंतेहि य लूहेहि य तुच्छेहि य कालाइकंतेहि य पमाणाइतेहि य सीतएहि य पाणभोयणेहिं अन्नया कयावि सरीरगंसि |विउले रोगातके पाउम्भूए उज्जले विउले पगाढे ककसे कडुए चंडे दुक्खे दुग्गे दु रहियासे पित्तज्जरपरिगतसरीरे दाइवतिए यादि विहरइ । तए णं से जमाली अणगारे वेयणाए अभिभूए समाणे समणे णिग्गंथे
सहावेइ सहावेत्ता एवं वयासी-तुझे णं देवाणुप्पिया! मम सेवासंथारग संथरेह, तए णं ते समणा णिग्गंथा | जमालिस्स अणगारस्स एयमट्ट विणएणं पडिसुणेति पडिमणेत्ताजमालिस्स अणगारस्स सेवासंथारगं संथरेंति, तए णं से जमाली अण्णगारे पलियतरं वेदणाए अभिभूए समाणे दोचंपि समणे निग्गंथेसहावेह २ सा दोबंपि एवं वयासी-ममन्नं देवाणुप्यिासेज्जासंथारए किं कडे काही,एवं बुत्ते समाणे समणा निग्गंथा विति-भो सामी! कीरइ,
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के शाम
हवे अन्य कोइ दिवसे ते जमालि अनगारने रसरहित, विरस, अन्त, प्रान्त, रुक्ष (लुखा) तुच्छ, कालातिक्रांत, (भुख तस्सनो व्याख्या-16 काल बीती गया पछी) प्रमाणातिक्रांत (प्रमाणथी वधारे के ओछा) शीत पान-मोजनथी शरीरमा मोटो व्याधि पेदा थयो, ते 18
| व्याधि अत्यन्त दाह करनार, विपुल, सख्त, कर्कश, कटुक, चंड, (भयंकर) दुःखरूप, कष्टसाध्य, तीव्र अने असह्य हतो, तेनुं शरीर ८७०॥ पित्तज्वरथी व्यप्त होवाथी ते दाहयुक्त हतो. हवे ते जमालि अनगार वेदनाथी पीडित थयेलो पोताना श्रमण निग्रंथोने बोलावे छे,
बोलावीने तेणे ए प्रमाणे कयु के-'हे देवानुप्रियो ! तमे मारे मुवा माटे संस्तारक (शय्या) पाथरो'. त्यारवाद ते श्रमण निर्ग्रन्यो जमालि अनगारनी आ वातनो विनपपूर्वक स्वीकार करे छे, स्वीकारीने जमालि अनगारने मुवा माटे संस्तारक पाथरे छे. ज्यारे ते
जमालि अनगार अत्यंत वेदनाथी व्याकुल थयो त्यारे फरीथी श्रमण निग्रंथोने बोलाव्या अने बोलावीने फरी तणे आ प्रमाणे कर्डी एके-'हे देवानुप्रियो ! मारे माटे संस्तारक कर्यो छे के कराय छे ?'
जए णं ते समणा निग्गंथा जमालिं अणगारं एवं वयासी-णो खलु देवाणुपियाण सेज्जासंधारण | कडे कजति तए णं तस्स जमालिस्स अणगारस्स अयमेयारूवे अज्झथिए जाव समुप्पवित्था-जन्नं संमणे भगवं महावीरे एवं आइक्खइ जाव एवं परूवेइ-एवं खलु चलमाणे चलिए उदीरिजमाणे उदीरिए18 जाव निजरित्रमाणे णिजिन्ने तं गं मिच्छा, इमं च णं पचखमेव दीसह सेज्जासंधारए कजमाणे अकडे संधरिजमाणे असंथिरए, जम्हा णं सेनासंथारए कलमाणे अकडे संथरित्रमाणे असंथरिए तम्हा चलमाणेवि अचलिए जाव निजरित्रमाणेवि अणिजिन्ने, एवं संपेहेइ एवं संपेहेत्ता समणे निग्गंथे सदावेइ समणे निग्गंथे सहावेत्ता एवं
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व्याख्या प्राप्तिः N७१॥
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९ शतके ४ अत्यंगइया समणा निग्गंथा एयमटुं सद्दहति पत्तियति रोयंति अत्थेगइया समणा निग्गंथा एयमटुं णो सद्दहति | उदेश
३, तत्थ णं जे ते समणा निग्गंधा जमालिस्स अणगारस्स एयमढें सद्दहति ३ ते णं जमालिं चेव अणगारं उव-13 [11८७१॥
संपज्जित्ताणं विहरंति, तत्थ णं जे ते समणा णिग्गंथा जमालिस्स अणगारस्स एयमद्वं णो सहहंति णो पत्तियंति ४ाणो रोयंति ते णं जमालिस्स अणगारस्स अंतियाओकोयाओ चेइयाओ पडिनिक्खमंति २ पुव्वाणुपुबिचरमाणे
गामाणुगाम दूइ. जेणेव चंपानयरी जेणेव पुन्नभद्दे चेइए जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छह २त्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेंति २त्ता वंदइ णमंसह २ समणं भगवं महावीरं |उवसंपज्जित्ता णं विहरति ।। (सूत्रं ३८६)॥
| त्यार पछी ते श्रमण निर्ग्रन्थोए जमालि अनगारने एम कई के-'देवानुप्रियने माटे शय्यासंस्तारक को नथी, पण कराय छे. *त्यार पछी ते जमालि अनगारने आ आवा प्रकारनो संकल्प उत्पन्न थयो के-"श्रमण भगवंत महावीर जे ए प्रमाणे कहे छे, यावत् |
प्ररूपे छे के, चालतुं होय ते चाल्यूं कहेवाय, उदीरातुं होय ते उदीरायूं कहेवाय, यावत् निर्जरातुं होय ते निर्जरायु कहेवाय, ते मिथ्या
छे. कारण के आ प्रत्यक्ष देखाय छे के, शय्या संस्तारक करातो होय त्यां सुधी ते करायो नथी, पथरातो होय त्यां सुधी ते पथरायो *नथी जे कारणथी आ शय्या-संस्तारक करातो होय त्यां सुधी ते करायो नथी, पथरातो होय त्यां सुधी ते पथरायेलो नथी ते
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व्याख्या- प्रवतिः ॥७२॥
| कारणथी चालतुं होय त्यां सुधी ते चलित नथी, पण अचलित छे; यावत् निर्जरातुं होय त्यां मुधी ते निर्जरायुं नथी पण अनिर्जरित "ए प्रमाणे विचार करे छे. विचार करीने ते जमालि अनगार श्रमण निग्रंथोने बोलावे छे, बोलावीने तेणे आ प्रमाणे कबु-हे
मानके देवानुप्रियो ! श्रमण भगवंत महावीर जे आ प्रमाणे कहे छे, यावत् प्ररूपे छे के-खरेखर ए प्रमाणे "चालतुं ते चलित कहेवाय”- उदेश इत्यादि, पूर्ववत् सर्व कहे, यावद निर्जरातुं होय ते निर्जरित नथी, पण अनिर्जरित छे.' ज्यारे जमालि अनगार ए प्रमाणे कहेता
1८७॥ हता, यावद प्ररूपणा करता हता, त्यारे केटलाएक श्रमण निर्ग्रन्थो ए वातने श्रद्धापूर्वक मानता हता, तेनी प्रतीति करता हता, रुचि है करता हता; अने केटलाक श्रमण निर्ग्रन्थो ए वात मानता न होता, तथा तेनी प्रतीति अने रुचि करता न होता. तेमां जे श्रमण
निग्रंथो ते जमालि अनगारना आ मन्तव्यनी श्रद्धा करता हता. प्रतीति करता हता अने रुचि करता हता तेओ ते जमालि अनगारने आश्रयी विहार करे छे. अने जे श्रमण निग्रंथो जमालि अनगारना ए मन्तव्यमा श्रद्धा करता न होता, प्रतीति करता न होता अने रुचि करता न होता तेओ जमालि अनगारनी पासेथी कोष्ठक चैत्य थकी बहार नीकळे छे, अने बहार नीकळीने अनुक्रमे विचरवा, एक गामथी बीजे गाम विहार करता ज्यां चंपा नगरी छे, ज्या श्रमण भगवंत महावीर छे त्यां आवे छे. आवीने श्रमण भगवंत महावीरने त्रण वार प्रदक्षिणा करे छे, करीने वांदे छ; नमे छे, अने वांदी-नमीने श्रमण भगवंत महावीरनी निश्राए विहार करे . ॥ ३८६॥
सए णं से जमाली अणगारे अन्नया कयावि ताओ रोगायंकाओ विप्पमुक्के हढे तुढे जाए अरोए बलियसरीरे सावत्थीओ नयरीओ कोढयाओ चेहयाओ पडिनिक्खमइ २ पुवाणुपुब्बि चरमाणे गामाणुगामं दृइजमाणे जेणेव
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तिचंपा नपरी जेणेव पुन्नभद्दे चेइए जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ २ समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते ठिचा समणं भगवं महावीरं एवं वयासी-जहा णं देवाणुप्पियाणं बहवे अंतेवासी समणा निग्गंथा
९ शतके बाल्या
छउमत्था भवेत्ता छउमत्यावक्कमणेणं अवताणोखलु अहंतहा छउमत्थे भवित्ता छउमत्थावकमणणं अवकमिए,5 उपाय प्रशासि अहन्नं उप्पन्नणाणदसणधरे अरहा जिणे केवली भवित्ता केवलिअवक्कमणेणं अवकामिए, ए णं भगवं गोयमे
| 100 1000 जमालिं अणगारं एवं बयासी-जो खलु जमाली! केवलिस्स णाणे वा दसण वा सेलसि वा थंभंसि वा थूभंसि
चा आवरिजह वा णिवारिज वा, जहणं तुम जमाली! उप्पन्नणाणदसणधरे अरहा जिणे केवली भवित्ता केवलिअवक्कमणेणं अवकंते तो णं इमाई दो बागरणाई वागरेहि-सासए लोए जमाली ! असासए लोए जमाली !, सासए जीवे जमाली! असासए जीवे जमाली?, तए णं से जमाली अणगारे भगवया गोयमेणं एवं वुत्ते समाणे
संकिए कंम्बिए जाव कलुससमावन्ने जाए यावि होत्था, पो संचाएति भगवओ गोयमस्स किंचिवि पमोकन्वमाहाइक्वित्तए तुसिणीए संचिट्ठइ,
त्यार पछी कोई एक दिवसे ते जमालि अनगार पूर्वोक्त रोगना दुःखथी विमुक्त थयो, हृष्ट, रोगरहित अने बलवान् शरीरवाळो कथयो. अने श्रावस्ती नगरीयी अने कोष्ठक चैत्यथी बहार नीकळी अनुक्रमे विचरता ग्रामानुग्राम विहार करता ज्यां चंपानगरी छे,
न्यां पूर्णभद्र चैत्य छ, अने ज्यां श्रमण भगवंत महावीर छे त्यां आवे छे. आवीने श्रमण भगवंत महावीरनी अत्यन्त दूर नहि तेम अत्यन्त पासे नहि, तेम उमा रहीने श्रमण भगवंत महावीरने आ प्रमाणे कयु-'जेम देवानुप्रियना पणा शिष्यो श्रमण निग्रेन्थो
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व्याख्या
प्रचतिः
१८७४ ॥
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छवस्थ होइने छपस्य विहारथी विहरी रह्या छे: पण हुं तेम छद्मस्थ विहारथी विहरतो नथी. हुं तो उत्पन्न थयेला ज्ञान अने दर्शन धारण करना अर्हन्, जिन अने केवली थइने केवलिविहारथी विचरु लुं. त्यार पछी भगवंत गौतमे ते जमालि अनगारने आ प्रमाणे कछु के- 'हे जमालि ! खरेखर ए प्रमाणे केवलिनुं ज्ञान के दर्शन पर्वतथी स्तंभथी के स्तूपथी अमृत थतुं नथी, तेम निवारित धतुं नथी, हे जमालि ! जो तुं उत्पन्न थयेला ज्ञान, दर्शनने धारण करनार अर्हन्, जिन अने केवली थइने केवलिविहारथी विचरे छे तो आ वे प्रश्नोनो उत्तर आप [प्र० ] हे जमालि । १ लोक शाश्वत के के अशाश्वत छे १ हे जमालि ! २ जीव शाश्वत छे के अशाश्वत छे १ ज्यारे भगवंत गौतमे ते जमालि अनगारने पूर्व प्रमाणे पूछयुं त्यारे ते शंकित अने कांक्षित थयो, यावत् कलुषितपरिणामवाळो थयो. ज्यारे ते (जमालि) भगवंत गौतमना प्रश्नोनो कांइ पण उत्तर आपवा समर्थ न थयो त्यारे तेणे मौन धारण कर्यु.
जमालीति समणे भगवं महावीरे जमालि अणगारं एवं वयासी-अत्थि णं जमाली । ममं बहवें अंतेवासी समणा निग्गंधा छउमत्था जे णं एवं वागरणं वागरित्तए जहां णं अहं नो चेत्र णं एगप्पगारं भासं भासित्तए जहा णं तुमं, सासए लोए जमाली ! जन्न कयावि णासी णो कयावि ण भवति ण कदावि ण भविस्सइ भुवि च भवइ भविस्सइ य धुवे णितिए सासए अक्खए अब्वए अवट्टिए णिच्चे, असासए लोग जमालि ! जओ ओसप्पिणी भवित्ता उस्सप्पिणी भवइ उस्सप्पिणी भवित्ता ओसप्पिणी भवइ, सासए जीवे जमालि ! जं न कयाइ णासि जाय | णिच्चे असासए जीवे जमाली : जन्नं नेरइए भवित्ता तिरिक्खजोणिए भवइ तिरिक्खजोणिए भवित्ता मणुस्से भवइ मणुस्से भवित्ता देवे भवइ,
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९ के उद्देशा
८७४॥
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९ शतके | उद्देश ला॥८७५॥
पछी श्रमण भगवान महावीरे हे जमालि!' एम कहीने ते जमालि अनगारने आ प्रमाणे का के-'हे जमालि ! मारे घणा प्याख्या- श्रमण निग्रंथ शिष्यो छमस्थ छ, तेओ मारी पेठे आ प्रश्नोनो उत्तर आपत्रा समर्थ हे. पण जेम तुं कहे छे तेम 'हूं सवेज्ञ अने जिन प्रशासि छु' एवी भाषा तेओ बोलता नथी. हे जमालि ! लोक शाश्वत छे, कारण के 'लोक कदापि न हतो' एम नथी, 'कदापि लोक नथी' Manाएम नथी, अने 'कदापि लोक नहि हशे' एम पण नथी. परन्तु लोक हतो, छे अने हशे. ते ध्रुव, नियत, शाश्वत, अक्षत, अन्यय,
अवस्थित अने नित्य छे. वळी हे जमालि! लोक अशाश्वत पण हे, कारण के अवसर्पिणी थइने उत्सर्पिणी थाय छे. उत्सर्पिणी धइन अवसर्पिणी थाय छे. हे जमालि! जीव शाश्वत छे, कारण के वे 'कदापि न हतो' एम नथी, 'कदापि नथीं' एम नथी अने, 'कदापि नहि हशे' एम पण नथी, जीव यावद् नित्य छे. वळी हे जमालि! जीव अशाश्वत पण छे, कारण के नैरयिक थइने तियेचयोनिक थाय छ, तिर्यचयोनिक थइने मनुष्य थाय छे, अने मनुष्य थइने देव थाय छे. | तए णं से जमाली अणगारे समणस्स भगवओमहावीरस्स एवमाइखमाणस्स जाव एवं परूवेमाणस्स एयम?
णो सहहह णो पत्तिएइ णो रोपइ एयमढे असद्दहमाणे अपत्तियमाणे अरोएमाणे दोचपि समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियाओ आयाए अवक्कमह दोचंपि आयाए अवक्कमित्ता बहहिं असम्भावुन्भावणाहिं मिच्छत्ताभि|णिवेसेहि य अप्पाणंच परं च तदुभयं च दुग्गाहेमाणे वुप्पाएमाणे यहूयाई वासाइं सामनपरियगा पाउणइ २ अद्धमासियाए संलेहणाए अत्तार्ण भूसेइ अ० २ तीस भत्ताई अणसणाए छेदेति २ तस्स ठाणस्स अणालोइया पडिकते कालमांसे कालं किच्चा लंतए कप्पे तेरससागरोवमठितिएम देवकिपिसिएसु देवेसुदेवकिव्विसियत्ताए
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व्याख्या
९ शतके उदेश ॥८७41
PARAN
उबवने ॥ (सूत्रं. ३८७)॥
त्यारपछी ते जमालि अनगार आ प्रमाणे कहेता, यावत् र प्रकारे प्ररूपणा करता श्रमण भगवान महावीरनी आ वावनी श्रद्धा करतो नथी, प्रतीति करतो ना, रुचि करतो नथी, अने आ बाबतनी अश्रद्धा करतो, अप्रतीति करतो अने अरुचि करतो पोते वीजी वार पण श्रमण भगवंत महावीर पासेथी नीकळे छे. नीकळीने घणा असद्-असत्य भावने प्रकट करवा वडे अने मिथ्यात्वना अभिनिवेश बडे पोताने, परने तथा बनेने भ्रान्त करतो अने मिथ्याज्ञानवाळा करतो घणा वरस सुधी श्रमण पर्यायने पाळे छे, पाळीने अर्धमासिकसंलेखनावडे आत्माने-शरीरने कश करीने अनशनवडे त्रीश भक्तोने पूरा करी ते पापस्थानकने आलोच्या के प्रतिक्रम्या सिवाय मरण समये काल करीने लान्तक देवलोकने विषे तेर सागरोपमनीस्थितिवाळा किल्लिपिक देवोमा किल्बिषिक देवपणे उत्पन्न थयो. ॥ ३८७॥
तए ण से भगवं गोयमे जमालिं अणगारं कालगयं जाणित्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागछह ते २ समणं भगवं महावीरं वंदति नमसति २ एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पियाणं अंतेवासी कुसिस्से जमालिणाम अणगारे से णं भंते ! जमाली अणगारे कालमासे कालं किच्चा कहिं गए कहिं उववन्ने ?, गोयमादि समणे भगवं महावीरे भगवं गोयम एवं वयासी-एवं खलु गोयम! ममं अंतेवासी कुसिस्से जमाली नाम से णं तदा मम एवं आइक्खमाणस्स ४ एयमढं जो सहइ ३ एयमटुं असद्दहमाणे ३ दोचंपि ममं अंतियाओ आयाए अवक्कमह २ यहूहिं असम्भावुन्भावणाहिं तं चेव जाव देवकिब्बिसियत्ताए उववन्ने । (सूत्रं ३८८) ॥
८७६॥
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R
माख्याप्रशासि 1८७७॥
CER-
पछी ते जमालि अनगारने कालगत थयेला जाणीने भगवान् गौतम ज्यां श्रमण भगवान् महावीर हे त्यां आवे छे. अवीने का श्रमण भगवान् महावीरने वांदे छे, नमे २, बांदी-नमीने ते आ प्रमाणे बोल्या के-'हे भगवन् ! ए प्रमाणे देवानुप्रिय एवा आपनो९ शतके का अंतेवासी कुशिष्य जमालि नामे अनगार हतो, ते काळ समये काळ करीने क्यां गयो क्यां उत्पन गयो? [उ०] 'हे गौतमादि!||उद्देशा
ए प्रमाणे कहीने श्रमण भगवंत महावीरे भगवान् गौतमने आ प्रमाणे का के-'हे गौतम ! मारो अंतेवासी कुशिष्य जमालि नामे ॥८७७॥ अनगार हतो ते ज्यारे हुए प्रमाणे कदेतो हतो, यावत् प्ररूपणा करतो हतो त्यार ते आ चावतनी श्रद्धा करतो नहोतो, प्रतीति के रुचि करतो नहोतो. आ बाबतनी श्रद्धा, प्रतीतिरुचि न करतो फरीथी मारी पासेथी नीकळीने घणा असदभूत-मिथ्या भावोने प्रकट करवावडे-इत्यादि यावत् किल्बिषिकदेवपणे उत्पन्न थयो . ।। ३८८ ॥ । कतिविहा ण भंते ! देवकिदिवसिया पन्नत्ता?, गोयमा ! तिविहा देवकिदिबसिया पण्णत्ता, तंजहा-तिपलि
ओवमद्विइया तिसागरोवमट्ठिइया तेरमसागरोवमट्टिइया, कहिं णं भंते ! तिपलिओवमद्वितीया देवकिविमिया परिवसंति?, गोयमा! उपि जोइमियाणं हिहिँ सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु एत्थ ण तिपलिओवमट्टिया देवकिविसिया परिवसंति । कहिं णं भंते ! तिसागरोवमट्ठिया देवकिदिवसिया परिवसंति ?, गोयमा ! उप्पि सोह। म्मीसाणाणं कप्पाणं हिहि सणंकुमारमाहिंदेसु कप्पेसु एत्थ णं तिसागरोवमट्ठिया देवकिब्धिसिया परिवसति, कहिण भंते ! तेरससागरोवमट्टिइण देवकिग्विसिया परिवसति ?, गोयमा ! उप्पि बंभलोगस्स कप्पस्म हिडिं लंतए कप्पे एत्य पण तेरससागरोवमट्ठिया देवकिब्धिसिया देवा परिवसंति । देवकिदिबसिया णं भंते ! केसु
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व्याख्या
प्रज्ञप्तिः १८७८ ॥
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कम्मादासुदेव किव्वसियत्ताए उववत्तारो भवंति !, गोयमा ! जे इमे जीवा आयरियपडिणीया उवज्झायपडिणीया कुलपडिणीया गणप डिणीया संघपडिणीया आयरियउवज्झायाणं अपसकरा अवन्नकरा अकित्तिकरा बहूहि असम्भावुभावणाहि मिच्छत्ताभिनिवेसेहि य अप्पाणं च ३ युग्गामाणा बुप्पाएमाणा बहूई वासाई सामन्नपरियागं पाउणंति पा० तस्म ठाणस्त्र अगालोइयपडिते कालमासे कालं किच्चा अन्नघरेस देवकिव्विसिएस देवकिन्वसित्ता उच्चत्तरो भवति, जहा - तिपलिओवमहितीएस वा तिसागरोवमट्टितीएस वा तेरससारोमट्टितीएस वा ।
[प्र० ] हे भगवन् ! किल्बिपिक देवो केटला प्रकारन। कक्षा १ [अ०] हे गौतम! ऋण प्रकारमा किल्बिषक देवो का छे. ते आ प्रमाणे त्रण पत्योपमनी स्थितिवाळा, त्रण सागरोपमनी स्थितियाळा अने तेर सागरोपमनी स्थितिवाळा. [प्र० ] हे भगवन् ! त्रण पल्यपनी स्थितिवाका किल्बिपिक देवो कये ठेकाणे रहे थे ? [30] हे गौतम ! ज्योतिष्कदयोनी उपर अने ईशान देवलोकनी | नीचे त्रण पल्योपमनी स्थितिवाळा किल्मिपिक देवो रहे हे. (प्र.] हे भगवन् ! त्रण सागरोपमनी स्थितिवाळा किंल्लिपिक देवो क्या रहे छे? [अ०] हे गौतम! सौधर्म अने ईशानदेवलोकनी उपर तथा सनत्कुमार अने माहेन्द्र देवलोकनी नीचे त्रण सागरोपमनी स्थि| तिवाळा किल्मिपिक देवो रहे छे. [प्र०] हे भगवन् । तेर सागरोपमनी स्थितियाळा किल्लपिक देवो क्यों रहे छे ? [उ० ] हे गौतम! ब्रह्मणलोकनी उपर अने लांतक कल्पनी नीचे तेर सागरोपमनी स्थितिवाळा किल्बिषक देवो रहे छे. [प्र० ] हे भगवन् ! किल्चिपिक | देवो क्या कर्मना निमित्ते किल्विपिकदेवपणे उत्पन्न थाय छे ? [अ०] हे गौतम! जे जीवो आचार्यना प्रत्यनीक (द्वेपी), उपाध्यायना
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९ शतके
उद्देशः६
८७८॥
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हा प्रत्यनीक, कुलप्रत्यनीक, गणप्रत्यनीक अने संघना प्रत्यनीक होय, तथा आचार्य अने उपाध्यायना अयश करनारा, अवर्णवाद करव्याख्या
| नारा, अने अकीर्ति करनारा होय, तथा घणा असत्य अर्थने प्रगट करवायी अने मिथ्या कदाग्रहथी पोताने, परने अने बन्ने भ्रान्त ९ शतके प्रति करता, दुर्बोध करता, घणा वरस सुधी साधुपणाने पाळे, अने पाळीने ते अकार्य स्थाननु आलोचन के प्रतिक्रमण कर्या सिवाय 14 उशा 11८७९॥ | मरणसमये काल करीने कोइ पण किल्बिषिक देवोमा किल्विपिकदेवपणे उत्पन्न थाय ने. ते आ प्रमाणे-त्रण पल्योपमनी स्थिति- 1८७९॥
वाळामां, के तेर सागरोपमनी स्थितिवाळामां. (उत्पन्न याय.)
देवकिदिवसियाण भंते! ताओ देवलोगाओ आउखएणं भवक्रवाणं ठिडकवएणं अणंतरं चयं चहत्ता कहिं गच्छंति कहिं उबवजंति?, गोयमा! जाव चत्तारि पंच नेरइयतिरिक्व जोणियमणुस्मदेवभवग्गहणाई संसारं अणुपरियट्टित्ता तओ पच्छा सिज्झंति बुज्झनि जाव अंतं करेंति, अत्धेगड्या अणादीय अपवदग्गं |दीहमद्धं चाउरंतसंसारकतारं अणुपरियति ।। जमाली णमंते! अणगारे अरसाहारे विरसाहारे अंताहारे लूहाहारे तुम्छाहारे अरमजीवी बिरसजीधी जाच तुच्छजीर्वा उपसंतजीवी पसंतजीवी विवित्तजीवी ?, हंता गोयमा! जमाली ण अणगारे अरसाहारे विरसाहारे जाच विवित्तजीवी । जति भंते ! जमाली अणगारे अरसाहारे
विरमाहारे जाव विवित्तजीवी कम्हाण मंते ! जमाली अणगारे कालमासे कालं किया लंतए कप्पे तेरससागदारोदमट्ठितिएमु देवकिब्धिसिएम देवेमु देवकिन्विसियत्ताउववन्ने ?, गोयमा ! जमाली णं अणगारे आयरियप
डिणीप उवज्झायपडिणीए आयरियउवज्झायाणं अयसकारण जाव वुप्पाएमाणे जाव बहई वासाई सामनपरि
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प्राप्ति
54:5%A4%
उदेशा 16000
1८८०॥
यागं पाउणित्ता अद्धमासियाए संलेहणाए तीसं भत्ताई अणसणाए छेदेति तीसं० २ तस्स ठाणस्स अणालोइय४ पडिकते कालमासे कालं किच्चा लंतए कप्पे जाव उचवन्ने ।। (सूत्र०६८९)। ता प्र०] हे भगवन् ! ते किल्विषिक देवो आयुष्यनो क्षय थवार्थी, भवनो क्षय थवाथी, स्थितिनो क्षय थवाथी, तरत ते देवलोकथी
च्यवीन क्या जाय-क्या उत्पन्न बाय १ [उ.] हे गौतम ! ते किल्बिषिक देवो नारक, तिर्यच, मनुष्य अने देवना चार के पांच भवो | करी, एटलो संसार भ्रमण करीने त्यारपछी सिद्ध थाय, बुद्ध थाय अने यावद् दुःखोनो नाश करे. अने केटलाक किल्बिषिक देवो
तो अनादि, अनंत अने दीर्घमार्गवाला चारगति संमाराटचीमा भम्या करे. [प्र०] हे भगवन् ! शुं जमालि नामे अनगार रसरहित |आहार करतो, विरसाहार करतो, अंताहार करतो, प्रांतहार करतो. रूक्षाहार करतो, तुच्छाहार करतो, अरसजीबी, विरसजीवी, यावत्
तुच्छजीवी, उपशांतजीवनवाळो, प्रशांतजीवनवाळो. पवित्र अने एकान्त जीवनवाळो हतो? [उ०] हे गौतम! हा, जमालि नामे हा अनगार असाहारी, विरसाहारी यावद् पवित्रजीवनयाको हतो. [प्र०) हे भगवन् ! जो जमालि नामे अनगार अरसाहारी, विरसाहारी
अने यावद् पवित्र जीवनबाको हतो तो हे भगवन् ! ते जमालि अनगार मरणसमये काल करीने लांतक देवलोकमां तेर सागरोपमनी ४ स्थितिवाळा किल्लिषिक देवोमा किल्बिषिक देवपणे केम उत्पन्न थयो ? [३०] हे गौतम ! ते जमालि अनगार आचार्यनो अने उपा
ध्यायनो प्रत्यनीक हतो, तथा आचार्य अने उपाध्यायनो अयश करनार अवर्णवाद करनार हतो यावद ते (मिथ्या अभिनिवेश बडे है पोताने, परने अने उभयने भ्रान्त करतो) दुर्बोध करतो, यावत् घणा वरस सुधी श्रमणपणाने पाळीने अर्धमासिक संलेखना बडे
शरीरने कृश करीने त्रीश भक्तोने अनशन बडे पूरा करीने ते स्थानकने आलोच्या के प्रतिक्रम्या सिवाय काळसमये काळ करीने
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लांनककल्पमां यावद् उत्पन्न थयो. ॥ ३८९ ॥
। जमाली णं भंते! देवे ताओ देवलोयाओ आउक्खएणं जाव कहिं उववजिहिइ ?, गोयमा! चत्तारि पंच||९ शतके बाल्या
तिरिक्खजोणियमणुस्सदेवभवग्गहणाई संसारं अणुपरियहित्ता तओ पच्छा सिज्झिहिति जाव अंतं काहेति । उद्देश प्राप्तिः सेवं भंते सेवं भंते ! त्ति ॥ (सू० ३९०)। जमाली समत्तो ।। ५। ३३ ॥
॥८८१॥ Neet| प्र०] हे भगवान् ! ते जमालि नामे देव देवपणाथी, देवलोकथी, पोताना आयुपनो क्षय थया बाद यावत् क्या उत्पन्न थशे?
[उ०] हे गौतम । तियंचयोनिक, मनुष्य, अने देवना चार पांच भवो करी-एटलो संसार भमी-त्यार पछी ते सिद्ध थशे, यावत् सर्व दुःखोनो नाश करशे. हे भगवन् ! ते एमज छे, हे भगवन् ! ते एमज हे. ( एम कही भगवंत गौतम ! यावत् विहरे छे.) ॥३९०।
भगवत् सुधर्मस्वामी प्रणीत श्रीमद् भगवतीसत्रना ९मा शतकमा ६ठा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो.
मुना-447EE+
4. CAMKRESISTAN
उद्देशक ७ तेणं कालेणं तेणं समपण रायगिहे जाव एवं क्यासी-पुरिसे ण भंते ! पुरिसं हणमाणे किं पुरिस हणइ नो पुरिसं हणइ!, गोयमा! पुरिसंपिहणइ नोपुरिसेवि हणति, सेकेणट्टेणं भंते ! एवं वुच्चइ पुरिसंपि हणइ नोपुरिसेवि हणइ ?, गोयमा! तस्स णं एवं-भवइ एवं खलु अहं एगं पुरिसं हणामि, से गं एगं पुरिस हणमाणे अणेगाजीवा हणइ, से तेणद्वेणं गोयमा! एवं वुच्चड़ पुरिसंपि हणइ नोपुरिसेवि हणति । पुरिसे ण भंते ! आसं हणमाणे
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प्रवतिः
||८८२||
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किं आम हण नोआसेवि हणड ?, गोयमा ! आसंपि हणइ नोआसेवि हणइ, से केाट्टेणं अट्टो तहेव, एवं हथि सीहं वग्धं जाव चिह्नलगं ।
[प्र०] ते काले-ते समये गजगृह नगरमां (भगवान् गौतमे) यावत् ए प्रमाणे पुछयूँ के - हे भगवन् ! कोइ पुरुष घात करतो शुं पुरुषनोज घात करें के नोपुरुषनो घात करे ? [उ०] हे गौतम! पुरुषनो पण यात करे अने यावत् नोपुरुपोनो (पुरुष शिवाय बीजा जीबनो) पण घात करे. [प्र० ] हे भगवन् ! ए प्रमाणे आप शा हेतुथी को छो के पुरुषनो घात करे अने यावत् नोपुरुपोनो पण घात करें ? [अ०] हे गौतम! ते घात करनारना मनमां तो एम के के हुं एक पुरुषने हणुं छु', पण ते एक पुरुपने हणतो वीजा अनेक जीवोने होणे ; माटे ते हेतुथी हे गौतम! एम कहुं हुं छे के ते पुरुषने पण हये अने यावत् नोपुरुपोने पण हणे. [प्र०) हे भगवन् ! अश्वने हणतो कोइ पुरुष शुं अश्वने हणे के नोअश्वोने (अश्व सिवाय वीजा जीवोने) पण हणे ? [अ०] हे गौतम ! ते अश्वने पण हणे अने नोअश्वोने पण हणे. [प्र० ] हे भगवन् ! प्रमाणे आप शा हेतु कहो हो ? [उ० ] हे गौतम! उत्तर पूर्ववत् जावो. ए प्रमाणे हस्ती, सिंह, वाघ तथा यावत् चिल्ललक संबन्धे पण जाण. ए बधानो एक सरखो पाठ जाणवो.
पुरिसे णं भंते! अन्नयरं तसपाणं हणमाणे किं अन्नयरं तसपाणं हग नोअन्नपरे तसपाणे हण्ड ?, गोगमा ! अन्नगरंपि तसपा हणड़ नोअन्नयरेवि तसे पाणे हणड़, से केशट्टणं भने । एवं वुबह अन्नयपि न पाणं नोअन्नरेवि तसे पाणे हट्ट १, गोयमा । तस्स णं एवं भवन एवं खलु अहंएगे अन्नयरं नम पाणं हणामि, से णं एवं अन्नपरे तसं पाण हणमाणे अणेगे जीवे हणह, से तेादृणं गोमा ! ते चैत्र एए सच्वैवि एक्कगमा । पुरिसे गं संत ! इसिं हणमाणे किं इसिं हणइ नोइसिं हणइ ?, गोषमा ! इसिंपि हाइ नोडसिपि हगड़, से केणट्टेणं भंते! एवं
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*304564
९ शतके उद्देशः७
||८८२॥
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प्रज्ञप्तिः ॥१८८३ ॥
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बुच्च जाव नोहसिपि हणइ ?, गोयमा ! तस्स णं एवं भवइ एवं खलु अहं एगं इसि हणामि, से णं एवं इसि हणमाणे अणते जीवे हणइ से तेणट्टेणं निक्खेवओ । पुरिसे णं भंते ! पुरिसं हणमाणे किं पुरिसवेरेणं पुढे नो पुरिसवेरेणं पुट्ठे ?, गोयमा ! नियमा ताव पुरिसवेरेणं पुढे अहवा पुरिसवे रेण य णोपुरिसवेरेण य पुढे अहवा पुरिमवेरेण य नोपुरिसवेरेहि य पुढे, एवं आसं एवं जाव चिल्ललगं जाव अहवा चिललगवेरेण य णोचिल्ललगवेरे हि पुट्ठे, पुरिसे णं भंते ! इसि हणमाणे किं इसिवेरेणं पुट्ट नोइसिवे रेणं पुढे ?, गोयमा ! नियमा इसिवेरेण य नोइसिवेरेहि पुट्ठे || (सू० ३९१) ॥
[-] हे भगवन् ! कोई पुरुष कोड़ एक त्रस जीवने हणतो शुं ते त्रस जीवने हणे के ते शिवाय वीजा त्रस जीवोने पण हणे ? [[अ०] हे गौतम! ते कोइ एक त्रस जीवने पण हणे, अने ते शिवाय बीजा त्रस जीवोने पण हणे. [अ०] हे भगवन् ! ए प्रमाणे आप शा हेतुथी कहो छो के 'ते कोई एक त्रस जीवने हणे अने ते शिवाय बीजा त्रस जीवने पण हणे' १ [ ८० ] हे गौतम! ते हणनारना मनमां ए प्रमाणे होय छे के 'हुं कोई एक त्रस जीवने हणुं छु', पण ते कोई एक त्रस जीवने हणतो ते शिवाय वीजा अनेक त्रस जीवोने हणे छे. माटे हे गौतम! इत्यादि पूर्ववत् जाणवुं. ए बधाना एक मरखा पाठ कहेवा. [ प्र० ] हे भगवन् ! ऋपिने हणतो कोई पुरुष शुं ऋषिने हणे के ऋषि शिवाय बीजाने पण हणे ? [अ०] हे गौतम ! ऋषिने हो अने ऋषि शिवाय श्रीजाने पण हणे. [प्र०] हे भगवन् ! ए प्रमाणे आप शा हेतुथी कहो छो के यावद् ऋषि शिवाय बीजाने पण हा १ [अ०] हे गौतम! ते हणनारना मनमां एम होय छे के 'हुं एक ऋषिने हथुं हुं", पण ते एक ऋषिने हणतो अनंत जीवोने हणे छे, ते हेतुथी एम कहेवाय के
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९ शतके
उद्देशः७
॥८८३॥
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प्रज्ञप्तिः
८८४
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इत्यादि उपसंहार जाणवो. [प्र० ] हे भगवन् । कोइ पुरुष बीजा पुरुषने हणतो शुं पुरुषना वैरथी बन्धाय के नोपुरुषना (पुरुष शिवाय बीजा जीवोना) वैरथी बन्धाय १ [अ०] हे गौतम । ते अवश्य पुरुषना वैरथी बन्धाय, १ अथवा पुरुषना वैरथी अने नोपुरुषना वैरथी बन्धाय २ अथवा पुरुषना वैरथी अने नोपुरुपना वैरोधी बन्धाय. ए प्रमाणे अश्वसंबन्धे अने यावत् चिल्ललक संबन्धे पण जाणवुं. यावत् अथवा चिल्ललकना वैरथी अने नोचिल्ललकना वैरोधी बन्धाय. [प्र० ] हे भगवन् ! ऋषिनो वध करनार पुरुष शुं ऋषिना | वैरथी बन्धाय के नोऋषिना वैरथी बन्धाय ? [अ०] हे गौतम! ते अवश्य ऋषिना वैरथी अने नोऋपिना वैरोथी बन्धाय ॥३९१ ॥ पुढविकाइया णं भंते! पुढविकायं चेव आणमंति वा पाणमंति वा ऊसरांति वा नीसरांति वा ?, हंता गोयमा ! पुढविक्काइए पुढविकाइयं वेव आणमंति वा जाव नीससंति वा । पुढवीकाइए णं भंते ! आउक्काइयं आणमंति वा जाव नीसरांति ?, हंता गोयमा ! पुढविकाइए आउकाइयं आणमंति वा जाव नीससंति वा, एवं तेजकाइयं वाउकाइयं एवं वणस्सइकाइयं । आउकाइए णं भंते! पुढचीकाइयं आणमंति वा पाणमंति वा ?, एवं चेव, आउछाइए णं भंते! आउकाइयं चेत्र आणमंति वा?, एवं चेव, एवं तेउवाऊवणस्सइकाइयं । तेकक्काइए णं भंते ! पुढविकाश्यं आणमंति वा?, एवं जाय वणस्स इकाइए णं भंते! वणस्सइकाइयं चेव आणमंति वा तहेब | पुढविकाइए णं मंते ! पुढविकाइयं वेव आणममाणे वा पाणममाणे वा ऊससमाणे वा नीससमाणे वा कइ किरिए ?, गोमा ! सिय तिकिरिए सिय चउकिरिए सिय पंचकिरिए, पुढविकाइए णं भंते ! आउकाइयं आणममाणे वा० १ एवं चेत्र, एवं जाव वणस्सइकाइयं, एवं आउकाइएणवि सव्वेवि भाणियव्वा, एवं तेडक्काइएणवि, एवं वाउक्काइएणवि, जाव
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९ शतके
उद्देशः७
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९ शतके
व्याख्याप्राप्ति 11८८५॥
PRAKASIA
*वणस्सइकाइगणं भंते ! वस्सइकाइयं चेव आणनमाणे वा ?, पुच्छा, गोपमा। सिय तिकिरिए सिय चकिरिए || सिय पंचकिरिए ॥ (सूत्र० ३९२)॥
प्र०] हे भगवन् ! पृथिवीकायिक जीव पृथिवीकायिकने आनप्राणरूपे-श्वासोच्छ्वासरूपे ग्रहण करे अने मुके? [८०] हे गौतम! हा, पृथिवीकायिक जीव पृथिवीकायिकने आनप्राणरूपे श्वासोच्छ्वासरूपे ग्रहण करे अने मुके. [म.] हे भगवन् ! पृथि
उद्देश वीकायिक जीव अकायिकने आनप्राणरूपे श्वासोच्छ्वासरूपे ग्रहण करे अने मुके ? [उ०] हा, गौतम! पृथिवीकायिक अकायिकने
श्वासोच्छ्वासरूपे ग्रहण करे, यावत् मूके. ए प्रमाणे अनिकाय, वायुकायिक अने वनस्पतिकायिकसंबन्धे प्रश्नो करवा. [प्र०] है। है। भगवन् ! अप्कायिक जीव पृथिवीकायिकने आनप्राणरूपे - श्वासोच्छ्वासरूपे ग्रहण करे अने के ? [उ०] एरीते पूर्व प्रमाणे जाणवु.5
[प्र.] हे भगवन् ! अप्कायिक जीव अप्कायिकने आनप्रणरूपे--श्वासोच्छ्वासरूपे ग्रहण करे अने मूक ? [उ०] पूर्व प्रमाणे जाणवू. ए प्रमाणे तेजाकाय, वायुकाय अने वनस्पतिकाय संबन्धे पण जाणवं. [H०) हे भगवन् ! अग्निकायिक जीव पृथिवीकायिकने आनप्राणरूपे-श्वासोच्छ्वासरूपे ग्रहण करे अने मूके ? ए प्रमाणे यावत् [प्र०] हे भगवन् ! वनस्पतिकायिक जीव वनस्पतिकायिकने ट्र आनप्राणरूपे-श्वासोच्छ्वासरूपे ग्रहण करे अने मूके ? [30] उत्तर पूर्ववत् जाणवू. (प्र०] हे भगवन् ! पृथिवीकायिक जीव पृथिवीकायिकने आनप्राणरूपे-श्वासोच्छ्वासरूपे ग्रहण करतो अने मुकतो केटली क्रियावाळो होय ! [उ०] हे गौतम! ते कदाच त्रक्रियावाळो, कदाच चारक्रियावाळो अने कदाच पांचक्रियावाळो होय. [प्र०] हे भगवन् ! पृथिवीकायिक जीव अप्कायिकने आनप्राण- रूपे-श्वासोच्छ्वासरूपे ग्रहण करतो (केटली क्रियावालो होय !) [उ.] इत्यादि पूर्व प्रमाणे जाणवू, ए प्रमाणे यावद् वनस्पति
।
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व्याख्या
प्रशसिः
८८६ ॥
449
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कायिक संबन्धे पण जाणवुं तथा ए प्रमाणे अप्कायिकनी साथै सर्व पृथिवीकायादिकनो संबन्ध कहेवो. तेज प्रकारे तेजः कायिक अने वायुकायिकनी साथै सर्वनो संबन्ध कहेवो. यावत् [प्र० ] हे भगवन् ! वनस्पतिकायिक जीव वनस्पतिकायिकने आनप्राणरूपेश्वासोच्छ्वासरूपे ग्रहण करतो (अने मूकतो केटली क्रियावालो है. य १) [अ०] हे गौतम! ते कदाच त्रणक्रियावालो, कदाच चारक्रियावाळी अनेकदाच पांचक्रियावाळो पण होय. ॥ ३९२ ॥
वाकाइए णं भंते ! मक्खस्स मूलं पचालेमाणे वा पवाडेमाणे वा कतिकिरिए १, गोयमा ! सिय तिकिरिए सिग्र चउकिरिए सिय पंञ्चकिरिए। एवं कंद, एवं जाव मूलं बीयं पचालेमाणे वा पुच्छा, गोयमा । सिय तिकिरिए यि च किरिए मिय पंचकरिए । सेवं भंते ! सेवं भंतेति ॥ ( सू ३९३ ) | नवमं सयं समत्तं ॥ ९ ॥ ३४ ॥
[A] हे भगवन् ! वायुकायिक जीव वृक्षना मूळने कंपावतो के पाडतो केटली क्रियावाळो होय ? [अ०] हे गौतम! कदाच त्रणक्रियावाळो होय, कदाच चार क्रियावाळो होय अने कदाच पांचक्रियावाळो पण होय. ए प्रमाणे यावत् कंद संबन्धे जाणवुं. ए | प्रमाणे यावत् [ प्र० ] बीजने कंपावतो - इत्यादि संबन्धे प्रश्न. [३०] हे गौतम! कदाच त्रणक्रियायाळो, कदाच चारक्रियाबाको अने कदाच पांचक्रियावाळो होय. हे भगवन् ! ते एमज छे, हे भधवन् ! ते एमज . ।। ३९३ ।
भगवद् सुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीत्रा ९ मा शतकमां ७ मा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो,
॥ इति श्रीमद्भयदेवसूरिविरचितवृत्तियुतं नवमं शतकं समाप्तं ॥
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९ शब
उद्देशः७ १८८६॥
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दास्याप्राप्ति
शतक १० ( उद्देशक १) H८८७॥
१०श्तके दिसि १ संवुडअणगारे २ आयड्ढी ३ सामहस्थि ४ देवि ५ सभा ६। उत्सरअंतरदीवा २८ दसमंमि
उद्देश |सयंमि चोत्तीसा॥ ३४ ॥
IIGAON (उद्देशक संग्रह-) १ दिशा, २ संवृत अनगार, ३ आत्मऋद्धि, ४ श्यामहस्ती, ५ देवी, ६ सभा अने ७-३४ उत्तर दिशाना | अन्तरद्वीपो-ए सबन्धे दशमां शतकमां चोत्रीश उद्देशको छे. (१ दिशा संबंधे प्रथम उद्देशक, २ संवृत (संवरयुक्त) अनगारादि विषे बीजो उद्देशक, ३ आत्म ऋद्धि-पोतानी शक्ति-थी देवो देवावासोने उल्लंघन करे-इत्यादि संबन्धे त्रीजो उद्देशक, ४ श्यामहस्ति
नामे श्रीमहावीरना शिष्यना प्रश्न संबन्धे चोथो उद्देशक, ५ देवी-चमरादि इन्द्रनी अग्रमहिपी-संबन्धे पांचमो उद्देशक, ६ सभादूसुधर्मा सभा-संबंधे छट्ठो उद्देशक अने ७-३. उत्तर दिशाना अव्यावीश अन्तरद्वीपो संबन्धी सातथी चोत्रीश उद्देशको के.)
रायगिहे जाब एवं वयासी-किमियं भंते ! पाईणत्ति पचुच्चई १, गोयमा ! जीवा चेव अजीवा चेव, किमियं || |भंते ! पडीणाति पवुचई १, गोयमा! एवं चेव. एवं दाहिणा एवं उदीणा एवं उट्टा एवं अहोवि | कति णं भंते !! वा दिसाओ पण्णत्ताओ?, गोयमा! दस दिसाओ पण्णत्ताओ, तंजहा-पुरच्छिमा १ पुरच्छिमदाहिणा २ दाहिणा
३ दाहिणपञ्चत्थिमा ४ पचत्थिमा ५ पञ्चत्थिमुत्तरा ६ उत्तरा ७ उत्तरपुरच्छिमा ८ उड्डा ९ अहो १०। एयासिणं
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भंते ! दसण्हं दिसाणं कति णामधेजा पण्णत्ता ?, गोयमा ! दस नामधेजा पण्णत्ता, तंजहा-इंदा १ अग्गेयी २
जमा य३ नेरती४ वारुणी५य वायव्यावासोमा७ ईसाणी य८ विमला या९ तमा य१० बोद्धब्बा ॥१॥ (६२३२०) व्याख्याइंदा णं भंते! दिमा किं जीवा जीवदेसा जीवपएसा अजीवा अजीवदेसा अजीवपएसा ?, गोयमा! जीवावि ३
१०शबके प्राप्ति
तं चेव जाव अजीवपएसावि, जे जीवा ते नियमा एगिदिया बेइंदिया जाव पंचिंदिया अणिदिया, जे जीवदेसा उदेश ८८८॥
ननियमा पनिंदियदेसा जाव अर्णिदियदेसा, जे जीवपएसा ते एगिदियपएसा वेइंदियपरसा जाब अणिदियप- 1xcccn हाएमा, जे अजोवा से दुविहा पन्नत्ता, तंजहा रूवी अजीवा य अरूवी अजीवा य, जे रूवी अजीवा ते चउविहा
पन्नत्ता, तंजहा-बंधा १ खंधदसा २ खंधपएसा ३ परमाणुपोग्गला ४, जे अरूवी अजीवा ते मत्तविहा तेपत्ता, तंजहा-नोधम्मस्थिकाए धम्मत्थिकायस्स देसे धम्मस्थिकायस्सपएसा नो अधम्मस्टिकाए अधम्मत्थिकायस्स देसे अधम्मत्थियस्स पएसा नोआगामयिकाए आगासत्थिकायस्स देसे आगासस्थिकायस्स पएसा अद्धासमए ॥
[प्र०] राजगृह नगरमां (गौतम) यावत् आ प्रमाणे बोल्या-हे भगवन् ! आ पूर्वदिशा ए शुं कहेवाय के ? [उ.] हे गौतम | ते जीवरूप अने अजीवरूप कहेवाय छे. [प्र०] हे भगवन् ! आ पश्चिम दिशा ए शुं कहेवाय छे ? [उ०] हे गौतम ! पूर्वनी पेठे
जाणवू. ए प्रमाणे दक्षिण दिशा, उत्तर दिशा, ऊर्ध्व दिशा, अने अघोदिशा संबन्धे पण जाणवू. [प्र०] हे भगवन् ! केटली दिशाओ है कही छ ? [उ.] हे गौतम ! दश दिशाओ कही नेते आ प्रमाणे-- पूर्व, २ पूर्वदक्षिण (अग्नि कोण), ३ दक्षिण, ४ दक्षिणपश्चिम
(नैर्ऋट कोण), ५ पश्चिम, ६ पश्चिमोचर (वायव्य कोण), ५ उत्तर, ८ उत्तरपूर्व (ईशान कोण), ९ ऊर्च अने १० अधो दिशा.
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व्याख्याप्रशसि
८८९ ।।
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[प्र०] हे भगवन् ! ए दश दिशाओनां क्रेटलां नाम कझां छे ? [उ०] हे गौतम ! दश नाम कलां छे. ते आ प्रमाणे- १ एन्द्री (पूर्व), • आग्नेयी (अग्नि कोण), ३ याम्या (दक्षिण), ४ नैर्ऋती (नैर्ऋतकोण), ५ वारुणी (पश्चिम), ६ वायव्य, ७ सोम्या (उत्तर), ८ ऐशानी (ईशान कोण), ९ विमला (उर्ध्व दिशा), अने १० तमा (अघो दिशा). ए दिशाना नामो अनुक्रमे जाणां [प्र० ] हे भग वन् । ऐन्द्री (पूर्व) दिशा झुं १ जीवरूप छे, २ जीवना देशरूप छे के जीवना प्रदेशरूप छे ? अथवा १ अजीवरूप छे, २ अजीवना देशरूप छे के ३ अजीवना प्रदेशरूप छे ? [अ०] हे गौतम । ऐन्द्री दिशा जीवरूप छे-इत्यादि पूर्व प्रमाणे यावत् अजीवप्रदेशरूप पण छे, तेमां जे जीवो छे ते अवश्य एकेन्द्रिय, बेइन्द्रिय, यावत् पंचेन्द्रिय, तथा अनिन्द्रिय (सिद्धो) छे. जे जीवना देशो छे ते अवश्य एकेन्द्रिय जीवना देशो छे, यावद् अनिद्रिय-मुक्तजीवना देशो छे. जे जीवप्रदेशो छे ते अवश्य एकेन्द्रिय जीवना प्रदेशो छे, बेड़न्द्रियजीवना प्रदेशो के, यावद अनिन्द्रिय (मुक्त) जीवना प्रदेशो छे, वळी जे अजीवो छे ते वे प्रकारना कला छे, ते आ प्रमाणे- एक रूपअजीव अने अरूपि जीव. तेमां जे रूपिअजीवो छे ते चार प्रकारना कह्या छे, ते आ प्रमाणे-१ स्कंध, २ स्कंध देश, ३ स्कंघप्रदेश अने ४ परमाणु पुद्गल तथा जे अरूपिअजीवो के ते सात प्रकारना कह्या छे, ते आ प्रमाणे- १ नोधर्मास्तिकायरूप धर्मास्तिकायनो देश, २ धर्मास्तिकायनो प्रदेशो, ३ नोअधर्मास्तिकायरूप अधर्मास्तिकायनो देश, ४ अधर्मास्तिकायना प्रदेशो, ५ नो आकाशास्तिकायरूप आकाशास्तिकायनो देश, ६ आकाशास्तिकायना प्रदेशो, अने ७ अद्धासमय (काल).
अग्गेई णं भंते! दिसा किं जीवा जीवदेसा जीवपएसा ? पुच्छा, गोयमा ! णो जीवा जीवदेसावि १ जीव एसावि २ अजीवावि १ अजीवदेसावि २ अजीवपत्सावि ३, जे जीवदेसा ते नियमा एगिंदि
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१० शतके उद्देशः १ १८८९ ॥
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यदेसा अहवा एगिदियदेसा य बेइंदियस्स देसे १ अहवा रागैदियदेसा य बेइंदियस्स देसा २ अहवा एरागैदियव्याख्या| देसा य बेइंदियाण य देसा ३ अहवा एगिदियदेसा तेइंदियस्स देसे एवं चेव तियभंगो भाणियव्यो एवं जाव
|१०शतके प्राप्तिः अणिदियाण तियभंगो, जे जीवपएसा ते नियमा एगिदियपएसा अहवा एगिदिपपएसा य बेइंदियस्स पएसा
लाउरेशर ॥८९०॥ अहवा एगिदियपदेसा य बेइंदियाण य पएसा एवं आइल्लविरहिओ जाब अणिदियाण, जे अजीवा ते दुविहा८९०॥
5] पन्नत्ता,तंजहा-रूविअजावा य अरूवीअजीवा य, जे रूवीजीवा ते चउब्विहा पनत्ता, तंजहा-खंधा जाव परमा| णुपोग्गला ४, जे अरूची अजीवा ते सत्तविहा पन्नत्ता, तंजहा-नोधम्मत्यिकाए धम्मत्थिकायस्स देसे धम्मत्थिकायस्स पएसा एवं अधम्मत्थिकायस्सवि जाच आगासत्यिकायस्स पएसा अद्धासमए । विदिसासु नत्यि जीवा देसे भंगो य होइ सम्वत्थ ।। जमा णं भंते । दिसा किं जीवा जहा इंदा तहेच निरवसेसा, नेरई य जहा अग्गेयी, | वारुणी जहा इंदा,वायब्वा जहा अग्गेयी, मोमा जहा इंदा, ईसाणी जहा अग्गेयी, विमलाए जीवा जहा अग्गेयी, * अजीवा जहा इंदा, एवं तमाएवि, नवरं अरूवी छविहा, अद्धासमयो न भन्नति ॥ ( सूत्रं ३९४) | प्र०] हे भगवन् ! आग्नेयी दिशा (अग्निकोण) \१ जीवरूप छे, २ जीवदेशरूप छे के ३ जीवप्रदेशरूप छे-इत्यादि प्रश्न करचो. [उ.] हे गौतम! १ नोजीवरूप जीवना देश अने २ जीवना प्रदेशरूप छे, ३ अजीवरूप के, ४ अजीवना दशरूप के अने ५ अजीवना प्रदेशरूप पण छे. तेमा जे जीवना देशो छे ते अवश्य एकेन्द्रिय जीवना देशो छ, १ अथवा एकेन्यिोना देशो अने बेहन्द्रयजीवनो देश छे, २ अथवा एकेन्द्रियोना देशो अने बेइन्द्रियना देशो के ३ अथवा एकेन्द्रियोना देशो अने बेइन्द्रियोना देशो
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अवरच
१.शतके उद्देशार | ॥४९१५
२. १ अथवा एकेन्द्रियोना देशो अने त्रीन्द्रियनो देश छ- इत्यादि पूर्व प्रमाणे अहिं त्रण विकल्पो जाणवा. ए प्रमाणे यावद् अनिद्रिय | ध्याख्या- |सुधी त्रण विकल्पो मांगा कहेवा. तेमा जे जीवना प्रदेशो छे. ते अवश्य एकेन्द्रियोना प्रदेशो छ, १ अथवा एकेन्द्रियोना प्रदेशो प्राति: 18 अने बेइन्द्रियना प्रदेशो छ, २ अथवा एकेन्द्रियोना प्रदेशो अने वेइन्द्रियोना प्रदेशो छे. ए प्रमाणे सर्वत्र प्रथम भांगा सिराय के भांगा १८९१॥
जाणवा, ए प्रमाणे यावद् अनिद्रिय मुधी जाणवू. हवे जे अजीयो छे ते चे प्रकारना कह्या छे, ते आ प्रमाणे-रूपिअजीव अने वीजा अरुपिअजीव, जे रूपिअजीवो के ते चार प्रकारना कह्या छे, ते आ प्रमाणे-१ स्कंधो, यावत् ४ परमाणुपुद्गलो. तथा जे अरूपिअजीवो छे ते सात प्रकारना कह्या छ, ते आ प्रमाणे-१ नोधर्मास्तिकायरूप धर्मास्तिकायनो देश, २ धर्मास्तिकायना प्रदेशो; ए प्रमाणे अधर्मास्तिकाय संबन्धे पण जाणवू; यावत् आकाशास्तिकायना मदेशो अने अद्धासमय. विदिशाओमां जीवो नथी, माटे सर्वत्र देशविषयक भांगो जाणवो. [म.] हे भगवन् ! याम्या (दक्षिण) दिशा शुजीवरूप छे-इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न. [उ०] हे गौतम ! जेम ऐन्द्री दिशा संबन्धे का (सू. ६) तेम सर्व अहीं जाणवू. जेम आमेयी दिशा संवन्धे का (सू. ७) ते प्रमाणे नैऋती दिशा माटे जाणवू. जेम ऐन्द्री दिशा संबन्वे कहतेम वारुणी (पश्चिम) दिशा माटे जाणवू. वायव्यदिशाने आग्नेयीनी पेठे जाणवू. ऐन्द्रीनी पेठे सोम्या अने आनेयीनी पेठे ऐशानी दिशा जाणवी. तथा विमला-ऊर्ध्वदिशा-मां जेम आग्रेयीमा जीवो कह्या तेम जीवो अने ऐन्द्रीमा अजीवो कह्या तेम अजीवो जाणवा. ए प्रमाणे तमा-अधोदिशा-ने विषे पण जाणवू, परन्तु विशेष ए छे के, तमा दिशामा | अरूपिअजीबो छ प्रकारना छे, कारण के त्यां अद्धासमय (काल) नी. ॥ ३९४ ॥
कति णं भंते! सरीरा पन्नत्ता, गोयमा! पंच सरीरा पन्नत्ता, तंजहा-ओरालिए जाव कम्मए । ओरालिय
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१०शतके
सासरीरेणं भंते ! कतिविहे पन्नत्ते?, एवं ओगाहणसंठाणं निरवसेसं भाणियन्वं जाव अप्पाबहुगंति । सेवं भैते! व्याख्या- 1 सेवं भंतेत्ति ( सूत्र. ३९५ ) दसमे सए पढमो उद्देसो सत्तमो॥१०॥१॥ प्रचतिः हा [प्र.] हे भगवन् ! शरीरो केटला प्रकारना कह्या छे? [उ०] हे गौतम ! शरीरो पांच प्रकारना कह्या छे, ते आ प्रमाणे॥८९२॥ औदारिक, (२ वैक्रिय, ३ आहारक, ४ तैजस) यावत् ५ कार्मण. [प्र.] हे भगवन् ! औदारिक शरीर केटला प्रकारे का छे?
[उ.] हे गौतम ! अहिं सर्व 'अवगाहनासंसान पद अल्पमहत्त्व सुधी कहे. हे भगवन् ! ते एमज छे, हे भगवन् ! ते एमज के. (एम कही यावत् भगवान् गौतम विहरे छे) ॥ ३९५ ।।
भगवत् सुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीमत्रना १० मा शतकमा प्रथम उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो.
उद्देशार ॥८९॥
EGALRAMIR-5****
उद्देशक २. रायगिहे जाव एवं बयासी-संवुडस्स णं भंते ! अणगारस्स वीयीपंथे ठिच्चा पुरओ रुवाई निज्झायमाणस्स मग्गओ रूवाई अवयक्खमाणस्स पासओ रूवाइं अवलोएमाणस्स उडुं रूवाइं ओलोएमाणस्स अहे रूवाई आलोएमाणस्स तस्स भंते ! किं ईरियावहिया किरिया कजइ संपराइया किरिया कजइ', गोयमा! संवुडस्स णं अणगारस्स बीयीपंथे ठिचा जाब तस्स गंणो ईरिपावहिया किरिया कबह संपराइया किरिया कन्जर, से केणढणं भंते ! एवं वुच्चइ संवुड० जाव संपराइया किरिया कन्जद, गोयमा । जस्स णं कोहमाणमायालोभा एवं जहा म.
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१.
उछार ॥४९॥
त्तमसए पढमोद्देसए जाव से णं उस्सुत्तमेद रीयति, सें तेणटेणं जाव संपराइया किरिया कजइ । संखुडस्स णं व्याख्या भंते ! अणगारस्स अबीयपंथे ठिचा पुरओ रूवाई निज्झायमाणस्स जाव तस्स गंभंते! किं ईरियावहिया किरिया
कज , पुच्छा, गोयमा! संवुड० जाव तस्स णं ईरियावहिया किरिया कजइ नो संपराइया किरिया कजइ, से ८९३॥ केण?णं भंते! एवं वुच्चइ जहा सत्तमे सए पढमोद्देसए जाव से णं अहासुत्तमेच रीयति से तेणद्वेणं जाब नो
संपराइया किरिया कजह ।। ( सूत्रं० ३९६)॥
[प्र.] राजगृह नगरमां यावत् (गौतम) ए प्रमाणे बोल्या-हे भगवन् ! वीचिमार्गमा-कषायभावमा-रहीने आगळ रहेला रूपोने जोता, पाछळना रूपोने देखता, पढखेना रूपोने अवलोकता,ऊंचेना रूपोने आलोकता अने नीचेना रूपोने अबलोकता संवृत (संवरयुक्त) अनगारने शुं ऐर्यापथिकी क्रिया लागे के सांपरायिकी क्रिया लागे! [उ.] हे गौतम! वीचिमार्गमां (कषायभावमां) रहीने यावत् रूपोने जोता संकृत अनगारने ऐपिथिकी क्रिया न लागे, पण सांपरायिकी क्रिया लागे. [प्र०] हे भगवन् ! ए प्रमाणे आप शा हेतुथी कहो छो के संघृत अनगारने यावत् सांपरायिकी क्रिया लागे ? [उ०] हे गौतम ! जेना क्रोध, मान, माया अने लोभ श्रीण थया होय तेने ऐपिथिकी क्रिया लागे-इत्यादि सप्तम शतकना प्रथम उद्देशकमां कह्या प्रमाणे यावर 'ते संवृत अनगार सूत्र विरुद्ध वर्ते छे' त्यांसुघी कहेवू. माटे हे गौतम । ते हेतुथी तेने यावत् सांपरायिकी क्रिया लागे छे. [प्र०] हे भगवन् ! अचीचिमा
मां-अकषायभावमां-रहीने आगळना रूपोने जोता, यावत् अबलोकता संवृत अनगारने शुं ऐर्यापथिकी क्रिया लागे के सांपरायिकी लक्रिया लागे । [उ०] हे गौतम ! यावत् अकषायभावमा रहीने आगळ रूपोने जोता यावत् ते संवृत अनगारने ऐर्यापथिकी क्रिया में
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व्याख्याप्राप्तिः ८९४||
१०शक्षके उद्देशार ॥८९४॥
| लागे, पण सांपरायिकी क्रिया न लागे. [40] हे भगवन् ! ए प्रमाणे आप शा हेतुथी कहो छो के ते अनगारने ऐर्यापथिकी क्रिया कालागे पण सांपरायिकी क्रिया न लागे? [उ०] हे गौतम ! 'जेना क्रोध, मान, माया अने लोम क्षीण थया छे तेने ऐयोपथिकी
| क्रिया लागे छे-इत्यादि जेम सप्तम शतकना प्रथम उद्देशकमां (उ० १. सू०१८.) का छे तेम अहीं पण यावत् 'ते अनगार सत्रा- |नुसारे वर्ते छे' त्यांसुधी कहे, हे गौतम ! ते हेतुथी तेने यावत् सांपरापिकी क्रिया लागती नथी. ।। ३९६ ।।
कहविहा णभंते ! जोणी पन्नत्ता, गोयमा! तिविहा जोणी पण्णत्ता, तंजहा-सीया उसिणा सीतोसिणा, एवं जोणीपयं निरवसेसं भाणियध्वं ।। (सूत्रं ३९७)
[प्र०] हे भगवन् ! योनि केटला प्रकारनी कही छे । [उ०) हे गौतम ! योनि त्रण प्रकारनी कही छे, ते आ प्रमाणे-शीत, | उष्ण अने शीतोष्ण. ए प्रमाणे अहीं समग्र योनिपद कहेवू. ॥ ३९७ ।।
कतिविहा ण भते! वेयणा पन्नत्ता', गोयमा तिविहा वेषणा पन्नत्ता, तंजहा-सीया उसिणा सीओसिणा, एवं वेषणापयं निरवसेसं भाणियब्वं जाव नेरइयाणं भंते! किं दुक्खं वेदणं वेदेति सुहं वेयणं वेयंति अदुक्खमसुहं वेयणं वेयंति?, गोयमा! दुस्वपि वेयण वेयंति सुहंपि वेयणं वेयंति अदुक्खमसुहपि वेपणं वेयंति ।। (सूत्रं ३९८)
[प्र०] हे भगवन् ! वेदना केटला प्रकारनी कही छे ? [उ.] हे गौतम ! वेदना त्रण प्रकारनी कही छे, ते आ प्रमाणे-शीत, उष्ण अने शीतोष्ण. ए प्रमाणे अहीं संपूर्ण वेदनापद कहे. यावत्- [प्र०] 'हे भगवन् ! नरयिको शुं दुःखपूर्वक वेदना वेदे छे, | सुखपूर्वक वेदना वेदे छे के सुख-दुःख शिवाय वेदना वेदे छ । [उ०] हे गौतम ! नरयिको दुःखपूर्वक वेदना वेदे छे, सुखपूर्वक
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प्रशतिः
८९५ ।।
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वेदना वेदे छे अने सुखदुःख सिवाय पण वेदना वेदे छे. ।। ३९८ ।।
मासियण्णं भंते! भिक्खुपडिमं पडिवन्नस्स अणगारस्स निचं वोसट्टे काये चियत्ते देहे, एवं मासिया भि क्खुपडिमा निरवसेसा भाणियत्र्वा [ जाव दसाहिं ] जाव आराहिया भवइ । (सूनं ३९९ )
[प्र० ] हे भगवन् ! जे अनगारे मासिक मिक्षु प्रतिमाने स्वीकारेली छे, अने हमेशां शरीरना ममत्वनो त्याग कर्यो छे - देहनो | त्याग कर्यो छे - इत्यादि मासिक भिक्षु प्रतिमानो संपूर्ण विचार अहिं दशाश्रुत रकंघम बताच्या प्रमाणे यावत् ( बारकी प्रतिमा ) 'आराधी होय ' त्यांसुधी जाणवो. ।। ३९९ ॥
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भिक्खूप अन्नपरं अकिञ्चट्ठाणं पडिसेवित्ता से णं तस्स ठाणस्स अणालोयपडिते कालं करेह नत्थि तस्स आराहणा, सेणं तस्स ठाणस्स आलोइयपडिते कालं करेह अत्थि तस्स आराहणा, भिक्खूप अनयरं अकिचट्ठाणं पडिसेवित्ता तस्स णं एवं भवद्द पच्छावि णं अहं चरमकालसमयंसि एयस्स ठाणस्स आलोएस्सामि जाव पडिवज्जिस्मा सेमिण, तस्स ठाणस्स अणालोइयपडिते जाब नत्थि तस्स आराहणा, से णं तस्स ठाणस्स आलोइयपडिते कालं करेड़ अत्थि तस्स आराहणा, भिक्खू य अक्षयरं अकिचट्ठाणं पडिसेवित्ता तस्स णं एवं भवह-जह ताव समणोवास गावि कालमासे कालं किवा अन्नयरेसु देवलोपसु देवत्ताए उववत्तारो भवंति किमंग| पुण अहं अन्नपन्नियदेवत्तणंपि नो लभिस्सामित्तिकट्टु से णं तस्स ठाणस्स अणालोइयपडिते कालं करेह नत्थ तस्स आराहणा, से णं तस्स ठाणस्स आलोइयपडिते कालं करेइ अस्थि तस्स आराहणा । सेवं सेवं भंते !
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१० शतके
उद्देशः
॥४९५ ॥
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व्याख्या
प्रतिः
॥८९६॥
सेवं भंतेत्ति । ( सूत्रं ४००) १०।२
जो ते भिक्षु कोइ एक अकृत्यस्थानने सेवीने अने ते अकृत्य स्थाननु आलोचन तथा प्रतिक्रमण कर्या विना काल करे तो तेने ११०शतके आराधना यती नथी, परन्तु जोते ते अकृत्यस्थाननु आलोचन अने प्रतिक्रमण करीने काल करे तो तेने आराधना थाय छे. वळी | उदेश कदाच कोइ भिक्षुए अकृत्य स्थान प्रतिसेवन कयु होय, पछी तेना मनमा एम विचार थाय के 'हुँ मारा अंतकालना समये ते अक- ॥८९॥ त्यस्थाननु आलोचन करीश, यावत् तपरूप प्रायविचनो स्वीकार करीश,' त्यारपछी ते भिक्षु ते अकृत्यस्थान आलोचन के प्रतिकमण कर्या विना मरण पामे तो तेने आराधना थती नथी, अने जो ते भिक्षु ते अकृत्यस्थाननु आलोचन अने प्रतिक्रमण करी काल
करे तो तेने आराधना थाय छे. वळी कोइ भिक्षु कोई एक अकृत्यस्थान- प्रतिसेवन करी पछी मनमा एम विचारे के, 'जो श्रमणो3ापासको पण मरणसमये काल करीने कोई एक देवलोकमां देवपणे उत्पन्न पाय छे, तो शं हुं अणपत्रिकदेवपणुं पण नहि पामुं,' एम
विचारीने ते अकृत्यस्थाननु आलोचन के प्रतिक्रमण कर्या विना जो काल करे तो तेने आराधना थती नथी, अने जो ते अकृत्यस्था|नने आलोची तथा प्रतिक्रमी पछी काल करे तो तेने आराधना थाय छे. हे भगवन् ! ते एमज के, हे भगवन् ! ते एमज छे, (एम कही भगवान् गौतम यावद् विहरे छे.) ॥ ४०॥
भगवत् सुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीचना १० मा शतकमा वीजा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो.
सदस
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माख्या
प्राप्ति
८९७॥
ESCROCHAKROCCASSPARSHEE+
उद्देशक ३.
21१०तके रायगिहे जाव एवं वयासी-आइड्डीए णं भंते ! देवे जाव चत्तारि पंच देवा वासंतराई वीतिकंते तेण पर हिउद्देशा३ & परिड्डीए !, हंता गोयमा! आइडीए णं तं चेव, एवं असुरकुमारेवि, नवरं असुरकुमारावासंतराई सेसं तं चेव, एवं ॥८९७॥
एएणं कमेणं जाव धणियकुमारे, एवं वाणमंतरे जोइसवेमाणिय जाव तेण परं परिड्डीए । अप्पड्ढीप णं भंते ! देवे
से महिड्डीयस्स देवस्स मझमज्झेणं वीइवइन्जा ?, णो तिणढे समझे। समिड्डीए ण भंते ! देवे समड्ढीयस्स | देवस्म मज्झंमज्झेणं वीइवएज्जा ?, णो तिणढे समढे, पमत्तं पुण वीइवइज्जा, से णं भंते! किं विमोहित्ता पभू
अविमोहित्ता पभू?, गोयमा ! विमोहेत्ता पभू, नो अविमोहेत्ता पंभू । से भंते ! किं पुवि विमोहेत्ता पच्छा वीइ. वएज्जा पुलिंब वीइवएत्ता पच्छा विमोहेज्जा?, गोयमा ! पुब्बि विमोहेत्ता पच्छा वीइपएज्जा, णो पुचि वीइवइत्ता पच्छा विमोहेजा।
प्र०] राजगृह नगरमां (भगवान् गौतम) यावत् आ प्रमाणे बोल्या के-हे भगवन् ! शुं देव पोतानी शक्तिवडे यावत् चार पांच देवावासोने उल्लंघन करे अने त्यारपछी वीजानी शक्तिवडे उल्लंघन करे। [उ०] हा, गोतम ! पोतानी शक्तिवडे चार पांच देवावासोनु उल्लंघन करे-इत्यादि पूर्व प्रमाणे कडे. ए प्रमाणे असुरकुमार संबन्धे पण जाणवू, परन्तु ते आत्मशक्तिथी असुरकुमारोना आवासोनुं उल्लंघन करे. बाकी सर्व पूर्व प्रमाणे जाणवू.एरीते आ अनुक्रमथी यावत् स्तनितकुमार, वानव्यंतर, ज्योतिष्क अने वैमानिक सुधी
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व्याख्या
प्राप्तिः
१८९८
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जाणवुं. 'तेओ यावत् चार पांच देवावासोनुं उल्लंघन करे अने त्यारपछी आगळ परनी शक्तिथी उल्लंघन करें त्यांधी जाणवु [9] हे भगवन् ! अल्पऋद्धिक- अल्पशक्तिवालो देव मर्द्धिक- महाशक्तिवाळा देवनी बच्चे थइने जाय ? [उ०] हे गौतम! ए अर्थ योग्य नथी. (अर्थात् ते वचोवच थइने न जाय . ) [ प्र० ] हे भगवन् ! समर्द्धिक-समानशक्तिपाळो - देव समानशक्तिवाळा देवनी बच्चे थाने जाय ? [४०] हे गौतम! ए अर्थ योग्य नथी. पण जो ते प्रमत्त (असावधान) होय तो तेनी बच्चे थईने बाय. [प्र० ] हे भगवन् ! शुं ते देव सामेना देवने विमोद पमाडीने जइ शके, के विमोह पमाब्या सिवाय जड़ शके ? [अ०] हे गौतम! ते देव सामेना देवने | विमोह पमाडीने जड़ शके, पण विमोह पमाच्या सिवाय न जई शके. [प्र० ] हे भगवन् ! शुं ते देव पहेलां विमोह पमाडीने पछी जाय के पहेलां जइने पछी विमोह पमाडे १ [उ०] हे गौतम ! ते देव पहेलां विमोह पमाडीने पछी जाय, पण पहेलां जड़ने पछी विमोहन पमाडे.
महिड्डीए णं भंते! देवे अप्पडियस्स देवस्स मज्झमज्झेणं बीइवएना ?, हंना वीइवएना से णं भंते ! किं विमोहित्ता पभू अविमोहेला पभू ?, गोयमा ! विमोहेत्तावि पभू अविमोहेत्तावि पभू से भंते! किं पुचि विमोहत्ता पच्छा वीइवइज्या पुबि वीइवइत्ता पच्छा विमोहेज्जा ?, गोयमा । पुविँ वा त्रिमोहेत्ता पच्छा वीवजा पुवि वीजा पच्छा विमोहेजा । अप्पिड्डीए णं भंते । असुरकुमारे महड्डीयस्स असुरकुमारस्स मझेमज्झेणं वीज्जा ?, णो इणट्टे समट्टे, एवं असुरकुमारेवि तिन्नि आलावगा भाणियच्वा जहा ओहिएण देवेण भणिया, एवं जाव ग्रणियकुमाराणं, वाणमंतरजोइसियवेमाणिएणं एवं चेव । अप्पढिए णं भंते । देवे मह
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१० शतके
उद्देशः३
८९८
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द्वियाए देवीए मझमज्झेणं वीइवएज्जा, णो इणढे ममढे, व्याख्याIN [प्र०] हे भगवन् ! महद्धिक-महाशक्तिवाळो देव अल्पशक्तिवाला देवनी वचोवच थईने जाय ? [उ.] हा, गौतम! जाय.
१.शतके प्राप्तिः [म.] है भगवन् ! ते महर्द्धिक देव शुं ते अल्पशक्तिवान देवने विमोह पमाडीने जइ शके के विमोह पमाड्या विना जइ शके ?|| उद्देशा ॥८९९॥ [उ०] हे गौतम ! विमोह पमाडीने पण जइ शके अने विमोह यमाच्या विना पण जइ शके. [प्र०] हे भगवन् ! ते महर्द्धिक देव M८९९॥
शुं पूर्वे विमोह पमाडीने पछी जाय के पूर्व जाय अने पछी विमोह पमाडे ? [उ०] हे गौतम ! ते महर्द्धिक देव पडेलां विमोह पमाडीने पछी जय, के पहेला जइने पछी विमोह पमाडे. [प्र०] हे भगवन् ! अल्पशक्तित्राळो असुरकुमार महाशक्तित्राळा असुरकुमारनी चचोवच थइने जब शके ? [उ०] हे गौतम ! आ अर्थ योग्य नथी.ए प्रमाणे सामान्य देवनी पेठे असुरकुमारना पण त्रण आलापक कहेवा. ए प्रमाणे यावत् स्तनितकुमार सुधी कहेवू, तथा बानव्यंतर, ज्योतिष्क अने वैमानिक देवोने पण ए प्रमाणे कहे. [प्र.] हे भगवन् ! अल्पशक्तिवाळो देव महाशक्तिवाळी देवीनी वचोवच थइने जाय ? [उ०] हे गौतम ! ए अर्थ योग्य नथी; अर्थात् न जाय.
समड्डिए णं भंते ! देवीए मज्झमझेणं० एवं तहेव देवेण य देवीण य दंडओ भाणियव्यो जाव वेमाणियाए। अप्पडिया णं भंते । देवी महड्डीयस्स देवस्स मज्झममज्झेणं एवं एसोवि ताओ दंडओ भाणियब्वोजावमहड्डिया वेमाणिणी अप्पड्डियस्स वेमाणियस्स मज्झमझेणं बीइवएजा, हंता वीइवएज्जा। अप्पड्डिया णं भंते! देवी महिड्डीयाए देवीए मज्झमज्झेणं वीइवएज्जा?, णो इणढे समहे, एवं समड्डिया देवी समडियाए देवीए, तहेव, महड्डियावि देवी अप्पड्डियाए देवीए तहेव, एवं एकेके तिन्निर आलावगा भाणियव्वा जाव महड्डीया णं भंते ! वेमा
C
%
45-15
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व्याख्याप्रशिः
॥ ९०० ॥
3435
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णिणी अप्पड्ढीयाए वैमाणिणीए मज्झमज्झेणं वीइवएज्जा ?, हंता वीइवएज्जा, सा भंते! किं विमोहित्ता पभू तहेव जाव पुवि वा वीइवइत्ता पच्छा विमोहेज्जा एए चत्तारि दंडगा ॥ ( सू० ४०१ ) ॥
[ro] हे भगवन् ! समानशक्तिवालो देव समानशक्तिवाळी देवीनी बच्चोवच थइने जाय १ [३०] हे गौतम! ए प्रमाणे पूर्वनी पेठे देवनी साथे देवीनो दंडक कहेवो, यावत् वैमानिक सुधी जाणवुं [प्र० ] हे भगवन् ! अल्पशक्तिवाळी देवी महाशक्तिवाला देवनी • वचोवच थहने जाय ? [अ०] हे गौतम! न जाय, ए प्रमाणे अहीं त्रीजो दंडक पूर्व प्रमाणे कहेवो; यावत् - [प्र०] 'हे भगवन् ! महा-| शक्तिवाळी वैमानिक देवी अल्पशक्तिवाळा वैमानिक देवनी वचोवच थइने जाय ? [अ०] हा, गौतम ! जाय.' [ प्र० ] हे भगवन् ! | अल्पशक्तिवाळी देवी मोटी शक्तिवाळी देवीनी बचोबच थड़ने जाय १ [ उ ] हे गौतम! आ अर्थ योग्य नथी. ए प्रमाणे समानशक्तिवाळी देवीनो समानशक्तिवाळी देवी साथे, तथा महाशक्तिवाळी देवीनो अल्पशक्तिवाळी देवी साथे ते प्रमाणे आलापक कदेवा, अने ए रीते एक एकना त्रण त्रण आलापक कहेवा. यावत् - [प्र०] 'हे भगवन् ! मोटीशक्तिवाळी वैमानिक देवी अल्पशक्तिवाळी वैमानिक देवीनी बचावच थहने जाय १ [उ०] द्दा, गौतम ! जाय; यावत् - [ प्र० ] 'हे भगवन् । शुं ते महाशक्तिवाळी देवी विमोह पमाडीने जइ शके (के विमोह पमाडया बिना जह शके १ वळी पहेलां विमोह पमाडे, अने पछी जाय के पहेलां जाय अने पछी विमोह पमाडे ? [ उ० ] हे गौतम) पूर्व प्रमाणे जाणवुं यावत् ' पूर्वे जाय अने पछीथी विमोह पमाडे' त्यां सुधी कहेनुं. ए प्रमाणे ए चार दंडक कहेवा. ॥ ४०१ ॥
आसंस्स णं भंते! धावमाणस्स किं खुखुत्ति करेति १, गोयमा ! आसस्स णं धावमाणस्सं हिदपस्स जग
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१० शतके उद्देश१३ ॥ ९००॥
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व्याख्याप्राप्ति ॥९०१॥
RECHARGARCHHAK
यस्स य अंतरा एत्य णं कब्बडए नामं वाए संमुञ्छइ जेणं आसस्स धावमाणस्स खुखुत्ति करेइ ।। (सू० ४१२)
[प्र०] हे भगवन् ! ज्यारे घोडो दोडतो होय त्यारे ते 'सु खु' शब्द केम करे छे ? [उ०] हे गौतम ! ज्यारे घोडो दोडतो 8|१०शतके द्रा होग छे, त्यारे हृदय अने यकृत (लीव्हर)-नी वचे कर्कटनामे वायु उत्पन्न थाय छे, अने तेथी घोडो.दोडतो होय छे त्यारे ते 'खु उमेशा खु' शब्द करे ,॥४०॥
& ॥१०॥ अह भंते ! आसहस्सामोमइस्सोमो चिट्ठिस्सामो निसिइस्सामो तुयहिस्सामो आमंतणि आणवणी जायणि तह पुच्छणी य पण्णवणी। पञ्चक्खाणी भासा भासा इच्छाणुलोमा य ॥ १ ॥ अणभिग्गहिया भासा भासा य अभिग्गहमि बोद्धव्वा । संसयकरणी भासा वोयडमचोयडा चेव ॥२॥ पन्नवणी ण एसा न एसा, भासा मोसा', हंता गोयमा! आसइस्सामो तं चेव जाव न एसा भासा मोसा। सेवं भंते ! सेवं भंतेत्ति।। (सूत्र ४०३) दसमे सए तईओ उद्देमो ॥१-३॥
[प्र०] हे भगवन् ! अमे आश्रय करीशू, शयन करीशुं, उभा रहीशुं, बेसीशु, (पथारीमा) आळोटरों-इत्यादि मापा "१ आमवणी, २ आज्ञापनी, ३ याचनी, ४ प्रच्छनी, प्रज्ञापनी, ६ प्रत्याख्यानी, ७ इच्छानुलोमा ८ अनभिगृहीत, ९ अभिगृहीत, १० संशयकरणी. ११ व्याकृता, अने १२ अव्याकृता भाषा के." तेमांनी आ प्रज्ञापनी भाषा कद्देवाय ? अने ए भाषा मृषा (असत्य) न कहेवाय ! [उ०Jहे गौतम! 'आश्रय करीअँ'-इत्यादि माषा पूर्ववत् कहेवाय, पण मृषा भाषा न कहेवाय. हे भगवन् ! ते एमज छे, हे भगवन् ! ते एमज . (एम कही भगवान् गौतम यावद् विहरे छे) ॥ ४०३॥
भगवत् सुधर्मखामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीस्त्रना १० मा शतकमा त्रीजा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो.
१ अध्याकता भाव मापा पूर्ववत कईवा ४३॥
ना मलार्थ संपूर्ण थयो.
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व्याख्याप्रज्ञप्तिः
॥९०२॥
06*
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उद्देश ४
तेणं काले तेणं समरणं वाणियग्गामे नाम नयरे होत्था बनाओ, दूतिपलासए चेहए, सामी समोसढे, जाव परिसा पडिगया । तेणं कालेणं तेण समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्टे अंतेवासी इंदभूई नामं अणगारे जाव उड जाणू जाव विहरइ । तेण कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी सामहत्थी नामं अणगारे पयइभद्दए जहा रोहे जाव उड जाणू जाव विहरह, तए णं से सामहस्थी अणगारे जायसड्ढे जाब उट्ठाए उट्ठेत्ता जेणेव भगवं गोयमे तेणेव उवागच्छड़ तेणेव उवागच्छित्ता भगवं गोयमं तिक्खुत्तो जाव पज्जुवासमाणे एवं वयासी
ते काले-ते समये वाणिज्यग्राम नगर हतुं वर्णन. त्यां दृतिपलाश नामे चैत्य इतुं. त्यो भगवान् महावीर स्वामी समोसर्या. परिषद् धर्मोपदेश श्रवण करीने पाछी गइ. ते काले-ते समये श्रमण भगवंत महावीरना मोटा शिष्य इंद्रभूति नामे अनगार याबद् ऊर्ध्वजानं (जेना ढींचण उभा छे एवा) याबद् विहरे छे. ते काले-ते समये श्रमण भगवान् महावीरना शिष्य श्यामहस्ती नामे अनगार हता, जे रोह नामे अनगारनी पेठे भद्रप्रकृतिना यावद् ऊर्ध्वजानु विहरता हता. त्यार पछी श्रद्धावाळा ते श्यामहस्ती अनगार | यावत् उभा थइने ज्यां भगवान् गौतम छे त्यां आवे छे, आवीने भगवान् गौतमने त्रणवार प्रदक्षिणा करी, बंदी, नमी अने पर्युपा सना करता आ प्रमाणे बोल्या
अत्थि णं भंते! चमरम्म असुरिंदस्स असुरकुमारस्स तायत्तीसगा देवा ?, हंता अत्थि, से केणद्वेणं
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१० शतके
उद्देश ४
॥१०२॥
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प्राप्तिः
१०शतके | उदेश
॥९०३॥
भंते! एवं वुच्चइ चमरस्स असुरिंदस्स असुरकुमाररपणो तायत्तीसगा देवा २१, एवं खलु सामहत्थी । तेणं प्याख्या
कालेण तेणं समएणं इहेब जंबुद्दीवे २ भारहे वासे कायंदी नाम नयरी होत्था वन्नओ, तत्थ णं काय
| दीए नयरीए तायत्तीसं सहाया गाहावई समणोवासगा परिवसन्ति अडा जाव अपरिभूया अभिगयजीवाजावा ॥९०३ उवलद्धपुण्णपावा जाव विहरंति तए णं ते तायत्तीस सहाया गाहावई समणोवासया पुन्धि उग्गा उग्गविहारी
संविग्गा संविग्गविहारी भवित्ता तओ पच्छा पासस्थविहारी ओसन्ना ओसन्नविहारी कुसीला कुसीलविहारी अहाछंदा अहाछंदविहारी बहूई वासासमणोवासगपरियागं पाउणंति २ अद्धमासियाए संलेहणाए अत्ताणं सेंति अत्ताणं झूसेत्ता तीसं भत्ताई अणसणाए छेदेति २तस्स ठाणस्स अणालोइयपडिकंता कालमासे कालं किच्चा चमरस्स असुरिंदस्स असुरकुमाररन्नो तायत्तीसगदेवत्ताए उववन्ना,
[प्र०] हे भगवन् ! असुरकुमारना इन्द्र चमरने त्रायस्त्रिंशक देवो छ। [उ०] हा, चमरेन्द्रने त्रायस्त्रिंशक देवो के. [प्र.] है भगवन् ! ए प्रमाणे आप शा हेतुथी कहो हो के असुरकुमारना इंद्र चमरने त्रायविंशक देवो के ? [उ०] हे श्यामहस्ती । ते त्रायविंशक देवोनो संबन्ध आ प्रमाणे छे-ते काले-ते समये आ जंबुद्वीपमां, भारतवर्षमां काकंदी नामे नगरी हती, वर्णन. ते काकंदी | नगरीमा परस्पर सहाय करनारा तेत्रीश श्रमणोपासक गृहपतिओ रहेता हता, जेओ धनिक, यवत् अपरिभूत (जेनो पराभव न थइ
शके एवा समर्थ) हता, जीवाजीवने जाणनारा, अने पुण्य पापना ज्ञाता तेओ यावद् विहरे छे. त्यारपछी ते परस्पर सहाय करनारा है तेत्रीश श्रमणोपासक गृहपति ओ पूर्वे उग्र, उग्रविहारी (उग्रचर्याचाळा) संविग्न अने संविनविहारी हता, पण पाछळा पासस्था, पास
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१०शतके उदेश ॥१०॥
कास्थविडारी (पासस्थानी चवाळा) अवसन्न, अवसन्नविहारी, कुशील, कुशीलविहारी, यथाछंद, अने यथाछंदविहारी थईने तेओ घणा | 2
६ वरससुधी श्रमणोपासकना पर्यायने पाळे छ, पाळीने अर्धमासिक संखेलनावडे आत्माने सेवीने त्रीश भक्तोने अनशनपणे व्यतीत ध्याख्या
करीने ते प्रमादस्थाननु आलोचन अने प्रतिक्रमण कर्या विना काल समये काल करी तेओ असुरेंद्र, असुरकुमार राजा चमरना त्रायः प्राप्तिः
त्रिंशकदेवपणे उत्पन्न धया. ॥९ ॥ 18 जप्पभिई प्य भंते! कायंदगा तायत्तीसं सहाया गाहावई समणोवासगा चमरस्स असुरिंदस्स असुरकु
माररन्नो तायत्तीसदेवताए उववन्ना तप्पभिई च णं भंते ! एवं वुचइ चमरस्स असुरिंदस्स असुरकुमाररन्नो तायत्तीसगा देवा ?, तए णं भगवं गोयमे सामहत्थिणा अणगारेणं एवं वुत्ते समाणे संकिए करिखए वितिगिच्छिए | उट्ठाए उइ उडाए उद्वेत्ता सामहथिणा अणगारेण सद्धिं जेणेव समणे भगवं महावीरेतेणेव उवागच्छा तेणेव
उबागरिछत्ता समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसह वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयामीआ [40] हे भगवन् ! ज्यारथी मांडीने काकंदीना रहेनारा अने परस्पर सहाय करनारा, तेत्रीश श्रमणोपासको असुरेंद्र, असुरकुमारराजा चमरना त्रायविंशकदेवपणे उत्पन्न थया त्यारथी एम कहेवाय छे के अमरेंद्र, असुरकुमारराजा चमरने त्रायविंशक देवो छ ? (अर्थात ते पूर्व प्रायविंशक देवो न होता). ज्यारे ते श्यामहस्ती अनगारे भगवंत गौतमने ए प्रमाणे कयु त्यारे भगवान्
गौतम शंकित, कांक्षित अने अत्यन्त संदिग्ध थया, अने तेओ उभा थईने ते श्यामहस्ती अनगारनी साथे ज्यां श्रमण भगवान् महा४ा वीर हता त्यां आवे छे त्यां आदीने श्रमण भगवान महावीरने वांदी अने नमीने आ प्रमाणे बोल्या
KRIES
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ShareAK
अत्थि णं भंते! चमरस्स असुरिंदस्स असुरकुमाररण्णो तायत्तीसगा देवा ता० २१, हंता अस्थि,
से केणटुणं भंते ! एवं बुच्चड १, एवं तं चेव सव्वं भाणियब्वं जाव तप्पभिई च णं एवं बुचइ चमरस्स व्याख्या
|१०शतके असुरिंदस्स असुरकुमाररन्नो तायत्तीसगा देवा २१, जो इणढे समढे, गोयमा! चमरस्स णं असुरिंदस्स असुर-६ प्राप्ति
उद्देशार कुमाररन्नो तायत्तीसगाणं देवाणं सासए नामधेजे पण्णत्ते, जे न कयाइ नासी न कदावि न भवति ण कयाई ण ॥९०५॥ ॥९०५॥
भविस्सई जाव निच्चे अब्बोच्छित्तिनयट्टयाए अन्ने चयंति अन्ने उववनंति । अस्थि णं भंते ! बलिस्स बढ़रोयणिसदस्स वइरोयणरन्नो तायत्तीसगा देवा ? ता० २१, हंता अत्थि, से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ बलिस्स बहरोयणि
दस्स जाव तायत्तीसगा देवा ता० २१, एवं खलु गोयमा! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे २ भारहे
वासे बिभेले णाम संनिवेसे होत्था वन्नओ, तत्थ णं बिभेले संनिवेसे जहा चमरस्स जाव उचवन्ना, जप्पभिई च गाणं भंते! ते बिभेलगातायत्तीस सहाया गाहावइसमणोवासगा बलिस्स वह सेसं तं चेव जाब निच्चे अब्बोच्छित्तिणयट्ठयाए अन्ने चयंति अन्ने उववज्जति।
[प्र.] हे भगवन् ! असुरेंद्र, असुरकुमारना राजा चमरने त्रायस्त्रिंशक देवो छ ? [उ०] हा, गौतम! छे. [प्र०] हे भगवन् ! ए प्रमाणे आप शा हेतुथी कहो छो के ते चमरने वायविंशक देवो छ ?-इत्यादि पूर्वे कहेलो त्रायस्त्रिंशक देवोनो सर्व संबन्ध कहेवो यावत् काकंदीना रहेनारा श्रमणोपासको त्रायस्त्रिंशकदेवपणे उत्पन्न थया छे त्यारथी शुएम कहेवाय छे के चमरने त्रायस्त्रिंशक देवो छे ? (ते पूर्वे शुं नहोता!) [उ.] हे गौतम! ते अर्थ योग्य नथी, पण असुरेंद्र असुरकुमारना राजा चमरना त्रायविंशक देवोना नामो |
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व्याख्याप्रशतिः ॥९०६॥1
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१०सके उदेश | ॥९०६॥
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शाश्वत कह्या छे, जेथी तेओ कदी न हतां एम नथी, कदी न हशे एम नथी; कदी नथी एम पण नथी. यावत् (ो नित्य छ, अव्युच्छित्तिनय-(द्रव्यार्थिकनय-)नी अपेक्षाए अन्य च्यवे छे अने अन्य उत्पन्न थाय छे. (पण तेओनो विच्छेद थतो नथी.) [प्र०] हे भगवन् ! वैरोचनेंद्र, वैरोचनराजा बलिने त्रायात्रिंशकदेवो छ ? [उ.] हे गौतम! हा, के. [प्र०] हे भगवन् ! ए प्रमाणे आप शा हेतुर्थी कहो छो के वैरोचनेंद्र बलिने त्रायविंशक देवो छ ? [उ.] हे गौतम ! बलिना त्रायस्त्रिंशक देवोनो संबन्ध आ प्रमाणे ठे-ते काले-ते समये जंबुद्वीपना भारतवर्षमा विमेल नामे संनिवेश (कस्बो) हतो. वर्णन. ते विमेल सभिवेशमां परस्पर सहाय करनारा तेत्रीश श्रमणोपासको रहेता हता. इत्यादि जेम चमरेन्द्रना संबन्धे का तेम अहीं पण जाणवू. यावत् तेओ त्रायस्त्रिंशकदेवपणे उत्पन्न थया. ज्यारथी मांडीने ते विमेल संनिवेशना परस्पर सहाय करनारा तेत्रीश गृहपतिओ श्रमणोपासको वैरोचनेन्द्र बलिना त्रायविंशकदेवपणे उत्पन्न थण-इत्यादि पूर्वोक्त सर्व हकीकत यावत् 'तेओ नित्य हे, अव्यवच्छित्तिनयनी अपेक्षाए अन्य च्यवे छे अन्य उत्पन्न थाय के त्यांमुधी जाणवी.
अत्थि ण भंते ! धरणस्स णागकुमारिंदस्स नागकुमाररन्नो तायत्तीसगा देवा ता० २१, हंता अत्थि, से केणटेणं जाव तायत्तीसगा देवा २१, गोयमा ! धरणस्स नागकुमारिंदस्स नागकुमाररन्नो तायत्तीसगाणं देवागं | सासए नामोजे पन्नत्ते जं न कयाइ नासी जाव अन्ने चयंति अन्ने उववजंति, एवं भूयाणंदस्सवि एवं जाव महाघोसस्स । अत्थि णं भंते! सकस्स देविंदस्स देवरन्नो पुच्छा, हंता अस्थि, से केणटेणं जाव तायत्तीसगा देवा', एवं स्खल गोयमा ! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे पालासए नाम संनिवेसे होत्था
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१०शतके
प्रातिः
वनओ, तत्थ णं पालासए सन्निवेसे तायत्तीसं सहाया गाहावई समणोवासया जहा चमरस्स जाव विहरंति, तए व्याख्या
णं तायत्तीसं सहाया गाहावई समणोवासगा पुर्दिबपि पच्छावि उग्गा उग्गविहारी संविग्गा संविग्गविहारी साहूई वासाई समणोवासगपरियागं पाणित्ता मासियाए संलेहणाए अत्ताण असेइ झूसित्ता सहि भत्ताइं अण- ४ा उद्देश दसणाए छेदेंति २ आलोइयपडिकंता समाहिपत्ता कालमासे कालं. किचा जाव उववन्ना, जप्पभिई च णं भंते ।।
| ॥९०७० ॥९०७॥ * पालासिगा तायत्तीससहाया गाहावई समणोवासगा सेसं जहा चमरस्स जाव उववजंति।
[प्र०] हे भगवन् ! नागकुमारना इंद्र अने नागकुमारना राजा धरणने त्रायस्त्रिंशक देवो छे' [उ०] हे गौतम! हा, छे. [म.] हे भगवन् ! ए प्रमाणे आप शा हेतुथी कहो छो के घरणेन्द्रने त्रायस्त्रिंशक देवो छ ? [उ०] हे गौतम ! नागकुमारना इंद्र अने नागकुमारना राजा धरणना त्रायस्त्रिंशक देवोना नामो शाश्वत कह्या छे, जेथी तेओ कदापि न हता एम नथी, कदापि नथी एम नथी,
अने कदापि न हशे एम पण नथी. यावत् अन्य च्यवे छे अने अन्य उपजे छे. ए प्रमाणे भूतानंद अने यावत् महाघोष इन्द्रना हि त्रायस्त्रिंशक देवो संवन्धे पण जाणवं. [प्र०] हे भगवन् ! देवेंद्र देवराज शक्रने त्रायस्त्रिंशक देवो छ ? [उ.] हा गौतम ! छे. [प्र०]
| हे भगवन् ! ए प्रमाणे आए शा हेतुथी कहो छो के देवेंद्र देवराज शक्रने त्रायस्त्रिंशक देवो छ ? [उ०] हे गौतम ! शक्रना त्रायस्त्रि|शक देवोनो संबन्ध आ प्रमाणे छे-ते काले-ते समये आ जंबूद्वीपना भरतवर्षमां पलाशक नामे संनिवेश हतो. वर्णन. ते पलाशक |नामे संनिवेशमा परस्पर सहाय करनार तेत्रीश श्रमणोपासको रहेता इता-इत्यादि जेम चमर संबन्धे का ते प्रमाणे यावत् तेओ विचरे छे. त्यारपछी परस्पर सहाय करनारा तेत्रीश गृहपति श्रमणोपासको पहेला अने पछी उग्र, उपविहारी, संविन अने संविन
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व्याख्याप्राप्तिः ॥९०८॥
1.9
१०शतके उद्देशन ॥९०८
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विहारी थइने घणा वर्ष सुधी श्रमणोपासकपर्यायने पालीने मासिक संलेखनावडे आत्माने सेवे छे, सेवीने साठ भक्तो अनशान बडे व्यतीत करीने आलोचन, प्रतिक्रमण करीने समाधिने प्राप्त थाय छे, अने मरणसमये काळ करी यावत् त्रायस्त्रिंशकदेवपणे उत्पन्न थाय छे. ज्यारथी आरंभीने पलाशक संनिवेशना निवासी परस्पर सहाय करनारा तेत्रीश गृहपतिओ श्रमणोपासको शकना त्रायखिंशकपणे उत्पन्न थया इत्यादि सर्व वृत्तान्त चमरेन्द्रना प्रमाणे यावत् 'अन्य छे च्यवे के अने अन्य उत्पन्न थाय छै' त्यांसुधी जाणवो. _ अस्थि णं भंते! ईसाणस्स एवं जहा सक्कस्स नवरं चपाए नयरीए जाव उववन्ना, जप्पभिई च णं भंते ! चंपिज्जा तायत्तीसं सहाया, सेसं तं चेव जाव अन्ने उववजंति । अस्थि णं भंते ! सणकुमारस्स देविंदस्स देवरन्नो पुच्छा, हंता अत्थि, से केणटेणं जहा धरणस्स तहेव एवं जाव पाणयस्स एवं अच्चुयस्स जाव अन्ने उववजंति । सेवं भंते ! सेवं भंते ! ॥ (सूत्रं ४०४)॥दसमस्स चउत्थो ।।१०। ।
[प्र.] हे भगवन् ! ईशान इंद्रने त्रायस्त्रिंशक देवो छ । [उ०] शकनी पेठे ईशानेन्द्रने पण जाण; परन्तु विशेष ए छे के ते गृहपतिओ श्रमणोपासको पलाशक संनिवेशने बदले चंपानगरीमा उत्पन्न थयेला छे. 'ज्यारथी चंपाना निवासी त्रायस्त्रिंशकपणे उत्पन्न त्थ या'-इत्यादि पूर्वोक्त सर्व वृत्तान्त यावत् 'अन्य उपजे छे' त्यांमुधी जाणवो. [प्र०) हे भगवन् ! देवोना राजा देवेंद्र सनत्कुमारने
त्रायस्त्रिंशक देवो छ [उ०] हा, गौतम! छे. [प्र०हे भगवन् ! आप एप्रमाणे शा हेतुथी कहो छो के सनत्कुमार देवेंद्रने त्रायविंशक
देवो छ? [उ०] हे गौतम! जेम धरणेन्द्र संवन्धे कछुते प्रमाणे अहीं जाणवु. ए रीते यावत् प्राणतथी मांडीने अच्युतपर्यन्त यावत् है 'बीजा उत्पन्न थाय छे' त्यांमुधी कहे. हे भगवन् ! ते एमज छे, हे भगवन् ! ते एमज छे. (एम कही भगवान् गौतम विहरे छे.)
भगवत सुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीसूत्रना २ मा शतकमां चोथा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो.
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प्याख्यामासिक ॥९०९॥
उद्देशक ५
1१०शक्षके तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नाम नगरे गुणसिलए चेइए जाच परिसा पडिगया, तेणं कालेणं तेणं
उदेशा५ समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स पहवे अंतेवासी थेरा भगवंतो जाइसंपन्ना जहा अट्टमे सए सत्तमुद्देसए GU९०९॥ जाव विहरति । तए ण ते थेरा भगवंतो जायसड्ढा जाव संसया जहा गोमयसामी जाव पज्जुवासमाणा एवं पचासी-चमरस्स णं भंते! असुरिंदस्स असुरकुमाररन्नो कति अग्गमाहिसीओ पन्नत्ताओ?, अजो! पंच अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ, तंजहा-काली रायी रयणी विज्जु मेहा, तत्ध णं एगमेगाए देवीए अट्ठट्ट देवीसहस्सा परिवारो पन्नत्तो,
ते काले-ते समये राजगृह नामे नगर हाँ, अने त्यां गुणसिल नामे चैत्य हतु. [श्रमण भगवान महावीर समोसर्या. ] यावत् समा[धर्मश्रवण करीने ] पाछी गइ. ते काले-ते समये श्रमण भगवान् महावीरना घणा शिष्यो पूज्य स्थविरो जातिसंपन्न-इत्यादि जेम आठमां शतकना सातमा उद्देशकमां कझुछ तेम यावत् विहरे छे. त्यारपछी ते स्थविर भगवंतो जाणवानी श्रद्धावाळा यावद संशयवाला थईने गौतमस्वामीनी पेठे पर्युपासना करता आ प्रमाणे चोल्या. [प्र०] हे भगवन् ! असुरेंद्र असुरकुमारना राजा चमरने केटली अग्रमहिपीओ (पट्टराणीओ) कही है। [उ.] हे आर्यो! चमरेन्द्रने पांच पट्टराणीओ कही छे. ते आ प्रमाणे-काली रायी, रजनी, विद्युत् अने मेघा. तेमांनी एक एक देवीने आठ आठ हजार देवीओनो परिवार कहो हे.
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व्याख्या
१०शव
प्रवतिः
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उदेशा५ ॥९१०॥
पभू ण भंते ! ताओ एगमेगा देवी अन्नाइं अट्ठदेवीसहस्साई परिवार विउवित्तए, एवामेव सपुवावरेणं चत्तालीसं देवीसहस्मा, से तं तुडिए, पभू णं भंते ! चमरे असुरिंदे अमरकुमाररायाचमरचंपाए रायहाणीए सभाए चमरंसि सीहासणंसि तुडिएणं सद्धिं दिव्वाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरित्तए १, णो तिणद्वे समढे, से केणतुणं भंते ! एवं बुच्चइ नो पभू चमरे अमुरिंदे चमरचंचाए रायहाणीए जाब विहरित्तए ?, अजो चमरस्स णं असुरिंदस्स असुरकुमाररन्नो चमरचंचाए रायहाणीए सभाए सुहम्माए माणवए चेहयखंभे वइरामएसु गोलबहसमुग्गएसु बहूओ जिणसकहाओ संनिक्वित्ताओ चिटुंति, जाओणे चमरस्स असुरिंदस्स असुरकुमाररन्नो अन्नेसिं च बहूणं असुरकुमाराणं देवाण य देवीण प अच्चणिजाओ वंदणिजाओ नर्ममणिज्जाओ पूणिज्जाओ सकारणिज्जाओ सम्माणणिज्जाओ कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासणिज्जाओ भवंति तेसिं पणिहाए नो पभू,
से तेणढणं अज्जो। एवं बुचह-नो पभू चमरे असुरिंदे जाव राया चमरचंचाए जाव विहरित्तए, पभू णं अजो! है चमरे असुरिंदे असुरकुमारराया चमरचंचाए रायहाणीए सभाए सुहम्माए चभरंसि सीहासणंसि चउसट्ठीए
सामाणियसाहस्सीहिं तायत्तीसाए जाष अन्नेहिं च वहहिं असुरकुमारेहिं देवेहि य देवीहि य सद्धिं संपरिबुडे महयाहय जाव मुंजमाणे विहरित्तए. केवलं परियारिड्डीए नो चेव ण मेहुणवत्तियं । (सूत्रं ४०५)
[प्र०] हे भगवन् ! शुं ते एक एक देवी आठ आठ हजार देविओना परिवारने विकुर्वत्रा समर्थ छे १ [२०] हे आर्यो ! हा, ए प्रमाणे पूर्वापर बधी मळीने [ पांच पट्टराणीप्रोनो परिवार चालीश हजार देवीयो के अने ते त्रुटिक (वर्ग) कहेवाय के. [प्र०] हे
॥९१०॥
4-24
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१०शतके
है भगवन् ! असुरेंद्र अने असुरकुमारोनो राजा चमर पोतानी चमरचंचा नामनी राजधानीमा सुधर्मा सभामां चमर नामे सिंहासनमां भ्याख्या- | बेसी ते त्रुटिक (स्त्रीओना परिवार) साथे भोगवया लायक दिव्यभोगोने भोगववा समर्थ के ? [उ०] हे आर्य ! ए अर्थ योग्य नथी. प्रतिर [[प्र०) हे भगवन् ! ए प्रमाणे आप शा हेतुथी कहो छो के चमरचंचा राजधानीमा ते अमरेंद्र अने असुरकुमारनो राजा चमर दिव्य ||
| उद्देशा ॥९१२॥
| भोगोने भोगववा समर्थ नथी ? [३०] हे आर्यो ! असुरेंद्र अने अमुरकुमारना राजा चमरनी चमरचंचा नामनी राजधानीमा सुधर्मा ॥९११॥
नामे सभामां माणवक चैत्यस्तंभने विपे वज्रमय अने गोल-वृत्त डावडामा नांखेलां जिनना घणां अस्थिओ (हाडकांओ) के, जे 18 असुरेंद्र अने असुरकुमारना राजा चमरने तथा बीजा घणां असुरकुमार देवोने अने देवीओने अर्चनीय, वंदनीय, नमस्कार करवा
योग्य, पूजवा योग्य, सत्कार करवा योग्य अने समान करवा योग्य छे, तथा कल्याण अने मंगलरूप देव चैत्यनी पेठे उपासना करवा योग्य छ, माटे ते जिनना अस्थिओना प्रणिधानमा [संनिधानमां] ते असुरेंद्र पोतानी राजधानीमा यावत् [ भोगो भोगववा] समर्थ नथी. तेथी हे आर्यो ! एम कहेवाय छे के चमर असुरेंद्र यावत् चमरचंचा राजधानीमां यावत् [ ते देवीओ साथे दिव्य भोगो] भोगववा समर्थ नथी. पण हे आर्यो ! ते अमरेंद्र अमरकुमारराजा चमर चमरचंचा नामे राजधानीमां, सुधमा सभामां, चमरनामे सिंहासनमा बेसी चोसठ हजार सामानिक देवो, त्रायस्त्रिंशक देवो, अने बीजा घणा असुरकुमार देवो तथा देवीओ साये परिवृत थइ मोटा अने निरन्तर थता नाटय, मीत, अने वादित्रोना शब्दो बडे केवल परिवारनी ऋद्धिथी भोगो भोगवा समर्थ छे, परन्तु मैथुननिमित्तक भोगो भोगववा समर्थ नयी. [भ] हे भगवन् ! असुरकुमारना इंद्र अने असुकुमारना राजा चमरना (लोकपाल) सोम महाराजाने केटली पट्टराणीओ कही छे १ [उ.] हे आर्यो ! तेने चार पट्टराणीओ कही छे, ते आ प्रमाणे-कनका, कनकलता, चित्रगुप्ता |
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ALHALKANGARSHASHRS KERALA
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व्याख्या प्रवतिः ॥९१२।।
१०शसके उदेशा ॥११॥
अने वसुंधरा. त्यां एक एक देवीने एक एक हजार देवीनो परिवार छे. तेओमांनी एक एक देवी एक एकहबार हजार देवीना परिवारने विकुर्वी शके छ, ए प्रमाणे पूर्वापर बधी मळीने चार हजार देवीओ थाय छे. ते श्रुटिक (देवीओनो वर्ग) कद्देवाय छे.॥ ४०५।।
चमरस्स णं भंते! असुरिंदस्म असुरकुमाररत्नोसोमस्स महारनो कति अग्गमहिसीओ पबत्ताओ,अजो। चत्तारि अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ, तंजहा-कणगा कलगलया चित्तगुत्तावसुंधरा, तत्थ णं एगमेगाए देवीए एगमेगसि दवि. सहस्सं परिवारो पन्नत्तो, पभू णं ताओ एगमगाए देवीए अन्नं एगमग देवीसहस्सं परियारं विउवित्तए, एवामेव सपुव्वावरेण चत्तारिदेविसहस्सा.सेत्तं डिप, पभू णभंते! चमरस्स अमरिंदस्स असुरकुमाररन्नो सोमे महाराया सोमाए रायहाणीए सभाए सुहम्माए सोमंसि सीहासणंसि तडिएणं अबसेस जहा चमरस्स नवरं परिपारी जहा सूरियाभस्स, सेसं तं चेव, जाव णो चेवण मेहणवत्तिय । चमरस्सणं भंते ! जाव रन्नो जमस्स महारबो कति अग्गमहिसीओ, एवं चेव नवरं जमाए रायहाणीए सेसं जहा सोमस्स, एवं वरुणस्सवि, नवरं वरुणाए रायहाणीए, एवं वेसमणस्सधि, नवरं वेसमणाए रायहाणीए, सेसं तं चेव जाब मेहुणवत्तियं ।।
[प्र०] हे भगवन् ! असुरकुमारना इंद्र अने असुरकुमारना राजा चमरना (लोकपाल) सोम नामे महाराजा पोतानी सोमा नामे राजधानीमा सुधर्मा सभामा सोमनामे सिंहासनमां बेसी ते त्रुटिक (देवीओना वर्ग) साथे भोगवा समर्थ के ? [उ०] चमरना संबन्धे का ते सर्व अहीं पण जाणवू. परन्तु तेनो परीवार सूर्याभनी पेठे जाणवो. अने पाकी सर्व पूर्व प्रमाणे कहेवू, यावत् ते देवीओ साथे पोतानी सोमा राजधानीमा मैथुननिमित्तक भोग भोगववा समर्थ नथी. [म.] हे भगवन् ! ते चमरना (लोकपाल) यम नामे
रही पण जाण. परन्तु हासनमा बेसी ते त्रुटिक (देवीओना लोकपाल) सोम नामे महाराजा पोतानी
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१०शतके
व्याख्याप्रालि ॥९१३॥
SHISHIRUC00-40A5
महाराजाने केटली पट्टराणीओ कहीले १ [उ.] हे आर्यों ! पूर्व प्रमाणे जाणवु. विशेष ए छे के ( यम लोकपालने ) यमा नामे | राजधानी छे. बाकी बधुं सोमनी पेठे जाण. तथा ए प्रमाणे वरुणना संबन्धे पण जाणवू, परन्तु तेने बरुणा राजधानी छे. ते
प्रमाणे वैश्रमणने पण जाणवू. परन्तु तेने वैश्रमणा राजधानी छे. बाकी सर्व पूर्व प्रमाणे जाणवू, यावत् 'तेओ मैथुननिमित्ते भोग है भोगवना समर्थ नथी.'
उद्देशा५ चलिम्स भंते। बहरोयर्णिदस्स पुच्छा, अजो! पंच २ अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ, तंजहा-बुभा निसुभा।
8।।९१३॥ रंभा निरंभा मदणा, तत्थ णं एगमेगाए देवीए अट्ट सेसं जहा चमरस्स, नवरं बलिचचाए रायहाणीए, परियारो जहा मोउद्देमए, सेस तं चेव, जाव मेहुणवत्तियं । यलिस्स णं भंते ! वइरोणिदस्स बहरोयणरन्नो सोमस्स महारनो कति अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ? अजो! चत्तारि अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ, तंजहा-मीणगा सुभद्दा विजया | असणी, तत्थ णं एगमेगाए सेसं जहा देवीए चमरसोमस्स, एवं जाव वेसमणस्स ॥ धरणस्स णं भंते। नागकुमा रिंदस्म नागकुमाररन्नो कति अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ?, अजो! छ अग्गमहिसीओ पत्ताओ, तंजहा-इला सुक्का सदारा सोदामणी इंदा घणविज्जया,तत्थ णं एगमेगाए देवीए छ छ देविसहस्सा परिवारो पन्नत्तो, पभू णं भंते! ताओ एगमेगाए देवीए अन्नाई छ छ देविसहस्साई परियारं विउब्वित्तए एवामेव सपुवावरेणं छत्तीस देविसहस्साई, सेत्तं तुडिए, पण भंते! धरणे सेसं तं चेव, नवरं घरणाए रायहाणीप घरणसिसीहासणंसि सओ परियाओ सेसं तं चेव ।
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प्याख्याप्राप्तिः ॥९१४॥
[प्र. हे भगवन् चिरोचनेन्द्र बलिने केटली पट्टगणीओ कही छ ? [30] हे आर्य! पांच पट्टराणीओ कही छे; ते सप्रमाणेशुभा, निशुंभा, रंभा, निरंभा अने मदना. तेमांनी एक एक देवीने आठ आठ हजार देवीओनो परिवार होय हे-इत्यादि सर्व चमरेन्द्रनी पेठे जाणवू परन्तु बलि नामे इन्द्रने बलिचंचा नामे राजधानी छे. अने तेनो परिवार तृतीय शतकना प्रथम उद्देशकमां कहा
१०शसके |प्रमाणे जाणवो, बाकी सर्व पूर्व प्रमाणे जाणवू. गवत् ते मैथुननिमित्त भोग भोगववा समर्थ नथी. [प्र.] हे भगवन् ! वैरोचनेन्द्र
उद्देशा५ | वैरोचनराजा बलिना (लोकपाल) मोम नामे महाराजाने केटली पट्टराणीओ कही हे ? [उ०] हे आर्य! चार पट्टराणीओ कही छे, ने
४ ॥९१४॥ आ प्रमाणे-मेनका, मृभद्रा, विजया अने अशनी. तमा एक एक देवीनो परिवार वगेरे बधुं चमरना सोम नामे लोकपालनी पेठे
जाणवू. प प्रमाणे यावत् वैश्रमण सुधी जाणवू. [म०] हे भगवन् ! नागकुमारना इन्द्र अने नागकुमारना राजा धरणने केटली पट्टा पाणीओ कही हटे १ [उ.] हे आर्य : तेने छ पट्टराणीओ कही ने, ते आ प्रमाणे-इला, शुक्रा, सनाग, सौदामिनी, इन्द्रा अने घनवि
धुव. तेमां एक एक देवीने छ छ हजार देवीओनो परिवार कह्यो छे. [F०] हे भगवन् ! तेमांनी एक एक देवी अन्य छ छ हजार देवीओना परिवारने विकुर्वी शके ? [२०] तेश्रो पूर्वे कह्या प्रमाणे पूर्वापर सर्व मळीने छत्रीश हजार देवीओने विकुर्ववा समर्थ छे. ए, प्रमाणे ते त्रुटिक देवीओनो समूह) कह्यो. [प्र०] हे भगवन् ! | धरणेन्द्र पोताना धरणा नाये राजधानीमां धरण नामे सिंहासनमां 8 वेसी पोताना परिवार देवीओ साथे भोग भोगववा समर्थ हे इत्यादि [उ.] बाकी सर्व पूर्ववत् जाणवू, (अर्थात मैथुननिमित्ते त्यां भोग भोगववा समर्थ नयी.)
धरणस्म ण भंते ! नागकुमारिंदस्स कालवालस्स लोगपालस्स महाग्न्नो कति अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ',अजो!
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व्याख्याप्रति ॥९१५॥
१०शतके उशा५ १९१५३
चत्तारि अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ, तंजहा-असोगा विमला सुप्पभा सुदंसणा, तत्थ णं एगमेगाए अवसेसं जहा | चमरस्स लोगपालाणं,एवं सेसाणं तिपहवि। भूयाणंदस्स णं भंते ! पुच्छा, अनो! छ अग्गमहिस्सीओ पन्नत्ताओ, तंजहा-रूया रूयंसा सुरूया रुयगावती रुयकता रुयप्पभा, तत्थ णं एगमेगाए देवीए अवसेसं जहा धरणस्म,
[प्र०] हे भगवन् ! नागकुमारना इन्द्र धरणना लोकपाल कालवाल नामे महाराजाने केटली पट्टराणीओ कही छे ? [उ०] हे आर्य ! चार पट्टराणीओ कही छे; ते आ प्रमाणे-अशोका, विमला, सुप्रभा अने सुदर्शना, तेमां एक एक देवीनो परिवार वगेरे चम| रना लोकपालोनी पेठे जाणवू. ए प्रमाणे बाकीना त्रणे ले.कपालोसंबन्धे जाणवं. [-] हे भगवन् ! भूतानेन्द्रने केटली पट्टराणीओ है।कही छे ? [उ.] हे आर्य ! छ पट्टराणीओ कही छे, ते आ प्रमाणे-रूपा, रूपांशा, सुरूषा, रूपकावती, रूपकांता अने रूपप्रभा. तेमां एक एक देवीनो परिवार इत्यादि सर्व धरणेन्द्रनी पेठे जाणवू.
भूयाणंदस्स णं भंते! नागवित्तस्म पुच्छा अजो चत्तारि अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ, तंजहा-सुणंदा सुभद्दा सुजाया सुमणा, तत्थ णं पगमेगाए देवीए अवसेस जहा चमरलोगपालाणं एवं सेमाणं तिण्हवि लोगपालाणं, जे दाहिणिल्लागिंदा तेर्मि जहा धरणिंदस्स, लोगपालाणंपि तेसिं जहा धरणस्स लोगपालाण, उत्तरिल्लाणं. इंदाणं जहा भूयाणंदस्स, लोगपालाणवि तेसिं जहा भूयाणंदस्स लोगपालाणं. नवरं इंदाणं सव्वेसिं रायहाणीओ सीहासणाणि य सरिमणामगाणि परियारो जहा तयसए पढमे उद्देसए,लोगपालाणं सब्वेसिं रायहाणीओ सीहामणाणि य सरिमनामगाणि परियारो जहा चमरस्स लोगपालाणं । कालम्स णं भंते ! पिसायिंदस्स
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१०शतके
व्याख्याप्रचप्तिः
| उना५
॥९१६॥
18॥११॥
CASE-CA
पिसायरन्नो कति अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ?, अजो! चत्तारि अग्गमहिसीओ पन्नसाओ, तंजहा-कमला कमलप्पभा उम्पला सुदंसणा, तत्य णं एगमेगाए देवीए एगमेगं देविसहस्सं सेसं जहा चमरलोगपालाणं, परियारो तहेव, नवरं कालाए रायहाणीए कालंसि सीहासणंसि, सेसं तं चेव, एवं महाकालस्सवि ।
प्र०] हे भगवन् ! भूतानेंद्रना लोकपाल नागवित्तने केटली पट्टराणीओ कही छे १ [उ०] हे आर्य ! तेने चार पट्टराणीओ कही छे. ते आ प्रमाणे--सुनंदा, सुभद्रा, सुजाता अने सुमना. तेमा एक एक देवीनो परिवार वगेरे वधुं चमरेन्द्रना लोकपालोनी पेठे जाणवू. ए प्रमाणे बाकी रहेला त्रणे लोकपालोना संबन्धे जाणवं. जे दक्षिण दिशिना इन्द्रो छे तेओने धरणेन्द्रनी पेठे (सू. १८.) जाणवू, अने तेओना लोकपालोने पण घरणेंद्रना लोकपालोनी पेठे जाणवं. तथा उत्तर दिशिना इंद्रोने भूतानेंद्रनी पेठे (. १३.) जाण. तेओना लोकपालोने पण भूननेंद्रना लोकपालोनी पेठे जाण; परन्तु विशेष एके के सर्व इन्द्रोनी राजधानीओ अने सिंहासनो इंद्रना समान नामे जाणवां. अने तेओनो परिवार तृतीय शतकना प्रथम उद्देशकमा कह्या प्रमाणे समजवो. तथा बधा लोकपापालोनी राजधानीओ अने सिंहासनो पण तेओनां समान नामे जणवां. अने तेओनो परिवार चमरेन्द्रना लोकपालोना परिवारनी पेठे जाणवो. [प्र.] हे भगवन् ! पिशाचना इंद्र अने पिशाचना राजा कालने केटली पट्टराणीओ कही छे ? [उ.] हे आर्य! तेनें चार पट्टराणीओ कही छे. ते आ प्रमाणे-कमला, कमलप्रभा, उत्पला अने मुर्शना. तेमांनी एक एक देवीने एक एक हजार देवीनो
परिवार छ, बाकी वधुं चमरना लोकपालोनी पेठे जाणवू, अने परिवार एण तेज प्रमाणे जाणवो. परन्तु विशेष ए छे के काला नामे : राजधानी अने काल नामे सिंहासन जाण. तथा बाकी बधुं पूर्व कह्या प्रमाणे जाणवं. ए प्रमाणे महाकालसंबंधे पण जाण..
HECK-SHETECE
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व्याख्याप्राप्ति ॥९१७॥
१०शतके उद्देशा५ ॥९१७॥
-*-CASSASSACREAK
सुरुवस्स ण भंते! भूहंदस्स रन्नो पुच्छा, अनोचत्तारि अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ, तंजहा-रूववती बहुरूवा सुरूवा सुभगा, तत्थ ण एगमेगाए सेसं जहा कालस्स,एवं पडिरूवस्सवि। पुन्नभद्दस्स णं भंतेजिक्खिदस्स पुच्छा अलो! चत्तारि अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ, तंजहा-पुन्ना बहुपुत्तिया उत्तमा तारया, तत्थ णं एगगेगाए सेसं जहा कालस्स, एवं माणिभद्दस्सवि । भीमस्म ण भंते! रक्खसिंदस्स पुच्छा, अज्जो! चत्तारि अग्गमहिसीओ पन्नताओ, तंजहा-पउमा पउमावती कणगा रयणप्पभा. तत्य णं एगमेगा सेसं जहा कालस्स । एवं महाभीमस्सवि।
[प्र०] हे भगवन् ! भूतना इन्द्र अने भूतना राजा सुरूपने केटली पट्टराणीओ कही छे १ [उ०] हे आर्य ! तेने चार पट्टराणीओ कही छे, ते आ प्रमाणे-रूपवती, बहुरूपा, मुरूपा, अने मुभगा. तेमां एक एक देवीनो परिवार वगेरे कालेन्द्रनी पेठे जाणवू, अने | एज प्रमणे प्रतिरूपेन्द्र संबंधे पण जाणवू. [प्र०] हे भगवान् ! यक्षना इन्द्र पूर्णभद्रने केटली पट्टराणीओ कही छे ? [उ०] हे आर्य! तेने चार पट्टराणीओ कही छ, ते आ प्रमाणे-पूर्णा, बहुपुत्रिका, उत्तमा अने तारका. तेमां एक एक देवीनो परिवार वगेरे कालेन्द्रनी पेठे जाणवू, अने ए प्रमाणे माणिभद्र संबन्धे पण जाणवू. [प्र.] हे भगवन् ! राक्षसना इंद्र भीमने केटली पट्टराणीओ कही छे ? उ०] हे आर्य ! तेने चार पट्टराणीओ कही छे, ते आ प्रमाणे- पद्मा, पद्मावती, कनका अने रत्नप्रभा. तेमा एक एक देवीनो परिवार
वगेरे सर्व कालेन्द्रनी पेठे जाणवू. ए प्रमाणे महाभीमेन्द्रसंबन्धे पण जाणवं. द किन्नरस्स णं भंते! पुच्छा अजो! चत्तारि अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ, तंजहा-वडेंसा केतुमती रतिसेणा रइ-|
प्पियातत्थ णं सेसं तं चेव, एवं किंपुरिसस्सवि। सप्पुरिसस्स णं पुच्छा अज्जो! चत्तारि अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ,
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व्याख्याप्रातिः १९१८॥
१० उद्देशान ॥९१८॥
RASA-%EKA-%B5%E
तंजहा-रोहिणी नवमिया हिरी पुष्फवती, तत्थ णं एगमेगा०, सेसं तं घेव, एवं महापुरिसस्सवि । अतिकायस्स णं पुच्छा, अखो! चत्तारि अग्गमहिसी पन्नत्ता, तंजहा-मुयंगा भुयंगवती महाकच्छा फुडा, तत्थ पं०, सेसं तं चेव, एवं महाकायस्सवि । गीपरहस्म णं भंते! पुच्छा, अजो चत्तारि अग्गमहिसी पन्नत्ता,तंजहा-सुघोसाविमला सुस्सरा सरस्सई, तत्थ णं, सेस तं चेव, एवं गीयजसस्सवि, सब्वेसिं एएसिं जहा कालस्स, नवरं सरिसनामियाओ रायहाणीओ सीहासणाणि य, सेसं तं चैव ।
[म.] हे भगवन् ! किंनरेन्द्रने केटली पट्टराणीओ कही छे ? [उ०] हे आर्य! तेने चार पट्टराणीओ कही छे, ते आ प्रमाणेअवतंसा, केतुमती, रतिसेना अने रतिप्रिया. तेओनां एक एकनो परिवार वगेरे पूर्वे कह्या प्रमाणे जाणवं. ए प्रमाणे किंपुरुषेन्द्र संबंधे पण जाणवू. [म.] हे भगवन् ! सत्पुरुषेन्द्रने केटली पट्टराणीओ कही छे १ [उ.] हे आर्य ! तेने चार पट्टराणीओ कही छे. ते आ प्रमाणेमोहिणी, नवमिका, ही अने पुष्पवती. तेमां एक एकनो परिवार वगेरे चधुं पूर्वनी पेठे जाणवू. ए प्रमाणे महापुरुपेन्द्र संबन्धे पण जाणवू. [प्र.] हे भगवन् ! अतिकायेन्द्रने केटली पट्टराणीओ कही छे ? [उ०] हे आर्य । तेने चार पट्टराणीओ कही छे, ते आ प्रमाणे-भुजंगा, भुजगवती, महाकच्छा अने स्फुटा. तेमां एक एकनो परिवार वगेरे बधु पूर्वनी पेठे जाणचु. ए प्रमाणे महाकायेन्द्र संवन्धे पण जाणवू. [प्र.] हे भगवान् ! गीतरतीन्द्रने केटली पट्टराणीओ होय छ ? [10] हे आर्य! तेने चार पट्टराणीयो | होय छे, ते आ प्रमाणे-सुघोषा, विमला. मुस्वरा अने सरस्वती. तेमां एक एकनो परिवार वगेरे बधु पूर्वनी पेठे जाणवू. ए प्रमाणे गीतयश इन्द्र संबन्धे पण समजबुं. आ सर्व इन्द्रोने चाकीनुं सर्व कालेन्द्रनी पेठे जाणवू परन्तु विशेष ए छे के, राजधानीओ अने
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व्याख्या
प्रशसि
॥९९९ ॥
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सिंहासनो इन्द्रना समान नामे जाणवां, बकी सर्व पूर्वनी पेठे जाणवु.
चंदस्स णं भंते! जोइसिंदस्स जोइसरन्नो पुच्छा, अज्जो चत्तारि अग्गमहिसी पन्नत्ता, तंजहा - चंदष्पभा दोसिणामा अचिमाली पभंकरा एवं जहा जीवाभिगमे जोइसियउद्देसए तहेव, सूरस्सवि रुरप्पभा आयवाभा अचिमाली पभंकरा, सेसं तं चेत्र, जहा (जाब) नो चेव णं मेहुणवत्तियं । इंगालस्स णं भंते । महग्गहस्स कति अग्ग० पुच्छा, अज्जो ! चत्तारि अग्गमहिसी पन्नत्ता, तंजहा - विजया वैजयंती जयंती अपराजिया, तत्थ णं एगमेगाए देवीए सेसं तं वेव जहा चंदस्स, नवरं इंगालवडेंसए बिमाणे इंगालगंसि सीहासांसि सेस तं चेत्र, एवं जाव विद्यालगरसवि, एवं अट्ठासीतीएवि महागहाणं भाणियव्वं जाव भावकेउस्स, नवरं नडेंसगा सीहासणाणि य सरिसनामगणि, सेसं तं चैव । सक्क्स्स णं भंते! देविंदस्स देवरन्नो पुच्छा, अजो ! अट्ठ अग्गमहिसी पत्ता, तंजहा- पउमा सिवा सेया अंजू अमला अच्छरा नवमिया रोहिणी, तत्थ णं एगमेगाए। देवीए सोलस सोलस देविसहस्सा परिवारो पन्नत्तो. पभू णं ताओ एगमेगा देवी अन्नाई सोलस देविस हस्सपरियारं विउच्चित्तर एवामेव सपुत्रवावरेणं अट्ठावीसुत्तरं देविसयस हस्से परियारं विव्वित्तए, सेत्तं तुडिए ।
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[0] हे भगवन् ! ज्योतिष्कना इन्द्र अने ज्योतिष्कना राजा चन्द्रने केटली पट्टराणीओ कही छे ? [अ०] हे आर्य ! तेने चार पट्टराणीओ कही छे, ते आ प्रमाणे- चन्द्रप्रभा, ज्योत्स्नाभा, आर्चर्माली अने प्रभंकरा - इत्यादि जेम जीवाभिगमसूत्रमां ज्योतिष्कना उद्देशकमां कछु छे तेम जाणवुं. सूर्यसंबन्धे पण बधूं तेमज जाणवुं. सूर्यने चार पट्टराणीओ छे, ते आ प्रमाणे सूर्यप्रभा, आतपाभा,
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१० शतके
उद्देश५
॥९९९॥
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व्याख्याप्रज्ञप्तिः
॥९२०॥
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आर्चेर्माली अने प्रभंकरा - इत्यादि सर्व पूर्वोक्त कहेतुं यावत् तेओ पोतानी राजधानीमां सिंहासनने विषे मैथुननिमित्ते भोगो भोगवी शकता नथी. [प्र० ] हे भगवन् ! अंगार नामना महाग्रहने केटली पट्टराणीओ कही छे ? [अ०] हे आर्य । तेने चार पट्टराणीओ कही छे, ते आ प्रमाणे- विजया, वैजयंती, जयंती अने अपराजिता, तेमां एक एक देवीनो परिवार वगेरे बधुं चन्द्रनी पेठे जा विशेष एछे के, अंगारावतंसकनामना विमानमा अने अंगारक नामना सिंहासनने विषे यावत् मैथुननिमित्ते भोगो भोगवता नथी. बाकी सर्व पूर्ववत् जाणवुं तथा ए प्रमाणे यावत् व्याल नामे ग्रहसंबन्धे पण जाणवुं. एम अठ्याशी महाग्रहो माटे यावत् भावकेतु ग्रह सुधी कहेवुं. परन्तु विशेष ए ले के, अवतंसको अने सिंहासनो इन्द्रना समान नामे जाणवां. बाकी बधुं पूर्वप्रमाणे जाण. [प्र०] हे भगवन् ! देवना इन्द्र देवना राजा शक्रने केटली पट्टराणीओ कही छे ? [अ०] हे आर्य ! तेने आठ पट्टराणीओ कही छे, ते आ प्रमाणे- पद्मा, शिवा, श्रेया, अंजु, अमला, अप्सरा, नवमिका अने रोहिणी. तेमांनी एक एक देवीनो सोळ सोळ हजार देवीओनो परिवार होय छे, तेमांनी एक एक देवी बीजी सोळ सोळ हजार देवीओना परिवारने विकुर्वी शके छे. ए प्रमाणे पूर्वापर मळीने एक लाख अने अय्यावीस हजार देवीओना परिवारने विकुर्ववा समर्थ छे. ए प्रमाणे त्रुटिक (देवीओनो समूह) कह्यो.
पणं भंते । सके देविंदे देवराया सोहम्मे कप्पे सोहम्मवडेंसए विमाणे सभाए सुहम्माए सर्कसि सीहासणंसि तुडिएणं सद्धि सेसं जहा चमरस्म, नवरं परियारो जहा मोउद्देसए । सक्कस्स णं देविंदस्स देवरन्नो सोमस्स महारनो कति अग्गमहिसीओ, पुच्छा, अजो! चत्तारि अग्गमहिसी पन्नत्ता, तंजहा- रोहिणी मदणा चित्ता सोमा, तस्थ णं एगमेगा सेसं जहा चमरलोगपालाणं, नवरं सर्वपमे विमाणे सभाए सुहम्माए सोमंसि सीहासणंसि,
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१० शतके
उद्देश५
॥ ९२०॥
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१०शतके
व्याख्याप्रबतिः
है
॥९२२॥
॥९
॥
सेसं तं चेव एवं जाव वेसमणस्स, नवरं विमाणाई जहा तइयसए । ईसाणस्स णं भंते ! पुच्छा, अजो! अट्ट अ. ग्गम हिसी पन्नता, तंजहा-कण्हा कण्हराई रामा रामरक्खिया वसू बसुगुत्ता वसुमित्ता वसुंधरा, तत्य णं एग- मेगा", सेसं जहा मकस्स । ईसाणस्स भंते! देविंदम्स मोमस्म महारणो कति अग्गमहिसीओ?, पुच्छा, अलो! चत्तारि अग्गमहिसी पन्नत्ता, तंजहा-पुढवी रायी रयणी विज्जू , सत्य , सेसं जहा नकस्म लोगपालोणं, एवं जाव वरुणस्स, नवरं विनाणा जहा चउत्थसए, सेमंतं चेव जाब नो चेव ण मेहुणवत्तियं । सेवं भंते! सेवं भंतत्ति जाब विहरह ।। ( सूत्रं ४०६)॥१०-५॥
(प्र०] हे भगवन् ! देवेन्द्र देवराज शक्र मौधर्म देवलोकमां सौधर्मावतंसक विमानमा सुधर्मा सभाने विषे अने शक्र नाने सिंहा|सनमा बेसी ते त्रुटिक (देवीओना समूह) साथे भोग भोगववा समर्थ के ? [उ०] हे आर्य ! बाकी सर्व चमरेन्द्रनी पेठे जाण. पर
न्तु विशेष ए छे के तेनो परिवार दतीयशतकना प्रथम उद्देशकमां कह्या प्रमाणे जाणवो. [प्र०] हे भगवन् ! देवेन्द्र देवराज शक्रना (लोकपाल) सोम नामे महाराजाने केटली पट्टराणीओ कही छे ? (उ०] हे आर्य! तेने चार पट्टराणीओ कही छे, ते आ प्रमाणेरोहिणी, मदना, चित्रा अने सोमा. तेमां एक एक देवीनो परिवार वगेरे चमरेन्द्रना लोकपालोनी पेठे जाणवो; परन्तु विशेष ए छे के स्वयंप्रभ नामे विमानमां, सुधर्मा सभामां अने सोम नामना सिंहासनमा वेसीने मैथुननिमित्ते देवीओनी साथे भोग भोगववा समर्थ नथी-इत्यादि सर्व पूर्ववत् जाण. ए प्रमाणे यावद् वैश्रमण सुधी जाणवू, परन्तु विशेष ए छेके तेमना विमानो तृतीयशतकमां कह्या प्रमाणे कहेवा. [H०] हे भगवन् ! ईशानेन्द्रने केटली पट्टराणीओ कही छे ? [३०] हे आर्य । तेने आठ पट्टराणीओ कही छे,
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व्याख्याप्राप्तिः १९२२॥
ते आ प्रमाणे-कृष्णा, कृष्णराजि, रामा, रामरक्षिता, वसु, वसुगुप्ता, वसुमित्रा अने वसुंधरा. तेमा एक एक देवीनो परिवार वगेरे वधुं शक्रनी पेठे जाणवू. [प्र०] हे भगवन् ! देवेन्द्र देवराज ईशानना (लोकपाल) सोम नामे महाराजाने केटली यट्टराणीओ कही
छ ? [उ०] हे आर्य ! तेने चार पट्टराणीओ कही छे, ते आ प्रमाणे-पृथिवी, रात्री, रजनी, अने विद्युत्. वेमां एक एकनो परिवार | वगेरे बाकी बधुं शक्रना लोकपालोनी पेठे जाणवू. ए प्रमाणे यावत् वरुण सुधी जाणवू. परन्तु विशेष ए छे के चोथा शतकमां कहा |
प्रमाणे विमानो कहेवा, बाकी वर्षा पूर्वनी पेठे जाणवं. यावत् ते मैथुननिमिचे (राजधानीमा पोताना सिंहासन उपर बेसीने) मोग | भोगवता नथी. हे मगवन् ! ते एमज , हे भगवन् ! ते एमज छे. ॥ ४०६ ॥
___ भगवत् सुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवती सूत्रना १० मा शतकमां पांचमा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो.
उदेशा
१२०
RAKASH
उद्देशक ६ कहिं णं भंते ! मक्कम देविंदस्स देवरन्नो सभा सुहम्मा पन्नत्ता?, गोयमा ! जंबुद्दीवे २ मंदरस्स पव्वयस्स | दाहिणेणं इमीसे रयणप्पभाए एवं जहा रायप्पसेणइज्जे जाव पंच बडेंसगा पन्नत्ता, जहा-अमोगव.सए जाव मज्झे सोहम्मवडेंसए, सेणं सोहम्मवडेंसए महाविमाणे अद्धतेरस य जोयणसयसहस्साई आयामविक्खंभेणंएवं जह सूरियाभे तहेब माणं तहेव उववाओ। सक्कस्स य अभिसेओ तहेव जह सूरियाभस्स!१ ॥ अलंकार• अच्चणिया तहेव जाव आयरक्वत्ति, दो सागरोवमाई ठिती। सके भंते! देविंद देवराया केमहिड्डीए जाव
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व्याख्या
प्रशासिः
॥९२३ ॥
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गोयमा ! महिडीए जाव महसोक्खे, से णं तत्थ बत्तीसार विमाणावास समसहस्साणंजाब विहरति केमहसोक्खे, एवं महट्टिए जाव एवं महासोक्खे सके देविंदे देवराया । सेवं भंते ! सेवं भंतेति ॥ (सूत्रं ४०७ ) ।। १०६ ।। [प्र० ] हे भगवन् ! देवेन्द्र देवराज शक्रनी सुधर्मा नामे सभा क्यां कही है ? [30] हे गौतम! जंबूद्वीप नामे द्वीपमां मेरु पर्वतनी दक्षिणे आ रत्नप्रभा पृथिवीना (बहु सम अने रमणीय भूमिभागनी उंचे घणा कोटाकोटि योजन दूर सौधर्म नामे देवलोकने विषे) इत्यादि 'रायपसेणीय' सूत्रमां का प्रमाणे यावत् पांच अवतंसक विमानो कथा छे, ते आ प्रमाणे- अशोकावतंसक, यावत् चे सौ छे. ते सौधर्मावतंसक नामे महा विमाननी लंबाई अने पहोळाई साडा बार लाख योजन के. शक्रनुं प्रमाण, उपपात (उपजर्बु), अभिषेक, अलंकार अने अर्चनिका (पूजा) - इत्यादि यावत् आत्मरक्षको सूर्याभ देवनी पेठे जाणवा, तेनी स्थिति (आयुष) वे सागरोपमनी के. [प्र०] हे भगवन् ! देवेन्द्र देवराज शक्र केवी महाऋद्धिवाको छे. केवा महासुखवाली छे १ [ उ० ] हे गौतम ! ते मझऋद्धिवाको यावत् महासुखवालो वत्रीश लाख विमानोनो स्वामी थहने यावद् विहरे छे, ए प्रमाणे महाऋद्धिवाळो | अने महासुखवाळो ते देवेन्द्र देवराज शक्र छे. हे भगवन् ! ते एमज छे, हे भगवन् ! ते एमज के. ( एम कही भगवान् गौतम यावद् विहरे छे.) ॥ ४०५ ॥
भगवत् सुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवती सूत्रना १० मा शतकमां छट्टा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो.
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१० शतके उद्देशः
- ९२३५
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प्रकतिः
॥९२४॥
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उद्देशक ७
कन्निं भंते ! उत्तरिल्लाणं एगोरुयमणुस्साणं एगोरुपदीवे नामं दीवे पन्नत्ते ?, एवं जहा जीवाभिगमे तहेव निरवसेसं जाव सुद्धदेतदीवोत्ति, एए अट्ठावीसं उद्देसगा भाणियत्र्वा । सेवं भंते! सेवं भंतेत्ति जाव विहरति ॥ ॥ सूत्रं ४०८ ) ।। १०-३४ ॥ दसमं सयं समतं ॥ १० ॥
[प्र० ] हे भगवन् ! उत्तरमा रहेनारा एकोरुक मनुष्योनां एकोरुक नामे द्वीप कये स्थळे कचो छे ? [ उ०] हे गौतम! जीवाभिगमत्रमां का प्रमाणे सर्व द्विपो संबन्धे यावत् शुद्धदंवद्वीप सुधी कहेनुं. ए प्रमणे प्रत्येक द्वीप संबन्धे एक एक उद्देशक कहेवो. एम अख्यावीश उद्देशको कहेवा. हे भगवन् ! ते एमज छे, हे भगवन् । ते एमज छे. ( एम कही भगवान् गौतम यावत् विहरे छे.) ॥ ४९८ ॥
भगवत् सुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीसूत्रना १० मा शतकमां सातमा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण धयो. ZUE) Mihin) TALHAN) (MAN) (PLANT) DIRIGINT, DEMIEN) TORCI M MAINTENTIO
॥ इति श्रीमद्भयदेवाचार्यवृत्तियुतं दशमंशतकं समाप्तम् ॥
HWH) OILUKYO, VAINNINE, OPAZNO TAIGIAID INPATAN COCINA UNDIEN BRAND
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१० शतके
उद्देशः७ ||९२४ ॥
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व्याख्या
प्रज्ञप्तिः
।। ९२५ ।।
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११ शतके
उद्देशः १
॥९२५ ॥
शतक १.)
:
उप्पल १ सालु २ पलासे ३ कुंभी ४ नाली य ५ पउम ६ कन्नी ७ लंभिय १२ दस दो य एक्कारे ॥ ६६|| उबवाओ १ परिमाणं २ अबहार रणाए८ लेसा९ दिट्ठी १० नाणे ११ य ॥६७॥ जोगु १२ ओगे १३ १७ । बिरई १८ किरिया १९ बंधे २० सन्न २१ कसायि २२ २३
नलिण ८ सिव ९ लोग १० काला ११ssचत्त ४ बंध ५ वेदे ६ य । उदः ७ उदी१५ रसमाई १५ ऊसासगे १६ व आहारे २४ ॥ ६८॥ सन्नि २५ दिय २६ अणुबंधे
- २७ संवेहा २८ हार २९ ठिइ ३० सनुग्धाए ३१ । चयणं ३२ मूलादीनु य उबबाओ ३३ सवजीवाणं ॥ ३९ ॥
( उद्देश संग्रह - ) १ उत्पल, २ शालूक, ३ पलाश, कुंमी ५ नाडीक, ६ व ७ कर्णिका, ८ नलिन, ९ शिवराजर्षि, १० लोक, ११ काल अने १२ आलभिक-ए संबन्धे अग्यारमां शतकमां बार उद्देशको डे. (उत्पल) - अमुक जातना कमल संबन्धे प्रथम उद्देशक, शालूक- उत्पलकन्द-संबन्धे बीजो उद्देशक, पलाश - खाखरा -ना वृक्ष संत्रे त्रीजो उद्देशक, कुंभीवनस्पति संबन्धे चोथो उद्देशक, नाडीक वनस्पति संबन्धे पांचमो उद्देशक, पद्म-अमुक जातना कमल-विषे छट्टो उद्देशक, कर्णिका संबन्त्रे सातमो उद्देशक, नलिन-अक प्रकारना कमल संबंधे आठमो उद्देशक, शिवराजर्षि संबन्धे नवमो उद्देशक, लोकने विषे दशमो उद्देश्क, काल संबन्धे अगीआरम उद्देशक, अने आलभिक-आलभिकानगरीमां करेला प्रश्न - बंधे बारमो उद्देशक-प प्रमाणे बगीयारमां शतकमां बार उद्देशको छे.)
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व्याख्याप्राप्ति ॥९२६॥
& ११शतके
उदेश
॥९२६॥
ACCIAS
तेणं कालेण तेणं समएणं रायगिहे जाव पज्जुवासमाणे एवं वयासी-उप्पले ण भंते ! एगपत्तए कि एगजी अणेगजीवे?, गोयमा! एगजीवे नो अणेगजीवे, तेण परं जे अन्ने जीवा उववज्जति ते णं णो एगजीवा अजेगजीवा । ते णं भंते ! जीवा कओहिंतो उववजंति किनेरइएहिंतो उववज्जति तिरि० मणु० देवेहिंतो उववजंति? |गोयमा! नो नेरतिएहिंतो उववज्रति तिरिक्खजोणिएहिंतोवि उववजन्ति माणुस्सेहिंतो देवेहिंतोधि उवववति, एवं उववाओ भाणियब्बो, जहा वकंतीए वणस्सइकाइयाणं जाव ईसाणेति ११ ते णं भंते ! जीवा एगसमएणं केवइया उववजंति?, गोयमा! जहन्नेणं एको वा दो वा तिन्नि वा उकोसेणं संखजा वा असंखज्जा वा उववखंति २।।
प्र०] ते काले-ते समये राजगृह नगरने विषे पर्युपासना करता (गौतम) आ प्रमाणे बोल्या-हे भगवन् ! उत्पल | एक जीव8. वाळुळे के अनेकजीववावं छे ? [उ०] हे गौतम ! ते एक जीववाढू छे, पण अनेक जीववाळु नथी. त्यार पछी ज्यारे ते उत्पलने द विषे वीजा जीवो-जीवाश्रित पांदडा वगेरे अवयवो-उगे छे त्यारे ते उत्पल एक जीववाळु नथी, पण अनेक जीववाळु छे. [H०] हे | भगवन् ! (उत्पलमां) ते जीवो क्याथी आवीने उपजे ई-शुं नैरयिकथी, तिर्यची, मनुष्यथी के देवथी आवीने उपजे छे ? [उ०]
हे गौतम ! ते जीवो नैरयिकथी आवीने उपजता नथी, पण तिर्यचथी, मनुष्यथी के देवथी आवीने उपजे छे. जेम प्रज्ञापनासत्रनां Mव्युत्क्रांतिपदमां कयु छे ते प्रमाणे वनस्पतिकायिकोमा यावत् ईशान देवलोक सुधीना जीवोनो उपपात कडेवो. [प्र०] हे भगवन् !
ते जीवो (उत्पलमां) एक समयमा केटला उत्पन्न थाय! [उ.] हे गौतम ! जघन्यथी एक, बे के व्रण अने उत्कृष्टथी संख्यात के असंख्याता जीवो एक समयमा उत्पन्न थाय,
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व्याख्याप्रकाशित ॥९२७॥
११शतके उदेश ॥९२७॥
RECAKACALCRESH
तेण भंते । जीवा समए २ अवहीरमाणो २ केवतिकालेणं अवहीरंति', गोयमा! ते असंखजा समए २ अवहीरमाणा २ असंखजाहिं उस्सपि.णिओसप्पिणीहि अवहीरंति,नो चेचणं अवहिया सिया ३। तेसि णं भंते ! जीवाणं केमहालिया सरीरोगाइणा पण्णत्ता?, गोयमा ! जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेजहभागं उक्कोसेणं सातिरेगं जोयणसहस्स ४ ते णं भंते ! जीवा णाणावरणिजस्स कम्मस्स किं बंधगा अबंधगा!, गोयमा! नो अबंधगा, बंधए वा बंधगा वा एवं जाव अंतराइयरस, नवरं आउयस्स पुच्छा गोयमा बंधए वा अधए वा बंधगा वा अर्यधगा था अहवा बंधए य अबंधए य अहवा बंधए य अबंधगा य अहवा बंधगा य अबंधए य अहवा बंधगा य अपंधगा य ८ एते अट्ठभंगा ५।
[प्र०] हे भगवन् ! ते उत्पलना जीवो समये समये काढवामां आवे तो केटले काले ते पूरा काढी काय ? [उ०] हे गौतम! | जो ते जीवो समये समये असंख्य काढवामां आवे, अने ते असंख्य उत्सपिणी अने अवसर्पिणी काल सुधी काढवामां आवे तो पण | ते पूरा काढी शकाय नहीं. [प्र.] हे भगवन् ! उत्पलना जीवोनी केटली मोटी शरीरावगाहना कही छे १ [३०] हे गौतम ! जपन्य-ओछामा ओछी-अंगुलना असंख्यातमा भाग जेटली, अने उत्कृष्ट कइंक अधिक हजार योजन होय छे. [40] हे भगवन् ! ते | जीवो झुं ज्ञानावरणीय कर्मना बंधक छे के प्रबंधक छे! [उ.] हे गौरमा तेओ ज्ञानारणीय कर्मना अबंधक नथी, पण बन्धक छे. अथवा एक जीव बंधक के अने अनेक जीवो पण बंधक .र प्रमाणे यावद् अंतरायकर्म संबंधे पण जाणवं. [प्र०] परन्तु आयुषकर्मना संबंधे प्रश्न करचो. (हे भगवन् ! ते उत्पलना जीवो अायुषकर्मना बंधक छे के प्रबंधक के) [उ.] हे गौतम!१ (उत्प
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व्याख्या
प्रज्ञप्तिः
॥९२८ ॥
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"लनो) एक जीव बंधक छे, २ एक जीव अबंधक छे, ३ अनेक जीवो बंधक छे, 2 अनेक जीवो अबंधक है, ५ अथवा एक बंधक अने एक अबंधक छे, ६ अथवा एक बंधक अने अनेक अबंधक छे, ७ अथवा अनेक बंधक अने एक अबंधक छे, ८ अथवा अनेक बंधक अने अनेक अबंधक छे. ए प्रमाणे ए आठ भांगा जाणवा.
ते णं भंते! जीवा णाणावर णिज्जस्स कम्मस्स किं वेदगा अवेदगा : गोयमा ! नो अवेदगा, वेदए वा वेदगा वा एवं जाव अंतराइयस्म, ते णं भंते! जीवा किं सायावेयगा असायचा, गोयमा । सायावेदए वा असायावेयर वा अट्ठ भंगा ६। ते णं भंते! जीवा णाणावरणिज्जस्स कम्मस्न के उदई अणुदई १, गोधमा ! नो अणुदई, उदई वा उदइणो वा, एवं जाव अंतराइयस्स ७ ॥ ते णं भंते ! जीवा वरणिजस्स कम्मस्स किं उदीरगा० ?, गोयमा ! नो अणुदीरगा, उदीरण वा उदीरगा वा, एवं जाव अंतरायन, नवरं बेयणिज्जाउ अभंग ८ | [प्र० ] हे भगवन् ! ते उत्पलना जीवो ज्ञानावरणीय कर्मना वेदक छे के १ [30] हे गौतम! तेओ अनेक नथी, पण एक जीव वेदक छे अथवा अनेक जीवो अवेदक छे. ए प्रमाणे या अंतराय कर्म सुधी जाण. [प्र० ] हे भगवन्ने (उत्प लना ) जीवो साताना वेदक छे के असाताना वेदक छे ? [अ०] हे गौतम! साताना वेदक छे अने असाताना पण वेदक छे. अहीं पूर्व प्रमाणे आठ भांगा कहेवा. [प्र० ] हे भगवन् ! ते ( उत्पलना ) जीव ज्ञानावरणीय कर्मना उदयवाळा हे के अनुदयवाळा छे. [उ०] हे गौतम! तेओ ज्ञानावरणीयकर्मना अनुदयबाळा नथी. पण एक जीव उदयवाळो छे अथवा अनेक जीवो उदय | वाळा छे. ए प्रमाणे यावत् अंतरायकर्म संबंध जाणवुं [प्र० ] हे भगवन्! शुं ते उत्पलना) जीवो ज्ञानावरणीयकर्मना उदीरक छे
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দলএ- ৯৮
1961
११ शरा के
उद्देशः १
॥९२८॥
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व्याख्या
प्रशतिः
॥ ९२९ ॥
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के अनुदीरक है ? [30] हे गौतम! तेओ अनुदीरक नथी, पण एक जीव उदीरक छे, अथवा अनेक जीवो उदीरक छे. ए प्रमाणे यावत् अंतरायकर्म सुधी जाणवुं परन्तु विशेष ए के के वेदनीयकर्म अने अयुषकर्ममां पूर्ववत् (सू० ८) आठ भांगा कहेवा.
ते णं भंते! जीवा किं कण्हलेसा नीललेसा काउलेसा तेउलेसा १, गोयमा ! कण्हलेसे वा जाब तेउलेसे वा कण्हलेस्सा वा नीललेस्सा वा काउलेम्मा वा तेउलेमा वा अहवा कण्हलेसे य नीललेस्से य एवं एए दुग्रासंजोगतिया संजोगच उपसंजोगेणं असीती भंगा भवंति ९ ॥ ते णं भंते! जीवा किं सम्मदिट्टी मिच्छादिट्ठी सम्मामिच्छादिट्ठी ?, गोपमा । नो सम्मदिट्ठी तो सम्मामिच्छादिट्ठी मिच्छादिट्ठी वा मिच्छादिट्टिणो वा १० । ते णं भंते! जीवा किं नाणी अन्नागी ?, गोयमा ! नो नाणी अण्णाणी वा अन्नाणिणो वा ११ । ते णं भंते ! जीवा किं मणजोगी वयजागी कायजोगी ?, गोपमा ! नो मणजोगी णो वयजोगी कायजोगी वा कायजोगिणो दा १२ ।
[प्र० ] हे भगवन् ! शुं ते (उत्पलना) जीवो कृष्णलेश्यावाळा, नीललेश्यावाळा, कापोतलेश्यावाळा के तेजोलेश्यात्राळा होय ? [अ०] हे गौतम! एक जीव कृष्णलेश्यावाळो, यावत् एक तेजोलेश्यावाळो होय, अथवा अनेक जीवो कृष्णलेश्यावाळा, नीललेश्णवाळा, कापोतलेश्यावाळा अने तेजोलेश्यावाळा होय, अथवा एक कृष्णलेश्याचाळो अने एक नीललेश्यावाळो होय. ए प्रमाणे द्विकसंयोग, त्रिकसंयोग अने चतुष्कसंयोग वडे सर्व मळीने एंशी भांगा कहेवा. [प्र०] हे भगवन् ! शुं ते (उत्पलना) जीवो सम्यदृष्टि, मिध्यादृष्टि छे, के सम्यग्मिथ्यादृष्टि छ १ [ उ ] हे गौतम! तेओ सम्यग्दृष्टि नथी, सम्यग्मिथ्यादृष्टि नथी, पण एक जीवन
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११ शतके उद्देशः १
।। ९२९॥ -
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44
व्याख्याমঃমিঃ ॥९३०॥
मिध्यादृष्टि, अथवा अनेक जीवो मिध्यादृष्टिओछे, [प्र.] हे मगवन् ! ते (उत्पलना) जीवो झुं ज्ञानी छे के अज्ञानी ? [उ०] हे गौतम ! ते ज्ञानी नथी, पण एक अज्ञानी छ, अथवा अनेक अज्ञानीओ छ, [प्र०] हे भगवन्! शुं ते (उत्पलना) जीवो मनयोगी वचन-18 योगी के काययोगी छेउ०] हे गौतम ! तेओ मनयोगी नथी, वचनयोगी नथी. पण एक काययोगीछे अथवा अनेक काययोगिओ छे. ते णं भते! जीवा किं सागारोवउत्ता अणागारोवउत्ता?, गोयमा सागारोवउत्ते वा अणागारोव उत्तवा
उपेशा अट्ठ भंगा १३ । तेसि णं भंते ! जीवाणं सरीरगा कतिवन्ना कतिगंधा कतिरसा कतिफासा पनत्ता?, गोयमा! पंचवन्ना पंचरसा दुगंधा अट्टफासा पन्नत्ता, ते पुण अप्पणा अवन्ना अगंधा अरसा अफासा पन्नत्ता १४-१५॥ ते णभंते ! जीवा किं उस्सासा निस्सामा नो उस्सासनिसासा', गोयमा! उस्सासए वा १ निस्सासए वा २ नो | उस्मासनिस्मासए वा ३ उस्सासगा वा ४ निस्सासगा वा ५ नो उस्मासनीसासगा वा ६, अहवा उस्सासए य निस्सासए य ४ अहवा उस्सासए य नो उस्सासनिस्सासए प४ अहवा निस्सासप य नो उस्सासनीसासए य४, अहवा ऊसासए य नीसासए य नो उस्सासनिस्सासए य अट्ट भंगा ८एए छन्वीसं भंगा भवंति २६ ॥
[प्र०] हे भगवन् ! शुं ते (उत्पलना) जीवो साकार उपयोगवाळा के के अनाकार उपयोगशाळा छ ? [उ.] हे गौतम ! एक जीव माकार उपयोगवाळो छ, अथवा एक जीव अनाकारउपयोगबाळो छ-इत्यादि पूर्व प्रमाणे (०८) आठ भांगा कहेवा. [प्र०] हे भगवन् ! ते (उत्पलना) जीवोना शरीरो केटला वर्णवाळां, केटलाधवाळां, केटला रसवानां अने केटला स्पर्शवाळां कयां छे? [उ.] हे गौतम! पांच वर्णवाळा, पांच रमवाळां, वे गंधवाळी अने आठ स्पर्शवाळां कयां छे. अने जीवो पोते वर्ण, गंध, रस अने
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११शतके उशार
॥९३१॥
स्पर्श रहित छे. [म०] हे मगवन् । भु ने (उत्पलना) जीवो उच्छ्वासक (वास लेनारा) छे, निःश्वासक (बास मूकनारा) छ क अनु पाल्पा- च्वासक-निःश्वासक (बास नहि लेनारा अने नहि मूकनारा) होय छ । [उ.] हे गौतम! १ कोई एक उउच्छ्वासक छ, २ कोई प्राप्तिः ६] एक निश्वासक छे, अने ३ कोई एक अनुच्छ्वासकनिःश्वासक पण छे. ४ अथवा अनेक जीवो उच्छ्वासक छ, ५ अनेक निःश्वासक ॥९३१॥ मछ, अने ६ अनेक अनुच्छ्वासक-निःश्वासक पण छे..-४ अथवा एक उच्छ्वासक, अने एक निश्वासक छे. १-४ अथवा एक
उच्छ्वासक अने एक अनुच्छ्वासक निश्वासक, छे, १-४ अथवा एक निःश्वासक अने एक अनुच्छ्वासक-निःश्वासक छ, १-८ अथवा एक उच्छ्वासक, एक निःच्छ्वासक अने एक अनुच्छ्वासकनिःश्वासक छे.-ए प्रमाणे आठ भांगा करवा. ए सर्व मळीने छवीश मांगा थाय छे. । तेणं भंते जीवा किं आहारगा अणाहारगा?, गोयमा नो अणाहारग आहारए वा अणाहारए वा एवं अट्ठ भंगा १७ । तेणं भंते ! जीवा किं विरता अविरता विरताविरता?, गोयमा!नो विरता नो चिरयाविरया अविरए वा अविरया वा १८ ते णं भंते ! जीवा किं सकिरिया अकिरिया!;गोयमा! नो अकिरिया, सकिरिए वा सकिरिया बा १९ । ते णं भंते! जीवा किं सत्तविहवंधगा अढविहवंधगा,, गोयमा सत्तविहवंधए वा अट्ठविधए वा अट्ट भगा २० । ते णं भंते ! जीवा किं आहारमन्नोवउत्ता भयसन्नोवउत्ता मेहुणसन्नोवउत्ता परि|ग्गहसनोवउत्ता, गोयमा! आहारसनोवउत्ता वा असीती भंगा २१ ।
[प्र.] हे भगवन् ! | ने (उत्पलना) जीवो आहारक छे के अनाहारक छ ? [३०] हे गौतम । तेओ सवा अनाहारक नथी,
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उदेश ॥१३॥
पण एक आहारक छे, अथवा एक अनाहारक छे.-इत्यादि आठ मांगा अहीं कडेवा. प्रि०] हे भगवान् । शुते उत्पलना जीवो सवें.
विरति छे, अविरति छे के विरताविरत (देशविरति) छे ? [उ० हे गौतम । ते सर्वविरति नथी, विरताविरत (देशविरत) नथी, पण व्याख्या-1
एक जीव अविरति छ, अथवा अनेक जीवो अविरति छे. [40] हे भगवन् । ते उत्पलना जीवो सक्रिय छे के अक्रिय छे । [उ०] प्राप्ति | हे गौतम ! तेओ अक्रिय नथी पण तेमांनो एक जीव सक्रिय छे अथवा अनेक जीवो सक्रिय छे. [म.] हे भगवन् । शु ते उत्पलना १९३२॥4जीवो सात प्रकारे कर्मना बंधक छे के आठ प्रकारे कर्मना बंधक छ । [उ०] हे गौतम ! ते जीवो सात प्रकारे कर्मना बंधक छ,
अथवा आठ प्रकारे बंधक छे. अहीं आठ भांगा कहेवा. [प्र०] हे भगवन् ! शुते (उत्पलना) जीवो आहारसंज्ञाना उपयोगवाळा, भयसंज्ञाना उपयोगवाला, मैथुनसंज्ञाना उपयोगवाळा, के परिग्रहसंज्ञाना उपयोगवाळा छे ? [उ.] हे गौतम ! तेओ आहारसंज्ञाना उपयोगवाळा छे-इत्यादि पंशी भांगा कडेवा.
तेणं भंते ! जीवा किं कोहकसाई माणकसाई मायाकसाई लोभकसाई ?, असीती भंगा २२ । ते णं भंते! जोवा किं इस्थीवेदगा पुरिसवेदगा नपुंसगवेदगा?, गोयमानो इत्थिवेदगा नो पुरिसवेदगा नपुंसगवेदएवानपुंसग
वेदगा वा २३ । ते णं भंते ! जीवा किं इत्थीवेदबंधगा पुरिसवेदबंधगा नपुंसगवेदबंधगा?, गोपमा इत्थिवेदबंधण हैवा पुरिसवेदबंधए वा नपुंसगवेयबंधए वा छब्बीसं भंगा २४ ते भंते ! जीवा किं सन्नी असनी, गोयम!नो।
सन्नी असन्नी वा असन्निणो वा २५ ते णं भंते! जीवा किं मइंदिया अणिदिया?, गोयमा ! नो अणिदिया, भासइंदिरा वा मडंदिया वा २६ ।
BHARA
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व्याख्याप्रतिः
॥९३३॥
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[प्र०] हे भगवन् ! शृंते उत्पलना जीवो कोषकषायवाळा, मानकषायवाळा, मायाकयायवाळा के लोभकपायवाळा छे ? [अ०] हे गौतम! अहीं पण एशी भांगा कहेवा. [प्र० ] हे भगवन् ! शुं ते उत्पलना जीवशे स्त्रीवेदवाळा, पुरुषवेदवाळा के नपुंसक वेदवाळा होय ? [अ०] हे गौतम ! ते स्रीवेदवाळा नथी, पुरुषवेदवाळा नथी, पण एक जीव नपुंसकवेदवालो के अनेक नपुंसक वेदवाळा होय. [[प्र०] हे भगवन् 1 शुं ते उत्पलना जीवो श्रीवेदना बंधक, पुरुष वेदना बंधक के नपुंसक वेदना बंधक छे ? [३०] हे गौतम । ते स्त्रीवेदना बंधक, पुरुषवेदना बंधक अथवा नपुंसकवेदना बंधक छे. अहीं पण छबीश भांगा कहेवा. [प्र० ] हे भगवन् ! शुं ते उत्पलजीवो संज्ञी छे के असंज्ञी छे ? [अ०] हे गौतम ! ते संज्ञी नथी, एक असंज्ञी छे, अथवा अनेक असंज्ञिओ छे. [प्र०] हे भगवन् ! शुं वे उत्पलजीवो इंद्रियसहित छे के इंद्रियरहित छे f [७] हे गौतम ! ते इंद्रियरहित नथी, पण एक जीव इंद्रियवाळो छे, अथवा अनेक जीवो इंद्रियवाळा छे.
से णं भंते! उप्पलजीवेति कालतो केवचिरं होइ ?, गोयमा ! जहनेणं अतोमुहृत्तं उक्कोसेर्ण असंखेज्जं कालं २७ । से णं भंते! उपपलजीवे पुढविजीके पुणरवि उप्पलजीवेत्ति केवतियं कालं सेवेज्जा ?, केवतियं कालं गतिरागति करेखा ?, गोयमा ! भवादेसेणं जहन्नेणं दो भवग्गहणाई उक्कोसेणं असंखेखाइं भवग्गहणाई, कालादेसेणं जहन्त्रेणं दो अंतोमुहुत्ता उक्कोसेणं असंखेज्वं कालं, एवतियं कालं सेवेज्जा एवतियं कालं गतिरागर्ति करेज्जा, से णं भंते! उप्पलजीवे आउजीवे एवं चेव एवं जहा पुढविजीवे भणिए तहा जाव वाउजीवे भाणियव्वे, से णं भंते ! उप्पलजीवे से वणस्सहजीवे से पुणरवि उप्पलजीवेत्ति केवइयं कालं सेवेला केवतियं कालं
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| ११ सत
| उद्देशः १
॥९३३॥
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व्याख्याअप्रप्तिः १९३४॥
११शसके उद्देश ॥१३॥
गतिरागतिं कजह?, गोयमा! भवादेसेणं जहन्नेणं दो भवग्गहणाई उकोसेणं अणंताई भवग्गहणाई, कालाएसेणं |
जहन्नेणं दो अंनोमुहुत्ता उकोसेणं अणंतं कालं-तरुकालं, एचइयं कालं सेवेजा एचइयं कालं गतिरागतिं कज्जइ, 4] [प्र०] हे भगवन् ! ते उत्पलनो जीव उत्पलपणे कालथी क्यांसुधी रहे ! [उ०] हे गौतम ! जघन्यथी अंतर्मुहूर्त सुधी अने
उत्कृष्टथी असंख्य काल सुधी रहे. [प्र०] हे भगवन् ! ते उत्पलनो जीव पृथिवीकायिकमां आवे, अने फरीथी पाछो उत्पलमां
आवे-ए प्रमाणे केटलो काळ सेवे-केटला काळ सुधी गमनागमन करे ? [उ०] हे गौतम ! भवनी अपेक्षाए जघन्यथी वे भव अने, है। उत्कृष्टथी असंख्यात भव सुधी गमनागमन करे, कालनी अपेक्षाए जघन्यथी वे अंतर्मुहूर्त, अने उत्कृष्टथी असंख्यकाल; एटलो काल
सेवे-नेटलो काल गमनागमन करे. [प्र०) हे भगवन् ! ते उत्पलनो जीव अप्कायिकपणे उपजे अने फरीथी ते पाछो उत्पलमां आवे, ए प्रमाणे केटलो काल गमनागमन करे ? [उ.] पूर्व प्रमाणे जाणवं. जेम पृथिवीना जीव संबन्धे (५० ३१) कबुतेभ यावत् वायुना जीव सुधी कहेवं. [१०] हे भगवन् ! ते उत्पलनो जीव वनस्पतिमा आवे, अन ते फरीथी उत्पलमां आवे ए प्रमाणे केटलो काल सेवे-केटलो काल गमनागमन करे ? [उ०] हे गौतम ! भवनी अपेक्षाए जघन्यथी वे भव, अने उत्कृष्टथी अनंत भव सुधी
गमनागमन करे. कालनी अपेक्षाए जघन्यथी वे अंतर्मुहूर्त, अने उत्कृष्टथी अनंत काल-वनस्पतिकाल पर्यन्त; एटलो काळ सेवेडाएटलो काल गमनागमन करे.
से णं भंते ! उप्पलजीवे बेइंदियजीवे पुणरवि उप्पलजीवेत्ति केवइयं कालं सेवेजा केवइयं कालं गतिरा-13 गतिं कजइ ?, गोयमा भवादेसेणं जहन्नेणं दो भवग्गहणाई उक्कोसेणं संखेजाई भवग्गहणाइं, कालादेसेणं जह-12
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व्याख्याप्रचप्तिः
॥९३५॥
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i s hsagarsurl Gyanmandir नेणं दो अंतोमुहुत्ता उक्कोसेणं संखेनं कालं एवतियं काल मेवेजा एवतियं कालं गतिरागति कजइ, एवं तेइंदि. यजीवे, एवं घउरिंदियजीवेवि, से णं भंते ! उप्पलजीवे पंचेंदियतिरिक्खजोणियजीवे पुणरवि उप्पलजीवेत्ति ||११शतक | पुच्छा, गोयमा भवादेसणं जहन्नेणं दो भवग्गहणाई उकोसेणं अट्ठ भवग्गहणाई कालादेसेणं जहन्नेणं दो अंतो
उद्देशा मुहुत्ताई उक्कोसेणं पुवकोडिपुहुत्साई एवतियं कालं सेवेजा एवतियं कालं गतिरागतिं करेजा, एवं मणुस्सेणवि
6 ॥९३५॥ समं जाव एवतियं कालं गतिरागतिं करेजा २८ ते णं भंते ! जीवा किमाहारमाहारेंति ?, गोयमा ! दवओk अणंतपएसियाई दवाई एवं जहा आहारुद्देसए धणस्सइकाइयाणं आहारो नहेव जाव सञ्चप्पणयाए आहारमाहारेंति नवरं नियमा छदिसिं सेसं तं चैव २५ ॥
[प्र.] हे भगवन् ! ते उत्पलनो जीव बेइन्द्रियमा आवे, अने ते फरीथी उत्पलपणे उपजे; ए प्रमाणे ते केटलो काळ सेवे-केटलो काल गमनागमन करे ? [उ.] हे गौतम ! भवनी अपेक्षाए जघन्यथी वे भव, उत्कृष्टथी संख्याता भवो; तथा कालनी अपेक्षाए जघन्यथी चे अंतर्मुहूर्त, अने उत्कृष्टथी संख्यातो काल; एटलो काल सेवे-एटलो काल गमनागमन करे. एज प्रमाणे त्रीन्द्रियपणे, अने चतुरिंद्रियर्ज.वपणे गमनागमन करवामां पूर्ववत् काल जाणवो. [प्र०] हे भगवन् ! उत्पलनो जीव पंचेन्द्रियतिर्यचयोनिकपणे ट। उपजे अने ते फरीथी उत्पलपणे उपजे, एम केटलो काल गमनागमन करे ! [उ०] हे गौतम ! भवनी अपेक्षाए जघन्यथी वे भव, उत्कृष्टथी आठ भवो, कालनी अपेक्षाए जघन्यथी वे अंतर्मुहूर्त, अने उत्कृष्टथी पूर्वकोटिपृथक्त्व; एटलो काल सेवे-पटलो काल गमनागमन करे. ए प्रमाणे उत्पलनो जीव मनुष्य साथे पण यावत् एटलो काल गमनागमन करे. [प्र०] हे भगवन् ! ते उत्पलना जीवो
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व्याख्या
प्रज्ञसिः
॥९३६॥
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कंया पदार्थनो आहार करे ? [अ०] हे गौतम । ते जीवो द्रव्यथी अनन्तप्रदेशिक द्रव्योनो आहार करे, इत्यादि सर्व आहारक उद्देशकमां वनस्पतिकाथिकोनो आहार कह्यो छे ते प्रमाणे यावत् 'तेओ सर्वात्मना - सर्व प्रदेशोए आहार करे छे.' त्यां सधी कहेवं, परन्तु एटलो विशेष छे के तेओ अवश्य छए दिशीनो आहार करे छे, बाकी बधुं पूर्व प्रमाणे जाणबुं.
सिणं भंते ! जीवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ?, गोयमा ! जहन्त्रेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं दस वासस हस्साई ३० । तेसि णं भंते ! जीवाणं कति समुग्धाया पण्णत्ता ? गोयमा ! तओ समुग्धाया पण्णत्ता, तंजावेदणासमुग्धाए कसायस० मारणंतियस० ३१ । ते णं भंते ! जीवा मारणंतियम मुग्धारणं किं समोहया मरंति अममोहया मरंति ?, गोयमा ! समोहयावि मरंति असमोहगाव मरंति ३२ । ते णं भंते । जीवा अणतरं उव्वहित्ता कहिं गच्छति कर्हि उववज्जेति किं नेरइएस उपवनंति तिरिक्खजोणिएसु उवव० एवं जहा वर्कती उवणाए वर्णस्मइकाइयाण तहा भाणियव्वं । अह भंते! सव्वपाणा सव्वभूया सव्वजीवा सव्वसत्ता उप्पलमूलत्ताएं उप्पलकंदत्ता उप्पलनालत्ताए उप्पलपत्तत्ताप उप्पलकेसरत्ताएं उप्पलकन्नियत्ताए उप्पलधिभुगत्ताएं उबवन्नपुव्वा !, हंता गोयमा ! असति अदुवा अणतक्खुत्तो । सेवं भंते! सेवं भंते ! ति ३३ ॥ ( सूत्रं ४०९ ) ।। उप्पलुद्देस ॥ ११-१॥
[प्र० ] हे भगवन् ! ते उत्पलना जीवोनी स्थिति (आयुष) केटला काल सुधी कही है ? [उ०] हे गौतम ! जघन्यथी अंतर्मुहूर्त, अने उत्कृष्टथी दस हजार वर्षनी स्थिति कही . [ प्र० ] हे भगवन् ! ते उत्पलना जीवोने केटला समुद्घातो का छे ? [अ०] दे
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११ चाके
उद्देशः १ ॥९३६॥
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व्याख्याप्रनप्तिः ।।९३७॥
कह्या छ ? [उ०] हे गौतम ! तेओने त्रण समुद्घातो कह्या छे, ते आ प्रमाणे-बेदनासमुदघात, कपायसमुद्घात अने मारणांतिकस-16 मुद्धात. [१०] हे भगवन् ! ते [ उत्पलना ] जीयो मारणांतिक समुद्घात वडे समवह (समुद्घातने प्राप्त ) थइने मरे, के अस-1 महत (समुद्घातने प्राप्त थया शिवाय ) मरे ? [उ०] हे गौतम ! ते समबहत थड़ने पण मरे अने असमवहत थइने पण मरे.
११शतके [प्र०] हे भगवन् ! ते उत्पलना जीयो मरीने तरत क्या जाय ? क्या उत्पन्न थाय? शुं नैरयिकोमा उत्पन्न थाय, तियंचयोनीकोमां
उद्देशः
॥१३॥ उत्पन्न थाय, मनुष्योमा उत्पन्न थाय के के देवोमा उत्पन्न थाय ? [उ०] हे गौतम ! प्रज्ञापना सूचना व्यत्क्रांतिपदमा उद्वर्तना है प्रकरणमां बनस्पतिकायिकोने कह्या प्रमाणे अहीं पण कहे [प्र०] हे भगवन् ! सर्व प्राणो भृतो, सर्व जीवो अने सर्व सत्यो उत्पलना
मूलपणे, कंदपणे, नालपणे, पांदडापणे, केसरपणे, कर्णिकारणे अने थिभुग ( पांदडार्नु उत्पत्ति स्थान ) पणे पूर्व उत्पन्न थया छ ? [उ.] हा, गौतम जीवो अनेकवार अथवा अनन्तयार पूर्वे उत्पन्न थया रे. हे भगवन् ! ते एमज छे. हे भगवन् ! ते एमज ॥४०९॥
भगवत् सुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद् भगतीसूत्रना ११ मा शतकमा प्रथम उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो.
उद्देशक २. सालुए णं भंते ! एगपत्तए कि एगजीचे अणेगजीवे ?, गोयमा। एगजीवे एवं उप्पलुद्देगसवत्तमचया अपरि सेसा भाणियव्वा जाव अणतखुत्तो, नवरं सरीरोगाणा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेजाभागं उकोसेण धणुपुहुत्तं, सेसं तं चेव । सेवं भंते ! सेवं भंतेत्ति ॥ (सूत्र ४१.) ११-२॥
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व्याख्या प्रज्ञप्ति ॥९३८॥
[प्र०) हे भगवन् ! एक पांदडावाळो शालूक (उत्पलकन्द) शुं एक जीववाळो छे के अनेक जीववाळो छ ? [३०] हे गौतम! ते एक जीववाळो छे; ए प्रमाणे उत्पलोद्देशकनी सघळी वक्तब्बता कहेवी, यावद् 'अनन्तवार उत्पन्न थया छे.' परन्तु विशेष ए छे के, शालूकना शरीरनी अवगाहना जघन्यथी अंगुलना असंख्यातमा भाग जेटली. अने उत्कृष्ट धनुपपृथक्त्व छे चाकी वर्षा पूर्ववत् जाणq. हे भगवन् ! ते एमत्र छे हे भगवन् ते एमन छे. ॥ ४१०।।
भगवद सुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीसूत्रना ११ मा शतकमां बीजा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो.
११शतके उद्देशः३ ॥९३८॥
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उद्देशक ३. पलासे ण भंते ! एगपत्तए कि एगजीवे अणेगजीवे !, एवं उप्पलुद्देसगवत्तब्बया अपरिसेसा भाणियब्वा, नवरं सरीरोगाहणा जहनेणं अंगुलस्स असंखेजइभागं उक्कोसेणं गाउयपुहुत्ता, देवा एगसुन उववजंति। लेसासु ते ण भंते! जीवा किं कण्हलेसे नीललेसे काउलेसे०?, गोयमा! कण्हलेसे वा नीललेस्से वा काउलेस्से वा छब्बीस भंगा, सेस तं चेव । सेवं भंते! २ त्ति ॥ (सूत्रं ४११) ।। ११-३ ।।
[1] हे भगवन् ! पलाशवृक्ष [ प्रारंभमां ] एक पांदडावाळो होय त्यारे | एक जीवदाळो होय के अनेक जीवत्राळो होय । [उ०] हे गौतम ! उत्पलउद्देशकनी वधी वक्तव्यता अहीं कहेवी. परन्तु विशेष ए छे के, पलाशना शरीरनी अवगाहाना जघन्यथी अंगुलनो असंख्यातमो भाग अने उत्कृष्ट गाउपृथक्त्व छे. वळी देवो च्यवीने ए पलाशवृक्षमा उत्पन्न थता नथी. [म० लेश्याद्वा
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व्याख्या प्रज्ञप्तिः ।।९३९॥
सारमा हे भगवन शु पलाशवृक्षना जीवो कृष्णलेश्यावाला, नीललेश्यावाका के कापोतलेश्यावाळा होय ! [उ०] हे गीतमा ते कृष्ण लालेश्यावाळा, नीललश्यावाळा के कापोतलेश्यावाग होय, ए प्रमाणे छब्बीश भांगा कहेवा. बाकी बधु पूर्वनी पेठे जाणवू. हे भगवन् ते एमज छे, हे भगवन् ! ते एमज छे. ॥ ४११।।
__ भगवत् सुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीसूत्रना ११ मा शतकमां त्रीजा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण ययो.
। |११शतके
उद्देशः B९३९॥
उद्देशक १. कुंभिए णं भंते जीवे एगपत्तए कि एगजीवे अणेगजीवे ?, एवं जहा पलासुद्देसए तहा भाणियब्वे, नवरं ठिती जहन्नेणं अतोमुहसं उकोसेणं वासपहत्तं, सेसं तं चेव । सेवं भते! सेवं मंतेत्ति ॥ (सू०४१२) ॥ ११-४॥
[H०] हे भगवन् ! एक पांदडावाळो कुंभिकं बिनस्पतिविशेप] शं एक जीववाळो होय के अनेकजीववाळो होय ! [उ०] हे गौतम! ए प्रमाणे पलाशोदेशकमा य.ह्या प्रमाणे बघु कहे, परन्तु विशेष ए छे के कुंभिकनी स्थिति (आयु) जघन्यथी अंतमुहूते, अने उत्कृष्ट वर्षपृथक्त्व-वे वर्षथी नव वर्ष-सुधीनी होय छे. बाकी वर्षा पूर्व कह्या प्रमाणे जाणवू. हे भगवन् ! ते एमज छे, हे भगवन् ! ते एमज छे. ॥ ४१२ ।।
भगवत् सुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीखत्रना ११ मा शतकमां चोथा उद्देशानो मलार्थ संपूर्ण धयो.
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व्याख्या
प्रज्ञप्तिः
॥ ९४०॥
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उद्देशक ५.
नालिए भंते! एगपत्तए किं एगजीवे अणेगजीवे ?, एवं कुंभिउद्देसगवत्तब्वया निरवसेसा भाणियच्चा । सेवं भंते ! सेवं भंते ति ॥ (सूत्रं ४१३ ) ।। ११-५ ।।
[प्र०] हे भगवन् ! एकपांदडावाळो नाडिक [वनस्पतिविशेष] शुं एक जीववाळो छे के अनेकजीववाळो छे ? [3] हे गौतम! कुंभिक उद्देशकनी [उ० ४ सू० १] वधी वक्तव्यता अहीं कहेवी. हे भगवन् ! ते एमज छे, हे भगवन् ! ते एमज छे. ॥ ४१३ ॥ भगवत् सुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीसूत्रमा ११ मां शतकमा पांचमा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो.
उद्देशक ६
पउमे णं भंते । एगपत्तए किं एगजीवे अणेगजीचे ?, उप्पलुद्दे सगवत्तच्वया निरवसेसा भाणियच्वा । सेव भंते ! सेवं भंते । त्ति || (सू ४१४ ) | ११-६ ॥
[प्र० ] हे भगवन एक पांदडावाळु पद्म शुं एक जीववाळु होय के अनेक जीववाळु होय ? [अ०] हे गौतम! उत्पल उद्देशक्रमां ( उ० १ सू०) कला प्रमाणे वधुं कहे. हे भगवन् ! ते एमज छे. हे भगवन् ! ते एमज छे. ॥ ४१४ ॥
भगवत् सुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवती सूत्राना ११ मा शतकमां छट्टा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो.
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११ शतके उद्देश:५-६ ॥ ९४० ॥
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व्याख्या
प्रज्ञप्तिः
॥९४१ ।।
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उद्देशक ७.
कन्निए णं भंते! एगपत्तए किं एगजीवे० ?, एवं चैव निरवसेसं भाणियन्त्रं । सेवं भंते ! सेवं भंते । त्ति ॥ ( सूत्र ४१५) ११-७॥
[प्र० ] दे भगवन् ! एक पांडवळी कर्णिका शुं एक जीववाळी ले के अनेक जीववाकी छे । [उ०] हे गौतम ! बधु पूर्व प्रमाणे कहे. हे भगवन् ! ते एमज छे, हे भगवन् ! ते एमज छे. ॥। ४१५ ॥
भगवत् सुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीसूत्रा ११ मा शतकमां सातमा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो.
उद्देशक ८.
नलिणे णं भंने! मृगपत्त किं एगजीवे अणेगजीवे ?, एवं चैव निरवसेसं जाव अनंतक्खुत्तो ॥ सेवं भंते ! सेवं भंतेत्ति (सूत्रं ४१६ ) ।। ११-८ ॥
[प्र० ] हे भगवन ! एकपत्रत्राकुं नलिन ( कमल विशेष ) शुं एकजीचवाळु छे के अनेकजीववाळु छे ? [ उ० ] हे गौतम! ए बधुं पूर्व प्रमाणे (उ० १ सू० १) 'यावत् सर्व जीवो अनंतवार उत्पन्न थया है' त्यांसुधी कहे. हे भगवन् ! ते एमज छे, हे भगवन् ! ते एमज छे. ॥ ४१५ ॥
भगवत सुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीसूत्रमा ११ मा शतकमा आठमा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो.
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११ शतके
उद्देशः ७-८ ॥९४१॥
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|११शतके
उद्देश:९ ॥१४॥
उद्देशक ९. तेणं कालेणं लेणं ममएणं हथिणापुरे नाम नगरे होत्था बन्नओ, तस्स णं हत्यिणागपुरस्स नगरस्स पहिया व्याख्या प्रज्ञप्तिः।
उत्तरपुरच्छिम दिसीभागे पत्थ णं सहसवणे णाम उजाणे होत्था मम्वोउयपुष्फफलसमिद्धे रम्मे गंदणवणसं||९४२॥ निप्पगासे सुहसीयलच्छाए मणोरमे सादुफले अकंटए पामादोए जाव पडिरूवे, नत्थ णं हथिणापुरे नगरे सिवे
नाम राया होत्था महयाहिमवंत बन्नओ, तम्स ण सिवस्म रन्नो धारिणी नाम देवी होत्था सुकुमालपाणिपाया बन्नओ. तस्स ण सिवस्स रन्नो पुत्ते धारणीए अत्तए सिवभ६ए नाम कुमारे होत्या सुकुमाल. जहा सूरियकते जाव पच्छुवेवमाणे पच्चुवेवमाणे विहरह
ते काले-ते समये हस्तिनापुर नामे नगर हतुं वर्णन. ते हस्तिनापुर नगरनी बहार उतरपूर्व दिशामां-ईशानकोणमां-महसाम्रवन नामे उद्यान हतुं. ते उद्यान सर्व ऋतुना पुष्प अने फलथी समृद्ध, रम्य भने नंदनवन समान इ. तनी छाया सुखकारक अने
शीतळ हती, ते मनोहर, स्वादिष्टफलवाळु, कंटकरहित. प्रसन्नता आपनार, यावत् प्रतिरूप-मुन्दर-हतु. ते हस्तिनापुर नगरमा शिव का नामे राजा हतो, ने मोटा हिमाचल पर्वतनी पेठे [सब राजाओमा श्रेष्ठ हतो, [इत्यादि राजानु वर्णन क..] ते शिव राजाने धारिणी | नामे पट्टराणी हती. तेना हाथ पग मुकुमाल हता,-[इत्यादि श्रीनं वर्णन कडेव.] से शिवराजाने धारिणी गणीथी उत्पन्न धयेलो शिव भद्र नामे पुत्र हतो, तेना हाथ पग मुकुमाल हता-इत्यादि कुमारनु वर्णन सूर्यकांत राजकुमारनी पंटे कडे . यावन ते कुमार [गज्य, | राष्ट्र, सैन्यादिने] जोतो जोतो विहरे के.
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व्याख्या
प्रज्ञप्तिः १९४३ ॥
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तए णं तस्स सिवस्स रनो अन्नया कयावि पुत्र्वरत्तावरत्तकालसमर्थसि रजधुरं चिंतेमाणस्स अयमेपारू वे अम्भस्थि जाव समुपज्जित्था अस्थि ता मे पुरा पोराणाणं जहा तामलिस्स जाव पुत्तेहिं बामि पहिं बडाम रज्जेणं बडामि एवं रद्वेणं वलेणं वाहणेणं कोसंग कोट्टागारणं पुरेणं अंतेउरेण बट्टामि विपुलघणकणगरपणजावसं नसारसावएजेणं अतीव २ अभिवामि तं किन्नं अहं पुरा पोराणाणं जाव एगनसोक्स्वयं उच्हमाणे विहरामि ? तंजाव ताव अहं हिरणं वडामि तं चैव जाव अभिवामि जाय में सामंतरायाणोऽवि बसे बहंनि नाना मे | सेयं कलं पाउप्पभागाए जाव जलते सुबहु लोहीलोहक डाह कडुच्छ्रयं तंबियं तावस भंडगं घडावेत्ता सिवमहं कुमारं रज्जेठावेत्ता में सुबहु लोहीलोहक डाकडुच्छ्रयं वियं ताबस भंडगं गहाय जे हमे गंगाकूले घाणपस्थातावमा भयंति तं - होत्तिया पोत्तिया कोत्तिया जन्नई सडई घालई हुंब उट्ठ दंतुकम्बलिया उम्मजया मलगा निमलगा संपर्क खाला उद्धकंडूगा अहोकंड्यगा दाहिणकूलगा उत्तरकूलगा संवधमया कूलमा मितलुद्धा हत्थितावमा जलाभिसेपकिदिणगाया अंबुवासिणो वाउवासिणो वक्कलवासिणो जलवासिणो चलंवामिणो अबुभक्खिणो वायभक्विणो सेवालभक्खिणो मूलाहारा कंदाहारा पत्ताहारा तयाहारा पुष्फाहारा फलाहारा बीयाहारा परिसडियकंदमूलपंडुपत्तपुप्फफलाहारा उद्दंडा रुक्मूलिया मंडलिया वणपासिणो दिसापोक्ग्विया आग्रावणाहिं पंग्गितावेहिं इंगालसोलिपि कंडुसोल्लियंविव कट्टसांलिपिव अयाणं जाव करेमाणा विहरति [जहा उवा जाव कट्ठ सोल्लियंपिव अप्पाणं करेमाणा विहरंति ] ॥ तत्थ णं जे ते दिमापोक्वि गतावमा नेमिं अतिय मुंडे भविता
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११ शतके उद्देशः९
॥ ९४३ ॥
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4
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११शतके
उद्देशः९ ॥९४४॥
दिसापोक्खियतावसत्ताए पवइत्तए, पन्नाइएवि यणं ममाणे अयमेयारूवं अभिग्गहं अभिगिहिस्सामि-कप्पइ
मे जावज्जीवाप उर्दुछट्टेणं अनिक्खित्तेणं दिसाचकवालेणं तवोकम्मेणं उड़े बाहाओ पगिझिय २ जाव विहरित्तव्याख्या एत्तिकद्द एवं संपेहेति ।। प्रज्ञप्तिः धि हवे कोई एक दिवसे शिवराजाने पूर्वरात्रिना पाछला भागमा राज्यकारभारनो विचार करता आ आवो अध्यवसाय-संकल्प 16 उत्पन्न थयो के मारा पूर्व पुण्यकर्मोनो प्रभाव छे, इत्यादि तामलि तापमनी पेठे कहेg,जे यात्रत् हुं पुत्रोवडे, पशुओवडे, राज्यवडे, राष्ठ
| वडे बलवडे, वाहनवडे, कोशवडे कोष्ठागारवडे, पुरवडे अने अन्तःपुरवडे वृद्धि पामु छु. वळी पुष्फळ धन, कनक, रल यावत् सारभूत द्रव्यवडे अतिशय अत्यंत वृद्धि पामु छु तो हवे हुँ मारा पूर्व पुण्यकर्मोना फलरूप एकान्त मुखने भोगवतो ज विहरु ? ते मारे ज्यांसुधी हु हिरण्यधी वृद्धि पामु छु, यावत् पूर्वे कया प्रमाणे वृद्धि पाएँ छु ज्यांसुधी सामंत राजाओ मारे तावे छे, त्यांसुधी मारे काले प्रातःकाळे सूर्य देदीप्यमान थये छते घणी रोढीओ, लोहना कडायां कडछा अने त्रांबाना बीना तापसना उपकरणोने घडावीने
शिवभद्र कुमारने राज्यमा स्थापीने घणी लोढीओ, लोहना कडायां, कडछा अने त्रांबाना तापसना उपकरणो लइने, जे आ गंगाने * कोठे वानप्रस्थ तापसो रहे छे, ते आ प्रकारे-अग्रिहोत्री, पोतिक-वस्त्र धारण करनारा-इत्यादि 'उववाह' सूत्रमा कया प्रमाणे यावत्| जेओ काष्ठथी शरीरने तपावता विचरे छे, ते तापसोगांजे तापसो दिशाप्रोक्षक (पाणी वडे दिशाने पूजी फल पुष्पादि ग्रहण करनारा)
छे, तेओनी पासे मारे मुंड थइने दिक्प्रोक्षकतापसपणे प्रवज्या अंगीकार करवी श्रेय छे, प्रत्रज्या ग्रहण करीने हु आ आवा प्रकालानो अभिग्रह ग्रहण करीश. ते आ प्रकारे-यावजीव निरंतर छट्ठ छ? करवायी दिक्चक्रवाल तपकर्म वडे उंचा हाथ राखीने रहे, मने
कल्पे-ए प्रमाणे ते शिवराजा विचारे छे.
SNISHORE
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SA
व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥९४६॥
संपेहेत्ता कल्लं जाब जलते सुबहुं लोहीलोह जाव घडावेत्ता कोडुबियपुरिसे सदावेह सहावेत्ता एवं क्यासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! हथिणागपुरं नगरं सम्भितरबाहिरियं आसिय जाव तमाणत्तियं पञ्चप्पिणति, तर णं से सिवे राया दोचंपि कोडुबियपुरिसे सदावेत्ति २ एवं बयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! सिवभहस्स कुमारस्स |
| उद्देशा९ महत्थं ३. विउलं रायाभिसेयं उवट्ठवेह, तए णं ते कोडंबियपुरिसा तहेव जाव उवट्ठति, तए णंसे सिवे राया Fevel अणेगगणनायगदंडनायग जाव संधिपाल सद्धिं संपरिबुडे सिवभई कुमारं सीहासणवरंसि पुरत्याभिमुहं निसीयावेन्ति २ अट्टसएणं सोचनियाणं कलसाणं जाव अडसएणं भोमेजाणं कलमाणं सब्बिड्डीए जाव रवेणं महयार रायाभिसेएणं अभिसिंचइ २ पम्हलसुकुमालाए सुरभिए गंधकासाईए गायाई लूहेड पम्ह. २ सरसेणं गोसीसेणं एवं जहेब जमालिस्म अलंकारो तहेव जाव कप्परुक्खगंपिव अलंकियविभूसिय करेंति २ करयल जाव कटु सिबभई कुमारं जएण विजएणं वद्धाति जएण विजएणं बद्धावेत्ता ताहिं इहाहिं कंताहिं पियाहिं जहा उववाइए कोणियस्स जाव परमाउं पालयाहि इहजणसंपरिबुडे हत्धिणपुरस्स नगरस्स अन्नेसि च बहणं गामागरनगर जाव विहराहित्तिकटु जयजयसई पउंजति, तए णं से सिवभद्दे कुमारे राया जाण महया हिमवंत वनओ जाव विहरइ,
प्रमाणे विचारीने आवती काले प्रातःकाळे सूर्य देदीप्यमान छते, अनेक प्रकारना लोढी, कडाया वगेरे तापसना उपकरणो तैयार करावी पोताना कौटुंबिक पुरुषोने बोलावे छे. बोलावीने तेणे तेओने आ प्रमाणे कयु-हे देवानुप्रियो ! शीघ्र आ हस्तिनापुर
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का११शतके
प्रज्ञप्तिः ॥९४६॥
उदेवा ॥९४६॥
कलमsex
नगरनी बाहेर अने अंदर जल छटकावी साफकरावो-इत्यादि यावत् तेम करी तेओ तेनी आज्ञाने पाछी आपे छे. त्यारपछी ते शिव
राजा फरीने पण ते कौटुंपिक पुरुषोने बोलावे छे, चोलोवीने तेणे आ प्रमाणेकड्यु-हे देवानुप्रियो ! शीघ्र शिवभद्र कुमारना महाभपार्थवाळा यावत् विपुल राज्याभिषेकनी तैयारी करो. त्यारवाद चे कौटुंबिक पुरुषो ते प्रमाणे यावत् राज्याभिषेकनी तैयारी करे ,
त्यारपछी ते शिवराजा अनेक गणन यक, दंडनायक, यावत् संधिपालना परिवारयुक्त शिवभद्र कुमारने उत्तम सिंहासन उपर पूर्व दिशा सन्मुख बेसडे के, बेसाडीने एकसो साठ सोनाना कलशोबडे, यावत् एकसो आठ माटीना कलशोचडे, सर्व ऋद्धिथी यावत् वादित्रादिकना शब्दोवडे मोटा राज्याभिषेकथी अभिषेक करे ने. त्शरपछी पापण जेवा सुकुमाल अने सुगंधी गंधवस्त्रबडे तेनां शरी|रने साफ कर के, साफ करीने सरस गोशीर्षचंदन बडे लेप करी यावत् जेम जमालिनु वर्णन कर्यु छ तेम कल्पवृक्षनी पेठे तेने अलंकृत-विभूषित करे छे. त्यारपछी हाथ जोडी शिवभद्रकुमारने जय अने विजयथी वधावे छे; वधावीने इष्ट, कान्त, प्रिय वाणीवडे आशीर्वाद आपता औपापातिक सूत्रमा कोणिक राजा संबन्धे का प्रमाणे तेओए का-यावद तुं दीर्घायुषी था, अने इष्ट जनना परिवारयुक्त हस्तिनापुर नगर अने वीजा अनेक ग्राम, आकर तथा नगरोनुं स्वामिपणुं भोगव-इत्पादि कहीने तेओ जय जय शब्द बोल छे. त्यारवाद ते शिवभद्र कुमार राजा थयो, ते मोटा हिमाचलनी पेठे सर्व राजाओमां मुख्य थइन यावत् विहरे , अहीं शिव भद्रराजानुं वर्णन कर.
तएणं से सिवे राया अन्नया कयाई सोभणसि तिहिकरणदिवसनुहुत्तनखत्तंसि विपुल असणपाणखामइसाइमं उबक्खडावेंति उववडावेत्ता मित्तणाइनियगजावपरिजण रायाणो य खत्तिया आमंतेति आमंतेत्ता
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११शतके
उद्देशा९ ॥९४७॥
तओ पच्छा पहाए जाव सरीरे भोयणवेलाए भोयणमंडवंसि सुहासणवरगए तेणं मित्तणातिनियमसयण जाव
परिजणेणं रापहि य खत्तिएहि य सद्धिं विपुलं असणपाणवाइमसाइम एवं जहा तामली जाव सकारेति संमाव्याख्या-४
णेति सकारेत्ता संमाणेत्तात मित्तणाति जाव परिजणं रायाणो य खत्तिए यसिवभई च रायाणं आपुच्छह आ. प्राप्तिः ॥९४७||
पुच्छित्ता सुबहुं लोहोलोहकडाहकडच्छुयं जाव भंडगं गहाय जे इमे गंगाकूलगा वाणपत्धा तावमा भवंति तं चेव जाव तेसिं अंतिय मुंडे भवित्ता दिसापोक्खियतावसत्ताए पब्वइए, पब्बइएऽविय ण समाणे अयमेयारूवं अभिग्गहं अभिगिण्हइ-कप्पह मे जावज्जीवाए छटुं तं चेव जाव अभिग्गहं अभिगिण्हइ २ पढम छट्टरवमण उवसंपत्तिाणं विहरह।
त्यारपछी ते शिवराजा अन्य कोई दिवसे प्रशस्त तिथि, करण, दिवस अने नक्षत्रना योगमा विपुल अशन, पान खादिम अने स्वादिम वस्तुओने तैयार करावे . तैयार करावी मित्र, ज्ञाति, यावत् पोताना परिजनने, राजाओने अने क्षत्रियोने आमन्त्रण करे जे, आमन्त्रण करी त्यार बाद स्नान करी यावत् शरीरने अलंकृत करी भोजनवेलाए भोजनमंडपमा उत्तम मुखासन उपर बेसी मित्र, ज्ञाति अने पोताना वजन यावद परिजन साथे तथा राजा अने क्षत्रियो साथे विपुल अशन, पान, खादिम अने स्वादिम भोजन करी तामलितापसनी पेठे यावत् ते शिवराजा बधाओनो सत्कार करे छ, सन्मान करे . सत्कार अने सन्मान करीने मित्र, ज्ञाति, पोताना खजन, यावत् परिजननी तथा राजाओ, क्षत्रियो अने शिवमद्र राजानी रजा मागे छे. रजा मागीने अनेक प्रकारना लोढी, लोढाना कडायां, कडछा यावत् तापसना उचित उपकरणो लइने गंगान कांठे जे आ चानप्रस्थ तापसो रहे छे-इत्यादि सर्व पूर्ववत् |
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उदेकार ॥९५८॥
जाणवू, यावत् ते दिशाप्रोक्षक तापसोनी पासे दीक्षित थइ दिशाप्रोक्षकतापसरूपे पत्रज्या ग्रहण करा प्रवाजत थइन त आ प्रकारना |
अभिग्रह धारण करे छ-'मारे यावजीच निरंतर छड छदुनो तप करवो कल्पे-इत्यादि पूर्ववत् अभिग्रह ग्रहण करीने प्रथम छट्ट म्यारूपातपनो खोकार करी विहरे छे. अवाप्तिः ॥९४८॥ IPL तए णं से सिवेरायरिसी पढमढक्शवमणपारणगसि आयावणभूमीओ पच्चोरुहइ आयावणभूमिओ पञ्चोकहिता
वागलवथनियस्थे जेणेव मग उडए तेणेव उवागच्छद तेणेव उवागच्छित्ता किढिणसंकाइयगं गिण्हा गिण्हित्ता ट्र पुरच्छिमं दिस पोक्खेड पुरच्छिमाए दिसाए सोमे महाराया पत्याणे पत्थियं अभिरक्खउ सिवं रायरिसिं अभि. * २, जाणि य तत्थ कंदाणि य मूलाणि य तयाणि य पत्ताणि य पुप्फाणि य फलाणि य बीयाणि य हरियाणि य
ताणि अणुजाणउत्ति कट्टपुरच्छिमंदिसंपसरति पुर०२ जाणि य तत्थ कंदाणि य जाव हरियाणि च ताई गेण्डाइ २ किढिणसंकाइयं भरेइ कढि०९ दन्भे य कुसे यममिहाओ य पत्तामोडं च गेण्हेइ २जेणेव सए उडए तेणेव उवागच्छइ २ किदिणसंकाइयगं ठवेइ किढि०२ वेदि बड्डेड २ उवलेवणसंमजणं करेइ उ०२ दम्भसगम्भकलसाह
त्यगए जेणेव गंगा महानदी तेणेव उवागच्छद गंगामहानदी ओगाहेति २ जलमजणं करेइ २ जलकीड करेइहा६ जलाभिसेयं करेति २ आयंते चोक्खे परमसुइभूए देवयपितिकयकले दम्भसगम्भकलसाइत्वगए गंगाओम २
नईओ पच्चुत्तरइ २ जेणेव सए उडए तेणेव उवागच्छह तेणेव उवागच्छित्ता दम्भेहि य कुसेहि य वालुयाएहि |य वेति रएति वेति रएत्ता सरएणं अरणिं महेति सर० २ अग्गि पाडेति २ अग्गि संधुमेह र समिहाकठ्ठाई
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व्याख्या
॥९४९॥
पक्विवइ समिहाकट्ठाई पक्खिवित्ता अग्गि उजालेइ अग्गि उजालेत्ता-'अग्गिस्स वाहिणे पासे, सत्तंगाई समादहे । तं.-सकहं बक्कलं ठाणे, सिजाभंडं कमंडलं ॥ ७० ॥ दंडदारुं तहा पाणं, अहे ताई समादहे ॥ महुणा य धरण य तंदुलेहि य अग्गि हुणइ, अग्गि हुणित्ता चळं साहेह, चरुं साहेत्ता बलिं वइस्सदेवं करेइ बलिं वइ. उद्देशा स्स हदेवं करेत्ता अतिहिपूर्य करेह अतिहिपूर्य करेत्ता तओ पच्छा अप्पणा आहारमाहारेति,
ला॥९४९॥ ___ त्यारवाद प्रथम छट्ठ तपना पारणाना दिवसे ते शिव राजर्षि आतापना भूमिथी नीचे आवे छे, नीचे आवीने बाल्कलना वस्त्र पहेरी ज्यां पोतानी झुपडी छे त्यां आवे छे, त्यां आवी किढिन (वांसनुं पात्र) अने कावडने ग्रहण करे छे, ग्रहण करी पूर्व दिशाने 31 प्रोक्षितकरी 'पूर्व दिशाना सोम महाराजा धर्मसाधनमा प्रवृत्त थएला शिव राजर्षिर्नु रक्षण करो, अने पूर्व दिशमा रहेला कंद, मूल, छाल, पांदडा, पुष्प, फळ, बीज अने हरित-लीली वनस्पतिने लेवानी अनुज्ञा आपो-एम कही ते शिव राजर्षि पूर्व दिशा तरफ जाय छे, जइने त्यां रहेला कंद, यावत्-लीली वनस्पतिने ग्रहण करीने पोतानी कावड भरे छे. त्यार पछी. दर्भ, कुश, समिध-काष्ठ अने झाडनी शाखाने मरडी पांदडाओने ले छे; लेईने ज्यां पोतानी झुपडी छे त्यां आवे के, आत्रीने कावडने नीचे के छे, मूकीने वेदिकाने प्रमार्जित करे छेपछी वेदिकाने (छाण पाणीवडे) लींपी शुद्ध करे छे. त्यारबाद डाभ भने कलशने हाथमां लइ ज्यां गंगा महानदी छे, त्यां आवीने गंगा महानदीमा प्रवेश करे छे, प्रवेश करी डुबकी मारे छे, जलक्रीडा करे छे, अने स्नान करे छ, पछी आचमन करी चोक्खा थइ-परम पवित्र थइ देवता अने पिन कार्य करी हाम अने पाणीनो कलश हाथमा लइ गंगा महानदीथी बहार नीकळीने ज्या पोतानी झुपडी छे, त्यां आवे छे आवीन डाम, कुल अने वालुका वडे वेदिने बनाये छे, बनावी मथनकाष्ठवडे
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व्याख्या प्रज्ञप्तिः ॥९५०
CRACK
अरणिने घसे छे, घसीने अग्नि पाडे छे, पाडीने अग्निने सळगावे छे, पछी तेमां समिधना काष्ठोने नांखी ते अग्रिने प्रज्वलित करे छे, अने अग्मिनी दक्षिण बाजुए आ सात वस्तुओ मुके छे ते आ प्रमाणे-"१ सकथा (उपकरणविशेष), २ वल्कल, ३ दीप, ४ शय्याना
११शतके उपकरण, ५ कमंडल, ६ दंड अने ७ आत्मा (पोते). ए सर्वने एकठा करे छे." पछी मध, घी अने चोखा बडे अग्निमां होम ||
उद्देशा९ करे छ होम करीने चरु-बलि तैयार करे छे, अने बलिथी वैश्वदेवनी पूजा करे छे, त्यारबाद अतिथिनी पूजा करी ते शिव राजाप ९५०॥ पोते आहार करे छे.
तएणं से सिवे रायरिसी दोचं छट्टक्खमणं उवसंपजित्ताणं विहरह, तए णं से सिवे रायरिसी दोच्चे छट्टक्खमणपारणगंसि आयावणभूमीओ पच्चोरुहइ आयावण०२ एवं जहा पढमपारणगं नवरं दाहिणगं दिसं पोक्खेति २ दाहिणाए दिसाए जमे महाराया पत्थाणे पत्थियं सेसं तं चेव आहारमाहारेइ, तए णं से सिवरायरिसी तचं छट्टक्खमणं उवसंपज्जित्ताण विहरति, तए ण से सिवे रायरिसी सेस तं चेव नवरं पचच्छिमाए दिसाए वरुणे महाराया पत्थाणे पत्थियं सेसं तं चेव जाव आहारमाहारेइ, तए से सिवे रायरिसी चउत्थं छट्टक्खमणं उवसंपजित्ताणं विहरह, तए णं से सिवे रायरिसी चउत्थं छहक्खमणं एवं तं चेव नवरं उत्तरदिसं पोक्खेड उत्तराए दिसाए वेसमणे महाराया पत्याणे पत्थियं अभिरक्खउ सिवं, सेस तं चेव जाव तओ पच्छा अप्पणा आहारमाहारेड ।। (सूत्रं ४१७) ॥
त्यारवाद ते शिवराजर्षि फरीवार छ? तप करीने विहरे छे, पछी ते शिवराजर्षि आतापनाभूमिथी उतरीब कल वस्त्र पहेरे छे,
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माख्याप्राप्तिः
११शतके का उद्देशा
॥९५१॥
Acharya
f इत्यादि बधु प्रथम पारणानी पेठे जाणवू. परन्तु विशेष ए वे के वीजा पारणा वखते दक्षिण दिशाने प्रोक्षित करे-पूजे, तेम करीने एम कहे के दक्षिण दिशाना (लोकपाल) यम महाराजा प्रस्थान-परलोकसाधन-मां प्रवृत्त थएला शिवराजर्षिर्नु रक्षण करों' इत्यादि | सर्व पूर्ववत् कहे, यावत् पोते आहार कर के. पछी ते शिवराजर्षि त्रीजा छट्ठ तपने स्वीकारी विहरे , तेना पारणानी वधी हकीकत पूर्वनी पेठे जाणवी, परंतु विशेष ए ले के, पश्चिम दिशानुं प्रोक्षण-पूजन-करे, अने एम कहे के पश्चिम दिशाना (लोकपाल) वरुण महाराजा प्रस्थान-परलोक साधनमा प्रवृत्त थयेला शिव राजर्षिनु रक्षण करो, बाकी बधुं पूर्व प्रमाणे जाणवू. यावत् त्यार पछी ते आहार करे. पछी ते शिवराजर्षि चोथा छट्टना तपने स्वीकारी विहरे के-इत्यादि पूर्ववत् जाणवू. परन्तु (चोथे पारणे) उत्तर दिशाने पूजे के, अने एम कहे छ के 'उत्तर दिशाना (लोकपाल) वैश्रमण महाराजा धर्मसाधनमा प्रवृत्त थयेला शिवराजर्षितुं रक्षण करो, बाकी बधुं पूर्व प्रमाणे जाणवं, यावत् त्यार पछी पोते आहार करे छे. ।। ४१७॥ .
तए णं तस्स सिवस्स रायरिसिस्स छटुंछट्टेण अनिक्खित्तणं दिसाचक्कवालेणं जाव आयावेमाणस्स पगहमदयाए जाव विणीययाए अन्नयो कयावि तयावरणिज्जाणं कम्माण खओवसमेणं ईहापोहमग्गणगवेसणं करेमाणस्म विभंगे नाम अन्नाणे समुप्पन्ने, से णं तेणं विभंगनाणेणं समुप्पन्नेणं पासह अस्मि लोग सत्त दीवे सत्त समुद्दे तेण परं न जाणति न पासति, तए णं तस्स सिवस्स रायरिसिस्स अयमेयारूवे अभत्थिए जाव समुप्पज्जित्थाअस्थि णं ममं अइसेसे नाणदसणे समुप्पन्ने, एवं खलु अस्सि लोए सत्त दीवा सत्त समुदा, तेण परं वोच्छिन्ना दीवा य समुद्दा य, एवं मपेहेह एवं.२ आयावणभूमीओ पच्चोरहह आ०२ बागलपत्थनियत्थे जेणेव सए उडए
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व्याख्या प्राप्तिः ॥९५२॥
पन्ने, पवंस एवमाइक्खह
जावा . २ भंडनिक्खेवायच गेहद जेणेकर
CAESARKASHAN
तेणेव उवागच्छद २ सुबहुं लोहीलोहकडाहकडुच्छुयं जाव भंडगं किढिणसंकाइयं च गेहद २ जेणेव हस्थिणापुरे नगरे जेणेव ताबसावसहे तेणेव उवागच्छह उवा. २ भंडनिक्खेवं करेइ २ हथिणापुरे नगरे सिंघाडगतिग
११शतके जावपहेसु बहुजणम्स एबमाइक्खइ जाव एवं परवेइ-अस्थि णं देवाणुप्पिया! ममं अतिससे नाणदसणे समु
उद्देशा९ प्पन्न, एवं ग्बल अस्सि लोए जाव दीवा य समुद्दा य, तए णं तस्स सिवस्स रायरिसिस्स अंतियं एयमढं सोचा IM९५२॥ निसम्म हस्थिणापुरे नगरे मिंधाडगतिगजाब पहेसु बहुजणो अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ जाव परूवेइ-एवं खलु देवाणुप्पिया। सिवे रायरिसी एवं आइक्खइ जाव परूवेह-अस्थि ण देवाणुप्पिया! ममं अतिसेसे नाणदसणे जाव तेण परं वोच्छिन्ना दीवा य समुद्दा य, से कहमेयं मन्ने एवं ?।
एप्रमाणे निरंतर छदु छट्ठना तप करवाथी दिक्चकवाल तप करता, यावत् आतापना लेता ते शिवराजर्षिने प्रकृतिनी भद्रता अने यावद् विनीतताथी अन्य कोई दिवसे तेना आवरणभूत कर्मोना क्षयोपशम थवाथी ईहा, अपोह, मार्गणा अने गवेषण करता विभंग नामे ज्ञान उत्पन थ'. पछी ते उत्पन्न थयेला ते विभंगज्ञान वढे आ लोकमां सात द्वीपो अने सात समुद्रो जुए थे, ते पछी आगळ जाणता नथी, के जोता नथी. त्यारबाद ते शिवराजर्षिने आ आवा प्रकारनो अध्यवसाय उत्पन्न थयो के, 'मने अतिशयवाळू ज्ञान अने दन उत्पन्न थयु , अने ए प्रमाणे आ लोकमां सात द्वीप अने सात समुद्रो छ, अने त्यारपछी द्वीपो अने समुद्रो नथीं'एम विचारे , विचारीने आतापना भूमिथी नीचे उतरे छे, अने वल्कलनां वस्त्रो पहेरी ज्यां पोतानी झुपडी छे त्यां आवी अनेक प्रकारना लोढी, लोढाना कडायां अने कडछा यावद् बीजा उपकरणो अने काबढने ग्रहण करें छे, अने ज्यां हस्तिनापुर नगर छ भने
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प्रशतिः
उशार ॥९५३॥
CRICKMADHAN
ज्यां तापसोतुं यावद् आश्रम के त्यां आवे छे, आवीने उपकरण वगेरेने मूके छे, अने हस्तिनापुर नगरमां शृंगाटक, त्रिक, याबद्र राजमार्गोमा घणा माणसोने एम कहे छे, यावद् एम प्ररूपे छे के, 'हे देवानुप्रियो ! मने अतिशयवालं ज्ञान अने दर्शन उत्पन्न थयु छे, अने आ लोकमा ए प्रमाणे सात द्वीपो अने सात समुद्रो छे,' त्यारवाद ते शिवराजर्षि पासेथी ए प्रकारर्नु वचन सांभळी, अवधारी हस्तिनापुर नगरमा शृंगाटक, त्रिक, यवद् राजमार्गोमा घणा माणसो परस्पर एम कहे छे-यावद् एम प्ररूपे छे-हे देवानुप्रियो ! शिवराजर्षि आ प्रमाणे कहे छे-यावत् प्ररूपे छे के हे देवानुप्रियो ! मने अतिशयवालं ज्ञान अनं दर्शन उत्पन्न थयुं छे, यावत् ए प्रमाणे आ लोकमां सात द्वीप अने सात समुद्रो छे, त्यार पछी नथी, ते एम केवी. रीते होय?
तेणं कालेणं तेणं समएणं सामी समोसढे परिसा जाव पडिगया । तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्टे अंतेवासी जहा बितियसग नियंदुहेसए जाव अडमाणे बहुजणसई निसामेड़ बहुजणो अन्नमन्नस्स एवं आइक्खइ एवं जाव परूवेइ-एवं खलु देवाणुप्पिया! सिवे रायरिसी एवं आइक्खइ जाव परवेड़अस्थि पं देवाणुप्पिया! तं चेव जाव बोच्छिन्ना दीवाय समुहा य, से कहमेयं मन्ने एवंी, तए णं भगवं गोयमे बहुजणस्स अंतियं एयमटुं सोचा निसम्म जाव सड्ढे जहा नियंटुद्देसए जाव तेण परं वोच्छिन्ना दीवा य समुद्दा य, से कहमेयं भंते ! एवं?, गोयमादि समणे भगवं महावीरे भगवं गोयम एवं वयासी-जन्न गोयमासे बहुजणे अन्नमन्नस्स एवमातिक्खइ तं चेव सव्वं भाणियन्वं जाव भंडनिकखेवं करेति हस्थिणापुरे नगरे सिंघाडग० तं चेष जाव वोच्छिन्ना दीवा य समुद्दा य, तए ण तस्स सिवस्स रायरिसिस्स अंतिए एयम8 सोचा निसम्म तं चैव
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व्याख्या प्रज्ञप्तिः ॥९५४॥
ASI-KA
बदेशा ॥९५४॥
सब्वं भाणियब्वं जाव तेण परं बोच्छिन्ना दीवा य समुदा य तपण मिच्छा, अहं पुण गोपमा एबमाइक्वामिजाव | परूवेमि-एवं खलुजंबुद्दीवादीया दीवालवणादीया समुद्दा संठाणओएगविहिविहाणा विधारओ अणेगविहिषिहा
णा एवं जहा जीवाभिगमेजाव सयंभूरमणपज्जवसाणा अस्सि तिरियलोए असंखेने दीवसमुद्दे पन्नतेसमणाउसो।। | ते काले-ते समये महावीरस्वामी समोसा, पर्षद् पण पाछी गई. ते काले-ते समये श्रमण भगवन् महावीरना मोटा शिष्य इंद्रभूति नामे अनगार वीजा शतकना निग्रन्थोद्देशकमां वर्णव्या प्रमाणे गवत् मिक्षाए जता घणा माणसोनो शन्द सांभळे ये-पहु माणसो परस्पर आ प्रमाणे कई २-यावत् प्ररूपे के 'हे देवानुप्रियो । शिव राजा एम कहे -पावत् एम प्ररूपे छे-हे देवानुप्रियो ! मने अति .यवाळु शान अने दर्शन उत्पम थयुं छे, अने यावत् सात द्वीप अने सात समुद्रो के, त्यार पछी द्वीपो अने समुद्रो नथी, तो ए प्रमाणे केम होय ! [H०] त्यार पछी भगवान् गौतमे घणा माणसो पासे आ पात सांभळी, अबधारी श्रद्धावाना थई | निग्रंथ उद्देशकमां कमा प्रमाणे यावत् श्रमण भगवंत महावीरने पूज्यू-हे भगवन् ! शिवराजर्षि कहे के के-'यावत् सात द्वीप अने सात समुद्र के, त्यार पछी काइ नथी' तोए प्रमाणे केम होइ के [उ०] 'हे गौतम' ! एम कही धमण भगवान महावीरे गौतमने आ प्रमाणे कयु- गौतम! घणा माणसोजे परस्पर ए प्रमाणे कहे छे, इत्यादि वधु कहे, यावद् ते शिवराजर्षि पोताना उपकरणो मूकं अने हस्तिनापुर नगरमा जब श्रृंगाटक, त्रिक अने बहु प्रकारना मागोमां आ प्रमाणे कहे थे, यावत् सात द्वीपो अने समझो छे त्यार पछी नथी, त्यारवाद ते शिवराजर्षिनी पासे आ बात सांभळी अर्थ अवधारी हस्तिनापुर नगरमा माणसो परस्पर आ प्रमाणे कहे के के-'यावद मात दीप अने समुद्रो छे, ते पछी, कांड नवी' इत्यादि, ते मिथ्या (असत्य) छे. हे गौतम ! हुंए प्रमाणे कहुं छु,
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॥९५५॥
यावत् अरुधुएं-ए प्रमाणे बंवृद्धीपादि द्वीपो अने लवणादि समुद्रो वषा (इचाकारे होवाथी) आकारे एक सरखा छे, पण विशालताए द्विगुण द्विगुण विस्तारवाळा होताथी अनेक प्रकारना छे-इत्यादि सर्व 'जीवाभिगम'मां कह्या प्रमाणे जाणवू, यावत् हे आयुष्मन् श्रमण! आ तिर्यग्लोकमां स्वयंभूरमण समुद्रपर्यन्त असंख्यात द्वीपो अने समुद्रो कसा थे.
उधार अस्थि णं भंते जंबुद्दीवे दीवे दवाइं सवाइंपि अवनाईपि सगंधाइंपि अगंधाईपि सरसाइंपि अरसाइंपि C९५५॥ सफासाइपि अफासाइंपि असमनवद्धाई अनमनपुटाई जाव घडताए चिट्ठति?, हंता अस्थि अस्थि णं भंते ! लव|णसमुहे दहाई सवन्नाइंपि अपनाइंपि सगंधाइंपि अगंधाइंपि सरसाइंपि अरसाइंपि सफासाइंपि अफासाइंपि अन्नमन्त्रबद्धाइं अन्नमनपुट्ठाई जाव घडताए चिट्ठति,हंता अस्थि । अस्थि णं भंते धायइसंडे दीचे दब्बाई सबनाइंपि. एवं चेव एवं जाव सयंभूरमणसमुद्दे ? जाप हता अस्थि । तए णं सा महतिमहालिया महचपरिसा समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं एयमढे सोचा निसम्म हहतुहा समणं भगवं महावीरं वंदड़ नमसह वंदित्ता नमंसित्ता जामेव दिसं पाउन्भूया तामेव दिसं पडिगया, तएणं हथिणापुरे नगरे सिंघाडगजावपहेसु बहुजणो अनमन्नस्स एवमाइक्खइ जाव परूवेह-जभ देवाणुप्पिया! सिवे रायरिसी एवमाइक्खह जाव परूवेइ-अस्थि णं देवाणुप्पिया ! ममं भतिसेसे नाणे जाद समुहा य तं नो इणढे समढे, समणे भगवं महावीरे एवमाइक्खा जाव परूवेह-एवं खल्लु एयरस सिवस्स रायरिसिस्स छटुंछट्टेणंतं चेव जाच भंडनिक्खेव करेइ भंडनिक्खेवं करेत्ता हत्थि| णापुरे नगरे सिंघाडग जाव समुद्दा य, तए णं तस्स सिवस्स रायरिसिस्स अंतिथं एयमहूँ सोचा निसम्म जाव
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व्याख्या प्रज्ञप्ति
११शतके रदेशात ॥९५६॥
AASAROSEX
समुद्दा य तण्णं मिच्छा, समणे भगवं महावीरे एबमाइक्खइ.-एवं खलु जंबुद्दीवादीया दीवा लवणादीया समुद्दा तं चेव जाव असंखेना दीवसमुद्दा पन्नत्ता समणाउसो!
[म.] हे भगवन् ! जंबुद्धीप नामे द्वीपमा वर्णवाळां, वर्णरहित, गंधवाळां, गंधरहित, रसवाळा, रसरहित, स्पर्शवाळी अने स्पर्शरहित द्रव्यो अन्योन्य बद्ध, अन्योन्य स्पृष्ट यावद् अन्योन्य संबद्ध छ ? [उ०] हे गौतम ! हा, मे. [प्र.] हे भगवन् ! लवण समुद्रमा वर्णवाळां, वर्णविनाना, गंधवाळा, मंध विनाना, रसवाला, रसविनाना, स्पर्शवाळां ने स्पर्शविनाना द्रव्यो अन्योन्य बद्ध, अन्योन्य स्पृष्ट, यावत् अन्योन्य संबद्ध छ ? [उ०] हे गौतम! हा, छे. [म०] हे भगवन् ! धातकिखंडमां अने ए प्रमाणे यावत् खयंभूरमण समुद्रमा वर्णवाळां ने वर्णरहित इत्यादि पूर्वोक्त द्रव्यो परस्पर संबद्ध छे इत्यादि यावत् ? [उ.] हे गौतम ! हा, छे त्यां सुधी जाणवू. त्यारबाद ते अत्यन्त मोटी अने महत्व युक्त परिषद् श्रमण भगवान् महावीर पासेथी ए अर्थ सांभळी अने अवधारी हृष्ट तुष्ट थइ श्रमण भगवंत महावीरने वांदी नमी जे दिशामाथी आवी हती ते दिशामा गइ. त्यारवाद इस्तिनापुर नगरमां शृंगादक यावद् बीजा मार्गोमा घणा माणसो परस्पर आ प्रमाणे कहे छे, यावत् प्ररूपे छे के हे देवानुनियो। शिवराजर्षि जे एम कई केयावत प्ररूपे के-'हे देवानुप्रियो ! मने अतिशयवाछु ज्ञान उत्पन्न ययु छ, यावत् बीजा द्वीप-समुद्रो नथी; ते वेर्नु कथन यथार्थ नथी. श्रमण भगवान महावीर ए प्रमाणे कहे छे, यावत् प्ररूपे छ के-छट्ठ छहना तपने निरंतर करता शिवराजर्षि पूर्वे कह्या प्रमाणे यावत् पोताना उपकरणो मूकीने हस्तिनापुर नामना नगरमां शृंगाटक यावत् बीना मार्गोमा ए प्रमाण कहे छे-यावत् सात द्वीपसमुद्रो छे, बीजा नथी. त्यारवाद ते शिवराजर्षिनी पासे ए वात सांभळीने अवधारीने घणा माणसो एम कहे छे-'शिवराजर्षि जे
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शतके
उद्देशा
प्रशतिः ॥९५७॥
॥९५७॥
कहे छे के मात्र सात द्वीप समुद्रो छे' ते मिथ्या छे, यावत् श्रमण भगवान् महावीर प्रमाणे कहे छे के-हे आयुष्मन् श्रमण । जंबू द्वीपादि पो अने लवणादि समुद्रो एक सरखा आकारे छे-इत्यादि पूर्वे कया प्रमाणे जाणवू, यावत् असंख्याता द्वीप-समुद्रो कह्या छे.'
तए णं से सिवे रायरिसी बहुजणस्स अंतिय एयमट्ठ सोचा निसम्म संकिए कंखिए वितिगिच्छिए भेदसः मावन्ने कलुससमावन्ने जाए यावि होस्था, तए णं तस्स सिवस्स रायरिसिस्स संकियस्स कम्खियस्स जाव कलुससमावन्नस्स से विभंगे अन्नाणे खिप्पामेव परिवडिए, तएणं तस्स सिवस्स रायरिसिस्स अयमेयारूवे अभथिए जाव समुप्पन्जित्था-एवं खलु समणे भगवं महावीरे आदिगरे तित्वगरे जाव सम्वन्नू सव्वदरिसी आगास. गएणं चक्केणं जाव सहसंबवणे उजाणे अहापडिरूवं जाव विहरइ, तं महाफलं ग्वलु तहारूवाणं अरहताणं भगवताणं नामगोयस्स जहा उववाइए जाव गहणयाए, तं गच्छामि णं समणं भगवं महावीरं वदामि जाव पज्जुवासामि, एपणे इहभवे य परभवे य जाच भविस्सइत्तिकटु एवं संपेहेति ।।
त्यार बाद ते शिवराजर्षि घणा माणसो पासेथी ए वातने सांभळीने अने अवधारीने शंकित कांक्षित, संदिग्ध, अनिश्चित अने कलुषित भावने प्राप्त थया, अने शंकित, कांक्षित, संदिग्ध, अनिश्चित अने कलुषित भावने प्राप्त थयेला शिवराजर्षिन विभंग नामे | अज्ञान तरतज नाश पाम्युं. त्यार पछी ते शिवराजर्षिने आवा प्रकारनो आ संकल्प यावत् उत्पन्न थयो-"ए प्रमाणे श्रमण भगवान् महावीर धर्मनी आदि करनारा, तीर्थकर, यावत् सर्वज्ञ अने सर्वदर्शी छे अने तेओ आकाशमा चालता धर्मचक्रवडे यावत् सहस्राम्रवन नामे उद्यानमा यथायोग्य अवग्रह ग्रहण करी यावद् विहरे छे. तो तेवा प्रकारना अरिहंत भगवंतोना नामगोत्रनुं श्रवण करवू ते महा
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व्याख्या
प्रज्ञप्तिः १९५८ ।।
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फळवाळु छे, तो अभिगमन वंदनादि माटे तो झुं कहे ? - इत्यादि औपपातिक सूत्रमां कह्या प्रमाणे जाणवुं यावत् एक आर्य धार्मिक सुवचननुं श्रवण कर माहा फलवालुं छे, तो तेना विपुल अर्थनुं अवधारण करवा माटे तो शुं कहेतुं ? तेथी हुं श्रमण भगवान् महा-वीरनी पासे जाउँ, बांदु अने नमुं यावत् तेओनी पर्युपासना करूं, ए मने आ भवमा अने परभवमां यावत् श्रेयने माटे थशे" एम विचारे छे.
एवं २ ता जेणेव तावसावसहे तेणेव उवागच्छइ तेणेव उवागच्छित्ता तासावसहं अणुप्पविसति २ त्ता सुबहु लोहीलोहकडाह जाव किठिणसंकातिगं च गेण्हड़ गेण्हित्ता ताबसावसहाओ पडिनिक्खमति ताव० २ परिवडियविभंगे हथियागपुरं नगरं मज्झमज्झणं निग्गच्छत् निग्गच्छित्ता जेणेव सहसंबवणे उज्जाणे जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उबागच्छड़ तेणेव उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आग्राहिणपया-हिणं करेह वंदति नम॑सति वंदित्ता नर्मसित्ता नञ्चासन्ने नाइदूरे [ग्रन्थाग्रम् ७००० ] जाव पंजलिउडे पज्जुवासह, तए णं समणे भगवं महावीरे सिवस्स रायरिसिस्स तीसे य महतिमहालियाए जाव आणाए आराहए भवद्द, तए गं से सिवे रायरिसी समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्मं सोचा निसम्म जहा खंदओ जाव उत्तरपुरच्छिम दिसिभागं अवकम २ सुबहु लोहीलोहकडाह जाब किढिणसंकालिंग एगते एडेड ए० २ यमेव पंचमुट्ठियं लोयं करेति सयमे० २ समणं भगवं महावीरं एवं जहेब उसमदते तहेब पदवहओ तहेब इकारस अंगाई अहिति तहेव सव्वं जाव सन्वदुक्स्वप्प हीणे ॥ ( सूत्रं ४१८ ) ।
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११ शतके
उद्देशः९ ।। ९६८ ।।
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व्याख्या प्रज्ञप्ति
११शतके उद्देशा९ ॥९५९॥
॥९५९॥14
ए प्रमाणे विचार करी ज्यां तापसोनो मठ छे त्यां आवे छे. आत्री तापसोना मठमा प्रवेश करी घणी लोढी, लोढाना कडाया यावत् कावड वगेरे उपकरणोने लेइ तापसोना आश्रमथी नीकळे छे. नीकळीने विभंगानरहित ते शिवराजर्षि हस्तिनापुर नगरनी बच्चो | वच्च यईने ज्यां सहस्राम्रवन नामे उद्यान छे, ज्यां श्रमण भगवान महावीर छे त्यां आवे छे. आवीने श्रमण भगवान महावीरने त्रण वार प्रदक्षिणा करीने वांदे छे अने नमे छे. वांदी अने नमीने तेओथी बहु नजीक नहीं अने बहुदूर नहीं तेम उभा रही यावत् हाथ जोडी ते शिवराजर्षि श्रमण भगवंत महावीरनी उपासना करे छे. त्यार बाद ते शिवराजर्षिने अने मोटामां मोटी पर्षदने श्रमण भग वंत महावीर धर्म वीर धर्मकथा कहे छे. अने यावत् ते शिवराजर्षि आज्ञाना आराधक थाय छे. पछी ते शिवराजर्षि श्रमण भगवान् महावीरनी पासेथी धर्मने सांभळी अने अवधारी स्कंदकना प्रकरणमां कह्या प्रमाणे यावत् ईशान कोण तरफ जह घणी लोढी, लीढाना कडाया यावत् कावड वगेरे तापसोचित उपकरणोने एकांत जग्याए मूके छे. मूकीने पोतानी मेळे पंच मुष्टि लोच करी, श्रमण भगवंत महावीर पासे ऋपभदत्तनी पेठे प्रवज्यानो स्वीकार कर छे, अने ते प्रमाणे अग्यार अंगोन अध्ययन करे छे, तथा एज प्रमाणे यावत् ते शिवराजर्षि सर्व दुःखथी मुक्त थाय छे. ॥ ४१८॥
भंतेत्ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं बंदह नमसह बंदिसा नमंसित्ता एवं बयासी-जीवाण भंते ! सिज्ममाणा कयरंमि संघयणे सिमंति?, गोयमा! वयरोसभणारायसंघपणे सिझति एवं जहेव उववाहए तहेच संघयणं संठाणं उच्चत्तं आउयं च परिवसणा, एवं सिद्धिगंडिया निरवसेसा भाणियब्वा जाव अब्वायाहं सोक्खं अणुहवं (हंती) ति मामया सिद्धा । सेवं भंते! त्ति ।। (सूत्रं ४१९) सिवो समत्तो ॥११-९॥
SAKA5%252*
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व्याख्या
'हे भगवन् ! एम कही भगवान् गौतम श्रमण भगवंत महावीरने वादे छे अने नमे छे, बांदी अने नमीने भगवंत गौतमे आ प्रमाणे पूछ्यु-[प्र०] हे भगवन् ! सिद्ध धता जीवो कया संघयणमां सिद थाय ? [उ०] हे गौतम ! जीवो वज्रऋपमनाराच संघपणमां लासिद्ध थाय"-इत्यादि औपपातिकस्त्रमा कह्या प्रमाणे "संघयण, संस्थान, उंचाइ, आयुष, परिवसना (वास)"-अने ए प्रमाणे आखी
सिद्धिंगडिका कहेवी; यावत् अव्यावाध (दुःखरहित) शाश्वत सुखने सिद्धो अनुभवे थे. 'हे भगवन् ! ते एमज छे, हे भगवन् । ते एमज छे' एम कही यावद् विहरे छे. ।। ४१९ ॥
__ भगवत् सुधर्मखामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीस्त्रना ११ मा शतकमां नवमा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो.
११शतके (उदेशमा ॥९६०॥
॥९३०॥
उद्देशक १०. रायगिहे जाव एवं वयासी-कतिविहे गं भंते ! लोए पन्नत्ते?, गोयमा! चउब्बिहे लोए पन्नत्ते, तंजहा-दञ्च* लोए खेत्तलोए काललोए भावलोए । खेत्तलोए णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते?, गोयमा ! तिविहे पन्नत्ते, तंजहा
अहोलोयखेत्तलोर १ तिरियलोयखेत्तलोए २ उड्डलोयखेत्तलोए ३ । अहोलोयखेत्तलोए णं भंते ! कतिविहे पन्नत्ते, गोयमा सत्तविहे पन्नत्ते, तंजहा-रयाप्पभापुढवि अहेलोपखेत्तलोए जाव अहेसत्तमापुढविअहोलोयखेत्तलोए । तिरियलोयखेत्तलोए ण भंते ! कतिविहे पन्नत्ते?, गोयमा! असंखेनविहे पन्नत्ते, तंजहा-जंबुद्दीवे तिरियखेत्तलोए जाव सयंभूरमणसमुद्दे तिरियलोयखेत्तलोए। उट्टलोगखेत्तलोए गंभंते ! कतिविहे पन्नत्ते, गोयमा! पन्नरस विहे
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N
व्याख्याप्राप्तिः ॥९६१॥
पन्नत्ते, तंजहा-सोहम्मकप्पउड्डलोगखेत्तलोए जाव अच्चुयउड्डलोए गेवेन्ज विमाणउड्डलोए अणुत्तरविमाण. इसिं. | पन्भारपुढविउड्डलोगखेत्तलोए । अहोलोगखेत्तलोए णं भंते। किंसंठिए पन्नत्ते?, गोयमा! तप्पागारसंठिए पन्नत्ते ।
ला११शतके प्र०] राजगृह नगरमां (गौतम) यावद् आ प्रमाणे बोल्या-हे भगवन् ! लोक केटला प्रकारनो कह्यो के ? [उ.] हे गौतम ! माउद्देश:१० लोक चार प्रकारनो कह्यो छे, ते आ प्रमाणे-१ द्रव्यलोक, २ क्षेत्रलोक, ३ काललोक अने ४ भावलोक. [प्र०] हे भगवन् । क्षेत्र- ॥९६१॥ लोक केटला प्रकारनोरह्यो के ? [उ०] हे गौतम ! त्रण प्रकारनो कयो छे, ते आ प्रमाणे-१ अधोलोकक्षेत्रलोक, रतिर्यग्लोकक्षेत्रलोक
अने ३ ऊर्ध्वलोकक्षेत्रलोक. [प्र.] हे भगवन् ! अधोलोकक्षेत्रलोक केटला प्रकारनो कह्यो छे ? [उ०] हे गौतम ! सात प्रकारनो | कह्यो छे. ते आ प्रमाणे-१ रत्नप्रभापृथिवीअधोलोकक्षेत्रलोक, यावत् ७ अधःसप्तमपृथिवीअधोलोकक्षेत्रलोक. [प्र.) हे भगवन् ! तिर्यग्लोकक्षेत्रलोक केटला प्रकारनो कह्यो छे ? [उ०] हे गौतम ! असंख्य प्रकारको कह्यो छे, ते आ प्रमाणे-जंबुद्वीपतिर्यग्लोकक्षेत्रलोक, यावत् स्वयंभूस्मणसमुद्रतिर्यग्लोकक्षेत्रलोक. [प्र.] हे भगवन् ! ऊवलोकक्षेत्रलोक केटला प्रकारनो कह्यो छे? [उ०] हे गौतम ! पंदर प्रकारनो कह्यो छे, ते आ प्रमाणे-१ सौधर्मकल्पऊलोकक्षेत्रलोक, यावद् १२ अच्युतकल्पऊलोकक्षेत्रलोक, १३ अवेयकविमानऊर्ध्वलोकक्षेत्रलोक, १४ अनुत्तरविमानऊ लोकक्षेत्रलोक अने १५ ईषत्प्राग्भारपृथिव ऊर्चलोकक्षेत्रलोक. [प्र०] हे भगवन् ! अधोलोकक्षेत्रलोक केवा संस्थाने छे ? [उ०] हे गौतम! अधोलोक त्रापाने आकार के.
तिरियलोयखेत्तलोए णं भंते! किंसंठिए पन्नत्ते !, गोयमा! झल्लरिसंठिए पन्नत्ते । उड्ढलोयखेत्तलोयपुच्छा उड्ढमुइंगाकारसंठिए पन्नत्ते । लोए णं भंते! किंसंठिए पन्नत्ते?, गोयमा! सुपट्ठगसंठिए लोए पन्नत्ते, तंजहा--
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व्याख्या प्रज्ञप्तिः ॥९६२॥
११शतके उद्देशः१. ॥९६२॥
SEARCCRECENCE
| हेट्ठा विच्छिन्ने मज्झे संखित्ते जहा मत्तमसए पढमुद्देसए जाव अंतं करेंति । अलोए ण भंते ! किंसठिए पन्नत्ते ?,।
गोयमा! झुसिरगोलसंठिए पन्नत्ते ।। अहेलोगखत्तलोए ण भंते ! किं जीवा जीवदेसा जीवपएसा? एवं जहा इंदा दिसा तहेव निरवसेसं भाणि यव्वं जाव अद्भासमए । तिरियलोयखेत्तलोए णं भंते ! किं जीवा., एवं चेव, एवं | उड्डलोयखेत्तलोएवि, नवरं अरूवी छविहा, अद्धासमओ नत्थि।।
म.] हे भगवन् ! तिर्यग्लोकक्षेत्रलोक केवा संस्थाने छ ? [उ०] हे गौतम ! ते झालरने आकारे ले. [प्र.] हे भगवन् ! ऊर्ध्वलोकक्षेत्रलोक केवा आकारे छे १ [उ.] हे गौतम! उभा मृदंगने आकारे छे. [प्र०] हे भगवन् ! लोक केवा आकारे संस्थित छ ? [उ०] हे गौतम ! लोक सुप्रतिष्ठकने आकारे संस्थित छे, ते आ प्रमाणे-"नीचे पहोळो, मध्यभागमां संक्षित-संकीर्ण"-इत्यादि सातमा शतकना प्रथम उद्देशकमां कह्या प्रमाणे कहे. (ते लोकने उत्पन्न ज्ञान दर्शनने धारण करनारा केवलज्ञानी जाणे छे अने | त्यार पछी सिद्ध थाय छे) यावद् 'सर्व दुःखोनो अन्त करे छे'. [प्र०] हे भगवन् ! अलोक केवा आकारे कह्यो छे ? [उ.] हे गौतम! अलोक पोला गोळाने आकार कह्यो छे. [प्र] हे भगवन् ! अधोलोकक्षेत्रलोक शुं जीवरूप छ, जीवदेशरूप छ, जीवप्रदेशरूप छे इत्यादि ? [३०] हे गौतम ! जेम एन्द्री दिशा संबन्धे का छे ते प्रमाणे सर्व अहिं जाणवू. यावद् अद्धासमय (काल) रूप छे'. [प्र.] हे भगवन् ! तिर्यग्लोक शुं जीवरूप छे इत्यादि ? [उ.] पूर्ववत् जाणवू. ए प्रमाणे ऊर्बलोकक्षेत्रलोक संबन्धे पण जाण; परन्तु | विशेष ए छे के ऊर्बलोकमा अरूपी द्रव्य छ प्रकारे छे, कारण के त्यां अद्धा समय नथी.
लोए ण भंते ! किं जीवा जहा बितियसए अस्थिउद्देसए लोयागासे, नवरं अरूवी सत्तवि जाव अहम्मत्थि
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कायस्स पएसा नो आगासस्थिकाये आगासस्थिकायस्म देसे आगासस्थिकायस्सपएसा अद्धासमए सेसं तं वास्या- घेव ॥ अलोए णं भंते ! किं जीवा०१ एवं जहा अस्थिकायउसए अलोयागासे तहेव निरवसेसं जाव अणंतभा
गणे॥ अहेलोगखेत्तलोगस्स ण भंते ! पगंमि आगासपएसे किं जीया जीवदेसा जीवप्पएसा अजीबा अजीवदेसा उदेशः१. ॥९६३॥
अजीवपएसा!, गोयमा ! नो जीचा जीवदेसावि जीवपएसावि अजीवावि अजीवदेसाचि अजीवपएसावि, जे जीव- G९६॥ देसा से निपमा एगिदियदेसा १ अहवा एगिदियदेसा य बेइं दियस्स देसे २ अहवा पगिदियदेसा य इंदियाण य देसा ३ एवं मज्मिल्लविरहिओ जाव अणिंदिपसु जाव अहवा एगिदियदेसा य अणिदियाण य देसा य, जे जीवपएसा ते नियमा एगिदियपएसा १ अहवा एगिदियपएसा य दियस्स पएसा २ अहवा एगिदियपएसा य बेई दियाण य पएसा ३ एवं आइल्लविरहिओ जाव पंचिंदिएसु, अणिदिएस तियभंगो.जे अरूबी अजीवा ते दुविहा| पन्नत्ता,संजहा-रूपी अजीवा य अरूषी अजीवा य, रूबी तहेव, जे अरूवी अजीवा ते पंचविहा पण्णत्ता, तंजहा-नो धम्मत्यिकाए धम्मत्थिकायस्स देसे १ धम्मस्थिकायस्म पएसे २ एवं अहम्मस्थिकायस्मवि ४ अद्धासमए ५।
[H०] हे भगवन् ! लोक शुं जीव के इत्यादि ! [उ०] बीजा शतकना अस्तिउद्देशकमां लोकाकाशने विपे काछे ते प्रमाणे अहिं जाणवं. परन्तु विशेष ए छे के अहिं अरूपी सात प्रकारे जाणवा, यावद् ४ 'अधर्मास्तिकायना प्रदेशो, ५ नोआकाशास्तिकाय
रूप, आकाशास्तिकायनो देश, ६ आकाशास्तिकायना प्रदेशो अने ७ अद्धासमय. बाकी पूर्वे करा प्रमणे जाणवू. [प्र०] हे भगवन् ! * अलोक शुं जीव छे इत्यादि ! [उ.] जेम अस्तिकायउद्देशकमां अलोकाकाशने विषे कयुं छे ते प्रमाणे वधुं अहीं जाणवे, यावत् ते
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व्याख्याप्रज्ञप्तिः ९६४ा
PREMIKARORASit
| (सर्वाकाशना) 'अनन्तमा भाग न्यून छे'. [प्र०] हे भगवन ! अधोलोकक्षेत्रलोकना एक आकाशप्रदेशमां शुं १ जीवो २ जीवना देशो ३ अजीवो, ४ अजीबोना देशी अने ५ अजीवना प्रदेशोछे । [उ०] हे गौतम ! जीवो नथी, पण जीवोना देशो, जीवोना प्रदशो, अजीवो, अजीवना देशो अने अजीवना प्रदेशो छे. तेमां त्यां जे जीवोना दशो छे ते अवश्य १ एकेन्द्रियजीवोना देशो छे २ अथवा
P११शतके
उद्देशन एकेन्द्रिय जीवोना देशो अने बेइन्द्रिय जीवनो देश छे, ३ अथवा एकेन्द्रिय जीवोना देशो अने बेइन्द्रियोना देशो छे. ए प्रमाणे
॥९६४॥ मध्यम भंगरहित बाकीना विकल्पो यावद् अनिन्द्रियो-सिद्धो संबन्धे जाणवा. यावद् 'एकेन्द्रियोना देशो अने अनिन्द्रियोना देशो'
छे, तथा त्यां जे जीवना प्रदशो छे ते अवश्य एकेन्द्रिय जीवोना प्रदेशो छे, १ अथरा एकेन्द्रिय जीवोना प्रदेशो अने एक बेइन्द्रिय है जीवना प्रदेशो छे, २ अथवा एकेन्द्रिय जीवोना प्रदशो अने चेइन्द्रियोना प्रदेशो छे. ए प्रमाणे यावत् पंचेन्द्रिय अने अनिन्द्रिय अने |
अनिन्द्रियो संबन्धे प्रथम भंग शिवाय त्रण मांगा जाणवा. तथा त्यां जे अजीबो छे ते वे प्रकारना कह्या छे. ते आ प्रमाणे-रूपिअ. जीव अने अरूपिअजीव. तेषां रूपिअजीवो पूर्व प्रमाणे जाणवा. अने जे अरूपिअजीबो छे ते पांच प्रकारना कह्या के. ते आ प्रमाणे-१
नोधर्मास्तिकाय धर्मास्तिकायनो देश, २ धर्मास्तिकायनो प्रदेश, ए प्रमाणे ४ अधर्मास्तिकाय संबन्धे पण जाणवू, अने ५ अद्धा समय. Pा तिरियलोगखेत्तलोगस्स णं भंते ! एगंमि आगासपएसे किं जीवा०, एवं जहा अहोलोगखेत्तलोगस्स तहेव, एवं उडलोगखत्तस्सवि, नवरं अद्धासमओ नस्थि, अरूवी चउब्विहा । लोगस्स जहा अहेलोगखत्तलोगस्स पगंमि आगासपएसे ॥ अलोगस्म ण भंते! एगमि आगासपएसे पुच्छा, गोयमा! नो जीवा नो जीवदेसा तं चेव जाव अणंतेहिं अगुरुयलहुयगुणेहिं संजुत्ते मब्बागासस्स अणंतभागूणे ।। दब्बओणं अहेलोगखेत्तलोए अणताई जीव
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दबाई अताई अजीवदयाई अणेता जीवाजीवदव्वा एवं तिरियलोयवेत्तलोएवि, एवं उड्डलोयखेत्तलोएवि, व्याख्या-दचओ णं अलोग णेवत्यि जीवदन्या नेवत्थि अजीवदव्वा नेवस्थि जीवाजीवदव्वा एगे अजीबदबदेसे जावत प्रज्ञप्तिः सव्वागासअणतभागूणे । कालओण अहेलोयखेत्तलोए न कयाइ नासि जाव निच्चे एवं जाव अहोलोगे। भावओ
उद्देशार. ॥९१५॥ ण अहेलोगखत्तलोए अणता वन्नरजवा जहा खदए जाव अणंता अगुरुयलहुयपजवा एवं जाव लोए, भावओ णं ॥९६५॥
अलोए नेवत्थि बन्नपजवा जाव नेवस्थि अगुरुलहुयपजवा एगे अजीवदञ्चदेसे जाव अर्णतभागणे (सूत्र ४२०)।
[प्र.] हे भगवन् ! तिर्यग्लोकक्षेत्रलोकना एक आकाश प्रदेशमां शुंजीयो छे ? इत्यादि [३०] जेम अघोलोकक्षत्रलोकना संबन्धे दाका तेम अहीं बधुं जाणवू. ए प्रमाणे ऊर्वलोकक्षेत्रलोकना एक आकाश प्रदेशने विषे पण जाणवू, परन्तु विशेष ए छे के, त्यां
अद्धासमय नथी, माटे अरूपी चार प्रकारना छ, लोकना एक आकश प्रदेशमा अधोलोकक्षेत्रलोकना एक आकाश प्रदेशमा जेम कडं छे तेम जाणवू. [प्र.] हे भगवन् ! अलोकना एक आकाश प्रदेश संबन्धे प्रश्न. [उ.] हे गौतम ! त्यां 'जीयो नथी, जीव देशो नथी'-इत्यादि पूर्वनी पेठे (सू. १४) कहेQ, यावत् अलोक अनन्त अगुरुलघुगुणोथी संयुक्त छे अने सर्वाकाशना अनंतमा भागे न्यून के. [प्र०] हे भगवन् ! द्रव्यथी अधोलोकक्षेत्रलोकमां अनन्त जीव द्रव्यो छे, अनंत अजीव द्रव्यो छे अने अनंत जीवाजीव द्रव्यो छे. ए प्रमाणे तिर्यग्लोकक्षेत्रलोकमां तथा ऊर्चलोकक्षेत्रलोकमां पण जाणवू. द्रव्यथी अलोकमां जीव द्रव्यो नथी, अजीव द्रव्यो नथी अने जीवाजीबद्रव्यो नथी, पण एक अजीवद्रव्यनो देश छ, यावत् सर्वाकाशना अनंतमा भागे न्यून छे. कालथी अधोलोकक्षेत्रलोक कोई दिवस न हतो एम नथी, यावत् नित्य छे. ए प्रमणे यावत् अलोक जाणवो. भावथी अधोलोकक्षेत्रलोकमां 'अनंत वर्ण पर्यवो
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व्याख्या प्रज्ञप्तिः 11९६६॥
4-42-4
में-इत्यादि जेम स्कंदकना अधिकारमा कमुछे तेम जाणवं, यावद् अनंत अगुरुलघुपर्यवो छे. ए प्रमाणे यावत् लोक सुधी जाणवू. भावथी अलोकमां वर्णपर्यवो नथी, यावत् अगुरुलघुपर्यवो नथी, पण एक अजीवद्रव्यनो देश छे अने ते सर्वाकाशना अनंतमा
११वतके भागे न्यून छे. ॥ ४२० ॥
देश. लोए णं भंते! केमहालए पन्न?, गोयमा! अपन्नं जवुद्दीवे २ सव्वदीवा जाव परिक्खेवण, तेणे कालेणं N९६६॥ तेणं समगणं छ देवा महिड्डीया जाव महेसक्खा जवुद्दीवे २ मंदरे पञ्चए मंदरचूलिय सचओ समंता संपरिक्खित्ताणं चिढेजा, अहे णं चत्तारि दिसाकुमारीओ महत्तरियाओ चत्तारि पलिपिंडे गहाय जंबुद्दीवस्स २ चउसुवि
दिसासु बहियाभिमुहीओ ठिच्चा ते चत्तारि वलिपिंडे जमगसमग बहिगाभिमुहे पक्खिवेजा पभू ण गोयमा ! 31 ताओ पगमेगे देवे ते चत्तारि यलिपिंडे धरणितलमसंपत्त बिप्पामेव पडिसाहरित्तए, ते णं गोयमा! देवा ताप
उविद्याप जाव देवगईएएगे देवे पुरच्छाभिमुहे पयाते एवं दाहिणाभिमुहे एवं पञ्चत्वाभिमुहे एवं उत्तराभिमुहे एवं उड्डाभि० एगे अहोभिमुहे पयाग, तेणं कालेण तेणं ममरण वाससहस्साउए दारण पयाए, तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो पहीणा भवंति, णो चेव ते देवा लोगत संपाउणंति, तए णं तस्स दारगस्म आउण पहीणे भवति, णो चेव णं जाव संपाउणंति, तए णं तस्म दारगस्स अद्विमिंजा पहीणा भवंति णो चेव णं ते देवा लोगत मंपाउणति, ताणं तस्स दारगस्स आसत्तमेवि कुलबसे पहीणे भवति णो चेव ण ते देवा लोगतं संपाउणंति, तए ण तस्स दारगस्म नामगोएवि पहीणे भवति जो चेवण ते देवा लोगन संपाउणति, तेसि ण
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व्याख्या-1 प्रज्ञप्तिः । १९६७॥
www.kobatirth.org भंते ! देवाणं किं गए यहुए अगए बहुए, गोयमा! गए बहुए, नो अगए बहुए, गयाउ से अगए असंखेजइमागे अगयाउ से गए असंखेजगुणे, लोए ण गोयमा! एमहालए पन्नत्ते ।
| ११शतके [उ०] हे भगवन् ! लोक केटलो मोटो कह्यो छे ? [उ०] हे गौतम ! आ जंबूद्वीप नामे द्वीप सर्व द्वीपो अने समुद्रोनी अभ्यं- उद्देशान तर छे, यावत् परिधि युक्त छे. ते काले-ते समये महाधिक अने यावत् महासुखवाळा छ देवो जंबुद्वीपमा मेरुपर्वतने विषे मेरुपर्वतनी
॥९६७॥ चूलिकाने चारे तरफ वींटाइने उभा रहे, अने नीचे मोटी चार दिक्कुमारीओ चार बलिडिने ग्रहण करीने जंबूद्वीपनी चारे दिशामा वहार मुख राखीने उभी रहे, पछी तेओ ते चारे बलिपिंडने एक साथे बाहेर फेंके, तोपण हे गौतम ! तेमांनो एक एक देव ते चार बलिपिडने पृथिवी उपर पडया पहेला शीघ्र ग्रहण करवा समर्थ छे. हे गौतम ! एवी गतिवाला ते देवोमांथी एक देव उत्कृष्ट यावद् । त्वरित देवगतिवढे पूर्व दिशा तरफ गयो, ए प्रमाणे एक दक्षिण दिशा तरफ गयो, ए प्रमाणे एक पश्चिम दिशामां, एक उत्तर दिशामां, एक ऊर्ध्व दिशामा अने एक देव अधोदिशामा गयो. हवे ते काले, ते समये हजार वर्षना आयुषवाळो एक बाळक उत्पन्न थयो, त्यारपछी ते बाळकना मातापिता मरण पाम्या, तोषण लेटला बखत मुधी पण ते गएला देयो लोकना अंतने प्राप्त करी शकता नथी. त्यारबाद ते बाळकनुं आयुष क्षीण थयु-पूरुं थयु, तोपण ते देवो लोकान्तने प्राप्त करी शकता नथी. पछी ते बाळकना अस्थि अने मजा नाश पाम्या, तोपण ते देवो लोकना अंतने पामी शकता नथी, त्यारवाद सात पेढी सुधी तेना कुलवंश नष्ट थया, तोपण ते देवो लोकांतने प्राप्त करी शकता नथी. पछी ते बाळकनुं नामगोत्र पण नष्ट थयु तोपण ते देवो लोकना अंतने पामी शकता नथी.18 [ ] जो एम छे तो हे भगवन् ! ते देवोए ओळंगेलो मार्ग घणो छ के ओळंग्या विनानो मार्ग धणो छ । [उ०] हे गौतम ! ते
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व्याख्या
प्रज्ञप्तिः
॥९६८॥
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देवो वडे ओळंगायेल-गमन करायेल-क्षेत्र वधारे छे, पण नहि ओळंगायेलुं नहि गमन करायेलुं क्षेत्र वधारे नथी. गमन करायेला क्षेत्रथी नहि गमन करायेलं क्षेत्र असंख्यातमा भागे छे. अनं नहि गमन करायेलां क्षेत्रथी गमन करायेलं क्षेत्र असंख्यात गुण छे. गौतम ! लोक केटलो मोटो को छे.
अलोए णं भंते ! केमहालए पन्नत्ते ?, गोयमा ! अयन्नं समयखेत्ते पणयालीस जोपणसयसहस्साई आयामविक्खंभेण जहा बंदए जाव परिक्खेवेणं, ते कालेश तेणं समएणं दस देवा महिड्डिया तब जाव संपरित्ताणं संचिद्वेजा, अहे णं अट्ठ दिसाकुमारीओ महत्तरियाओ अट्ठ बलिपिंडे गहाय माणुसुत्तरस्स पव्वयस्स चउसुवि दिसासु चउवि चिदिसासु बहियाभिमुहीओ विश्वा अट्ठ बलिपिंडे गहान माणुसुत्तरस्स पत्र्वयस्स जमगमगं बहियाभिमुहीओ पक्खिवेला, पभू णं गोयमा ! तओ एगमेगे देवे ते अट्ठ बलिपिंडे घरणितलमसंपत्ते विपामेव पडिसाहरित्तए, ते णं गोयमा ! देवा ताए उकिद्वाए जाव देवगईए लोगंसि ठिचा असम्भावपट्टवणाए एगे देवे पुरच्छाभिमुद्दे पाए एगे देवे दाहिणपुरच्छाभिमुद्दे पयाए एवं जाव उत्तरपुरच्छाभिमुहे एगे देवे उड्डाभिमु एगे देवे अहोभिमुद्दे पघाए, तेणं कालेणं तेणं समएणं वाससयसहस्साउए दारण पयाए, तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो पहीणा भवंति नो वेव णं ते देवा अलोयंत संपाउणंति, तं चेव, तेसि णं देवाणं किं गए बहुए अगए बहुए ?, गोयमा ! नो गए बहुए, अगए बहुए, गधाउ से अगए अनंतगुणे अगपाउ से गए अनंतभागे, अलोए णं गोषमा ! एमहालए पन्नत्ते || (सूत्रं ४२१) ।।
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११ अके
उद्देशः १० ॥९६८॥
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११शतके
व्याख्याप्रशतिः ॥९६९॥
उद्देशा. ॥९६९॥
WERSHI
प्र०] हे भगवन् ! अलोक केटलो मोटो कह्यो ? [उ.] हे गौतम ! 'आ मनुष्यक्षेत्र लंबाइ अने पहोळाहमां पीताळीश लाख योजन छ'-इत्यादि जेम स्कंदकना अधिकारमा का छे तेम जाणवू, यावत् ते परिधियुक्त छे. ते काले ते-समये दस महर्षिक देवो पूर्वनी पेठे ते मनुष्य लोकनी चारे बाजु वींटाइने उभा रहे. तेनी नीचे मोटी आठ दिकुमारीओ आठ बलिपिंडने लेहने मानुषोत्तर पर्वतनी चारे दिशामा अने चारे विदिशामां बाह्याभिमुख उभी रहे अने ते आठ बलि पिंडने लड़ने एकज साथे मानुपोत्तर पर्वतनी बाहेरनी दिशामां फेंके, तो हे गौतम ! तेमांनो कोई पण एक देव ते आठ बलिपिंडोने पृथिवी उपर पड्या पहेला शीघ्र संहरवा समर्थ छे. हे गौतम! ते देवो उत्कृष्ट, यावद् त्वरितदेवगतिथी लोकना अंतमा उभा रही असत् कल्पना बड़े एक देव पूर्व दिशा तरफ जाय, एक देव दक्षिणपूर्व तरफ जाय, अने ए प्रमाणे यावत् एक देव पूर्व तरफ जाय, वळी एक देव ऊर्व दिशा तरफ जाय, अने एक देव अधोदिशा तरफ जाय; ते काले-ते समये लाख वर्षना आयुषवाळा एक बालकनो जन्म थाय, पछी तेना मातापिता मरण पामे तोपण ते देवो अलोकना अन्तने प्राप्त करी शकता नथी-इत्यादि पूर्वे कहेलु. अहीं कहे. यावत [प्र.) हे भगवन् ! ते देवोनुं गमन करायेलु क्षेत्र बहु के के नहि गमन करायेलु क्षत्र बहु छ ? [३०] हे गौतम ! तेओर्नु गमन करायेलु क्षेत्र बहु नथी, पण नहि गमन करायेलु क्षेत्र बहु के. गमन करायेला क्षेत्र करतां नहि गमन करायेलु क्षेत्र अनन्तगुण छे, अने नहि गमन करायेला
क्षेत्र करतां गमन करायेलु क्षेत्र अनंतमे भागे छे. हे गौतम! अलोक एटलो मोटो को छे. ॥ ४२१ ॥ XT भंते णं लोगस्स ! पगंमि आगासपएसे जे पगिदियपएसा जाब पचिंदियपएसा अणिदियपएसा
अन्नमन्त्रबद्धा अन्नमनपुट्ठा जाव अन्नमन्नसमभरघडताए चिट्ठति, णस्थि णं भंते : अन्नमनस्स किंचि आवाहं वा
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व्याख्या प्रजाप्तिः ॥९७०॥
वाचाहं वा उप्पायति छविच्छेदं वा करेंति !, णो तिणढे सहढे, से केणट्टेणं भंते! एवं बुधइ लोगस्स णं एगमि आगासपएसे जे एगिदियपएसा जाब चिट्ठति णस्थि णं भंते! अत्रमन्नस्स किंचि आवाहं वा जाव करेंति ?, गोयमा! से जहानामए नहिया सिया सिंगारागारचारुवेमा जाव कलिया रंगट्टाणंसि जणसयाउलंसि जणसयस
११वतके हस्साउलंसि बत्तीसाविहस्स नहस्स अन्नयरं नविहिं उबदसेज्जा, से नूर्ण गोयमा! ते पेच्छगा तं नहियं अणि
उद्देशन
॥९७०॥ मिसाए दिट्ठीए सचओ समंतासमभिलोएंति, हंता समभिलोएंति, ताओ णं गोयमा! विट्ठीओ तंसि नहियसि सव्वओ समंता संनिवडियाओ?, हंता संनिवडियाओ, अत्थिणंगोयमा! ताओ दिद्वीओ तीसे नहियाए किंचिवि आवाहं वा वायाहं वा उप्पाएति छविच्छेदं घा करेंति ?, णो तिणढे समढे, अहवामा नहिया तासिं विट्ठीणं किंचि आवाहं वा वाचाहं वा उप्पाएंति छविच्छेदं वा करेइ , णो तिणद्वे समढे, ताओ वा दिट्ठीओ अन्नमनाए दिट्ठीए किंचि आवाहं वा वाबाहं वा उप्पाएंति छविच्छेदं वा करेन्ति ?, णो तिणवे समढे, से तेणडेणं गोयमान एवं वुचहतं चेव जाव छविच्छेदं वा करेंति ॥ (सूत्रं ४२२) ॥
[0] हे भगवन् ! लोकना एक आकाशप्रदेशमा जे एकेन्द्रिय जीवोना प्रदेशो छे, यावत् पंचेन्द्रियना प्रदेश अने अनिन्द्रि | यना प्रदेशो छे ते शु वधा परस्पर बद्ध छ, अन्योन्य स्पृष्ट छे, यावद् अन्योन्य संबद्ध छ ? वळी हे भगवन् ! ते बधा परस्पर एक वीजाने काइ पण आवाधा (पीडा) व्याबाधा (विशेष पीडा) उत्पन्न करे, तथा अवयवनो छेद करे। [उ०] हे गौतम ए अर्थ यथार्थ नयी. [प्र०] हे भगवन् ! ए प्रमाणे आप शा हेतुथी कहो छो के लोकना एक आकाशप्रदेशमा जे एकेन्द्रियना प्रदेशो यावद रहे छ,
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पाल्या-
११शसके उद्देशा ॥१७॥
॥९७१॥
अने ते परस्पर एक बीजाने काइ पण आपाधा वा व्यावाघा करता नयी [उ.] हे गौतम ! जेम शृंगारना आकार सहित सुन्दर वेक्वाळी अने संगीतादिने विषे निपुणताचाळी कोई एक नर्तकी होय अने ते सेंकडो अथवा लाखो माणसोथी भरेला रंगस्थानमा वत्रीश प्रकारना नाव्यमांनु कोइ एक प्रकारचें नाव्य देखाडे तो हे गौतम ! ते प्रेक्षको शुं ते नर्तकीने अनिमेष दृष्टिथी चोतरफ जुए हा, भगवन् ! जुए. तो हे गौतम! ते प्रेक्षकोनी दृष्टिओ शुं ते नर्तकीने विषे चार बाजुथी पडेली होय छे ? हा, पडेली होय के. हे गौतम | प्रेक्षकोनी ते दृष्टिओ ते नर्तकीने काइ पण आवाधा वा व्यावाधा उत्पन्न करे, अथवा तेना अवयवनो छेद करे ? हे भगवन् ! ए अर्थ योग्य नथी. अथवा ते नर्तकी ते प्रेक्षकोनी दृष्टिओने कंद पण आपाधा के व्यापाधा उत्पन्न करे अथवा तेना अवयवनो छेद करे? ए अर्थ यथार्थ नथी. अथवा ते दृष्टिभो परस्पर एक बीजी दृष्टिओने काइपण आबाधा के व्याबाधा उत्पन्न | करे, अथवा तेना अवयवनो छेद करे? ए अर्थ यथार्थ नथी. अर्थात् न करे, ते हेतुथी एम कडेवाय छे के पूर्वोक्त यावन अवयवनो छेद करता नथी.' ।। ४२२ ।। | लोगस्स णं भंते ! एगमि आगासपएसे जहन्नपए जीवपएसाणं उकोसपए जीवपएसाणं सव्वजीवाण य कयरे २ जाब विसेसाहिया वा ?, गोयमा सव्वत्थोचा लोगस्स एगंमि आगासपएसे जहन्नपए जीवपएसा, सब्वजीवा असंखेनगुणा, उक्कोसपए जीवपएसा विसेमाहिया, सेवं भंते ! सेवं भंतेत्ति ।। (सूत्रं ४२३) ॥ एकारससयस्स दसमोउद्देसो समत्तो ॥११-१०॥
[प्र.] हे नगवन् ! लोकना एक आकाशप्रदेशमां जगन्यपदे रहेला जीवप्रदेशो, उत्कृष्टपदे रहेला जीवप्रदेशो अने सर्व जीवोमां
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व्याख्या
कोण कोना करता यावत् विशेषाधिक छ ? [उ०] हे गौतम ! लोकना एक आकाशप्रदेशमा जघन्य पदे रहेला जीवप्रदेशो सौथी | थोडा छे, तेना करतां सर्व जीव असंख्यात गुण छ, अने ते करतां पण उत्कृष्ट पदे रहेला जीवप्रदेशो विशेषाधिक छे. हे भगवन् ! ते एमज छे. हे भगवन् ! ते एमज छ, एम कही (भगवान् गौतम) यावद् विहरे ३.।। ४२३ ॥
भगवत् सुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीसूत्रना ११ मा शतकमां दसमा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो.
।
११शतके हा उद्देशः११
॥९७२॥
प्रज्ञप्तिः का
॥९७२।।
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उद्देशक ११. तेणं कालेणं तेण समएणं वाणियगामे नाम नगरे होत्था धन्नओ, दूतिपलासे चेहए वन्नओ, जाब पुढविसिलापट्टओ, तत्थ ण वाणियगामे नगरे सुदंसणे नाम सेट्ठी परिवसह अडजाव. अपरिभूए समणोवासए अभिगयजी. वाजीवे जाव विहरइ, सामी समोसढे जाव परिसा पज्जुबासइ, तरण से सुदंसणे सेट्ठी इमीसे कहाए लढे समाणे हतुढे पहाए कय जाव पायच्छित्ते सव्वालंकारविभूसिए साओ गिहाओ पडिनिक्खमह साओ गिहाओ पडिनिक्वमित्ता सकोरेंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिजमाणेण पायविहारचारेणं महया पुरिसवग्गुरापरिक्खिते वाणियगाम नगरं मझमझेण निग्गच्छह निग्गच्छित्ता जेणेव तिपलासे चेइए जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छा। तेणेच उवागच्छित्तासमण भगवं महावीर पंचविहेणं अभिगमेणं अभिगच्छति, तं०-सञ्चित्ताणं दब्वाणं जहा उस भदत्तोजाव तिविहाए पज्जुवासणाए पज्जुबासह तएणं समणे भग, महावीरे सुदंसणस्स सेहिस्स तीसे यमहतिम
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दामहालयाए जाव आराहए भवइ । तए णं से सुदंसणे सेट्ठी समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्म व्याख्यासोचा जिसम्म हद्वतुष्ट उठाए उद्वेइ २त्ता समणं भगवे महावीरं तिक्खुत्तो जाव नमंसित्ता एवं वयासी कहाविहे
११तके प्रशक्षिा णं भंते ! काले पन्नत्ती, सुदसणा! चउबिहे काले पन्नत्ते, तंजहा-पमाणकाले१ अहाउनिव्वत्तिकाले२ मरणकाले उरेशान ॥९७३॥ ३ अद्धाकाले ४, से किं तं पमाणकाले?, २ दुविहे पन्नत्ते, जहा-दिवसप्पमाणकाले १ राइप्पमाणकाले य २,
॥९७३॥ चउपोरिसिए दिवसे चउपोरिसिया राई भवई उक्कोसिया अद्धपंचममुहुत्ता दिवसस्स वा राईए वा पोरिसी भवइ, जहनिया तिमुहत्ता दिवसस्स वा राईए वा पोरिसी भवइ, । सू०४२४)।
ते काले, ते समये वाणिज्यग्राम नामे नगर हतुं. वर्णन. तिपलाशक चैत्य हतुं, वर्णन. यावत् पृथिवीशिलापट्ट हतो. ते वाणिज्यग्राम नगरमां सुदर्शन नामे शेठ रहेतो हतो ते आढथ-धनिक, यावत् अपरिभूत-कोइथी पराभव न पामे तेवो, जीवा-जीवर तस्खनो जागनार श्रमणोपासक हतो. त्यां महावीरस्वामी समवसर्या. यावत् पर्षद्-जनसमुदाये पर्युपासना करे छे. त्यार राद महावीर खामी आन्यानी आवात सांभळी मुदर्शनशेठ हर्षित अने संतुष्ट थया, अने स्नान करी, बलिकम यावत् मंगलरूप प्रायश्चित्त करी, सर्व अलंकारथी विभूषित थइ, पोताना घेरथी बहारनीक छ, बहार नीकळीने माथे धारण कराता कोरंटकपुष्पनी माळावाला छत्र सहित |पगे चालीने घणा मनुष्योना समुदायरूप वागुरा-पन्धनथी विंटायेला ते. सुदर्शन शेठ वाणिज्यग्राम नगरनी वच्चोवच थईने नीकळे ।
. नीकळीने ज्यां दतिपलाश चैत्य छे, अने ज्यां श्रमण भगवंत महावीर के त्यां आवे छे, आधीने श्रमण भगवंत महावीरनी पासे पांच प्रकारना अभिगमनडे जाय , ते अभिगमो आ प्रमाणे छे-१ 'सचित्त द्रव्योनो त्याग करवो'-इत्यादि जेम ऋषभदचना प्रक
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११वतके उद्देशा ॥९७४॥
रणमां का तेम अहीं जाणवू, यावत् ते सुदर्शन शेठ त्रण प्रकारनी पर्युपासता बडे पयुपासे छे. त्यार पछी श्रमण भगवंत महामाख्या-8 वीरे ते सुदर्शन शेठने अने ते मोटामा मोटी सभाने धर्मकथा कही, यावत् ते सुदर्शन शेठ आराधक थाय छे. त्यार पछी सुदर्शन प्रज्ञप्तिः
शेठ श्रमण भगवंत महावीर पासेथी धर्म सांभळी अने अवधारी हर्षित अने संतुष्ट थइ उमा थाय छे, उभा थइने श्रमण भगवंत महा॥९७४॥
वीरने त्रण वार प्रदक्षिणा करी, यावद् नमस्कार करी तेणे आ प्रमाणे पूछ्यु-[प्र०] हे भगवन् ! काल केटला प्रकारनो कह्यो छे ? [उ०] हे सुदर्शन ! काल चार प्रकारनो कह्यो छेते आ प्रमाणे-१ प्रमाणकाल २ यथायुनिवृत्तिकाल, ३ मरणकाल, अने ४ अद्धाकाल. [प्र०] हे भगवन् ! प्रमाणकाल केटला प्रकारे छे ? [उ०] प्रमाणकाल वे प्रकारनो को छे ते आ प्रमाणे-दिवसप्रमाणकाल
अने रात्रीप्रमाणकाल, अर्थात चार पौरुषीना-प्रहरन दिवस थाय छे, अने चार पौरुपीनी रात्री थाय छे. अने उत्कृष्ट-मोटामा Bामोटी साडा चार मुहूर्तनी पौरुपी दिवसनी, अने रात्रीनी थाय छे. तथा जघन्य-न्हानामां न्हानी पौरुषी दिवस अने रात्रिनी त्रण महूर्तनी थाय छे. ॥ ४२४ ॥
जदा णं भंते ! उक्कोमिया अपंचममुहुत्ता दिवसस्स वा राईए वा पोरिसी भवति तदा ण कति भागमुहुत्तभागेणं परिहायमाणी परि २ जहन्निया तिमुहुत्ता दिवमस्स वा राईए वा पोरिसी भवति ?, जदा णं जहन्निया तिमुहुत्ता दिवमस्स वा राईए वा पोरिसी भवति तदा णं कतिभागमुहुत्तभागेणं परिवडमाणी २ उक्कोसिया अद्धपंचममुहुत्ता दिवसस्स वा राईग वा पोरिसी भवह, सुदंसणा! जदाणे उक्कोसिया अद्धपंचममुहत्ता | दिवसस्स वा राईण वा पोरिसी भवइ तदा ण यावीससयभागमुहुत्तभागेण परिहायमाणी परि०२ जहनिया तिम.
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दाहुत्ता दिवसस्स वा राईए वा पोरिसी भवइ, जदाणे जहनिया तिमुहुत्ता दिवसस्स वा राईए वा पोरिसी भवई 180
तयाणंबावीससयभागमुहुत्तमागेण परिवडमाणी परि०२उक्कोसिया अपंचममुहुत्ता दिवसस्स वाराईए वा पोरिसी माया प्रशतिः
भवति । कदाणं भंते! उक्कोसिआ अद्धपंचममुहुत्ता दिवसस्स वा राईए वा पोरिसीभवइ ? कदा वा जहनिया उद्देशान ॥९७५॥ तिमुहुत्ता दिवसस्स वा राईए वा पोरिसी भवइ, सुदंसणा ! जदा णं उक्कोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ जह- ॥९७५॥
निया दुवालसमुहुत्ता राई भवह तदाणं उक्कोसिया अपंचममुहुत्ता दिवसस्स पोरिसी भवइ जहनिया तिमुहुत्ता 3 राइए पोरिसी भवह, जया ण उक्कोसिया अट्ठारसमुहुत्तिआ राई भवति जहन्निए दुवालममुहुत्ते दिवसे भवह | तदा उक्कोसिया अपंचमुहुत्ता राईए पोरिसी भवइ जहनिया तिमुहुत्ता दिवसस्स पोरिसी भवइ ।
प्र०] हे भगवन् ! ज्यारे दिवसे के रात्रीए साडा चार मुहूर्तनी उत्कृष्ट पौरुषी होय हे त्यारे ते मुहूर्तना केटला भाग घटती घटती दिवसे अने रात्रीए त्रण मुहर्तनी जघन्य पौरुषी थाय ? अने ज्यारे दिवसे के रात्रीए त्रण मुहूर्तनी न्हानामा हानी पौरुषी होय छे त्यारे ते मुहूर्तना केटला भाग वधती बधती दिवस अने रात्रीनी साडाचार मुहूर्तनी उत्कृष्ट पौरुषी थाय ? [उ०] हे सुदर्शन ! ज्यारे दिवसे अने रात्रीए साडाचार मुहूर्तनी उत्कृष्ट पौरुषी होय छे त्यारे ते मुहूर्तना एकसो बावीशमा भाग जेटली घटती घटती दिवस अने रात्रीनी जघन्य त्रण मुहूर्तनी पोरुषी थाय छे, अने ज्यारे दिवसे अने रात्रीए त्रण मुहर्तनी जघन्य पौरुषी होय छे त्यारे
मुहर्तना एकसो बावीशमा भाग जेटली बघती वधती दिवसे अने रात्रीए साडाचारमुहूर्तनी उत्कृष्ट पौरुषी थाय छे. [प्र०] हे भग- है वन् ! क्यारे दिवसे अने रात्रीए साडाचार मुहूर्तनी उत्कृष्ट पौरुषी होय, अने क्यारे दिवसे अने रात्रीए त्रण मुहूर्तनी जघन्य पौरुषी
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होय ? [उ०] हे सुदर्शन ! ज्यारे अढारमुहूर्तनो मोटो दिवस होय अने बार मुहूर्तनी न्हानी रात्री होय त्यारे साडाचार मुहूर्तनी व्याख्या- दिवसनी उत्कृष्ट पौरुषी होय छे, अने रात्रीनी त्रण मुहूर्तनी जघन्य पौरुषी होय छे. तथा ज्यारे अढारमुहूर्तनी मोटी रात्री होय अने ११तके प्रज्ञप्तिः
तिवार मुहूर्तनो न्हानो दिवस होय त्यारे साडा चार मुहूर्तनी रात्रिनो उत्कृष्ट पौरुषी होय छे, अने त्रण मुहूर्तनी दिवसनी जघन्य उद्देश:११ ९७६॥ पौरुषी होय छे.
॥९७६॥ कदा णं भंते ! उक्कोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ जहनिया दुवालसमुहुत्ता राई भवही कदा वा उक्कोसिया ४ अट्ठारसमुहुत्ता राई भवति जहन्नए दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवइ!, सुदंसणा : आसाद पुनिमाए उक्कोसए अट्ठारसमु
हुत्ते दिवसे भवइ जहनिया दुवालसमुहुत्ता राई भवइ, पोसस्स पुन्निमाए णं उक्कोसिया अट्ठारसमुहुत्ता राई भवह जहन्नए दुवालसमुहुत्ते दिवसे भव ॥ अस्थि णं भंते ! दिवसा य राईओ य समा चेव भवन्ति !, हता! भत्थि, कदा णं भंते ! दिवसा य राईओय समा चेव भवन्ति, सुदंसणा! चित्तासोयपुन्निमासु णं, एत्थ णं दिवसा य राईओ य समा चेव भवन्ति, पन्नरसमुहुत्ते दिवसे पन्नरसमुहुत्ता राई भवइ चउभागमुहुत्तभागूणा चउमुहुत्ता दिवसस्स वा राईए वा पोरिसी भवह, सेतं पमाणकाले ॥ (सूत्र ४२५)।
[प्र०] हे भगवन् ! अढार मुहूर्तनो मोटो दिवस, अने बार मुहूर्तनी न्हानी रात्री क्यारे होय ? तथा अढार मुहूर्तनी मोटी रात्री 14 IM अने चार मुहूर्तनो न्हानो दिवस क्यारे होय ? [३०] हे सुदर्शन ! आषाढपूर्णिमाने विषे अढार मुहूर्तनो मोटो दिवस होय छ, अने बार मुहूर्तनी न्हानी रात्री होय छे. तथा पोषमासनी पूर्णिमाने समये अढार मुहूर्तनी मोटी रात्री अने चार मुहूर्तनो न्दानो दिवस होय छे.
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सो भवइ, सेत्तं पमाणकासमुहुत्ता राई भवनिमासु णं, एस्थ
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पाख्या
११शतके उदेश्व:११ ॥९७७॥
॥९७७॥
CREASERECASHARE
[40] हे भगवान् ! दिवस अने रात्री ए बन्ने सरखां होय ! [उ.] हा, होय. [प्र०] क्यारे (दिवस अने रात्री) सरखां होय ? PIG०] हे सुदर्शन ! ज्यारे चैत्री पूनम अने आसो मासनी पूनम होय त्यारे दिवस अने रात्री ए बन्ने सरखा होय छे. त्यारे पंदर
मुहूर्तनी रात्री होय छे. अने रात्रीनी मुहूर्तना चोथा मागे न्यून चार मुहूर्तनी पौरुपीहोय छे. ए प्रमाणे प्रमाणकाल करो. ॥४२५। हा से किं तं अहाउनिब्वत्तिकाले ?, अहा०२ जन्नं जेणं नेरइयण वा तिरिकग्वजोणिएण वा मणुस्सेण वा देवेण
वा अहाउयं निव्वत्तियं सेत्तं पालेमाणे अहाउनिव्वत्तिकाले। से किंतं मरणकाले १, २ जीवो वा मरीराओ सरीरं सवा जीवाओ, सेत्तं मरणकाले॥ से किं तं अद्धाकाले!, अद्धा० २ अणेगविहे पन्नत्त, से णं समयट्टयाए आवलि| यहृयाए जाव उस्सप्पिणीट्टयाए । एस णं सुदंसणा' अद्धा दोहारच्छेदेणं छिन्नमाणी जाहे विभागं नो हबमागच्छइ सेत्तं ममए, समयट्ठयाए असंखेजाणं समयाणं ममुदयसमिइसमागमेण सा एगा आवलियत्ति पवुच्चइ, संखेजाओ आवलियाओ जहा सालिउद्देमए जाच सागरोवमस्स उ एगस्स भवे परिमाणं । एएहि णं भंते ! पलि.
ओवमसागरोचमेहिं किं पयोयणं, सुदंसणा! एएहिं पलिओवमसागरोवमेहिं नेरदयतिरिक्खजोणियमणुस्सदेवाण आउयाई मविनंति ॥ (मू०४२६)॥
[प्र.] हे भगवन् ! यथायुनितिकाल केवा प्रकारेकहेलो के १ [उ. जे कोइ नैरयिक, तियंचयोनिक, मनुष्य के देवे पोते जे, आयुष्य बांध्यु के ते प्रकारे तेनुं पालन करे ते यथायुनिवत्तिकाल कहेवाय छे. [प्र०] हे भगवन् ! मरणकाल ए शुं छे। [उ.] (ज्यारे) शरीरथी जीवनो अथवा जीवथी शरीरनो वियोग थाय (त्यारे) ते मरणकाल कहेवाय छे. [प्र०] हे भगवन् ! अद्धा
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व्याख्या
१९शतके
उद्देशा११ ॥९७८॥
९७८॥
काल ए केटला प्रकारे छ ? [उ.] अद्धाकाल अनेक प्रकारको करो छै; समयरूपे, आवलिकारूपे, अने यावद् उत्सर्पिणीरूपे. हे। सुदर्शन ! कालना वे भाग करया छतां ज्यारे तेना के भाग न ज यह शके ते काल समयरूपे समय कहेवाय छे. असंख्येय समयोनो समुदाय मळवाथी एक आवलिका थाय छे. संख्यात आवलिकानो (एक उच्छ्वास) थाय छे-इत्यादि बधुं शालि उद्देशकमां कया
प्रमाणे यावत् सागरोपमना प्रमाण सुधी जाणवू. [प्र०] हे भगवन् ! ए पल्योपम अने सागरोपमरूपर्नु शुं प्रयोजन के ? [उ०] हे 81 सुदर्शन ! ए पल्मोपम अने सागरोपम घडे नैरयिक, तिर्यंचयोनिक, मनुष्य तथा देवोनां आयुषोनुं माप करवामां आवे छे. ॥४२६॥
__नेरइयाणं भंते ! केवइयं काल ठिई पन्नत्ता, एवं ठिहपदं निरवसेस भाणियब्वं जाव अजहन्नमणुक्कोसेणं तेतीसं सागरोवपाई ठिती पन्नत्ता ।। (सूत्र ४२५) ।
[प्र०] हे भगवन् ! नैरयिकोनी स्थिति (आयुष) केटला काल सुधीनी कही छे । [उ०] अहीं संपूर्ण स्थितिपद कहे, यावद् &ा(पर्याप्त सर्वार्थसिद्ध देवोनी) उत्कृष्ट नहि अने जघन्य नहि एवी तेत्रीश सागरोपमनी स्थिति कही त्यां मधी जाणवू. ॥४२॥
अस्थि भंते ! पएर्सि पलिओवमसागरोवमाण स्वपति वा अवचयेति चा?, हंता अस्थि, से केणटेणं भंते ! एवं बुचड़ अस्थि ण एएसि णं पलिओवममागरोबमाण जाच अवचयेति वा ?। एवं खलु सुदंमणा! तेणं कालेणं तेणं समएणं हथिणागपुरे नाम नगरे होत्था वन्नओ, सहसंबवणे उजाणे वन्नओ, तत्थ णं हथिणागपुरे नगरे बले नाम राया होत्था बन्नओ, तस्स णं बलस्स रन्नो पभावई नाम देवी होत्था सुकुमाल. वन्नओ जाव विहरह। ताणं सा पभावई देवी अनया कयाई तसि तारिसगसि वासघरंमि अभितरओ सचित्तकम्मे वाहि
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व्याया प्रज्ञप्तिः
॥ ९७९ ॥
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रओ दूमियघट्टम विचिचउल्लोयचिल्लियतले मणिरयणपणासिबंधारे बहुसमसुविभत्तदेसभाए पंचवनसरससुरभिमुकपुष्फपुंजोवयारकलिए कालागुरुपवर कुंदुरुक्कतुरुक्क धूव मघमघंतगंधुद्धयाभिरामे सुगंधिवरगंधिए गंधवबहिभृए तंसि तारिसगंसि सयणिज्वंसि सालिंगण वहिए उभओ बिच्चोयणे दुहओ उन्नए मज्झेणयगंभीरे गंगापुलि वालुयउद्दालसालिसए उवचियखोमिवदुगुलपट्टपडिच्छन्ने सुविरइयरयत्चाणे रत्तंसुयसंवुए सुरम्मे आइणगरूयबूरणवणीयतृलफासे सुगंधबरकुसुमचुन्नसयणोवयारकलिए अद्धरत्तकालसमयसि सुत्तजागरा ओहीरमाणी २ अयमेयारूवं ओरालं कल्लाणं सिवं धन्नं मंगलं सस्सिरीयं महासुविणं पासित्ताणं पडिबुद्धा ।
[प्र० ] हे भगवन् ! ए पाल्योपम तथा सागरोपमनो क्षय के अपचय थाय छे ? [अ०] हा, थाय छे. [प्र० ] हे भगवन् । एम शाहेतुथी कहो छो के पल्योपम अने सागरोपमनो यावत् अपचय थाय छे ? [उ०] हे सुदर्शन ! ए प्रमाणे खरेखर ते काले, ते समये हस्तिनागपुर नामे नगर हतुं, वर्णन, त्यां सहस्राम्रवन नामे उद्यान हतुं वर्णन. ते हस्तिनागपुर नगरमा बल नामे राजा हतो. वर्णन. ते बल राजाने प्रभावती नामे राणी हती. तेना हाथ पग सुकुमाल हता- इत्यादि वर्णन जाणं. घावत् ते विहरती हती. त्यार बाद अन्य कोइपण दिवसे तेवा प्रकारना, अंदर चित्रवाळा, बहारथी धोळेला, घसेला अने सुंवाळा करेला, जेनो उपरनो भाग विविध चित्रयुक्त अने नीचेनो भाग सुशोभित छे एत्रा, मणि अने रत्नना प्रकाशथी अंधकाररहित, बहु समान अने सुविभक्त भागबाळा, मुकेला पांच वर्णना सरस अने सुगंधी पुष्पपुंजना उपचार वडे युक्त, उत्तम कालागुरु, कीन्दरु अने तुरुष्क - शिलारसना धूपथी चोतरफ फैलायेला सुगंधना उद्भवथी सुंदर, सुगंधि पदार्थोथी सुवासित थयेला, सुगंधि द्रव्यनी गुटिका जेवा ते वासघरमा तकीयास
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१९ शतके
उद्देशः ११ 1180311
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भ्याख्या
ना१शतक
देशात ॥९८०॥
4॥९८०॥
हित, माथे अने पगे ओशीकावाळी, बन्ने बाजुए उंची, वचमां नमेली अने विशाल, गंगाना किनारानी रेतीनी रेताळ सरखी (अत्यंत कोमल), भरेला क्षौमिक-रेशमी दुकूलना पट्टयी आच्छादित, रजवाणथी (उडती धूळने अटकावनार वस्त्रथी) ढंकायेली, रक्तांशुक-मच्छरदानी सहीत, मुरम्य, आजिनक (एक जात चामडार्नु कोमळ वस्त्र), रू, बरु, माखण अने आकडाना रूना समान
स्पर्शवाळी, सुगंधि उत्तम पुष्पो चूर्ण, अने वीजा शयनोपचारथी युक्त एवी शय्यामां कंडक सुती अने जागती निद्रा लेती लेती प्रभा४ वती देवी अर्धरात्रीना समये आ एवा प्रकारना उदार, कल्याण, शिव, धन्य, मंगलकारक अने शोभा युक्त महाखमने जोड़ने जागी.
हाररययखीरसागरससंककिरणदगरयरययमहासेलपंडुरतरोरुरमणिजपेच्छणिज्न थिरलट्ठपउहवढपीवरसुसि. लिविसिट्ठतिक्खदाढाविडंबियमुहं परिकम्मियजचकमलकोमलमाइयसोभंतलहउह रत्तुप्पलपत्तम उपसुकुमालतालुजीहं मूसागयपवरकणगतावियआवत्तायंतवद्दतडिविमलसरिसनयणं विसालपीयरोरु पडिपुन्नविमलखधं मिउ. विसयमुहमलक्वणपसस्थविच्छिन्नकेसरसडोवसोभियं अमियसुनिम्मियसुजायअप्फोडियंलगूलं सोमं सोमाकारं लीलायतं जभायंत नहयलाओ ओषयमाणं निययययणमतिवयंतं सीहं सुविणे पासित्ताणं पडिबुद्धा। तए णं सा पभावती देवी अयमेयारूवं ओरालं जाव सस्सिरीयं महासुविणं पासित्ता णं पडिवुद्धा समाणी हट्टतुट्ट जाव हियया धाराहयकलंबपुष्फगंपिव समूससियरोमकूवा तं सुविणं ओगिण्हति ओगिण्हित्ता सयणिजाओ अन्भुट्टेड सयणिज्जाओ अन्भुटेता अतुरियमचवलमसंभताए अविलंबियाए रायहंससरिसीए गईए जेणेव बलस्स रन्नो सयणिजे तेणेव उवागच्छइ तेणेव उवागच्छित्ता बलं राग ताहिं इहाहिं कंताहिं पियाहिं मणुन्नाहिं मणामाहिं ओरा:
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दमकककसक
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A
शतके उकार ॥९८॥
लाहिं कल्लाणाहिं सिवाहिं धन्नाहिं मंगल्लाहिं मस्सिरीयाहिं मियमहुरमंजुलाहिं गिराहिं संलवमाणी संलवमाणी व्यास्या
पडिबोहेति पडिबोहेत्ता बलेणं रन्ना अन्भणुन्नाया समाणी नाणामणिरयणभत्तिचित्तसि भद्दासणंसि णिसीयति प्रवासिः
माणिसीयित्ता आसत्था बीसत्या सुहासणवरगया बलं रायं ताहिं इटाहिं कंताहिं जाव संलयमाणी२ एवं बयासी॥९८२॥
॥ मोतीना हार, रजत, क्षीरसमुद्र, चंद्रना किरण, पाणीना बिंदु अने रूपाना मोटा पर्वत जेवा घोळा, विशाळ, रमणीय अने दर्शहनीय, स्थिर अने सुंदर प्रकोष्ठवाळा, गोळ, पुष्ट, मुश्लिष्ट, विशिष्ट अने तीक्ष्ण दाढोबडे फाडेला मुखवाळा, संस्कारित उत्तम कमलना
जेवा कोमल, प्रमाणयुक्त अने अत्यन्त सुशोभित ओष्ठवाला, राता कमलना पत्रनी जेम अत्यंत कोमळ तालु अने जीमवाळा, मृषामां रहेला, अनीथी तपावेल अने आवर्त करता उत्तम सुवर्णना समान वर्णवाळी गोळ अने विजळीना जेवी निर्मळ आंखवाळा, विशाल
अने पुष्टजंघावाळा, संपूर्ण अने विपुल स्कंधवाळा, कोमल, विशद-स्पष्ट, सूक्ष्म, अने प्रशस्त, लक्षणवाळी विस्तीर्ण केसरानी छटाथी HD सुशोभित, उंचा करेला, सारीरीते नीचे नमावेला, मुन्दर अने पृथिवी उपर पछाडेल पूछडाथी युक्त, सौम्य, सौम्य आकरवाळा < लीला करता, बगासां खाता अने आकाश थकी उतरी पोताना मुखमा प्रवेश करता सिंहने स्वप्नमां जोइ ते प्रभावती देवी जागी.
त्यार बाद ते प्रभावती देवी आ आवा प्रकारना उदार यावत् शोभावाळा महाखमने जोड़ने जागी अने हर्षित तथा संतुष्ट हृदयवाळी थई, यावत् मेघनी धारथी विकसित थयेला कंदचकना पुष्पनी पेठे रोमांचित थयेली (प्रभावती देवी) ते स्वमनु स्मरण करे छ, सरण | करीने पोतना शयनथी उठी त्वराविनानी, चपलतारहित, संभ्रमविना, विलंबरहितपणे राजहंससमान गतिवडे ज्यां बलराजानु शयनगृह छे त्यां आवे छे, आवीने इष्ट, कांत, प्रिय, मनोज्ञ, मनगमती, उदार, कल्याण, शिव, धन्य, मंगल्य सौन्दर्ययुक्त, मित,
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व्याख्या-1 प्राप्तिः ॥९८२॥
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CRE
मधुर अने मंजुल-कोमल वाणीवडे बोलती २ ते बल राजाने जगाहे छे. त्यारवाद ते बल जानी अनुमविवी विचित्र मणि अने रनोनी रचना वडे विचित्र भद्रासनमां बेसे छे. मुखासनमां बेठेली स्वस्थ बने शान्त थएली ते प्रभावती देवीए इष्ट, प्रिय, यावत् 15१९शतके मधुर वाणीथी बोलतां २ आ प्रयाणे कधु
देशात
॥९८२॥ एवं खलु अहं देवाणु प्पिया! अज तसि तारिसगंसि सयणिजंसि सालिंगण तं चेव जाव नियमवयणमइवयंतं सीहं सुविणे पासित्ता णं पडिबुद्धा, तणं देवाणुप्पिया! एयस्स ओरालस्स जाव महासुविणस्स के मन्ने कल्लाणे फलवित्तिविसेसे भविस्सइ ?, तए णं से बले राया पभावईए देवीए अंतिय एयमढे सोचा निसम्म हट्टतुट्ठ जाव हयहियये धाराहयनी- वसुरभिकुसुमचंचुमालइयतणुयऊसवियरोमकूवे तं सुविणं ओगिण्हइ ओगिण्हित्ता ईहं पविसइ ईहं पविसित्ता अप्पणो साभाविएणं मइपुव्वएणं बुद्धिविन्नाणेणं तस्स सुविणस्स अत्थोग्गहणं करेइ तस्म २ ता पभावई देवि ताहिं इटाहिं कंताहिं जाव मंगल्लाहिं मियमहरसस्सिा संलबमाणे २एवं वयासीओराले णं तुमे देवी ! सुविणे दिहे कल्लाणे णं तुमे जाव सस्सिरीए ण तुमे देवी ! सुविणे दिहे आरोगतुट्टिदीहाउकल्लाणमंगल्लकारण णं तुमे देवी! सुविणे दिढे अत्यलाभो देवाणुप्पिए । भोगलाभो देवाणुप्पिए ! पुत्तलाभो देवाणुप्पिए ! रजलाभो देवाणुप्पिए! एवं स्वल्लु तुमं देवाणुप्पिएणवण्हं मासाणं बहुपडिपुनाणं अट्ठमाण राइदियाणं विकताणं अम्हं कुलकेउं कुलपब्वयं कुलवडेंसयं कुलतिलगं कुलकित्तिकरं कुलनंदिकरं कुलजसकरं कुलाधारं कुलपायवं कुलविवणिकरं सुकृमालपाणिपायं अहीण पडिपुन्नपंचिंदियसरीरं जाव ससिसोमाकारं कंत पियदसणं
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प्राप्तिः ॥९८३॥
सुरूवं देवकुमारसमप्पभे दारगं पयाहिसि, ॥
हे देवानुप्रिय! ए प्रमाणे खरेखर में आजे ते तेवा प्रकारनी बने तकीयावाळी शय्यामां (सुतां जागता) इत्यादि पूर्वोक्त जाण, ११शतके यावत् मारा पोताना मुखमा प्रवेश करता सिंहने स्वम मां जोइने जागी . तो हे देवानुप्रिय! ए उदार यावत् महाखमर्नु बीजु शु उदेशार कल्याणकारक फल अथवा वृत्तिविशेष थशे ? त्यार पछी ते बल राजा प्रभवती देवी पासेथी आ वात सांभळी, अवधारी हर्षित, तुष्ट,
॥९८॥ यवत् अल्हादायुक्त हृदयवाळो थयो, मेघनी धाराथी विकसित थवेला सुगंधि कदंब पुष्पनी पेठे जेतुं शरीर रोमांचित थयेलु छे अने जेनी रोमराजी उमी थयेली छे, एवो बलराजा ते स्वमनो अवग्रह-सामान्य विचार-करे छ, पछी ते स्वमसंबन्धी ईहा (विशेष विचार) करे छे. तेम करीने पोताना स्वाभाविक, मतिपूर्वक बुद्धिविज्ञानथी ते स्वमना फलनो निश्चय करे छे. पछी इष्ट, कांत, यावत् मंगल युक्त, तथा मित, मधुर अने शोभायुक्त वाणीथी संलाप करता २ ते बल राजाए आ प्रमाणे का' हे देवी! तमे उदार स्वम जोयूं
, हे देवी! तमे कल्याणकारक स्वम जोय छ, यावत् हे देवी! तमे शोभायुक्त स्वप्न जो छे, तथा हे देवी! तमे आरोग्य, तुष्टि, 17 दीर्घायुप, कल्याण अने मंगलकारक स्वप्न जोडे. हे देवानुप्रिय ! तेथी अर्थनो लाभ थशे, हे देवानुप्रिये ! भोगनो लाभ थशे, हे देवानुप्रिये ! पुत्रनो लाभ थशे, हे देवानुप्रिये ! राज्यनो लाम थशे, हे देवानुप्रिये ! खरेखर तमे नव मास संपूर्ण थया चाद साडा सात दिवस वित्या पछी आपणा कुलमा ध्वजसमान, कुलमां दीवासमान, कुलमां पर्वतसमान, कुलमां शेखरसमान, कुलमां तिलकसमान, कुलनी कीर्ति करनार, कुलने आनंद आपनार, कुलनो जश करनार, कुलना आधारभूत, कुलमां वृक्षसमान, कुलनी | वृद्धि करनार, सुकुमाल हाथपगवाला, खोडरहित अने संपूर्ण पंचेन्द्रिययुक्त शरीरवाला, यावत चंद्रसमान सौम्पकारवाळा, प्रिय,
AR
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अंशतिः
॥९८४॥
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जेनुं दर्शन प्रिय के एवा, सुन्दररूपवाळा, अने देवकुमार जेवी कांतिवाळा पुत्रने जन्म आपशो.
सेsवि य णं दारए उम्मुकबालभावे विनाय परिणयमित्ते जोवणगमणुप्पते सुरे बीरे विकते वित्थिनविलबलबाहणे रज्जवई राया भविस्सह, तं उराले णं तुमे जाव सुमिणे दिट्ठे आरोग्गतुट्ठि जाव मंगलकारए णं तुमे देवी! सुविणे दिट्ठेति कट्टु पभावति देवि ताहिं इहाहिं जात्र वग्गूहिं दोपि तचंपि अणुवूहति । तए णं सा | पभावती देवी बलस्स रन्नो अंतियं एयमहं सोचा निसम्म हह्तुङ० करयल जाव एवं वयासी- एवमेयं देवाणुप्पिया ! तहमेयं देवाणुप्पिया! अवितहमेयं देवाणुप्पिया ! असंदिद्धमेयं दे०च्छियमेयं देवाणुपिया ! पडिच्छियमेयं देवाणुप्पिया । इच्छियपडिच्छियमेयं देवाणुप्पिया ! से जहेथं तुज्झे वदहत्ति कहुतं सुविणं सम्मं पडिच्छ पडिच्छिता | बलेणं रना अग्भणुन्नाया समाणी णाणामणिरयणभत्तिचित्ताओ भद्दासणाओ अन्भुट्टे अन्मुट्टेत्ता अतुरियमचवल जाव गतीए जेणेव सए सयणिजे तेणेव उबागच्छर तेणेव उवागच्छित्ता सयणिज्जंसि निसीयति निसीहत्ता एवं बयासी मा मे से उत्तमे पहाणे मंगल्ले सुविणे अन्नेहिं पावसुमिणेहिं पडिहम्मिस्सइत्ति कहु देवगुरुजणसंबद्धाहिं पसत्थाहिं मंगल्लाहिं धम्मियाहिं कहाहिं सुविणजागरियं पडिजागरमाणी २ विहरति ।
अने ते बालक पोतानुं बालकपणुं मूकी, विज्ञ अने परिणत- मोटो थईने युवावस्थाने पामी शूर, वीर, पराक्रमी, विस्तीर्ण अने विपुल बल तथा वाहनवाळो, राज्यनो घणी राजा थशे. हे देवी! तमे उदार स्वप्न जोयुं छे, हे देवी! तमे आरोग्य, तुष्टि अने यावत् मंगलकारक स्वप्न जोयुं छे'-एम कही ते बल राजा इष्ट यावद् मधुर वाणीथी प्रभावती देवीनी बीजी बार अने त्रीजी वार ए
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११ कवके प्रदेश ११ ॥९८४॥
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व्याक्या
अत्राप्तिः ॥९८५ ॥
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प्रमाणे प्रशंसा करे छे, त्यार बाद ते प्रभावती देवी बल राजानी पासेश्री ए पूर्वोक्त बात सांभळीने, अवधारीने हर्षवाळी अने संतुष्ट यह हाथ जोडी आ प्रमाणे बोली- 'हे देवानुप्रिय ! तमे जे कहो हो ते एज प्रमाणे छे, दे देवानुप्रिय ! तेज प्रमाणे छे, हे देवानुप्रिय ! ए सत्य छे, हे देवानुप्रिय । ए संदेहरहित छे, हे देवानुप्रिय । मने इच्छित है, हे देवानुप्रिय ! ए में स्वीकारेलं के, हे देवानुप्रिय ! ए मने इच्छित अने स्वीकृत छे' एम कही स्वप्ननो सारी रीते स्वीकार करे छे, स्वीकार करीने बल राजानी अनुमतिथी अनेक जातना | मणि अने रत्ननी रचना बडे विचित्र एवा भद्रासनथी उठे हे, उठीने त्वरा विना, चपलतारहित यावद् गति बडे (ते प्रभावती देवी) ज्यां पोतानी शय्या छे त्यां आवी शय्या उपर से छे, बेसी ने तेणे आ प्रमाणे का- 'आ मारुं उत्तम, प्रधान भने मंगलरूप स्वप्न बीजा पापस्वप्नोथी न इणाओ' एम कद्दीने ते प्रभावती देवी देव अने गुरुसंबन्धी, प्रशस्त मंगलरूप अने धार्मिक कथाओवडे स्वप्न जागरण करती करती विहरे छे.
लए णं से बले राया कोटुंबियपुरिसे सद्दावे सहावेत्ता एवं वयामी खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! अल सविसेसं बाहिरियं उद्वाणसालं गंधोदयत्तिसुइयसंमजिओवलित्तं सुगंध वरपंच वन्न पुप्फोवपारकलियं कालागुरुपत्र| रकुंदुरुक्क जाव गंधवहिभूयं करेह य करावेह य करेत्ता करावेत्ता सीहासणं रएह सीहासणं रयावेत्सा ममेतं जाव पप्पिणह, तए णं ते कोडुंबिय जाव पडिसुणेत्ता खिप्पामेव सविसेसं बाहिरियं उवद्वाणसालं जात्र पञ्चपिणंति, तए णं से बले राया पडूसकालसमयंसि समणिजाओ अन्मुट्ठेइ सयणिज्जाओ अन्मुद्वेत्ता पायपीढाओ पचोरुहइ पापीढाओ पञ्चरुहित्ता जेणेव अट्टणसाला तेणेव उवागच्छति अट्टणसाल अणुपविसद जहा उचबाइए तहेव
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१२ सबके उद्देशः ११
॥ ९८५॥
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व्याख्या
॥९८६॥
॥९८६॥
RRECIRCLICATICICROCER
अणसाला तहेव मजणघरे जाव ससिवपियदंसणे नरवई मजणघराओ पडिनिक्खमइ पडिनिक्खमित्ताजेणेच
बाहिरिया उवट्ठाणसाला तेणेव उवागच्छ। तेणेव उवागच्छित्ता सीहासणवरंसि पुरच्छाभिमुहे निमीयइ निसीइत्ता के द अपणो उत्तरपुरच्छिमे दिसीभाए अह भदासणाई सेयवत्यपचुस्थुयाई सिद्धत्यगकयमंगलोवयाराई रयावेह रया
नदेशात वेत्ता अपणो अदूरसामंते णाणामगिरयणमंडियं अहियपेच्छणि महग्घवरपणुग्गयं सहपहबहुभत्तिसयचित्तताण ईहामियउमभजावभत्तिचित्तं अभितरिय जवणियं अंगावेइ अंछावेत्ता नाणामणिरयणभत्तिचित्ते अच्छ-131 रयमउयमसूरगोच्छग सेयवत्थपच्चुत्थुयं अंगसुहफासुयं सुमउयं पभावतीए दवीए भद्दासणं रयावेई रयावेत्ता |कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ सद्दावेत्ता एवं वयासी
स्यार बाद ते बल राजाए कौटुंविक पुरुषोने बोलावी आ प्रमाणे कल्यु-हे देवानुप्रियो ! आजे तमे जल्दी चहारनी उपस्थानशालाने सविशेषपणे गंधोदकवडे छांटी, वाळी अने छाणथी लीपीने साफ सरो. तथा मुगंधी अने उत्तम पांच वर्णना पुष्पोथी शणगारो, है| बळी उत्तम कालागुरु अने कीदरुना धूपथी यावद् गंधवतिभूत-सुगंधी गुटिका समान करो, करावो, अने त्यारपछी त्यां सिंहासन
मूकावो, सिंहासन मूकाबीने आ मारी आज्ञा यावत् पाछी आपो.' त्यार बाद ते कौटुंबिक पुरुषो यावत् आज्ञानो स्वीकार करी तुरतज द्र सविशेषपणे बहारनी उपस्थानशालाने साफ करीने यावत् आज्ञा पाळी आपे छ. त्यार बाद ते बल राजा प्रातःकाल समये पोवानी
शय्याथी उठीने पादपीठथी उतरी ज्या व्यायामशाळा छे त्यां आवे छे. आवीने व्यायामशाळामां प्रवेश करे , त्यार पछी ते खानगृहमा जाय हे. व्यायामशाला अने स्नानगृहनुं वर्णन औपपातिक स्त्रमा कह्या प्रमाणे जाणवू, यावत् चंद्रनी पेठे जेनु दर्शन प्रिय छे एवो
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प्रचतिः ॥९८७॥
HEALTKRREEKAR
ते बल नरपति स्वानगृहथी बहार नीकळे छे, बहार नीकळीने ज्यां बहारनी उपस्थानशाला छे त्यां आवे छे, त्यां आयीने पूर्व दिशा सन्मुख उत्तम सिंहासनमा से छे. त्यार वाद पोतानाथी उत्तरपूर्वदिशामां-ईशान कोणमां धोळा दस्तथी आच्छादित अने सरसव
११शतके वडे जेनो मंगलोपचार करेलो छे एवा आठ भद्रासनो मूकावे छे. त्यार बाद पोतानाथी थोडे दूर अनेक प्रकारना मषि अने रनथी | उद्देशार मुशोभित, अधिक दर्शनीय, कीमती, मोटा अहेरमां बनेली, सक्ष्म सूतरना सेंकडो कारागरीवाळा विचित्रताणाचाळी, तथा ईहामृग अने ला॥१८॥ | बळद वगेरेनी कारीगरीयी विचित्र एवी अंदरनी जवनिकाने-पडदाने खसेडे छे, खसेडीने (जवनिकानी अंदर) अनेक प्रकारना मणि
अने रनोनी रचना वडे विचित्र, गादी अने कोमळ गालमीयावी ढंकायेलु, श्वेत वखवडे आच्छादित, शरीरने सुखकर स्पर्शवाळु तथा |सुकोमळ एवं एक भद्रासन प्रभावती देवी माटे मूकावे . त्यार पछी ते बल रजाए कौटुंचिक पुरुषोने चोलावी आ प्रमाणे का
खिप्पामेब भो देवाणुप्पिया! अटुंगमहानिमित्तमुत्तत्थधारए विविहसत्यकुसले सुविणल क्वणपाढए। | सद्दावेह, तए णं ते कोडेबियपुरिसा जाव पडिमणेत्ता बलस्स रन्नो अंतियाओ पडिनिक्खमइ पडिनिक्ख. मित्ता सिग्धं तुरिय चवलं चंडं वेइयं हत्यिणपुर नगरं मज्झमज्झेणं जेणेव तेर्सि सुविणलवणपाढगाणं गिहाई तेणेव उवागच्छन्ति तेणेव उवागच्छित्ता ते सुविणलक्वणपाढए सदाति।तए ण ते सुविणलक्खणपाढगावलस्स रन्नो कोडंबियपुरिसेहि सद्दाविया समाणा हहतुट्ठण्हाया कय जाव सरीरा सिद्धत्थगहरियालियाकयमंगलनुदाणा सरहिं २ गिहेहिंतो निग्गच्छति स.२ हथिणापुर नगरं मझमझेण जेणेव बलस्स रको भवणवरवडेंसए तेणेव ४ उवागच्छन्ति तेणेव उवागछित्ता भवणवरवडेंसगपडिदुवारंसि एगओ मिलंति एगओ मिलित्ता जेणेव बाहि
RECENCESCORTAL
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व्याख्या
प्रसि ॥९८८॥
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रिया उवडाणसाला तेणेव उवागच्छन्ति तेणेव उवागच्छित्ता करयल• बलरायं जपणं विजगणं बद्धावेति । तए सुविणलक्खणपाढगा बलेणं रत्ना वंदियपूइयसकारियसंमाणिया समाणा पत्तेयं २ पुव्वन्नत्थेसु महासणेसृ निसीयंति, तए णं से बले राया पभावति देवि जवणियंतरियं ठावेह ठावेत्ता पुप्फफलपडिपुन्नहत्थे परेण विणणं ते सुविणलक्खणपाढए एवं व्यासी एवं खलु देवाणुप्पिया ! पभावती देवी अज्ज तंसि तारिसगंसि वासघरंसि जाब सीहं मुविणे पासित्ताणं पडिबुद्धा
'हे देवानुप्रियो । तमे शीघ्र जाओ, अने अष्टांग महानिमित्तना सूत्र अने अर्थने धारण करनारा, अने विविध शास्त्रमां कुशल एवा स्वमना लक्षण पाठकोने बोलावी.' स्यार बाद ते कौटुंबिक पुरुषो यात्रत् आज्ञानो स्वीकार करीने बल राजानी पासेथी नीकळे हे; नीकळीने सत्वर, चपलपणे, झपाटाबंध अने वेगसहित हस्तिनापुर नगरनी बचोरच ज्यां स्वलक्षणपाठकोना घरो छ, त्यां जइने स्वलक्षणपाठकोने बोलावे छे. ज्यारे ते बल राजाना कौटुंबिक पुरुषोए ते स्वलक्षणपाठकोने बोलाव्या त्यारे तेओ प्रसन्न थया, तुष्ट थया अने स्नान करी बलिकर्म करी यावत् शरीरने अलंकृत करी, मस्तके सर्षप अने लीली घरोनुं मंगल करी पोत पोचाना वेरथी नीकळे छे, नीकळीने हस्तिनागपुर नगरनी बच्चे थइ ज्यां बल राजानुं उत्तम महालय छे, त्यां आवे छे, त्यां आवीने श्रेष्ठ महालयना द्वार पासे ते स्वपाठको एकठा थाय छे, एकठ थहने ज्यां बहारनी उपस्थानशाला छे त्यां आवे छे, त्यां आत्री हाथ जोडी बल राजाने जय अने विजययी वधावे छे. त्यार बाद ते बल राजाए बांदेला, पूजेला, सहारेला अने सम्मानित करेला ते स्वलक्षणपाठको पूर्वे गोठवेला भद्रासनो उपर बेसे छे. त्यार पछी ते वलराजा प्रभावती देवीने जवनिकानी पडदानी अंदर बेसाडे छे. त्यार बाद पुष्प अने
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१२ चक्के उद्देशा११
॥ ९८८॥
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बाच्या
११शतके
॥९८९॥
CAMERAREKARO
उदेशा११ ॥९८९॥
फलथी परिपूर्ण हस्तवाला ते बल राजाए अतिशय विनयपूर्वक ते स्वप्नलक्षणपाठकोने आ प्रमाणे का-हे देवनुप्रियो ! ए प्रमाणे खरेखर आजे प्रभावती देवी ते तेवा प्रकारना वासगृहमां यावत् स्वप्नमा सिंहने जोइने जागेली छे,
तण्ण देवाणुप्पिया! एयस्स ओरालस्स जाव के मन्ने कल्लाणे फलवित्तिविसेसे भविस्सह ?, तए ण सुविणलक्खणपाढगा बलस्स रन्नो अंतियं एपमटुं सोचा निसम्म हट्ठ तुट्टतं सुविणं ओगिण्हइ, २ ईह अणुप्पविसह अणुप्पविसित्ता तस्से सुविणस्स अस्थोगहणं करेह तस्स. २त्ता अन्नमन्नेणं सद्धिं संचालेंति २ तस्स सुविणस्स लठ्ठा गहियट्ठा पुच्छियट्ठा विणिच्छियट्ठा अभिगयट्ठा बलस्स रन्नो पुरओ सुविणसत्थाई उच्चारेमाणा उ०२ एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिया! अम्हं सुविणसत्यसि बायालीसं सुविणा, तीसं महासुविणा चावत्तरि सब्वसुविणा दिहा, ..
तो हे देवानुप्रियो ! आ उदार एवा स्वप्ननुं यावत् बीजु कयुं कल्याणरूप फल अने वृत्तिविशेष थशे. त्यार पछी ते स्वप्नलक्षणपाठको बल राजानी पासेथी ए बात सांभळी तथा अवधारी खुश अने संतुष्ट थई ते स्वप्न संबन्धे सामान्य विचार करे छ, सामान्य विचार करी तेनो विशेष विचार करे छे, अने पछी ते स्वप्नना अर्थनो निश्चय करे के, अने त्यार बाद तेत्रो परस्पर साथे विचारणा करे छे. त्यार पछी ते स्वप्नना अर्थने स्वयं जाणी, वीजा पासेथी ग्रहण करी, ते संबन्धी शंकाने पूछी, अर्थनो निश्चय
करी अने स्वप्नना अर्थने अवगत करी बल राजानी आगळ स्वमशास्त्रोनो उच्चार करतो तेओए आ प्रमाणे का-हे देवानुप्रिए। है। प्रमाणे खरेखर अमारा स्वमशासमा ताळीश सामान्य स्वप्नो, अने त्रीश महास्वमो मळीने कुल बहोतेर जातना स्वमो कहेला छे.
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शतके
व्याख्या प्राप्तिः ॥९९०॥
उदेश:११ १९॥
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तत्थ गं देवाणुप्पिया ! तित्वगरमायरो वा चक्कवहिमायरो वा तित्वगरंसि वा चक्कबहिसि वा गम्भ बक्कममापंसि एएमिं तीसाए महासुविणाणं इमे चोइस महासुविणे पासिताणं पडिवुज्झति, तंजहा-गयवसहसीहअभि संयदामससिदिणयरं झयं कुंभ। पउभसरसागरविमाणभवणरयणुचयसिहि च १४ ॥१॥ वासुदेवमायरो वा चासुदेवंसि गम्भं वक्रममाणमि एएसि चोदसण्हं महासुविणाण अन्नघरे सत्त महासुविणे पासित्ताणं पडिबुझंति, बलदेवमायरो वा बलदेवसि गम्भं वक्कममाणसि एएसिं चोइसण्हं महामुविणाण अन्नयरे चत्तारि महासुविणे पासित्ता ण पडिवुझंति, मंडलियमायरो वा मंडलियसि गम्भ वकममाणस एतेसिणं चउदसण्हं महासुविणाणं अत्रयरं एग महासुविणं पासित्ता ण पडिबुज्झन्ति, इमे य णं देवाणुप्पिया! पभाक्तीएदेवीए एगे महासुविणे | दिढे, तं ओराले णं देवाणुप्पिया! पभावतीए देवीए सुविणे दिढे जाव आरोग्गतुट्ठ जाव मंगल्लकारण णं दवाणुः | प्पिया ! पभावतीए देवीए सुविणे दिहे, अत्यलाभो देवाणुप्पिर ! भोग० पुत्त. रजलाभो देवाणुप्पिए !, एवं खलु देवाणुप्पिए! पभावती देवी नवण्हं मासाणं बहुपडिपुन्नाणं जाव वीतिताणं तुम्हं कुलकेउं जाच पयाहिति सेविय ण दारए उम्मुक्कबालभावे जाव रज्जबई राया भविस्सइअणगारे वा भावियप्पा,तं ओराले णं देवाणुप्पिया! पभावतीए दबीए मुविणे दिढे जाव-आरोग्य तुहिहीहाउअ कलाण. जावदिखे। । तेमां हे देवानुप्रिय ! तीर्थकरनी माताओ के चक्रवर्तिनी माताओ ज्यारे तीर्थंकर के चक्रवर्ती गर्ममा आवीने उपजे त्यारे ए. श्रीश महास्वप्नोमांथी आ चौद खप्नोने जोइने जागे छे, ते चौद स्वप्नो आ प्रमाणे के-"१ हाथी, २ घलद, ३ सिंह, ४ लक्ष्मीनो
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११शत
ब्बाख्याप्रजाप्तिः ॥९९१॥
उद्देश | ॥९९१॥
अभिषेक, ५ पुष्पमाना, ६ चंद्र, ७ सूरज, ८ ध्वजा, ९ कुंभ, १० पद्मसरोवर, ११ समुद्र, १२ विमान अथवा भवन, १३ रत्ननो ढगलो अने १४ अग्नि" बळी वासुदेवनी माताओ ज्यारे वासुदेव गर्भमां आवे त्यारे ए चौद महास्वप्नोमांना कोइ पण सात महास्वप्नो जोइने जागे छे. तथा बलदेवनी माताओ ज्यारे बलदेव गर्भमा प्रवेश करे त्यारे ए चौद,महास्वप्नोमांना कोइ पण चार महास्वप्नोने जोइने जागे छे. मांडलिक राजानी माताओ ज्यारे मांडलिक राज गर्भमा प्रवेश करे त्यारे ए चौद महास्वप्नोमांना कोई एक महास्वम जोइने जागे छे. तो हे देवानुप्रिय ! आ प्रभावती देवीए एक महास्वप्न जोयु छे, हे देवानुप्रिय ! प्रभावती देवीए |
उदार स्वप्न जोयुं छे, यावत् आरोग्य, तुष्टि यावत् मंगल करनार स्वप्न जोयु छे. तेथी हे देवानुप्रिय ! तमने अर्थलाभ थशे, भोगहालाभ थशे, पुत्रलाभ थशे अने राज्यलाभ थशे. तथा हे देवानुप्रिय! ए प्रमाणे खरेखर प्रभावती देवी नव मास संपूर्ण थया पछी
अने साडा सात दिवस वित्या पछी तमारा कुलमां ध्वज समान एका यावत् पुत्रनो जन्म आपशे. अने ते पुत्र पण बाल्यावस्था मूकी| 3 मोटो थशे त्यारे ते यावाद् राज्यनो पति राजा थशे, अथवा भावितात्मा साधु थशे. तेथी हे देवानुप्रिय! प्रभावती देवीए उदार | स्वप्न जोयुं छे, यावत् आरोग्य, तुष्टि, दीर्घायुष तथा कल्याण करनार स्वप्न जोयुं छे.
तएणं से बले राया सुविणलक्खणपाढगाणं अंतिए एयमटुं सोचा निसम्म हतुट्ट करयल जाव कटु ते सुवि. शणलक्वणपाढगे एवं वयासी-एवमेयं देवाणुप्पिया ! जाव से जहेयं तुम्भे बदहत्तिकटुतं सुविणं सम्म पडिच्छह तंत्ता सुषिणलक्वणपाढए विउलेणं असणपाणवाइममाइमपुप्फवस्थगंधमल्लालंकारेणं सक्कारेति संमाणेति | सकारेत्ता समाणेत्ता विउलं जीवियारिहं पीइदाणं दलयति २ विपुलं १ पडिक्सजेति पडिविसज्जत्ता सीहासणाओ
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B
११तके
व्याख्या प्राप्तिः ॥१९॥
वी! मानक पभावतिं देवि ताहि न सांभळी अने अवधारी धावत जे तमे कहो छो'
REKIKANCIENCEKAR
अन्भुढेह सी० अन्मुट्ठत्ता जेणेव पभावती देवी तेणेव उवागच्छह तेणेव उवागच्छित्ता पभावती देवीं ताहिं इटाहिं कंताहिं जाव संलबमाणे संलवमाणे एवं वयासी-एवं स्खलु देवा णुप्पिया सुविणसत्यंसि बायालीसं सुविणा तीसं महासुविणा बावत्तरि सव्वसुविणा दिट्ठा, तत्य णं देवाणुपिए। तित्वगरमायरो वा चक्कवहिमायरो वा तं चेव ।।
उद्देश जाव अन्नयरं एग महासुविण पासित्ता गं पडिबुझंति, इमे य णं तुम देवाणुप्पिए ! एगे महासुविणे दिवे तं
॥९९२॥ ओराले तुमे देवी! सुविणे दिट्टे जाव रज्जवई राया भविस्सह अणगारे वा भावियप्पा, तं ओराले णं तुमे देवी!! सुविणे दिवे जाव दिद्वेत्तिकट्ठ पभावति देविं ताहिं इट्टाहिं कंताहिं जाव दोचं पि तच्चपि अणुबूहर, ___ त्यार बाद ते बलराजा खप्नलक्षणपाठको पासेधी ए वातने सांभळी अने अवधारी हर्षित, अने संतुष्ट थयो, अने हाथ जोडी यावद तेणे स्वप्नलक्षणपाठकोने आ प्रमाणे कयु-'हे देवानुप्रियो ! आ ए प्रमाणे छे के, यावत् जे तमे कहो छो'-एम कही ते स्व. नोनो सारी रीते स्वीकार करे ने. त्यार बाद स्वप्नलक्षणपाठकोने पुष्कळ अशन, पान, खादिम, पुष्प, बख, गंध, माला अने अलंकारो वडे सत्कार करे छे, सन्मान करे छे, तेम करीने जीवीकाने उचित घणु प्रीतिदान आपे के अने प्रीतिदान आपीने ते स्वप्नलक्षणपाठकोने रजा आपे छे. त्यार पछी पोताना सिंहासनथी उठे छे, उठीने ज्यां प्रभावती देवी छे त्यां आवी प्रभावती देवीने तेणे ते प्रकारनी इष्ट, मनोहर यावत् मधुर वाणीवडे संलाप करता करता आ प्रमाणे बो-हे देवानुप्रिये ! ए प्रमाणे खरेखर स्वप्नशास्त्रमा ताळीश साधारण स्वप्नो, अने त्रीश महास्वप्नो तथा बधा मळीने बहोतेर स्वप्नो देखाड्या छे. तेमां हे देवानुप्रिये! तीर्थकरनी माताओ के चक्रवर्तिनी माताओ-इत्यादि पूर्ववत् कहे, यावत् कोइ एक महास्वप्नने जोइने जागे छे. हे देवानुप्रिये ! तमे आ
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११शतके उद्देश११ ॥९९३॥
ATESERS
एक महास्वप्न जोयु छे, हे देवी! तमे उदार स्वप्न जोयुं छे, यावद् ते राज्यनो पति राजा थशे के भावितात्मा अनगार थशे. हे| देवि! तमे उदार स्वप्न जोयुं छे, यावत् मंगलकर स्वप्न जोयुं छे, एम कही प्रभावती देवीनी ते प्रकारनी इष्ट, कांत, प्रिय एवी यावद् मधुर वाणीवडे वे चार अने त्रण वार पण प्रशंसा करे छे..
तएणं सा पभावती देवी बलस्स रन्नो अतियं एयम सोचा निसम्म हट्ठतुट्टकरयलजाब एवं वयासी-एयमेयं देवाणुप्पिया! जाय तं सुविणं सम्म पडिच्छति तं सुविणं सम्म पडिच्छित्ता बलेणं रन्ना अब्भणुनाया समाणी नाणामणिरयणभत्तिचित्त जाव अन्भुढेति अतुरियमचलजावगतीग जेणेव सए भवणे तेणेव उवागच्छद तेणेव उवागच्छित्ता सयं भवणमणुपविट्ठा । तए णं सा पभावती देवी पहाया कयवलिकम्मा जाव सम्वालंकारविभूसिया तं गम्भं णाइसीएहिं नाइउण्हेहिं नाइतित्तेहिं नाइकडुएहिं नाइकसाएहिं नाइअंबिलेहिं नाइमहुरेहिं उउभ| यमाणसुहेहिं भोयणच्छायणगंधमल्लेहिं जं तस्स गन्भस्स हियं मितं पत्थं गम्भपो सणं तं देसे य काले य आहार| माहारेमाणी विवित्तमउएहिं सयणासणेहिं पइरिकसुहाए मणोणुकूलाए विहारभूमीए पसत्यदोहला संपुन्नदोहला सम्माणियदोहला अवमाणियदोहला कोच्छिन्नदोहला ववणीयदोहला ववगयरोगमोहभयपरित्तासा तं गम्भं सुहमहेणं परिवहति । तए णं सा पभावती देवी नवण्हं मांसाणं बहुपडिपुन्नाणं अट्ठमाण राइंदियाणं वीतिकताणं सुकुमालपाणिपाय अहीणपडिपुन्नपंचिंदियसरीरं लक्खणवंजणगुणोववेयं जाव ससिसो-माकारं कंतं पियदसणं सुरूवं दारयं पयाया।
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व्याख्या
॥९९४॥
NERAKASKAR
त्यार बाद ते प्रभावती देवी बल राजानी पासेथी ए वातने सांभळीने अवधारीने हर्षवाळी, अने संतुष्ट थइ यावत हाथ जोडी आ प्रमाणे बोली-'हे देवानुप्रिय! ए ए प्रमाणे ज छे' यावद् एम कही यावत् ते खप्नने सारी रीते ग्रहण करे के, त्यार पछी बल राजानी अनुमतिथी अनेक प्रकारना मणी अने रत्ननी कारीगरीथी युक्त तथा विचित्र एवा ते भद्रासनथी उठी त्वरारहित, अचपल
१९शतके पणे यावत् हंससमानगति वडे ज्या पोतानुं भवन छे त्यां आवी तेणे पोताना भवनमा प्रवेश कयों. त्यार बाद ते प्रभावती देवी
| उद्देश-११
॥१९॥ स्नान करी, बलिकर्म-देवपूजा करी, यावत् सर्व अलंकारथी विभूषित थइ ते गर्भने अतिशीत नहि, अतिउष्ण नहि, अति तिक्त नहि, अतिकटु नहि, अति तुरा नहि, अतिखाटा नहि, अने:अतिमधुर नहि एवा, तथा दरेक ऋतुमां भोगवतां सुखकारक एवा भोजन, आच्छादन गंध अने माला वडे ते गर्मने हितकर, मित, पथ्य अने पोषणरूप छे तेवा आहारने योग्य देश अने योग्य कळे ग्रहण करती, तथा पवित्र अने कोमळ शयन अने आसनवडे एकान्तमा सुखरूप अने मनने अनुकूल एवी विहारभूमिवडे प्रशस्त दोहदवाळी, संपूर्ण दोहदवाळी, सन्मानित दोहदवाळी, जेनो दोहद तिरस्कार पाम्यो नथी एची, दोहदरहित, दूर थयेला दोहदवाळी, तथा रोग, मोह, भय अने परित्रास रहित ते गर्भने सुखपूर्वक धारण करे छे. त्यार बाद ते प्रभावती देवीए नव मास पूर्ण थया पछी अने साडा सात दिवस वीत्या पछी मुकुमालहाथ-पगवाला अने दोषरहित प्रतिपूर्णपंचेन्द्रिय युक्त शरीरवाळा, तथा लक्षण, व्यंजन अने 3 गुणथी युक्त, यावत् चंद्रसमानसौम्य आकारवाळा, कांत, प्रियदर्शन अने मुंदर रूपवाळा पुत्रने जन्म आप्यो.
तए णं तीसे पभावतीए देवीए अंगपडियारियाओ पभावर्ति देविं पसूर्य जाणेसा जेणेच बले राया तेणेव उबागच्छन्ति तेणेच उवागच्छित्ता करयल जाव यलं रायं जयेणं विजएणं वद्धावेंति जपणं विजएणं वदावेत्ता एवं
SACRACKGREEN
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ब्याक्यामणासः ॥९९५ ॥
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वयासी - एवं खलु देवाणुप्पिया ! पभावती० पियट्टयाए पिय निवेमो पियं मे भवउ । तए णं से बले राया अंगपडियारियाणं अंतियं एयमहं सोचा निसम्म हङतुट्ठ जाव धारायणीव जावरोमकूवे तासि अंगपडियारियाणं | मउडवजं जहामालियं ओमोय दलपति २ सेतं रययामयं विमलसलिलपुन्नं भिंगारं च गिण्हइ गिन्हित्ता मत्थए धोवह मत्थए धोवित्ता विउलं जीवियारिहं दलयति पीइदाणं पीइदाणं दलयित्ता मक्का रेति सम्माणेति ॥ (सू ४२८)।।
त्यार बाद ते प्रभावती देवीनी सेवा करनार दासीओए तेने प्रसव थयेलो जाणी ज्यां बल राजा छे त्यां आवी दाथ जोडी यावत् बल राजाने जय अने विजयथी वधावीने आ प्रमाणे कछु - 'हे देवानुप्रिय ! ए प्रमाणे खरेखर प्रभावती देवीनी प्रीति माटे आ (पुत्रजन्मरूप) प्रिय निवेदन करीए छीए, अने ते आपने प्रिय थाओ.' त्यार बाद ते बल राजा शरीरनी शुश्रूषा करनार दासीओ पसेथी ए बात सांभळी अवधारीने हर्षित अने संतुष्ट थर यावद् मेघनी धाराथी सिंचायला कबकना पुष्पनी पेठे यावद् रोमांचित | थइ ते अंगरक्षिका दासीओने मुकुट सिवाय पहेरेल सर्व अलंकार आपे छे. आपीने ते राजा श्वेत रजतमय अने निर्मल पाणीथी भरेला कलशने लद्द ते दासीओना मस्तक धुए छे, मस्तकने धोइने तेओने जीविकाने उचित घणुं प्रीतिदान आपी सत्कार अने सन्मान करी विसर्जित करे छे. ॥ ४२८ ॥
तणं से वले राया कोहुंबियपुरिसे सहावेह सहावेत्ता एवं वयासी - खिप्पामेत्र भो देवाणुप्पिया ! हत्थिणापुरे नपरे चारगसोहणं करेह चारग० २ माणुम्माणवणं करेह मा० २ हत्थिणापुरं नगरं सन्भितर बाहिरियं आसियसंमजिओ वलितं जाव करेह कारवेह करेत्ता य कारवेत्ता य जूयसहस्सं वा चकसहस्सं वा पूयामहामहि
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११ शके उद्देशः ११ ॥९९५ ॥
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व्याख्या. प्रज्ञप्तिः ॥९९६ ॥
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मसकारं वा उस्सवेह २ ममेतमाणत्तियं पञ्चपिणह, तए णं ते कोडुंबियपुरिसा बलेणं रन्ना एवं वृत्ता० जाव पदपिणंति । तए णं से बले राया जेणेव अढणसाला तेणेव उवागच्छति तेणेव उवागच्छित्ता तं चैव जाव मज्जघराओ पडिनिक्खमइ पडिनिक्खमित्सा उत्सुकं उक्करं उकि अदिज्जं अमिज्जं अभडप्पवेसं अदंडकाडांडेमं अधरिमं गणियावर नाडइज्जकलियं अणेगतालाचराणुचरियं अणुद्धयमुइंगं अमिलायमल्लदामं पमुझ्य पक्कीलियं सपुंरंजणजाणवयं दसदिवसे ठिवडियं करोति । तए णं से बले राया दसाहियाए ठिइवडिवाए वहमाणीए सईए य साहस्सिए य सयसाहस्सिए य दाए य भाए य दलमाणे य दबाबेमाणे य सए य सयसाहस्सिए य लंभे पडिच्छेमाणे पडिच्छावेमाणे एवं विहरइ । तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो पढमे दिवसे ठिइवडियं करेइ तइए दिवसे चंद सूरदंसणियं करेड़ छढे दिवसे जागरियं करेह एक्कारसमे दिवसे वीतिकते निव्वत्ते असुहजायकम्मकरणे संपत्ते बारसाह दिवसे विडलं असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडाविंति उ० २ जहा सिवो जाव खत्तिए य आमंतेति आ० २ तओ पच्छा पहाया कय० तं चैव जाव सकारेंति सम्मार्णेति २ तस्सेव मित्तणातिजाव राईण य खत्तियाण य पुरओ अजयपज्जयपि उपज्जयागयं बहुपुरिस परंपरप्परूढं कुलाणुरूवं कुलसरिसं कुलसंताणतंतुवद्वणकरं अपमेयारूवं गोन्नं गुणनिष्पन्नं नामधेज्जं करेंति-जम्हा णं अम्हं इमे दारए बलस्स रन्नो पुत्ते पभावतीए देवीए अत्तए तं होउ णं अहं एयस्स दारगस्स नामघेज्जं महच्चले, तए णं तस्स दारगरस अम्मापियरो नामधेज्जं करेंति महब्बलेत्ति ।
त्यार बाद ते बल राजा कौटुंबिक पुरुषोने बोलावी आ प्रमाणे कछु - 'हे देवानुप्रिय । तमे शीघ्र हस्तिनापुर नगरमा केदीओने
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११ चातके
उद्देशः ११ ॥९९६ ॥
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व्याख्याप्रतिः
॥९९७॥
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मुक्त करो, मुक्त करीने मान ( माप) अने उन्मानने (तोलाने) वधारो; त्यार बाद हस्तिनागपुर नगरनी बहार अने अंदरना भागमा छंटकात्र करो, साफ करो, संमार्जित करो, अने लींपो; तेम करी अने करावीने सहस्र यूपोनो अने सहस्र चक्रोनो पूजा, महामहिमा अने सत्कार करो, ए प्रमाणे करी मारी आ आज्ञा पाछी आपो. त्यार बाद ते बल राजाना कद्देवा प्रमाणे करी ते कौटुंबिक पुरुषो तेनी आज्ञा पाछी आपे छे. त्यार पछी ते बल राजा ज्यां व्यायामशाला छे त्यां आवे छे, त्यां आवीने-इत्यादि पूर्ववत् कहेतुं यावद् स्नानगृहथी बहार नीकळी जकात रहित, कररहित, प्रधान, (विक्रयनो निषेध करेलो होवाथी) आपना योग्य वस्तु रहित, मापवा योग्य वस्तुरहित, मेयरहित, सुभटना प्रवेशरहित, दंड तथा कुदंडरहित, (ऋण मुक्त करेल होवाथी) अधरिमयुक्त - देवारहित, उत्तम गणिकाओ अने नाटकीयाओथी युक्त, अनेक तालानुचरो वडे युक्त, निरंतर वागतां मृदंगोसहित, साजा पुष्पोनी माला युक्त, प्रमोद सहित, अने क्रीडा युक्त एवी स्थितिपतिता-पुत्रजन्ममहोत्सव पुर अने देशना लोको साथे मळीने दस दिवस सुधी करे छे. त्यार बाद दस दिवस सुधी स्थिति पतिता - उत्सव चालु हतो त्यारे ते बल राजा सो रूपियाना, हजार रूपियाना अने लाख रूपियाना खर्चबाळा भागो, दानो अने द्रव्यना अमुक भागोने देतो अने देवरावतो तथा सो रूपियाना, हजार रूपियाना तथा लाख रूपियाना लाभने मेळवतो, मेळवावतो ए प्रमाणे रहे छे. त्यार बाद वे छोकराना मातापिता प्रथम दिवसे स्थितिपतिता - कुलनी मर्यादा प्रमाणे क्रिया करे छे; त्रीजे दिवसे चंद्र अने सूर्यनुं दर्शन करावे छे, छट्ठे दिवसे धर्मजागरण करे छे अने अग्यारमो दिवस वीत्या बाद अशुचि जातकर्म करवानुं निवृच थया पछी बारमे दिवसे पुष्कळ असून, पान, खादिम अने खादिम पदार्थोंने तैयार करावे छे, अने जेम | शिव राजा संबन्धे का तेम क्षत्रियोने आमंत्रे छे. त्यार पछी स्नान तथा बलिकर्म करी इत्यादि पूर्वोक्त यावत् सत्कार अने सन्मान
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११ शतके उद्देशः ११ ॥९९७॥
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११श्वक
व्याख्या प्रप्तिः ।९९८॥
उदेशभर ॥९९८॥
5CROCA
करी तेज मित्र, ज्ञाति यावत् राजन्य अने क्षत्रियोनी समक्ष अर्या-पिता, पर्या-पितामह अने पिताना पण पितामहथी, घणा पुरु
पीनी परंपराथी वघेलं, कुलने योग्य, कुलने उचित ने कुलरूपसंतानतंतुने वधारनार आ आरा प्रकारचें, गुणयुक्त अने गुणनिष्पन्न है नाम पाडे छे. जेथी अमारो आ छोकरो बल राजानो पुत्र अने प्रभावति देवीनो आत्मज छे, माटे ते अमारा आ पुत्रनुं नाम 'महा
बल' हो. त्यार राद ते छोकराना माता पिता तेनुं 'महाबल' एवं नाम कर छ. हा तए णं से महव्वले दारण पंचधाईपरिग्गहिए, तंजहा-खीरधाईए एवं जहा दढपइन्ने जाव निवाय. निवाघायंसि सुहसुहेणं परिवति । तए णं तस्स महब्बलस्म दारगस्स अम्मापियरो अगुपुत्वेणं ठितिवडिय
वा चंडसूरदसावणिय वा जागरिय या नामकरण वा परंगामगं वा पयचंकामणं वा जेमाणं वा पिंडवद्धणं वा पजदीपावणं वा कण्णवेहणं वा संवच्छरपडिलेहण वा चोलोयणगच उवणयणं च अन्नाणि य बहणि गम्भाधाणजम्म
णमादियाई कोउयाई करेंति । तए णं तं महन्चल कुमारं अम्मापियरो सातिरेगट्ठवासगं जाणित्ता सोभणसि तिहिकरणमुहुत्तसि एवं जहा ददपइन्नो जाव अलं भोगसमत्थे जाए यावि होत्था। तए ण तं महब्बलं कुमार उम्मुकमालभावं जाव अलं भोगसमत्य विजाणित्ता अम्मापियरो अटु पासायव.सए करेंति २ अब्भुग्गयमूसियपहसिए इव वन्नओ जहा रायप्पसेणइज्जे जाव पडिरूवे, तेसिणं पासायव.सगाणं वमझदेसभागे एत्य णं महेगं भवणं करेंति अणेगखंभसयंसंनिविटुं वन्नओ जहा रायपसेणइज्जे पेच्छाघरमंडवंसि जाव पडिरूवे (सूत्रं ४२९।।)
त्यार पछी ते महाबल नामे पुत्रनुं पांच धावो बडे पालन करा. ते पांच धावो आ प्रमाणे छे-क्षीरधात्री, ए प्रमाणे धुं दृढ
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॥९९९॥
SEASESAMASTERESES
प्रतिज्ञानी पेठे जाणवू, यावत् ते कुमार वायुरहित अने निळ्यात-अडचणरहित स्थानमा अत्यंत सुखपूर्वक वृद्धि पामे छे, पछी ते । महाबलना मातापिताए जन्मना दिवसथी मांडी अनुक्रमे स्थितिपतिता, सूर्यचंद्रनुं दर्शन, धर्मजागरण, नामकरण, भांखोडीया चाल, IP१शके | पगे चालचुं, जमाउबुं, कोळीआ वधारवा, बोलाव, कान विधावत्रा, वर्षगांठ करवी, चूडा-शिखा रखावी, उपनयन-शीखव ए उद्देशान वां अने ए शिवाय वीजा घणा गर्भाधान, जन्म वगेरे कौतुको करे छे. त्यार पछी ते महावल कुमारने तेना मातापिता आठ वरसथी ॥९९९॥ अधिक उमरनो जाणी प्रशस्त तिथि, करण, नक्षत्र अने मुहूर्तमा (कलाचार्य पासे भणया मोकले छे)-इत्यादि ए प्रमाणे वधुं दृढप्र-12 तिज्ञनी पेठे कहेg, यावत् ते महाबल कुमार विषयोपभोगने समर्थ थयो. त्यार बाद ते महाचल कुमारनो बालभात्र व्यतीत थयो ।
जाणी, यावद् तेने विषयोपभोगने योग्य जाणी तेना माता पिता तेने माटे आठ श्रेष्ठ प्रासादो तैयार करावे छे, ते प्रासादो अतिशय * उंचा अने (श्वेत वर्णना होवाथी) जाणे हसता होयनी-इत्यादि वर्णन राजप्रश्नीयसूत्रमा कह्या प्रमाणे जाणवू. यावत् ते प्रासादो अत्यंत
सुंदर छे, ते प्रासादोना बराबर मध्यभागमा एक मोटुं भवन तैयार करावे छे, ते भवन सेंकडो थांभला उपर रहेलं -इत्यादि वर्णन राजप्रश्नीय सूत्रमा कह्या प्रमाणे प्रेक्षागृह अने मंडपना वर्णननी पेठे जणा, यावत् ते सुन्दर हतुं ॥ ४२९ ।।
तए णं तं महब्बलं कुमारं अम्मापियरो अन्नया कयावि सोमणसि तिहिकरणदिवमानक्वत्तमुहुत्तसि पहायं कयबलिकम्म कयकोउयमंगलपाय० सवालंकारविभूसियं पमक्खणगण्हाणगीयवाइयपसाहणटुंगतिलगकंकणअविहवबहुउवणीयं मंगलसुजंपिएहि य वरकोउयमंगलोवयारकयसंतिकम्म सरिसयाण सरित्तयाण सरिव्ययाणं सरिसलावन्नरूवजोवणगुणोधवेयाण विणीयाण कयकोउयमंगलपायच्छित्ताण सरिसरहिं रायकुंलहितो आणि
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व्याख्या प्रज्ञप्तिः ॥१०००
११शतके उद्देश:११ ॥१०००॥
ल्लियाणं अट्ठपहं रायवरकन्नाणं एगदिवसेण पाणिं गिहाविंसु।
त्यार पछी बीजा कोइ एक दिवसे शुभ तिथि, करण, दिवस नक्षत्र अने मुहूर्तमा जेणे स्नान, बलिकर्म-पूजा, रक्षा आदि कौतुक अने मंगलरूप प्रायश्चित कर्य छे एवा महाबल कुमारने सर्व अलंकारथी विभूषित करी अने सधवा खीओए करेला अभ्यंजन-विलेपन,
स्नान, गीत, बादित्र, मंडन, आठ अंगमां तिलक अने कंकण पहेरावी मंगल अने अशीर्वादपूर्वक उत्तम रक्षा बगेरे कौतुकरूप अने ४सरसव वगेरे मंगलरूप उपचार वडे शांतिकर्म करी, योग्य, समानत्वचावाळी, समान उमरवाळी, समान लावण्य, रूप, यौवन अने
गुणथी युक्त, विनीत, जेणे कौतुक अने मंगलरूप प्रायश्चित करेलु के एवी समान राजकुलथी आणेली एवी, उत्तम, राजानी आठ श्रेष्ठ कन्याओगें एक दिवसे पाणिग्रहण कराव्यु.
तएणं तत्स महायलस्स कुमारस्स अम्मापियरो अयमेयारूवं पीइदाण दलयंतितं.-अट्ठ हिरनकोडीओ अट्ट सुवन्नकोडीओ अट्ठ मारडे मउडप्पवरे अह कुंडल. जुए कुंडलजुयप्पवरे अट्ट हारे हारप्पवरे अट्ठ अद्धहारे अद्धहारपवरे अहएगावलीओ एगावलिप्पचराओ एवं मुत्तावलीओ गवं कणगावलीओ एवं रयणावलीओ अट्ठ कडगजोए कडगजोयप्पवरे एवं तुडियजोए अट्ट खोमजुयलाई खोमजुपलप्पवराई एवं वडगजुयलाई एवं पजुयलाई एवं दुगुल्लजुयलाइं अट्ट सिरीओ अट्ट हिरीओ एवं घिईओ कित्तीओ वुद्धीओ लच्छीओ अट्टनंदाइं अट्ठ भहाई अg तले तलप्पवरे सव्वरयणामए णियगवरभवणकेऊ अट्ट झए झयापदरे अट्ट वये बयप्पवरे दसगोसाहस्मिएणं बएणं अट्ट नाडगाई नाडगप्पचराइं यत्तीसबर्तण नाडपणं अट्ट आसे आसप्पवरे सब्बरयणामए सिरिघरपडिरूवए अट्ठ
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व्याख्यामाप्तिः ॥१००१ ॥
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हत्थी हल्थिप्पवरे सव्वरयणामए सिरिघर पडिरूचए अट्ठ जाणारं जाणप्पचराई अट्ठ जुगाई जुगप्पवराई एवं सिवि | याओ एवं संदमाणीओ एवं गिल्लीओ बिल्लीओ अट्ठ विपडजाणाई विगडजाण पवराई अट्ठ रहे पारिजाणिए अह रहे संगामिए अट्ठ आसे आसप्पवरे अट्ठ हत्थी हत्थिष्पवरे अह गामे गामप्पवरे दसकुल साहस्सिएणं गाणं ॥ त्यार पछी ते महाबल कुमारना माता पिता एत्रा प्रकार आ प्रीतिदान आपे छे, ते आ प्रमाणे आठ कोटि हिरण्य, आठ क्रोड सोनैया, मुकुटोमा उत्तम एवा आठ मुकुट, कुंडलयुगलमां उत्तम एवी आठ कुंडलनी जोडी, दारोमा उत्तम एवा आठ हार, अर्धारमा श्रेष्ठ एवा आठ अर्धहार, एकसरा हारमा उत्तम एवा आठ एकमरा हार, एज प्रमाणे मुक्तावलीओ, कनकावलीओ अने रत्ना वीओ जाणवी; कडा युगलमां उत्तम एवा आठ कहानी जोडी, ए प्रमाणे तुडिय - बाजुबंधनी जोडी, रेशमी वस्त्र युगलमां उत्तम एवा आठ रेशमी वस्रनी जोडी, ए प्रमाणे सूतराउ वढनी जोडीओमां उत्तम एवी आठवतराउ वखनी ओडीओ, ए प्रमाणे टसरनी जोडीओ, पट्टयुगलो, दुकूलवुगलो, आठ श्री, आठ ही, ए प्रमाणे घी, कीर्ति, बुद्धि, अने लक्ष्मी देवीओनी प्रतिमा जाणवी. आठ नंदो, आठ भद्रो, ताडमां उत्तम एवा आठ बालवृक्ष-ए सर्वरत्नमय जाणवा. पोताना भवनना केतु-चिह्नरूप ध्वजमां उत्तम एवा | आठ ध्वजो दस हजार गायोनुं एक व्रज-गोकुल थाय छे, तेवा गोकुलमां उत्तम एवा आठ गोकुलो, नाटकोमां उत्तम अने बत्रीश माणसोथी भजवी सकाय एवा जाठ नाटको, घोडाओमां उत्तम एवा आठ घोडा, आ बधुं रलमय जाणवुं. भांडागार समान हाथीओमां उत्तम एत्रा आठ रत्नमय हाथीओ, भांडागार समान सर्वरत्नमय यानोमां श्रेष्ठ एवा आठ यानो, युग्यमां उत्तम आठ युग्यो (अमुकजातना वाहनो) ए प्रमाणे शिविका, स्वदंमानिका ए प्रमाणे गिल्ली, (हाथीनी उपरनी अंबाडी), थिल्लिओ (घोडाना आडा पलाणी ),
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१२ शतके उद्देशः ११ ॥१००१॥
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Pा विकट यानोमा ( उघाडा वाहनोमा) प्रधान एवा आठ विकट यानो, आठ पारियानिक (क्रीडाना ) रथो, संग्रामने योग्य एवा IPL
आठ रथो, अश्वोमा उत्तम एवा आठ अश्व, हाथीओमा उत्तम एवा आठ हाथीओ, ग्रामोमां उत्तम एका आठ गामो जेमां दस हजार व्याख्या
१९शत प्रतिः कुलो रहे ते एक गाम कहेवाय है,
उदेसार ॥१०.२ अट्ठ दासे दासप्पवरे एवं चेव दासीओ एवं किंकरे एवं कंचुइज्ज एवं वरिसधरे एवं महत्तरए अट्ट सोबन्निएPIRI
ओलंबणदीवे अट्ट रुप्पामए ओलंबणदीवे अट्ट सुवन्नरुप्पामए ओलंबणदीवे अट्ट सोरन्निए उकंचणदीवे एवं चेव, रतिनिवि अट्ट सोचन्निए थाले अट्ट रुप्पमए थाले अट्ठ सुवन्नरुप्पमए थाले अट्ट सोचनियाओ पत्तीजो ३ अह सोव| नियाई धासगाई ३ अट्ट सोवन्नियाई मंगलाइं ३ अट्ट सोवन्नियाओ तलियाओ अट्ट सोचनियाओ कावइआओ अह सोवन्निए अवएडए अट्ट सोचनियाओ अवयकाओ अट्ट सोवपिणए पायपीढए ३ अढ सोनियाओ भिसियाओ। अट्ट सोवन्नियाओ करोडियाओ अट्ट सोवन्निए पल्लंके अट्ट सोवन्नियाओ पडिसेजाओ अट्ट हंसासणाई अट्ठ कोंचासणाई एवं गरुलामणाई उन्नयासणाई पणयासणाई दीहासणाई भद्दासणाई पक्खासणाई मगरासणाई अट्ठ पउ. | मासणाई अट्ट दिसासोबत्थियासणाई अह तेल्लसमुग्गे जहा रायप्पसेणइज्जे जाव अट्ट सरिसवसमुग्गे अट्ठखुजाओ जहा उपवाइए जाव अट्ठ पारिसीओ अट्ठ छत्ते अट्ठ उत्तधारीओ चेडीओ अट्ट चामराओ अट्ठ चामरधारीओ चेडीओ अढ तालियंटे अट्ठ तालियंटधारीओ चेडीओ अढ करोडियाधारीओ चेडीओ अट्ठ वीरधातीओ जाव अट्ठ अंकधातीओ अट्ट अंगमदियाओ अट्ट उम्मदियाओ अट्ठ पहावियाओ अट्ठ पसाहियाओ अट्ट बन्नगपेसीओ अट्ठ चुन्नग
SAMSCACCXXX
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व्याख्या
॥१००३॥
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पेसीओ अढ कोहागारीओ अट्ठ दब्वकारीओ अट्ठ उवत्थाणियाओ अट्ठ नाइडजाओ अट्ठ कोटुंबिणीओ अट्ठ महा-16 णसिणीओ अट्ठभंडागारिणीओ अट्ठ अज्झाधारिणीओ अट्ट पुप्फाधारणीओ अढ पाणिधारणीओ अट्ठ बलिकारीओ अट्ठसेज्जाकारीओ अट्ठ अभि तरियाओ पडिहारीओ अट्ट बाहिरियाओ पडिहारीओ अट्ठ मालाकारीओ अट्ठ पेस- 1%ा उद्देश११ रीओ अनं वा सुबहु हि- रत्नं वा सुवन्न वा कंसं वा दूसं वा विउलधणकणगजावसंतसारमावएवं अलाहि जाव 3॥१०.३॥ आसत्तमाओ कुलबंसाओ पकाम दाउं पकामं भोत्तुं पकामं परिभाएउं । तए णं से महन्यले कुमारे एगमेगाए भजाए पगमेगं हिरनकोडैि दलयति एगमेग सुबन्नकोडिं दलयति पगमेग मउड मउडप्पवरं दलयति एवं तं चेच सब्वं जाव एगमेगं पेसण कारिं दलयति अन्न चा सुबहुं हिरनं वा जाय परिभाएउं, तए णं से महन्बले कुमारे उपि पासायवरगए जहा जमाली जाच विहरति ॥ (मूत्र ४३०॥ ___ दासोमां उत्तम एवा आठ दासो, एज प्रमाणे दासीओ ए प्रमाणे किंकरो, ए प्रमाणे कंचुकिओ, ए प्रमाणे वर्षघरो, (अंतःपुरना रक्षक खोजाओ) ए प्रमाणे महत्तरको (बडाओ), आठ सोनाना, आठ रुपाना तथा आठ सोना-रुपाना अवलंबन दीयो [हांडीओ | आठ सोनाना, आठ रुपाना अने आठ सोना-रुपाना उत्कंचनदीपो [दंडयुक्त दीवाओ], ए प्रमाणे त्रणे जावना पंजरदीपो-फानसो, आठ सोनाना, आठ रुपाना अने आठ सोना-रुपाना थाळो, आठ सोनानी आठ रुपानी अने आठ सोना-रुपानी पात्रीओ (नाना पात्रो), ए प्रमाणे प्रणे जातना आठ स्थासको तासको, आठ मल्लको-चपणीया, आठ तलिका-रकेचीओ, आठ कलाचिका-चमचा, आठ तावेथाओ, आठ तवीओ, आठ पादपीठ-(पग मूकवाना बाजोठ), आठ मिसिका-(अमुक प्रकारना आसनो), आठ करोटिका
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शतके उद्देश:११ M१००४॥
(अमुक जातना पात्रो, लोटा अथवा कचोला), आठ पलंग, आठ प्रतिशय्या (ढोयणी प्रमुख नानी बीजी श्य्याओ), आठ हंसासनो,
आठ क्रौचासनो,ए प्रमाणे गरुडासनो,उंचा आसनो,नीचा आसनोदीसिनो,मद्रासनो,पक्षासनो,मकरासनो,आठ पद्मासनो,आठ दिक्स्वव्याख्या प्रदाप्तिः
Fस्तिकासनो,आठतेलना डाबडा-इत्यादिवर्धं राजप्रश्नीय सूत्रमा कह्या प्रमाणे कहेवू,यावद् आठ सरसवना डाबडा,आठ कुब्ज दासीओ॥१००४॥ इत्यादि बधु औपपातिक सूत्रमा कह्या प्रमाणे कहे, यावत् आठ पारसिक देशनी दासोओ; आठ छत्रो, आठ छत्र धरनारी दासीओ,
आठ चायरो, आठ चामर धरनारी दासीओ, आठ पंखा, आठ पंखा वींजनारी दासीओ, आठ करोटिका-तांबूलना करंडिया-ने दूधारण करनारी दासीओ, आठ क्षीरधात्रीओ (दूध पानारी धावो), यावद् आठ अंकपात्रीओ (खोळामा रमाडनारी धावो) आठ
अंगममिकाओ,-शरीरर्नु अल्प मर्दन करनारी दासीओ आठ उन्मदिकाओ (अधिक मदेन करनारी दासीओ), आठ स्नान करावनारी दासीओ, आठ अलंकार पहेरावनारीओ, आठ चंदन घसनारीओ, आठ तांबूल चूर्ण पीसनारीओ, आठ कोष्ठागारर्नु रक्षण करनारी, आठ परिहास करनारी, आठ सभामां पासे रहेनारी, आठ नाटक करनारीओ, आठ कौटुंबिकीओ-साथे जनारी दासीओ,आठ रसोड करनारी, आठ भांडागारनुं रक्षण करनारी, आठ मालणो, आठ पुष्प धारण करनारी, आठ पाणी लावनारी आठ बलि करनारी, आठ पथारी तैयार करनारी. आठ अंदरनी अने आठ बहारनी बहारनी प्रतिहारीओ, आठ माला करनारीओ, आठ पेषण करनारी, अने ए शिवाय वीजु घणुं हिरण्य, सुवर्ण, कांसं, वस्त्र तथा विपुल धन, कनक, यावत् विद्यमान सारभूत धन आप्यु. जे सात पेदी सुधी इच्छापूर्वक आफ्वा अने भोगववाने परिपूर्ण हतुं. त्यार बाद ते महाबल कुमार दरेक खीने एक एक हिरण्यकोटि, एक एक सुवर्णकोटि अने मुकुटोमां उत्तम एक एक मुकुट आपे छे. ए प्रमाणे पूर्वोक्त सर्व वस्तुओ एक एक आपे , यावत् एक एक
रसोइ करनारी, आठ
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अंदरनी अने आठ बहारना बहा
यावत् विद्यमान सारभूत धन
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पंचहि अणगारमा उजाणे तेणेव उवागवाडगतिय जाव पाता तहेव कंचुइजरायलजाव निगाह
पोषण करनारी दासी तथा बीजं पण घणु हिरण्य यावद् बहेंची आपे छे. त्यार पछी ते महाबल कुमार उचम प्रासादमां उपर बेसीद
जमालिनी पेठे यावद् विहरे छे. ॥ ४३०॥ व्याख्या
११शतके प्रमतिः
या तेणं कालेणं २ विमलस्स अरहओ पओप्पए धम्मघोसे नाम अणगारे जाइसंपन्ने वन्नओजहा केसिसामिस्स उद्देश:११ ॥१००५॥ जाव पंचहिं अणगारसएहिं सद्धिं संपरिबुडे पुब्वाणुपुब्धि चरमाणे गामाणुगामं दूतिजमाणे जेणेव हत्यिणागपुरे ॥१०.५॥
नगरे जेणेव सहसंयवणे उल्लाणे तेणेव उवागच्छइ २ अहापडिरूवं उग्गहं ओगिण्हति २ संजमेणं तवसा अपाणं भावेमाणे विहरति। तए णं हत्थिणापुरे नगरेसिंघाडगतिय जाव परिसा पज्जुवासइ । तए णं तस्स महब्बलस्स | कुमारस्स तं महया जणसई वा जणवूह वा एवं जहा जमाली तहेव चिंता तहेब कंचुहजपुरिस सद्दावेति, कंचुइ-15 भजपुरिसोवि तहेव अक्खाति, नवरं धम्मघोसस्स अणगारस्स आगमणगहियविणिच्छा करयलजाव निग्गच्छद, | एवं खलु देवाणुप्पिया! विमलस्स अरहओ पउप्पए धम्मघोसे नाम अणगारे सेसं तं चेव जाच सोऽवि तहेव रहवरेणं निग्गच्छति, धम्मकहा जहा केसिसामिस्स, सोवि तहेव अम्मापियरो आपुच्छह, नवरं धम्मघोसस्स अणगारस्स अंतियं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारिय पव्वइत्तए तहेव वुत्तपडिवुत्तया नवरं इमाओ य ते जाया विउलरायकुलबालियाओ कला सेस तं चेव जाव ताहे अकामाई चेव महम्पलकुमारं एवं वयासी
ते काले ते समये विमलनाथ तीर्थकरना प्रपौत्र-प्रशिष्य धर्मघोष नामे अनगार हता, ते जातिसंपन्न इता-इत्यादि वर्णन केशी *खामीनी पेठे जाण, यावद तेओ पांचसो साधुना परिवारनी साये अनुक्रमे एक गामथी बीजे गाम विहार करता ज्यां हस्तिनागपुरा
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११शतके उदेश:११ १०.६॥
नामे नगर छे, अने ज्यां सहस्रामवन नामे उद्यान छे, त्यां आवे छे, आवीने यथा योग्य अवग्रहने ब्रहण करी संयम अने तपवढे पास्या- आत्माने भावित करता यावद् विहरे छे, ते समये हस्तिनागपुर नगरमा शृंगाटक, त्रिक-[ वगेरे मार्गोमां घणा माणसो परस्पर एम प्राप्तिःला कहे छे इत्यादि ] यावत् परिषद् उपासना करे छे. त्यार बाद ते महाबल कुमार घणा माणसोना शन्दने, जनना कोलाहलने सांभळी
ए प्रमाणे यावत् जमालिनी पेठे जाणवू, यावत् ते महाबल कुमार कंचुकी पुरुषने बोलावे के, अने कंचुकी पुरुष पण तेज प्रमाणे कहे छे, परन्तु एटलो विशेष छे के ते कंचुकी धर्मघोष मुनिना आगमननो निश्चय जाणीने हाथ जोडीने यावद् नीकळे के. ए प्रमाणे हे देवानुप्रिय ! विमलनाथ अरिहंतना प्रशिष्य धर्मघोष नामे अनगार अहीं आव्या ई-इत्यादि पूर्व प्रमाणे जाणवू, यावत् ते महाबल कुमार पण उत्तम रथमां बेसीने बांदवा नीकळे के. धर्मकथा केशिस्वामिनी पेठे जाणवी. महाबल कुमार पण ते प्रमाणे मातापितानी रजा मागे छ, परन्तु ते 'धर्मघोष अनगारनी पासे दीक्षा लइ अगारथी-गृहवासथकी अनगारिकपणुं लेवाने इच्छु छै' एम कहे -इत्यादि उक्त अने प्रत्युक्ति ते प्रमाणे ( जमालिना चरितमां वर्णन्या प्रमाणे) जाणवी. परन्तु हे पुत्र ! [आ तारी स्त्रीओ] विपुल एवा राजकुलमा उत्पन्न ययेली बालाओ छे, वळी ते कलाओमां कुशल छे-इत्यादि वर्षा पूर्व प्रमाणे जाणवू. यावद मातापिताए इच्छा विना ते महापल कुमारने आ प्रमाणे कधु
तं इच्छामो ते जाया। एगदिवसमवि रजसिरिं पासित्तए, तए ण से महन्यले कुमारे अम्मापियराण वयणमणुयत्तमाणे तुसिणीए संचिट्ठति । तए णं से बले राया कोडंवियपुरिसे सद्दावेह एवं जहा सिवभहस्स तहेव रायाभिसेओ भाणियब्बोजाव अभिसिंचति करयलपरिग्गहियं महम्बलं कुमारं जएणं विजएणं वद्धाति जएणं विजएणं
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बद्धावित्ता जाव एवं वयासी-भण जाया किं देमो किं पयच्छामो सेसंजहाजमालिस्स तहेव जाव तएणं से महम्बले
अणगारे धम्मघोसस्स अणगारस्स अंतिय सामाइयमाइयाई चोद्दस पुवाई अहिज्जति अ०२ बहहिं चउत्थजाव व्याख्या
|११शतके विचित्तेहिं तबोकम्मेहिं अप्पाण भावेमाणे बहुपडिपुन्नाइंदुवालस वासाई सामनपरियागं पाउणति बहु० मासि- उद्देशा११ ११००७॥ याए सलेहणाए सहि भत्ताई अणसणाए.आलोइयपडिकते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा उड्दचंदिमसूरिय- १००७॥
जहा अम्मडो जाव भलोए कप्पे देवत्ताए उववन्ने, तत्थ णं अत्थेगतियाणं देवाणं दस सागरोवमाई ठिती पपणत्ता, तत्थ णं महवलस्सवि दस सागरोवमाई ठिती पन्नत्ता, सेणं तुम सुदंसणा ! वंभलोगे कप्पे दस सागरोवमाइं दिव्वाइं भोगभोगाइं भुजमाणे विहरित्ता ताओ चेव देवलोगाओ आउक्खएणं ३ अणंतरं चयं चइत्ता इहेव वाणियगामे नगरे सेट्टिकुलं सिपुत्तत्ताए पचायाए ।। (सूत्रं ४३१) ।। हा 'हे पुत्र ! एक दिवस पण तारी राज्यलक्ष्मीने जोवा अमे इच्छीए छीए,' त्यारे ते महाबल कुमार मातापिताना वचनने अनु.15 दूसरीने चूप रह्यो. पछी ते बल राजाए कौटुंबिक पुरुषोने बोलाव्या -इत्यादि शिवभद्रनी पेठे राज्याभिषेक जाणवो, यावत् राज्या-
भिषेक कर्यो, अने हाथ जोडीने महाबल कुमारने जय अने विजयवडे वधावी यावद् आ प्रमाणे कयु-हे पुत्र ! कहे के तने शुं दइए, तने शुं आपीए,' इत्यादि बाकीनुं बधुं जमालिनी पेठे जाणवू; यावत् त्यार पछी ते महाबल अनगार धर्मघोष अनगारनी पासे सामायिकादि चउद पूर्वोने भणे छे, भणीने घणा चतुर्थ भक्त, यावद् विचित्र तपकर्मवडे आत्माने भावित करीने संपूर्ण चार वर्ष श्रमण पर्यायने पाळे छे, पाळीने मासिक संलेखनावडे निराहारपणे साठ भक्तोने वीतावी, आलोचना अने प्रतिक्रमण करी समाधिने ।
PLEARCIANS
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व्याख्या- प्रज्ञप्तिः ॥१००८
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| प्राप्त थइ मरण समये काल करी ऊर्ध्व लोकमां चंद्र अने सूर्यनी उपर बहु दूर अंबडनी पेठे यावत् ब्रह्मलोक कल्पमा देवपणे उत्पन्न थयो. त्यां केटलाक देवोनी स्थिति दस सागरोपमनी कहेली छे. तेमां महाबल देवनी पण दस सागरोपमनी स्थिति कहेली छे. हे ११शतके सुदर्शन ! तुं ते ब्रह्मलोक कल्पमा दस सागरोपम सुधी दिव्य अने भोग्य एवा भोगोने भोगवी ते देवलोकथी आयुषनो, भवनो उद्देश:११
8॥१००८॥ | अने स्थितिनो क्षय थया पछी तुरतज च्यवी अहींज वाणिज्यग्राम नामना नगरमां श्रेष्ठिना कुलमा पुत्रपणे उत्पन्न थयो छे. ॥४३१॥12
तए णं तुमे सुदंसणा! उम्मुकवालभावेण विनायपरिणयमेत्तणं जोवणगमणुप्पत्तण तहारूवाण थेराण अ. तियं केवलिपन्नत्ते धम्मे निसते, सेऽविध धम्मे इच्छिए पडिच्छिए अभिरुइए तं सुटु ण तुमं सुदंसणा! इदाणिं पकरेसि । से तेणद्वेणं सुदंसणा! एवं बुचइ-अस्थि णं एतेसिं पलिओवमसागरोवमा खयेति वा अवचयेति बा, तए गं तस्स सुदंसणस्स सेहिस्स समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं एयम सोचा निसम्म सुभेणं अज्झवसाणेणं सुभेण परिणामेण लेसाहिं विसुज्झमोणीहि तयावरणिज्वाणं कम्माणं खओवसमेणं ईहापोहमग्गणगवे. सणं करेमा/स्स सन्नीपुब्वे समुप्पन्ने एपमहूँ सम्म अभिसमेति,तए णं से सुदंसणे सेट्ठी समणेणं भगवया महा। वीरेणं संभारियपुब्वभवे दुगुणाणीयसड्ढासंवेगे आणंदसुपुतनयणे समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आ०२ वं. नम २त्ता एवं बयासी-एवमेय भंते !जाव से जहेयं तुज्झे वदहत्तिकहु उत्तरपुरच्छिमं दिसीभार्ग अबक्कमह सेसं जहा उसमदत्तस्स जाव सब्वदुक्म्वप्पहीणे, नवरं चोद्दस पुत्वाइं अहिजइ बहुपडिपुन्नाई दुवालस वासाइं मामनपरियाग पाउणइ, सेसं तं चेव । सेवं भंते! सेवं भंते ॥ (सूत्र ४३२) । महन्बलो समत्तो।।११-११ ॥
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है|११शतके
उद्देशा११ ॥१००९॥
त्यार बाद हे सुदर्शन ! बालपणाने वीतावी विज्ञ अने मोटो थइ, यौवनने प्राप्त थइ ते तेवा प्रकारना स्थविरोनी पासे केवलिए व्याख्या
कहेलो धर्म सांभळ्यो, अने ते धर्म पण तने इच्छित अने स्वीकृत थयो, तथा तेना उपर तने अभिरुचि थइ. हे सुदर्शन! हाल तुं जे १०.९४ करे ? ते सारं करे छे. तेमाटे हे सुदर्शन ! एम कहेवाय छे के ए पल्योपम अने सागरोपमनो क्षय अने अपचय थाय छे. त्यार बाद
श्रमण भगवंत महावीरनी पासेथी धर्मने सांभळी, अवधारी ते सुदर्शन शेठने शुभ अध्यवसायवडे, शुभ परिणामवडे अने विशुद्ध
लेश्याओथी तदावरणीय कर्मोनो क्षयोपशम थवाथी ईहा, अपोह, मार्गणा अने गवेषणा करतां संज्ञिरूप पूर्व जन्मनु स्मरण उत्पन्न हाथयुं अने तेथी भगवंते कहेला आ अर्थने सारी रीते जाणे छे. त्यार बाद ते सुदर्शन शेठने श्रमण भगवंत महावीरे पूर्वभव संभारेलो
होवाथी वेवडी श्रद्धा अने संवेग उत्पन्न थयो, तेनां लोचन आनंदाश्रुथी परिपूर्ण थया, अने तेणे श्रमण भगवंत महावीरने त्रण बार
आदक्षिण प्रदक्षिणा करी, वांदी अने नमीने आ प्रमाणे कधु-'हे भगवन् ! तमे जे कहो छो ते एज प्रमाणे ठे-यावत् एम कही ते सामुदशन शेठ उत्तरपूर्व (ईशान ) दिशा तरफ गया. बाकी वर्षा ऋषभदत्तनी पेठे जाणवु, यावत् ते सुदर्शन शेठ सर्व दुःखथी रहित
थया. परन्तु विशेष ए छे के ते पूरां चौद पूर्वो भणे छे, अने संपूर्ण चार वरस सुधी श्रमणपर्यायने पाळे छे. बाकी बर्षा पूर्व प्रमाणे जाणवू हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे के. हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे छे -एम कही यावद् विहरे छे. ॥ ४३२।।
भगवत सुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीस्त्रना ११ मा शतकमां अगीयारमा उद्देशानो मूलार्थ मंपूर्ण थयो.
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व्याख्या प्रज्ञप्तिः
॥ १०१०॥
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उद्देशक १२.
काले
आलभिया नामं नगरी होत्था, बन्नओ, संखबणे चेइए, वन्नओ, तस्थ णं आलभियाए नगरीए बहवे इसि भपुत्त पामोक्खा समणोवासया परिवसंति अड्डा जाव अपरिभूया अभिगयजीवाजीवा जाव विहति । तएणं तेसिं समणोवासयाणं अन्नया कयादि एगयओ सहियाणं समुवागयाणं संनिविद्वाणं सन्निसन्नाणं भयमेयावे मिहो कहासमुल्लावे समुप्पज्जित्था - देवलोगेभ्रु णं अजो ! देवाणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता, तए णं से इसि भद्दपुत्ते समणोवासए देवद्वितीगहियद्वे ते समणोवासए एवं वयासी देवलोएसु णं अज्जो ! देवाणं जहणेणं दसवास सहस्साई ठिती पण्णत्ता, तेण परं समयाहिया दुसमयाहिया जाव दससमग्राहिया संखेज्जसमाहि असंखेज समयाहिया उक्कोसेणं तेत्तीस सागरोवमाई ठिती पन्नत्ता, तेण परं बोच्छिन्ना देवा य देवलोगा य । तए णं ते समणोवासया इसि भद्दपुत्तस्स समणोवासगस्स एवमाहवमाणस्स जाब एवं परूवेमाणस्स एयमहं नो सहहंति नो पत्तियंति नो रोयति एयमहं असद्दहमाणा अपत्तियमाणा अरोपमाणा जामेव दिसं पाउन्भूया तामेव दिसिं पडिगया (सूत्रं ४३३) ।
ते काले-ते समये आलभिका नामे नगरी हती. वर्णन. शंखवन नामे चैत्य हतुं वर्णन. ते आलभिका नगरीमा ऋषिभद्रपुत्र प्रमुख घणा श्रमणोपासको श्रावको रहेता हता. तेओ धनिक यावद् कोइधी पराभव न पामे तेवा अने जीवा - जीव तने जाणनारा हता. त्यार बाद बीजा कोह एक दिवसे एकत्र मळेला, आवेला, एकठा थयेला अने बेठेला ते श्रमणोपासकोनो आ आवा प्रकारनो
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१९ शतके उद्देशः १२
॥१-१०॥
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ख्या- प्रवतिः ॥१०११॥
वार्तालाप थयो-'हेआर्य! देवलोकमां देवोनी केटला काल सुधी स्थिति कही छे? त्यार बाद देवस्थिति संवन्धे सत्य हकीकत जाणनार ऋषिभद्रपुत्रे ते श्रमणोपासकोने आ प्रमाणे ह्यु-'हे आर्य! देवलोकमां देवोनी जघन्य स्थिति दस हजार वर्षनी कही छे, त्यार पछी * ११शतके एकसमय अधिक, वे समय अधिक यावद् दश समय अधिक, संख्यात समयाधिक, अने असंख्य समयाधिक करतां उत्कृष्ट तेत्रीश उदेश:१२ सागरोपमनी स्थिति कही छे. त्यार पछी देवो अने देवलोको व्युच्छिन्न थाय छे ( अर्थात् तेनाथी उपरनी स्थितिना देवो अने देव- १०११॥ लोको नथी.) त्यार पछी ए प्रमाणे कहेता, यावत् एम प्ररूपणा करता ते श्रमणोपासको ऋपिभद्रपुत्र श्रमणोपासकना आ अर्थनी श्रद्धा करता नथी, प्रतीति करता नथी अने रुचि करता नथी. ए अर्थनी श्रद्धा, प्रतीति अने रुचि नहि करता तेओ जे दिशाथी | आच्या हता तेज दिशा तरफ पाछा गया. ।। ४३३ ।।
तेणं कालेणं २ समणे भगवं महावीरे जाव समोसढे जाद परिसा पज्जुवासइ । तए पां ते समणोवासया इमीसे कहाए लट्ठा समाणा हहतुट्ठा एवं जहा तुगिउद्देसए जाच पज्जुवासंति । तए णं समणे भगवं महावीरे तेसिं समणोवासगाणं तीसे य महति धम्मकहा जाव आणाए आराहए भवद । तए णं ते समणोवासयासमणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्म सोच्चा निसम्म हहतुट्ठा उठाए उठेइ उ०२ समण भगवं महावीरं वंदन्ति नममन्ति २ एवं वदासी-एवं स्वल भंते ! इसिभद्दपुत्ते समणोवासए अम्हं एवं आइक्खइ | जाव परूवेइ-देवलोएसुणं अन्नो देवाणं दस वाससहस्साई जहन्नेणं ठिती पन्नत्ता तेण परं समयाहिया जाव तेण परं वोच्छिन्ना देवा य देवलोगा य, से कहमेयं भंते ! एवं ?, अजोत्ति समणे भगवं महावीरे ते समणोवासए एवं
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व्याख्याप्रसिः ॥१०१२||
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वयासी-जन्नं अजो ! इसिभद्दपुत्ते समणोवास तुझं एवं आइक्खइ जाव परूवेह देवलोगेसु णं अजो! देवाणं जहनेणं दस बाससहस्सा लिई पन्नत्ता तेण परं समयाहिया जात्र तेण परं वोच्छिन्ना देवा य देवलोगा य, सच्चे णं एसमट्ठे । तए णं ते समणोवासगा समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं एयमहं सोचा निसम्म समणं भगवं महावीरं वंदन्ति नम॑सन्ति २ जेणेव इसि भद्दपुत्ते समणोवासए तेणेव उवागच्छन्ति २ इसि भद्दत्तं समणोवासगं वदति नमसंति २ एयम संमं चिणएणं भुजो २ खार्मेति । तए णं समणोवासया पसिणाई पुच्छति पु०२ अट्ठाई परियादेयंति अ०२ संमणं भगवं महाबीरं वंदंति नमंसंति वं० २ जामेव दिसं पाउन्भूया तामेव दिसं पडिगया (सूत्रं ४३४ ) |
- ते काले-ते समये श्रमण भगवंत महावीर यावत् समवसर्या, यावत् परिषद तेमनी उपासना करे छे. त्यार बाद ते श्रमणोपा सको [ श्री महावीरस्वामी आन्यानी ] आ बात सांभळी, हर्षित अने संतुष्ट थया - इत्यादि तुंगिक उद्देशकनी पेठे जाणवु, यावत् तेओ पर्युपासना करे छे, त्यार पछी श्रमण भगवंत महावीरे ते श्रमणोपासकोने तथा अत्यन्त मोटी ते पर्षदने धर्मकथा कही. यावद तेओ आज्ञाना आराधक थया. त्यार पछी ते श्रमणोपासको श्रमण भगवंत महावीर पासेयी धर्मने सांभळी, अवधारी, हर्षित अने संतुष्ट थया, अने प्रयत्नथी उभा थइ श्रमण भगवंत महावीरने वांदी अने नमीने आ प्रमाणे कं- 'हे भगवन् ! ए प्रमाणे खरेखर ऋषभद्रपुत्र श्रमणोपासक अमने ए प्रमाणे कहे छे, यावत् प्ररूपे छे के, हे आर्य ! देवलोकमां देवोनी जघन्य स्थिति दश हजार वर्षनी कही छे, अने ते पछी समयाधिक यावद् उत्कृष्टस्थिति [ तेत्री सागरोपमनी कही छे ], अने पछी देवो अने देवलोक व्युच्छिन्न थाय छे, तो हे भगवन् । ते ए प्रमाणे केवीरीते होय ? [अ०] 'हे आर्यो' । एम कही श्रमण भगवंत महावीरे ते श्रमणोपासकोने
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१२ शतके
उद्देशः १२ ॥१०१२॥
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व्याख्याप्रमसः १०१३।
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आ प्रमाणे क- 'हे आयों ! ऋषिभद्रपुत्र श्रमणोपासक जे तमने आ प्रमाणे कहे छे, यावत् प्ररूपे छे के, देवलोकोयां देवोनी जघन्य स्थिति- दस हजार वर्षनी छे, अने ते पछी समयाधिक करता इत्यादि कहेवु यावत् त्यार पछी देवो अने देवलोको व्युच्छिन्न थाय छे. ए वात साची छे. हे आर्यो ! हुं पण एज प्रमाणे कहुं हुं, यावत् प्ररूपुं हुं के देवलोकमां देवोनी स्थिति जघन्य दस हजार वर्षनी छे- इत्यादि पूर्वोक्त कहेतुं यावत् त्यार बाद देवो अने देवलोको व्युच्छिन्न थाय छे, ए अर्थ सत्य छे. त्यार बाद ते श्रमणोपासको श्रमण भगवंत महारवीनी पासेथी ए बात सांभळी अने अवधारी श्रमण भगवंत महावीरने वांदी, नमी ज्यां ऋषिभद्रपुत्र श्रमणोपासक छे त्यां आवे छे, आवीने ऋषिभद्रपुत्र श्रमणोपासकने बांदी तथा नमी ए अर्थने ( सत्य वातने न मानवारूप अपराधने ) सारी रीते विनयपूर्वक वारंवार खमावे छे. त्यार बाद ते श्रमणोपासको तने प्रश्नो पूछे छे, अने पूछी अर्थने ग्रहण करे छे, ग्रहण करी श्रमण भगवंत महावीरने बांदी नमी जे दिशाथकी आव्या हता, पाछा तेज दिशा तरफ गया. ॥ ४३४ ॥
भंतेत्ति भगवं गोमे समणं भगवं महावीरं बंद णमंसइ वं० २ एवं वयासी पभू णं भंते ! इसि भद्दपुत्ते | समाणोवासए देवाणुप्पियाणं अंतियं मुंडे भवित्ता आगाराओ अणगारियं पव्वत्तए?, गोयमा ! णो तिट्टे सम गोयमा ! इसि भद्दपुत्ते समणोवासए बहहिं सीलव्वयगुणवयवेरमणपञ्चकखाणपोसहोववासेहिं अहापरिग्गहिए हिं तवोकम्मेहिं अप्पाणं भावेमाणे बहूई बासाई समणोवासगपरियागं पाउहिति ब०२ मासियाए संलेहणाए अत्तार्ण | झूसेहिति मा० २ सहिँ भत्ताई अणसणाई छेदेहिति २ आलोहयपडिते समाहिपत्ते कालमासे कालं किवा सोहम्मे कप्पे अरुणाभे विमाणे देवत्ताए उववजिहिति, तत्थ अत्थेगतियाणं देवाणं चत्तारि पलिओचमाई ठिती
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११ सबके उद्देशः १२ ॥१०१३॥
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व्यास्थाप्रवशिः ॥१०१४||
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पण्णत्ता, तत्थ णं इसि भद्दपुत्तस्सवि देवस्स चत्तारि पलिओ माई ठिती भविस्सति । से णं भंते । इसि भद्दपुत्ते देवे तातो देवलोगाओ आउक्खणं भव० ठिइक्वएणं जाव कहिँ उववज्जिहिति ?, गोयमा ! महाविदेहे वासे सिज्शिहिति जाव अंतं काहेति । सेवं भंते! सेवं भंते । ति भगवं गोपमे जाव अप्पाणं भावेमाणे विहरह (सूत्रं ४३५) । [०] 'हे भगवन्' ! ए प्रमाणे कही भगवान् गौतमे श्रमण भगवंत महावीरने वांदी अने नमस्कार करी आ प्रमाणे कशुं- 'हे भगवन् ! श्रमणोपासक ऋषिभद्रपुत्र आप देवानुप्रियनी पासे दीक्षा लइ गृहवासनो त्याग करी अनगारिकपणाने लेवाने समर्थ छे १ [[अ०] हे गौतम! आ अर्थ यथार्थ नथी; पण हे गौतम ! श्रमणोपासक ऋषिभद्रपुत्र घणा शीलव्रत, गुणव्रत, विरमणव्रत प्रत्याख्यान | अने पौषधोपवासो वडे तथा यथायोग्य स्वीकारेल तपकर्म वडे आत्माने भावित करतो घणां वरसो सुधी श्रमणोपासक पर्यायने पाली, मासिक संलेखनावडे आत्माने सेवी, साठ भक्तो निराहारपणे वीताची आलोचन अने प्रतिक्रमण करी, समाधिने प्राप्त थह मरण समये काल करी सौधर्मकल्पमा अरुणाभम नामे विमानमां देवपणे उत्पन्न थशे. त्यां केटलाक देवोनी चार पल्योपमनी स्थिति कही छे; तेमां ऋषभद्रपुत्र देवनी पण चार पल्योपमनी स्थिति हशे [प्र० ] हे भगवन् ! पछी ते ऋषभद्रपुत्र देव ते देवलोकधी आयुषनो क्षय थया पछी, भवनो क्षय थया पछी, अने स्थितिनो क्षय थया बाद यावत् क्यां उत्पन्न थशे ? [अ०] दे गौतम ! महाविदेह क्षेत्रमां सिद्धिपद पामशे यावत् सर्व दुःखोनो अन्त- नाश करशे. हे मगवन् । ते एमज छे, हे भगवन् ! से एमब छे-एम कही भगवान् गौतम यावत् आत्माने भावित करता विहरे छे. ।। ४३५ ।।
तरणं समणे भगवं महावीरे अन्नया कयावि आलभियाओ नगरीओ संखवणाओ चेहयाओ पडिनिक्ख
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११ शतके
उद्देशः१५ १०२४॥
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मह पहिनिक्खमित्ता पहिया जणवयविहारं विहरह। तेणं कालेणं तेणं समएणं आलभिया नाम नगरी होस्था, व्यापा
वाओ, तत्थ णं संखवणे णाम चेहए होत्था, वन्नओ, तस्स णं संखवणस्स अदूरसामंते पोग्गले नाम परिव्वा- ११शतके यए परिवसति रिउव्वेदजजुरवेदजावनएसुसुपरिनिहिए छटुंण्टेणं अणिक्खित्तणं तवोकम्मेणं उड् पाहाओ जाव
उद्देश:१९ ॥१०१५ आयावेमाणे विहरति तए णं तस्स पोग्गलस्स उट्ठण्टेणंजाव आयावेमाणस्स पगतिभद्दयाए जहासिवस्स जाव
4॥१०१५॥ विन्भंगे नामं अनाणे समुप्पने, से णं तेणं विभंगेणं अनाणेणं समुप्पन्नेणं बंभलोए कप्पे देवाणं ठिति जाणति सपासति । तए णं तस्स पोग्गलस्स परिव्वायगस्स अयमेयारूवे अन्भथिए जाव समुप्पजित्था-अस्थि णं ममं 3
इसेसे नाणदंसणे समुप्पन्ने, देवलोएसुणं देवाणं जहन्नेणं दसवाससहस्साई ठिती पण्णता तेण परं समयाहिया दुसमयाहिया जाव [उक्कोसेणं] असंखेजसमयाहिया उक्कोसेणं दससागरोवमाई ठिती पन्नता, तेण परं वोच्छिन्ना देवा य देवलोगा य, एवं संपेहेति एवं २ आयावणभूमीओ पचोरुहह आ० २तिदंडकुंडिया जाव धाउरत्ताओ य गेण्हह गे०२ जेणेव आलभिया णगरी जेणेव परिवायगावसहे तेणेव उवागच्छद उव. २ भंडनिक्खेवं करेति भं० २ आलभियाए नगरीए सिंघाडग जाव पहेसु अन्नमन्नस्स एवमाइक्खह जाव परूवेह-अस्थि ण देवाणुप्पिया! | ममं अतिसेसे नाणदंसणे समुप्पन्ने, देवलोएसुण देवाणं जहन्नेणं दसवाससहस्साई तहेव जाव वोच्छिन्ना देवा य द दवेलोगा. य । तए णं आलभियाए नगरीए एएणं अभिलावेणं जहा सिवस्स तं चेव से कहमेयं मन्ने एवं ?, सामी
समोसढे जाव परिसा पडिगया, भगवं गोयमे तडेव भिक्खायरियाए तहेव. बहजणसई निसामेह तहेव बहजण
उन्सल
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3 सई निसामेत्ता तहेब सव्वं भाणियब्वं जाव अहं पुण गोयमा! एवं आइक्खामि एवं भासामि जाव परूवेमि-II देवलोएमु णं देवाणं जहन्नेणं वस वाससहस्साइ ठिती पण्णता, तेण पर समयाहिया दुसमयाहिया जाव उक्को
य सेणं तेत्तीस सागरोवमाई ठित्ती पन्नत्ता, तेण परं वोच्छिन्ना देवा य देवलोगा य।
उद्देशार ॥१.१६॥
'. त्यार बाद श्रमण भगवंत महावीर अन्य कोइ दिवसे आलमिका नगरीथी अने शंखवन नामे चैत्यथी नीकळी बहारना देशोमां * १०१६ विचरे छे. [प्र०] ते काले-ते समये आलमिका नामे नगरी इती. वर्णन. त्यां शंखवन नामे चैत्य हतु. वर्णन. ते शंखवन चैत्यनी थोडे दूर पुद्गल नामे परिव्राजक रहेतो हतो. ते ऋग्वेद, यजुर्वेद अने यावत् बीजा ब्राह्मण संबन्धी नयोमा कुशल हतो. ते निरंतर
छ छट्टनो तप करवापूर्वक उंचा हाथ राखीने यावत् आतापना लेतोहतो. त्यार बाद ते पुद्गल परित्राजकने निरन्तर छ? छडुना तप । करवापूर्वक यावद् आतापना लेता प्रकृतिनी सरलताथी शिव परिव्राजकनी पेठे यावद् विभंग नामे ज्ञान उत्पन्न थयु, अने ते उत्पन्न
थयेला विभंगज्ञानवडे ब्रह्मलोककल्पमा रहेला देवोनी स्थिति जाणे छे अने जुए छे. पछी ते पुद्गल परिव्राजकने आवा प्रकारनो आ || संकल्प यावद् उत्पन्न थयो-'मने अतिशयवा; ज्ञान अने दर्शन उत्पन्न थयुं छे, देवलोकमां देवोनी जघन्य स्थिति दस हजार वर्षनी
छे, अने पछी एक समय अधिक, वे समय अधिक, यावद् असंख्य समय अधिक करतां उत्कृष्टथी दस सागरोपमनी स्थिति कही छे.
त्यार पछी देवो अने देवलोको न्युच्छिन्न थाय -एम विचार करे छ, विचारीने आतापनाभूमिथी नीचे उतरी त्रिदंड, कुंडिका, IPL यावद् भगवा वस्त्रोने ग्रहण करी ज्या आलभिका नगरी छे, अने ज्यां तापसोना आश्रमो छे त्यां आवे छे, आवीने पोताना उपकरणो
मूकी आलमिका नगरीमां शृंगाटक, त्रिक, यावद् बीजा मार्गोमा एक वीजाने ए प्रमाणे कहे छे, याव प्ररूपेत् - 'हे देवानुप्रिय !
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मने अतिशयवालं ज्ञान अने दर्शन उत्पन्न थयु छ, अने देवलोकमां देवोनी जघन्य स्थिति दश हजार वर्षनी -इत्यादि पू-द भ्याल्पाका
वोक्त कहे, त्यार पछी देवो अने देवलोको म्युच्छिन्न थाय छे. त्यार बाद 'आलमिका नगरीमा'- अमिलापथी जेम शिव राजर्षिर प्रचप्तिः ।
दिउद्देशा१२ MATHMIS माटे पूर्व कर्वा [श० ११ उ.९०८] तेम अहीं कहेवु, यावद् ए प्रमाणे केवी रीते होय? हवे महावीरस्वामी समवसर्या अने
१.९ यावत् परिषद् वांदीने विसर्जित थइ, भगवान् गौतम तेज प्रमाणे मिक्षाचर्या माटे नीकळ्या अने तेओ घणा माणसोनो शब्द सांभळे
छे-इत्यादि वधु पूर्ववत् कहेवु, यावद् हे गौतम हुं पण ए प्रमाणे कहुँ छ, बोलुं छु, यावत् प्ररू' छु के देवलोकमां देवोनी जघन्य का स्थिति दस हजार वर्षनी कही छे, अने त्यार पछी एक ससयाधिक, द्विसमयाधिक यावत् उत्कृष्टथी तेत्रीश सागरोपम स्थिति कही
छे, अने त्यार बाद देवो अने देवलोको ब्युच्छिन्न थाय छे. ___अस्थि ण भंते । सोहम्मे कप्पे दवाई सवन्नाइपि अवआइपि तहेव जाव हंता अस्थि, एवं ईसाणेवि, एवं जाव अच्चुए, एवं गेवेवविमाणेसु अरत्तणुविमाणेसुवि, ईसिपम्भाराएवि जाच हं ता अस्थि, तए ण सा महतिमहालिया जाव पडिगया, तए णं आलंभियाए नगरीए सिंघाडगतिय अवसेंस जहा सिवस्स जाव सव्वदुक. खप्पहीणे नवरं तिदंडकुंडियं जाव धाउरत्तवत्थपरिहिए परिवडियविम्भंगे आलंभियं नगरं मज्झनिग्गच्छति जाव उत्तरपुरच्छिम दिसीभागं अवक्कमति अतिदंडकुंडियं च जहा खंदओ जाव पब्वइओ सेस जहा सिवस्स जाव अब्वाचा सोक्खं अणुभवंति सातयं सिद्धा । सेवं भंते!२ ति॥ (सूत्र ४३६) ॥११-१२ ॥ एक्कारसंमं सयं समत्तं ॥११-१२॥
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११शतके
उद्देश१५ १०१८
[H०] हे भगवन् ! सौधर्मकल्पमा वर्णसहित अने वर्णरहित द्रव्यो के -दत्यादि पूर्ववत प्रश्न. [उ.] हे गौतम ! हा, छे. ए व्याख्या-माप्रमाणे यावद् ईशान देवलोकमां पण जाणवू. ते प्रमाणे यावद् अच्युतमां, अवेयकविमानमा, अनुत्तरविमानमां अने ईपत्यागभारा प्राप्तिः पृथिवीमा (सिद्धशिलामां) पण वर्णसहित अने वर्णरहित द्रव्यो छे. त्यार बाद ते अत्यन्त मोटी परिषद् यावद् विसर्जित थई. पछी ॥१.१८॥
आलभिका नगरीमां शृंगाटक, त्रिक-विगेरे मार्गोमां घणा माणसोने एम कई के इत्यादि शिव राबर्षिनी पेठे कहेवु, यावत् ते सर्व दुःखथी रहित थया. परन्तु विशेष ए के, त्रिदंड, कुंडिका यावद् गेरुथी रंगेला बनने पहेरी विभंगज्ञान रहित ययेलो ते पुद्गल
परिव्राजक आलभिका नगरीनी बचे थईने नीकळे छे. नीकळीने यावद् उत्तरपूर्व (ईशान) दिशा तरफ जह स्कंदकनी पेठे ते पुद्गल है परिव्राजक त्रिदंड, कुंडिका यावद् मूकी प्रवजित थाय छे, बाकी बधुं विकराजर्पिनी पेठे यावद् "सिद्धो अव्यावाध अने शाश्वत
सुखने अनुभवे छे' त्यांसुधी जाणवं. 'हे भगवन् ! ते एमज छ, हे भगवन् ! ते एमज -एम कही यावद् भगवान् गौतम अविहरे २ ॥ ४३६ ॥ भगवत् सुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीमत्रना ११ मा प्रतक्रमा गरमा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो.
॥ इति एकादश सयं समत्तं ॥
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शतक १२. ( उद्देशक १ लो.)
अतिः
॥१०१९॥
REASEACANCE
संखे १ जयंति २ पुढवि ३ पोग्गल ४ अइवाय ५ राहु ६ लोगे य ७ । नागे य ८ देव ९ आया १० मारसम स : सए दसुद्देसा ॥१॥
P१.१९॥ [ उद्देशक संग्रह-] १ शंख, २ जयंती, ३ पृथिवी, ४ पुगल, ५ अतिपात ६ राहु, ७ लोक, ८ नाग, ९ देव अने १० आत्मा
विषयो संवन्धे दश उद्देशको बारमा शतकमां कहेवामां आवशे. है। तेणं कालेणं २ सावस्थीनाम नगरी होत्था वन्नओ, कोहए चेहरा बन्नओ, तत्थ णं सावत्थीए नगरीए
बहवे संखप्पामोक्खा समणोवामगा परिवसंति अड्डा जाव अपरिभूया अभिगयजीवाजीवा जाव विह रंति, तस्सणं संखस्स समणोवासगस्म उप्पला नाम भारिया होत्था सुकुमाल जाव सुरूवा समणोवासिया अ. भिगयजीवा २ जाव विहरह, तत्थ णं सावत्थीए नगरीए पोक्खलीनाम समणोवासए परिवसह अड्डे अभिगयजाव विहरह, तेणं कालेणं २ सामी समोमढे परिसा निग्गया जाव पज्जुषा, तए ण ते समणोबासगा इमीसे जहा आलभियाए जाव पज्जुवासह, तए णं समणे भगवं महावीरे तेसिं समणोबासगाणं तीसे य महति. धम्मकहा जाव परिसा पडिगया, तए णं ते समणोवासगा समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्मं सोचा निसम्म हडतुडु० समण भ० म०वं.न. न० पसिणाई पुच्छति प०अट्ठाई परियादियंति अ०२ उडाए उठेति
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व्याख्याप्रजातिः ॥१.२०॥
RECORGASAARCIES
उ०२ समणस्स भ. महा. अंतियाओ कोडयाओ चेइयाओ पडिनि०प०२ जेणेव सावत्थी नगरी तेणेव पहा. रेत्य गमणाए ॥ (सूत्रं १३७)॥ ते काले, ते समये श्रावस्ती नामनी नगरी हती. वर्णन. कोष्टक नामे चैत्य हतुं. वर्णन. ते श्रावस्ती नगरीमा शंखप्रमुख घणा
१२शतके
18 उद्देशान श्रमणोपासको रहेता हता,तेओ धनिक यावद् अपरि भूत-कोइथी पराभव न पामे तेवा अने जीवाजीव तत्त्वने जाणनाराहता.ते शंख
१०२०॥ नामना श्रमणोपासकने उत्पला नामे खी हती, ते मृकुमाल हाथपगवाळी, यावत् सुरूपा अने जीवाजीव तस्वने जाणनारी श्रमणोपासिका यावद् विहरती हती. ते श्रावस्ती नगरीमा पुष्कली नामे श्रमणोपासक रहेतो हतो, ते धनिक अने जीवाजीव तत्चनो ज्ञाता हतो. ते काले, ते समये त्यां महावीरस्वामी समवसर्या, परिसद् वांदवाने नीकळी, यावत् ते पर्युपासना करे छे. त्यार बाद ते श्रमणोपासको भगवंत आध्यानी आ वात सांभळी आलमिका नगरीना श्रावकोनी पेठे यावत् पर्युपासना करे छे. त्यार बाद श्रमण भगवंत महावीरे ते श्रमणोपासकोने तथा ते अत्यंत मोटी सभाने धर्मकथा कही, यावत् सभा पाछी गई. पछी ते श्रमणोपासकोए श्रमण भगवंत म. हावीर पासेथी धर्म सांभळी, अवधारी हर्षित अने संतुष्ट थई श्रमण भगवंत महावीरने वांद्या अने नमन कयं वांदीने, नमीने प्रश्नो पूछया, प्रश्नो पूछीने तेना अर्थो ग्रहण कर्या, अर्थो ग्रहण करी अने उभा थई श्रमण भगवंत महावीर पासेथी अने कोष्ठक नामे चैत्यथी नीकळीने तेओए श्रावस्ती नगरी तरफ जवानो विचार कयों. ॥ ४३७ ॥
तए णं से संखे समणोवासए ते समणोवासए एवं क्यासी-तुज्झे णं देवाणुप्पिया! विउलं असणं पाणं खाइमं साइम उवक्रवडावेह, तए णं अम्हे तं विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं आसाएमाणा विसाएमाणा
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व्याख्या प्राप्ति ११०२१॥
१२शतके उद्देश ॥१०२१॥
CARE
परिभुजेमाणा परिभाएमाणा पक्खिय पोसहं पडिजागरमाणा विहरिस्सामो, तए णं ते समणोवासगा संखस्स समणोवासगस्स एयमझु विणएणं पडिसुणंति, तए णं तस्स संखस्स समणोवाममस्स अयमेयारूवे अभत्थिए जाव समुप्पजिस्था-नो खलु मे सेयतं विउलं असणं जाव साइम आसाएमाणस्स ४ पक्खियं पोसह पडिजागा रमाणस्स विहरित्तए, सेयं खलु मे पोसहसालाए पोसहियस्स बंभचारिस्स उम्मुकमणिसुबन्नस्स ववगयमालाव. नगविलेचणस्स निक्खित्तसस्थमुसलस्स एगस्स अविइयस्स दम्भसंधारोवगयस्स पक्खियं पोसहं पडिजागरमाणस्स विहरित्तएत्तिकटु एवं संपेहेतिरजेणेच सावत्था नगरी जेणेव मए गिहे जेणेव उप्पला समणोवासिया तेणेव उचा० २ उप्पलं समणोवासियं आपुच्छह २ जेणेव पोसहसाला तेणेव उवागच्छइ २ पोसह सालं अणुपविसह २ | पोसहसालं पमजद पो०२ उच्चारपासवणभूमि पडिलेहेइ उ०२ दम्भसंधारगं संधरति दन्भ.२ दम्भसंथारंग दुरूहह दु०२ पोसहसालाए पोसहिए बंभयारी जाव पक्खियं पोसह पडिजागरमाणे विहरति,
पछी ते शंख नामे श्रमणोपासके ए बधा श्रमणोपासकोने आ प्रमाणे कडं के हे देवानुप्रियो तमे पुष्कळ अशन, पान, खादिम अने खादिम आहारने तैयर करावो. पछी आपणे पुष्कळ अशन, पान, खादिम अने स्वादिम आहारनो आखाद लेता, विशेष स्वाद लेता, परस्पर देता अने खाता पाक्षिक पोषधनुं अनुपालन करता विहरीशु. त्यार पछी ते श्रमणोपासकोए शंख नामना श्रमणोपासकनुं वचन विनयपूर्वक स्वीकार्य. त्यार बाद ते शंख नामे श्रमणोपासकने आवा प्रकारनो आ संकल्य यावद् उत्पन्न थयो-'अशन, यावत् स्वादिम आहारनो आखाद लेता, विस्वाद लेता, परस्पर आपता अने खाता पाक्षिक पोषधने ग्रहण करीने रहेवुमने श्रेयस्कर
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नथी, पण मारी पोषधशालामां ब्रह्मचर्यपूर्वक, मणि अने सुवर्णनो त्याग करी माला, उद्वर्तन अने विलेपनने छोडी शस्त्र अने मुसल विगेरेने मूकीने तथा डाभना संधारा सहित मारे एकलाने - बीजानी सहाय शिवाय पोषधनो स्वीकार करी विहरषु श्रेय छे.' एम | विचार करी, श्रावस्ती नगरीमां ज्यां पोतानुं घर के अने ज्यां उत्पला श्रमणोपासिका रहे छे, त्यां आवी उत्पला श्रमणोपासकाने पूछी, ज्यां पौषघशाला छे त्यां जद, पोषवशालामां प्रवेश करी, पोषघशालाने प्रमार्जी निहार अने पेशाब करवानी जग्याने प्रतिलेही तपासीने डामनो संथारो पाथरी तेना उपर बेठो, बेसीने पोपधशालामां पोषधग्रहण करी ब्रह्मचर्यपूर्वक यावत् पाक्षिक पोषधनुं पालन करे छे.
तए णं ते समणोवासगा जेणेव सावस्थी नगरी जेणेव साई गिहाई तेणेव उवाग०२विपुलं असणं पाणं खाइम साइमं उबक्खडावेंति उ० २ अन्नमन्ने सङ्घावेंति अ० २ एवं बयासी - एवं खलु देवागुप्पिया ! अम्हेहिं से विउले असणपाणखाइमसाइमे उवक्खडाविए, संखे य णं समणोवासए नो हव्यमागच्छड, तं सेयं खलु देवाणुपिया ! अम्हं संखं समणोबासगं सहावेत्तए । तए णं से पोक्स्खली समणोवासए ते समणोवासए एवं वग्रासी -अच्छन्तु णं तुझे देवाणुपिया ! सुनिच्या वीसत्था अहन्नं संखं समणोवासगं सद्दावेमित्तिकट्टु तेसिं समणोवासगाणं अंतिमाओ पडिनिक्खमति प० २ सावत्थीए नगरीए मज्झमज्झेण जेणेव संखस्स समणोवासगस्स वि उवाग २ संखस्स समणोवासगस्स सिंहं अणुपविट्टे । तए णं सा उप्पला समणोवासिया पोक्स्खलिं समणोवासयं एजमाणं पासह पा० २ हट्ठतुट्ट आसणाओ अन्भुट्ठेह अ० २ ता सत्तट्ट पपाई अणुगच्छङ २ पोक्खलिं समणो
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१२ शतके उद्देशः १ ||१०२२॥
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वासगं बंदति नमंसति वं. न. आसणेणं उवनिमंतेइ आ० २ एवं वयासी-संदिसंतु णं देवाणुप्पिया! किमाग
मणप्पयोयणं ,तए णं से पोक्खली समणोवासए उप्पलं समणोवासियं एवं बयासी-कहिन्नं देवाणुप्पिए ! संखे बारे व्याख्या
समणोवासएतए णं सा उप्पला समणोवासिया पोक्वलं समणोवासयं एवं दयासी-एवं खलु देवाणुप्पिया! उद्देशार प्रवतिः ॥१०२३॥ संखे समणोवासए पोसहसालाए पोसहिए बंभयारी जाव विहरह।
१०२शा त्यार बाद ते श्रमणोपासकोए श्रावस्ती नगरीमा पोतपोताने घेर जइ, पुष्कळ अशन, पान, खादिम अने स्वादिम आहारने तैयार करावी ४. परस्पर एक बीजानेबोलावी आप्रमाणे कयु-'हे देवानुप्रियो !आपणे पुष्कळ अशन, पान, खादिम अने स्वादिम आहारने तैयार करावेलो
छे, पण ते शंख श्रमणोपासक जलदी आव्या नहि, माटे हे देवानुप्रियो ! आपणे शंख श्रमणोपासकने बोलावया श्रेयस्कर छे. त्यारवाद | ते पुष्कली नामना श्रमणोपासके ते श्रमणोपासकोने आ प्रमाणे कयु-'हे देवानुप्रियो! तमे शांतिपूर्वक विसामो ल्यो,अने हुं शंख श्रम| णोपासकने चोलावूछुएम कही श्रमणोपासकोनी पासेथी नीकळी श्रावस्ती नगरीना मध्य भागमा ज्यां शंख श्रमणोपासकनु घर छे,त्यां जइ तेणे शंख श्रमणोपासकना घरमा प्रवेश कर्यो. पछी ते [Sख श्रावकनी पत्नी] उत्पला श्रमणोपासिका ते पुष्कलि श्रमणोपासकने आवतो जोइ, हर्षित अन संतुष्ट थई पोताना आसनथी उठी सात आठ पगलां तेनी सामे जइ पुष्कलि श्रमणोपासकने वांदी अने नमी | आसनवडे उपनिमंत्रण कर्या बाद आ प्रमाणे बोली- 'हे देनानुप्रिया कहो,के तमारा आगमननु शु प्रयोजन छ? त्यारे ते पुष्कलिश्रमणोपासिकाने आ प्रमणे कयु-हे देवानुप्रिये शंख श्रमगोपासक क्यां छे? त्यार बाद ते उत्पला श्रमणोपासिकाए ते पुष्कलि श्रमणोपास-16 कने आ प्रमाणे को-'हे देवानुप्रिया खरेखर शंख शंखा श्रमणोदासक पोषधशालामा पोषध ग्रहण करी ब्रह्मचारी थइने यावद् विहरे छे.
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RAKERY
१२चक्के उद्देश ॥१०२४
तए णं से पोक्खली समणोवासए जेणेव पोसहसाला जेणेव संखे समणोवासए तेणेव उवागच्छह २ गमणा
गमणाए पडिक्कमह ग०२ संखं समणोवासगं वंदति नमसति वन एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिया! अम्हेहिं पास्याप्रज्ञप्तिः
से विउले असणजाव साइमे उवक्खडाविए तं गच्छामो णं देवाणुप्पिया! तं विउलं असणं जाव साइमं आसा॥१.२४॥ एमाणा जाव पडिजागरमाणा विहरामो, तए णं से संखे ममणोवासए पोक्खलिं ममणोवासगं एवं वयासी-णो
खल कप्पह देवाणुप्पिया! तं विउलं असणं पाणं खाइम साइमं आसाएमाणस्स जाव पडिजागरमाणस्त विहरिसए, कप्पड़ मे पोसहसालाए पोसहियस्स जाव विहरित्तए, तं छंदेणं देवाणुप्पिया! तुम्भे तं विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं आसाएमाणा जाव विहरह।
त्यार बाद ते पुष्कलि श्रमणोपासके ज्यां पोषधशाला छे, अने ज्यां शंख श्रमणोपासक छे त्यां आवी, गमनागमनने (जतां आनाचतां कोई जीवनी हिंसा करी होय तेने) प्रतिक्रमी शंख श्रमणोपासकने चांदी अने नमीने तेने आ प्रमाणे कयु- हे देवानुप्रियाए प्रमाणे
खरेखर अमे घणो अशन, यावत्-स्वादिम आहार तैयार कराव्यो छे, तो हे देवानुप्रिय ! आपणे जइए, अने पुष्कळअशन, यावत्स्वादिम आहारनो आस्वाद लेतायावत्-पोषधन पालन करता विहरीए.त्यार बाद ते शंख श्रमणोपासके ते पुष्कलि अपणोपासकने | आ प्रमाणे कयुं-'हे देवानुप्रिय ! पुष्कळ अशन, पान, खादिम अने स्वादिम आहारनो आस्वाद लेता यावत् पोषध- पालन करी विहरवू मने योग्य नथी, मने तो पोषधशालामा पोषधयुक्त थइने यावत् -विहर योग्य छे. माटे हे देवानुप्रिय ! तमे इच्छा प्रमाणे घणा अशन, पान, खादिम अने स्वादिम आहारनो आस्वाद लेता यावद् विहरो.'
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व्याख्याप्रप्तिः
॥। १०२५ ।।
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तणं से पोक्खली समणोवासगे संखस्स समणोचासगस्स अंतियाओ पोसहसालाओ पडिनिक्खमइ २त्ता सावत्थि नगरिं मज्झमज्झेणं जेणेव ते समणोवासगा तेणेव उवागच्छइ २ ते समणोवासए एवं वयासी एवं खलु | देवाणुपिया संखे समणोवासए पोसहसालाए पोसहिए जाव विहरड़, तं छंदेणं देवाणुपिया! तुझे विडले असपाणखाइमसाइमे जाव विहरह, संखे णं समणोवासए नो हव्वमागच्छन् । तप णं ते समणोवासगा ते विउले असणपाणखाइममाइमे आसाएमाणा जाव विहरति । तए णं तस्स संखस्स समणोवासगस्म पुत्र्वरत्तावरतका लसमयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स अयमेयारूवे जाव समुप्पजित्था - सेयं खलु मे कलं जात्र जलते समणं भगवं महावीरं वंदित्ता नर्मसित्ता जाव पज्जुवासित्ता तओ पडिनियत्तस्स पक्खियं पोसहं पारित एत्तिकट्टु एवं | संपेहेति एवं २ कलं जाव जलते पोसहसालाओ पडिनिक्खमति प० २ सुद्धप्पवेसाई मंगल्लाई बत्थाई पवर | परिहिए स्याओ गिहाओ पडिनिक्खमति सघाओ गिहाओ पडिनिक्खमित्ता यादविहारचारेणं सावत्थि नगरिं | मज्झमज्झेण जात्र पज्जुवासति, अभिगमो नत्थि ।
त्यारबाद ते पुष्कलि श्रमणोपासक शंख श्रमणोपासकनी पासेथी पोषधशालामांथी बहार नीकळी श्रावस्ती नगरीना मध्यभागमां ज्यां ते श्रमणोपासको छे त्यां आव्यो, अने त्यां आवी ते श्रमणोपासकोने आ प्रमाणे कां - 'हे देवानुप्रियो ! ए प्रमाणे खरेखर | शंख श्रमणोपासक पोषधशालामां पोषध ग्रहण करीने यावद् विहरे छे. [ तेणे कछु के- ] 'हे देवानुप्रियो ! तुमे इच्छा मुजब घणा अशन, पान, खादिम अने खादिम आहारनो आस्वाद लेता यावत् विहरो, शंख श्रमणोपासक तो शीघ्र नहि आवे.' त्यारबाद ते
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१२ शतके उद्देशः १ ||१०२५॥
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व्याख्या महप्तिः
।।१०२६ ।।
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श्रमणोपासको ते विपुल अशन, पान, खादिम अर्ने स्वादिम आहारने आस्वादता यावद् - विहरे छे. त्यारबाद मध्य रात्रिना समये धर्म जागरण करता ते शंख श्रमणोपासकने आवा प्रकारनो आ विचार यावत् उत्पन्न थयो- 'आवती काले यावत् सूर्य उगवाना समये श्रमण भगवंत महावीरने बांदी, नमी यावत् पर्युपासना करी त्यांथी पाछा आवीने पाक्षिक पोपध पारवो श्रेयस्कर छे, - एम विचार करे छे, एम विचारी आवती काले यावत् सूर्योदय समये पोषधशालाथी बहार नीकळी शृद्ध, बहार जवा योग्य तथा मंगलरूप वस्त्रो उत्तम रीते पहेरी पोताना घरथी बहार नीकळी पगे चाली श्रावस्ती नगरीना मध्यभागमां धड़ने जाय छे, यावत् पर्युपासना करे 'छे, अहिं [पोषधयुक्त होवाथी] तेने अभिगमो नथी.
तर णं ते समणोवासगा कले पादु० जाब जलते पहाया कयबलिकम्मा जाव सरीरा सरहिं सरहिं गेहे हिंतो पडिनिस्वमंति सएहिं २ एगयओ मिलायंति एगयओ २ सेसं जहा पढमं जाव पज्जुवासंति । तए णं समणे भगवं महावीरे तेसिं समणोवासगाणं तीसे य० धम्मका जाव आणाए आराहए भवति । तए णं ते समणोवासगा समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्मं सोचा निमम्म हट्टतुट्ठा उहाए उर्हेति उ० २ समणं भगवं महावीरं वंदति नर्मसंति वं० २त्ता जेणेव संखे समणोवासए तेणेव उवागच्छन्ति २ संखं समणोवासयं एवं बयासी तुमं देवाणुप्पिया ! हिज्जा अम्हेहिं अप्पणा चेव एवं बयासी तुम्हे णं देवाणुपिया ! विउलं असणं जाव बिहरिस्सामो, तए णं तुमं पोसहसालाए जाब बिहरिए, तं सुद्द्ध णं तुझं देवाणुप्पिया! अम्हं हीलसि, अजोति समणे भगवं महावीरे ते समणोवासए एवं वयासी माणं! अज्जो तुज्झे संख समणोवामगं होलह निंदह खिंसह
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१२ शतके उद्देशः १
||१०२६ ॥
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व्याख्या
प्रज्ञातिः ॥१०२७॥
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गरहह अवमन्नह, संखे णं समणोवासए पियधम्मे चैव दढम्मे चैव सुदक्खुजागरियं जागरिए (सू० ४२८) | [ बाद [ पूर्वे कला ] ते श्रमणोपासको आवती काले यावत् सूर्योदय समये स्नान करी, बलिकर्म करी यावत् शरीरने अलंकृत करी पोत पोताना घरथी नीकळी एक स्थळे मेगा थाय छे, एक स्थळे भेगा थइने - इत्यादि बधुं प्रथम निर्गमवत् जाणवु यावत् ( भगवंत महावीरनी पासे जइ ) तेमनी पर्युपासना करे छे. त्यार बाद श्रमण भगवंत महावीरे ते श्रमणोपासकोने तथा ते समाने धर्मकथा कही. यावत् 'ते आज्ञाना आराधक थाय छे' त्यां सुधी जाण ं त्यार बाद ते श्रमणोपासको श्रमण भगवंत महावीरनी पाथी धर्मने सांभळी, अवधारी, हृष्ट अने तुष्ट थया, अने उभा यह श्रमण भगवंत महावीरने वांदी, नमी, ज्यां शंख श्रमणोपासक छे त्यां आव्या; आवीने शंख श्रमणोपासकने तेओए एम कछु के-'हे देवानुप्रिय ! तमे गइ काले अमने एम कधुं हतुं के, 'हे देवानुप्रियो ! तमे पुष्कळ अशनादि आहारने तैयार करावो, यावद्- आपणे विहरीशुं, त्यार बाद तमे पोपघशालामां यावद् विहर्या, तो हे देवानुप्रिय ! तमे अमारी ठीक हीलना (हांसी) करी.' पछी 'हे आर्यो!' एम कही श्रमण भगवंत महावीरे ते श्रमणोपासकोने आ प्रमाणे क- 'हे आर्यो " तमे शंख श्रमणोपासकनी हीलना, निंदा, खिंसना, गहां अने अवमानना न करो, कारण के ते शंख श्रमणोपासक धर्मने विषे प्रीतिवाको अने दृढतावालो ने, तथा तेणे [ प्रमाद अने निद्राना त्यागथी ] सुदृष्टि-ज्ञानीनुं जागरण करेल . ।। ४३८ ॥
भंतेत्ति भगवं गोयमे समणं भ० महा० वं न० २ एवं वयासी कह विहा णं भंते! जागरिया पण्णत्ता १, गोमा ! तिबिहा जागरिया पण्णत्ता, तंजहा - बुद्धजागरिया अबुद्धजागरिया सुदक्खुजागरिया, से केण० एवं वु० तिविहा जागरिया पण्णत्ता, तंजहा - बुद्धजा० १ अयुद्धजा० २ सुदक्खु० ३१, गोयमा ! जे इमे अरिहंता
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१२ शतके उद्देशः १ ॥१०२७॥
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| १२शतके उद्देशा ॥१०२८॥
भगवंता उप्पन्ननाणदंसणधरा जहा खंदए जाव सवन्नू सव्वदरिसी एए णं बुद्धा बुद्धजागरियं जागरंति, जे इमे व्याख्या- अणगारा भगवतो ईरियासमिया भासासमिया जाव गुत्तभचारी एए गं अबुद्धा अबुद्धजागरियं जागरंति, जे प्रतिक
- हमे समणोवामगा अभिगयजीवाजीवा जाब विहरन्ति एते ण सुदक्खुजागरियं जागरिंति, से तेंणद्वेणं गोयमा ! २८॥ एवं बुचइ तिविहा जागरिया जाव सुदक्खुजागरिया (सूत्रं ४६९)॥
[प्र.] 'भगवन्! ए प्रमाणे कही भगवान् गौतम श्रमण भगवंत महावीरने वांदे छे, नमे डे, वांदी अने नमी तेणे आ प्रमाणे का- हे भगवन् ! जागरिका केटला प्रकारनी कही के ? [30] हे गौतम ! जागरिका त्रण प्रकारनी कही छे, ते आ प्रमाणे-१
बुद्धजागरिका, २ अबुद्धजागरिका अने ३ सुदर्शनजागरिका. [40] हे भगवन् ! तमे ए प्रमाणे शा हेतुथी कहो छो के 'जागरिका ४ात्रण प्रकारनी छे, ते आ प्रमाणे-बुद्धजागरिका, अबुद्धजागरिका अने सुदर्शनजागरिका' ? [उ.] हे गौतम ! जे उत्पन्न थयेला |
जान अने दर्शनना धारण करनारा आ अरिहंत भगवंतो छे-इत्यादि स्कंदकना अधिकारमा कह्या प्रमाणे सर्वज्ञ अने सर्वदी ठे-ए| बुद्धो (केवलज्ञानवडे) बुद्धजागरिका जागे के. जे आ भगवंत अनगारो ईर्यासमितियुक्त, भापासमितियुक्त अने पावत् गुप्त ब्रह्मचारी के, तेओ (केवलज्ञानी नहि होवाथी) अबुद्ध छे अने तेओ अबुद्धजागरिका जागे छे. तथा जे आ श्रमणोपासको जीवाजीवने जाणनारा छे, यावत् तेओ (सम्यग्दर्शनी होवाथी) सुदर्शनजागरिका जागे छे. माटे ते हेतुथी हे गौतम! ए प्रमाणे कयुछे के जागरिका त्रण प्रकारनी छे, यावत् मुदर्शनजागरिका के. ॥ ४३९ ॥
तए णं से संखे समणोवासए समण भ. महावीर चंद नम०२ एवं बयासी-कोहवसहे णं भंते। जीवे
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Klasagarsur Gyamandr
पास्या
११०२९॥
किं बंधह किं पकरेति किं चिणाति किं उपचिणाति ?, संखा! कोहवसट्टे णं जीवे आउयवजाओ सत्त कम्मपगडीओ सिढिलबंधणवद्धाओ एवं जहा पढमसए असंवुडस्स अणगारस्म जाव अणुपरियड । माणवसद्दे णं भंते ।
का१२शतके जीवे एवं चेव, एवं मायावसहेवि, एवं लोभवसद्देवि जाव अणुपरियदृइ । तए णं ते समणोवासगा समणस्स भग
| उद्देशा
॥१०२९॥ वओ महावीरस्स अंतियं एयमढे सोचा निसम्म भीया तत्था तसिया संसारभउब्विग्गा ममणं भगवं महावीरं वं. नम०२ जेणेव संखे समणोवासए तेणेव उवा०२ संख समणोवासगं वं० न०२त्ता एयमढे संमं विणएणं भुजो २ स्वाति तए णं ते समणोवासगा सेस जहा आलभियाण जाव पडिगया, भंतेत्ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदह नमंसह २ एवं वयासी-पभू णं भते! संखे समणोवासए देवाणुप्पियाणं अंतियं सेस जहा इसि
भदपुत्तस्स जाव अंतं काहेति । सेवं भंते ! सेवं भंतेत्ति जाब विहर: (सूत्रं ४४० ) ॥ १२-१॥ हा प्र०] त्यार बाद ते शंख श्रमणोपासके श्रमण भगवंत महावीरने वांदी, नमी आ प्रमाणे कधु-हे भगवन् ! 'क्रोधने वश होवाथी पीडित थरेलो जीव शुं बांधे, झुं करे, शेनो चय करे अने शेनो उपचय करे ? [उ.] हे शंख ! क्रोधने वश यवाथी पीडित ययेलो जीव आयुष सिवायनी सात कर्मप्रकृतिओ शिथिल बन्धनयी बांधेली होय तो कठिन बन्धनवाळी करे-इत्यादि सर्व प्रथम शतकमां कडेला संवररहित अनगारनी पेठे जाणवु, यावत् ते [ संवररहित साधु ] संसारमा भमे छे. [प्र०] हे भगवन् ! मानने वश थवाथी | पीडित थयेलोजीद बांधे-इत्यादि प्रश्न. [उ०] पूर्वे कसा प्रमाणे जाणवू, अने एज प्रमाणे मायाने यश थवाथी पीडित थयेला अने लोभने वयवायी पीडित वयेला जीव संबन्धे पण जाणवु यावत् ते संसारमा भमे छे.त्यार बाद ते श्रमणोपासको श्रमण भगवंत महावीर पासेथी ए|
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प्रक
प्रमाणे वात सांभळी, अवधारी भय पाम्या,त्रास पाम्या, ऋसित थया अने संसारना भयथी उद्विग्र थया. तथा तेओश्रमण भगवंत महावीरने
बांदी, नमी ज्यां शंख श्रमणोपासक छे त्यां जइ शंख श्रमणोपासकने वांदी, नमी ए (अविनयरूप) अर्थने सारी रीते विनयपूर्वक यास्यामा वारंवार खमावे छे. त्यार बाद ते श्रमणोपासको यावत् पाछा गया, तेनो बाकी रहेलो वृत्तांत आलमिकाना श्रमणोपासकोनी पेठे प्रतिम जाणवो. [प्र.] 'भगवान' ! एम कही भगवान् गौतमे श्रमण भगवंत महावीरने चांदी, नमी आ प्रमाणे कयु-हे भगवन् ! ते शंख ॥१.१०॥
श्रमणोपासक आप देवानुप्रियनी पासे प्रव्रज्या लेवाने समर्थ छ ? [उ०] बाकी बधुं फपिभद्रपुत्रनी पेठे जाणबु. यावत्-ते सर्व दुःखोनो अन्त करशे. हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे जे, हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे छे, एम कही विहरे है. ॥ ४४० ॥
भगवत् सुधर्मखामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीसूत्रना १२ मा शतकमा प्रथम उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो.
१२शतके उद्देशा १०३०॥
उद्देशक २. तेणं कालेणं २ कोसंबी नाम नगरी होत्था वन्नओ.चंदोवतरणे चेहए वन्नओ, तत्व णं कोसंबीए नगरीए सहस्साणीयम्स रन्नो पोत्ते सयाणीयस्स रन्नो पुत्ते चेडगस्स रन्नो नत्तुए मिगावतीए देवीए अत्तए जयंतीए समणोवासियाए भत्तिबह उदायणे नामं राया होत्था वन्नओ, तत्व कोसंबीए नयरीए सहस्साणीयस्स रन्नो सुपहा सया णीयस्स रन्नो भज्जा चेडगस्स रन्नो धृया उदायणस्स रन्नो माया जयतीए समणोवासियाए भाउज्जा मिगावती नाम देवी होस्था वन्नओ सुकुमालजावसुरूवा समणोवासिया जाव विहरह, तस्थ कोसंबीए नगरीए सहस्साणीयस्स
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शतके
PARAC
उद्देशार १०३१॥
श्रमणोपासमा सहस्रानीक राजा
है रन्नो धूया सयाणीयस्स रन्नो भगिणी उदायणस्स रन्नो पिउच्छा मिगावतीए देवीए नणंदा वेसालीसावयाणं अरप्याल्या- शहताणं पुवसिज्जायरी जयंती नाम समणोवासिया होत्था सुकुमाल जाव सुरूवा अभिगय जाव वि० (सूत्रं ४४१)। प्रवतिः
1 ते काले, ते समये कौशांबी नामे नगरी हती. वर्णन. चन्द्रावतरण चैत्य हतुं. वर्णन. ते कौशांबी नगरीमां सहस्रानीक राजानो ॥१०३१॥
पौत्र, शतानीक राजानो पुत्र, चेटक राजानी पुत्रीनो पुत्र, मृगावती देवीनो पुत्र, अने जयंती श्रमणोपासिकानो भत्रीजो उदायन नामे राजा हतो. वर्णन. ते कौशांची नगरीमां सहस्रानीक राजाना पुत्रनी पत्नी, शतानीक राजानी पत्नी, चेटक राजानी पुत्री, उदायन राजानी माता अने जयंती श्रमणोपासिकानी भोजाइ मृगावती नामे देवी हती. सुकुमाल हाथपगबाळी इत्यादि वर्णन जाणवू, यावद सुरूपवाळी अने श्रमणोपासिका हती. बळी ते कौशांबी नगरीमा जयंती नामे श्रमणोपासिका हती, जे सहसानीक राजानी पुत्री, शतानीक राजानी भगिनी, उदायन राजानी फोइ, मृगावती देवीनी नणंद अने श्रमण भगवंत महावीरना साधुओनी प्रथम शय्यातर (वसति आफ्नार ) हती. ते सुकमाल, यावर मुरूपा अने जीवाजीवने जाणनारी यावद् विहरती हती. ॥ ४४१ ।।
तेणं कालेणं तेणं समएणसामी समोसढे जाव परिसा पज्जुवासहा तए णं से उदायणे राया इमीसे कहाए लखेट्ट समाणे हवे तुट्टे कोडंपिययपुरिसे सद्दावेद को०२ एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! कोसंबि नगरि सम्भितरबाहिरियं एवं जहा कूणिओ तहेव सव्वं जाव पज्जुवासए। तर णंसा जयंतीममणोवासिया इमीसे कहाए लट्ठा समाणी हट्टतुट्ठा जेणेव मियावती देवी तेणेव उवा०२ मियावती देवीं एवं वधासी-एवं जहा नवमसए उसमदत्तो जाव भविस्सइ । तए णं मा मियावती देवी जयंतीए समणोवासियाए जहा देवाणंदा जाव पडिसुणेति । तए णं
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सा मियावती देवी कोडंबियपुरिसेसद्दावेद को०२ एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया लहुकरणजुत्तंजोइयजाव
द्रा धम्मियं जाणप्पवरं जुत्तामेव उवट्ठवेह जाव उवट्ठवेंति जाव पचप्पिणंति। तए णं सा मियावती देवी जयंतीए समव्याख्या-1 णोवासियाए सद्धिं पहाया कयबलिकम्मा जाव सरीरा बहूहिं खुजाहिं जाव अंतेउराओ निग्गच्छति अं० २ जेणेव
१२सतके प्रवाप्तिः
18 उद्देश्य बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव धम्मिए जाणप्पवरे तेणेव उ०१ जाव रूढा । तए णं सा मियावती देवी जयंतीए ॥१.३२॥
१०३या समणोवासियाए सद्धिं धम्मियं जाणप्पवरं दुरूढा समाणी नियगपरियालगा जहा उसभदत्तो जाव धम्मियाओ जाणप्पवराओ पचोरूहह । तए णं सा मियावती देवी जयंतीए समणोवासियाए सद्धिं बहहिं खुजाहिं जहा देवा. जंदा जाव बं० नम० उदायण रायं पुरओ कटु उितिया चेव जाव पज्जुवासइ । तए ण ममणे भगवं महा० उदा. यणस्स रन्नो मियावईए देवीए जयंतीए समणोवासियाए तीसे य महतिमहा. जाव धम्म परिसा पडिगया उदायणे पडिगए मियावती देवीवि पडिगया ( सूत्रं ४४२)।
ते काले. ते समये महावीर स्वामी समबरा, यावत् पर्षत पर्युपासना करे छे. त्यार बाद ते उदायन राजा आ (श्रमण भगः वंत महावीर पधार्यानी) वात सांभळी इष्ट तुष्ट थयो, अने तेणे कौटुंविक पुरुषोने बोलावी आ प्रमाणे कह्यु-'हे देवानुप्रियो ! शीघ्रज हाकौशांबी नगरीने बहार अने अंदर साफ करावो-इत्यादि बधु कूणिक राजानी पेठे कहेवु, यावत्-ते पर्युपासना करे छे, त्यार बाद
(श्रमण भगवंत महावीर पधार्यानी ) आ वात सांभळी ते जयंती श्रमणोपासिका हृष्ट अने तुष्ट थइ, अने ज्यां मृगावती देवी छे त्यां आवी तेणे मृगावती देवीने आ प्रमाणे कयु-ए प्रमाणे नवम शतकमां ऋषभदचना प्रकरणमा कह्या प्रमाणे जाणवु, यावत [ श्रमण
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भगवंत महावीरनुं दर्शन आपणा कल्याण माटे] थशे. त्यार बाद जेम देवानंदाए ऋषभदत्तना वचननो स्वीकार कयों तेम मृगावती देवीए ते जयंती श्रमणोपासिकाना वचननो स्वीकार कर्यो, त्यार पछी ते मृगावती देवीए कौटुंबिक पुरुषोने चोलावी आ प्रमाणे
का१२शतके प्राप्तिः 18 कहा-'हे देवानुप्रियो ! वेगवाळ, जोतरसहित यावत् धार्मिक श्रेष्ठ यान जोडीने जलदी हाजर करो,' यावत्-ते कौटुविक पुरुषो यावत्
| उद्देशान
१०३३॥ ॥१०३३॥द हाजर करे छे, अने तेनी आज्ञा पाछी आपे छे. त्यार बाद ते मृगावती देवी ते जयंती श्रमणोपासिकानी साथे स्नान करी, बलिकर्म
| पूजा करी. यावत्-शरीरने शणगारी घणी कुब्ज दासीओ साथे यावत् अंतःपुरथी बहार नीकळे छे, नीकळी ज्या बहारनी उपस्थानशाला छे, अने ज्यां धार्मिक श्रेष्ठ वाहन तैयार उभुं छे. त्यां आवी यावत् ते वाहन उपर चढी. त्यार वाद जयंती श्रमणोपासिकानी साथै धार्मिक श्रेष्ठ यान उपर चडेली ते मृगावती देवी पोताना परिवारयुक्त ऋषभदत्त ब्राह्मणनी पेठे यावत्-ते धार्मिक श्रेष्ठ वाहनथी नीचे उतरे छे. पछी जयंती श्रमणोपासिकानी साथे ते मृगावती देवी घणी कुब्ज दासीओना परिवार सहित देवानंदानी पेठे यावद् वांदी, नमी उदायन राजाने आगळ करी त्यांज रहीनेज यावद् पर्युपासना करे ले. त्यार बाद श्रमण भगवंत महावीरे उदायन राजाने, मृगावती देवीने, जयंती श्रमणोपासिकाने अने ते अत्यन्त मोटी परिषदने यावद् धर्मोपदेश कर्यो, यावत् परिषद् पाछी गइ, उदायन राजा अने मृगावती देवी पण पाछा गया. ॥ ४४२॥
तए ण सा जयंती समणोवासिया समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्मं सोचा निसम्म हतुट्टा दुसमणं भ. महावीरं वन.२ एवं वयासी-कहिन्नं भंते ! जीवा गरुयत्तं हव्वमागच्छन्ति?, जयंती! पाणाइवाएणं जाव मिच्छादसणमल्लेणं, एवं खलु जीवा गरुयत्तं हव्वं० एवं जहा पढमसए जाव वीयीवयंति । भवसिद्धियत्तणं भंते!
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भवसिद्धियविरहिमालसति नो चेत्र में भारवुडामा णं परमाणयासिया, से तेण
जीवाणं किं सभावओ परिणामओ!, जयंती! सभावओ, नो परिणामओ । सब्वेऽविणं भंते! भवसिद्धिया जीवा ध्याख्या-15 सिज्झिस्संति ?, हता! जयंती! मवेवि णं भवसिद्धिया जीवा सिज्झिस्संति । जइ भंते ! सब्वे भवसिद्धिया जीवा||१२शतके प्रज्ञप्ति: सिज्झिस्संति तम्हा णं भवसिद्धियविरहिए लोए भविस्सह ?, णो तिणद्वे समढे, से केणं खाइएणं अटेणं भंते !
उद्देशा ॥१०३४॥
एवं बुच्चइसव्वेचि णं भवसिद्धिया जीवा सिज्झिस्संति नो चेव णं भवसिद्धियविरहिए लोए भविस्सद ?, जयंती!||१०३४॥ से जहानामए सब्बागाससढी सिया अणादीया अणवदेग्गा परित्ता परिवुडा सा णं परमाणुपोग्गलमेत्तेहिं खंडेहिं समये २ अवहीरमाणीर अणताहि ओसप्पिणीअवमप्पिणीहि अवहीरंति नो चंब णं अबहिया सिया, से तेणढेगा है। जयंती! एवं बुच्चइ सब्वेविणं भवसि द्विया जीवा सिज्झिस्संनि नो चेव णं भवसिद्विअविरहिए लोए मविस्सह।
त्यार बाद ते जयंती श्रमणोपासिका श्रमण भगवंत महावीरनी पासेथी धर्मने सांभळी, अबधारी हृष्ट अने तुष्ट थइ, श्रमण भग- | वंत महावीरने बांदी, नमी आ प्रमाणे बोली के-[प्र०] हे भगवन् ! जीवो शाथी गुरुत्व-भारे पणुं पामे ? [30] हे जयंती! जीयो प्राणातिपातथी-जीवहिंसाथी यवद् मिथ्यादशनशल्यथी, ए प्रमाणे खरखर जीवो भारकर्मोपणुं प्राप्त कर जे. ए प्रमाणे जेम प्रथम शतकमां का छे तेम जाणवु, यावत् तेओ मोक्षे जाय छे. [प्र०] हे भगवन् ! जीवोनुं भवसिद्धिकपणुं स्वभावथी के के परिणामधी छे ? [उ०] हे जयंती ! भवसिद्धिक जीतो स्वभावथी के, पण परिणामथी नथी. [प्र.) हे भगवन् ! सर्वे भवसिद्धिक जीवो सिद्ध थशे? [उ०] हे जयंती ! हा, सर्वे भवसिद्धिक जीवो सिद्ध थशे. [प्र०] हे भगवन् ! जो सर्वे भवसिद्धिको सिद्ध थशे तो आ लोक भवसिद्धिक जीवो रहित थशे ? [उ०] ते अर्थ यथार्थ नथी, अर्थात् बधा भवसिद्धिको सिद्ध थाय तोपण भवसिद्धिक विनानो लोक
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| नहिं थाय. [प्र०] हे भगवन् ! ए प्रमाणे तमे शा हेतुथी कहो छो के 'बधाय पण भवसिद्धिको सिद्ध थशे, अने लोक भवसिद्धिका म्याख्या
जीवोथी रहित नहीं थाय' १ [उ०] हे जयंती जेमके सर्वाकाशनी श्रेणी होय, ते अनादि, अनंत, बन्ने बाजुए परिमित अने बीजी अप्रप्तिः श्रेणीओथी परिवृत होय, तेमाथी समये समये एक परमाणु पुद्गलमात्रखंडो काढतां काढतां अनन्त उत्सर्पिणी अने अनन्त अबस:15
उद्देशार ॥१०३५॥ पिणी सुधी काढीए तोपण ते श्रेणि खाली थाय नहीं; ते प्रमाणे हे जयंती ! ते हेतुथी एम कहेवाय डे के, बघाय भवसिद्धिक जीवो
PIसिद्ध थशे, तो पण लोक भवसिद्धिक जीवो विनानो थशे नहि. 81 सुत्तत्तं भंते ! साह जागरियत्तं साही, जयंती ! अत्थेगइयाणं जीवाणं सुत्तत्तं साहू अत्थेगतियाणं जीवाणं
जागरियत्तं साह, से केणद्वेणं भंते! एवं वुच्चइ अत्थेगइयाणं जाब साह ?, जयंती!जे हम जीवा अहम्मिया अहम्माणुया अहम्मिट्ठा अहम्मक्खाई अहम्मपलोई अहम्मपलजमाणा अहम्मसमुदायारा अहम्मेणं चेव वित्ति कप्पेमाणा विहरंति एएसिणं जीवाणं सुत्तत्तं साहू, एए णंजीवा सुत्ता समाणा नो बहूण पाणभूयजीवसत्ताणं दुक्खणयाए जोयणयाए जाव परियावणयाए वहृति, एगणं जीवासुत्ता समाणा अप्पाणं वा परं वातदुभयं वा नो बहूहिं अहम्मियाहिं संजोयणाहिं संजोएत्तारो भवंति, एएसि जीवानां सुत्तत्तं साहू, जयंती ! जे इमे जीवा धम्मिया धम्माणुया जाव धम्मेणं चेव विति कप्पेमाणा विहरंति एएसिणं जीवाण जागरियत्त साह, एएण जीवा जागरा समाणा बट्टणं पाणाणं जाव सत्ताणं अदुक्खणयाए जाव अपरियावणियाए वदंति, ते णं जीवा जागरमाणा | अप्पाणं वा परं वा तदुभयं वा बहूहिं धम्मियाहिं संजोयणाहिं संजोएत्तारो भवंति, एए ण जीवा जागरमाणा
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व्याख्या प्रजाप्ति ॥१०३६॥
|१२शतके उद्देशा
१०३
| धम्मजागरियाए अप्पाणं जागरहत्तारो भवंति, एएसि णं जीवाणं जागरिपत्तं साहू, से तेणद्वेण जयंती! एवं वुच्चइ अत्थेगइयाणं जीवाणं सुत्तत्तं साहू अत्थेगइयाणं जीवाणं जागरियत्तं साहू ।।
०] हे भगवन् ! सुतेलापणु सारं के जागरितत्त्व-जागेलापणु सारूं ? [उ०] हे जयंती केटलाक जीवोनुं सूनेलापणु सारु, अने केटलाक जीवोर्नु जागेलाषणु सारं. [प्र०] हे भवगन् ! शा हेतुथी तमे एम कहो छो के 'केटलाक जीवोनु मूतेलापणु सारं अने केटलाक जीवोन जागेलापणु सावं! [उ.] हे जयंती ! जे आ जीवो अधार्मिक, अधर्मने अनुसरनारा जेने अधर्म प्रिय छ पवा, अधर्म कहेनारा, अधर्मने ज जोनारा, अधर्ममा आसक्त, अधर्माचरण करनारा अने अधर्मवीज आजीविकाने करता विहरे छे, ए जीबोर्नु सूतेलापणु सारं हे. जो ए जीवो सूतेला होय तो बहु प्राणोना, भूतोना, जीवोना तथा सञ्चोना दुःख माटे, शोक माटे, यावत्-परिताप माटे थता नथी, बळी जो ए जीवो मतेला होय तो पोताने, वीजाने के बनने घणी अधार्मिक संयोजना बडे जोडनारा होता नी, माटे ए जीवोनु मृतेलापणु सारुं छे. तथा हे जयंती! जे आ जीवो धार्मिक अने धर्मानुसारी छे, यावत्-धर्मवडे आजीविका करता विहरे छे, ए जीवोनुं जागेलापणु सारुं छे; जो ए जीवो जागता होय तो ते घणा प्राणीओना यावत्-सच्चो ना अदुःख ( सुख ) माटे यावत्-अपरिताप (शान्ति ) माटे बर्ते छ, वळी ते जीवो जागता होय तो पोताने, परने अने वनेने घणी धार्मिक संयोजना (क्रिया) साधे जोडनारा थाय के, तथा ए जीवो जागता होय तो धर्मजागरिकावडे पोताने जागृत राखे , माटे ए जीवोन जागेलापणु सारुं छे, ते हेतुथी हे जयंती! एम कहेवाय छे के, केटलाक जीवोन स्तेलापणु सारुं अने केटलाक जीवान जागेलापणु सारं छे'.
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व्याख्यानादब्बलियन
१२शतके उद्देशान १०३७॥
बलियत्तं भंते ! साहू दुयलियत्तं साह ?, जयंती! अत्यंगइपाणं जीवाणं बलियतं साहू अत्थेगइयाणं जीवाणं
दुब्बलियत्तं साहू, से केणट्टेणं भंते ! एवं युचड़ जाव साडू?, जयंती!जे इमे जीवा अहम्मिया जाव विहरति एएसि अप्रप्तिः | जीवाणं दुबलि यत्तं साहू, एए णं जीवा एवं जहा सुत्तस्स तहा दुबलियस्स वत्तव्वया भाणियब्वा, बलियस्स ॥९०३७ जहा जागरस्स तहा भाणियब्बं जाव संजोएत्तारो भवंति, एएसिणं जीवाणं बलियत्तं साहु, से तेणतुणं जयंती!
एवं बुच्चइ तं चेव जाव साहू ॥
[प्र.] हे भगवन् ! सबलपणु सारं के दुर्वलपणु सारं ? [उ०] हे जयंती ! केटलाक जीवोनु सबलपणु सारुं अने केटलाक 5 दाजीवोनु दुर्बलपणु सारूं. [प्र.] हे भगवन् ! तमे ए प्रमाणे शा हेतुधी कहो छो के, 'केटलाक जीवोनू सबलपणु सारुं अने केटलाक |
जीवोर्नु दुर्बलपणु सारं १ [उ०] हे जयंती ! जे आ जीवो अधार्मिक छे, अने यावत् अधर्मवडे आजीविका करता विहरे छे, ए
जीवोन दुर्बलपणु सारूं, जो ए जीवो दुबला होय तो कोइ जीवना दुःख माटे थता नथी-इत्यादि 'स्तेला'नी पेटे दुर्बलपणानी वक्तदव्यता कहेवी, अने 'जागता'नी पेठे सवलपणानी वक्तव्यता कडेवी; यावत्-धार्मिक क्रिया-संयोजनावडे जोडनारा थाय छ, माटे Pए जीवोनु बलवानपणु सारुं छे, ते हेतुथी हे जयंती ! एम कहेवाय छे के-इत्यादि केटलाक जीवोर्नु बलवानपणु अने केटलाक | 15जीवोर्नु दुर्बलपणु सारं छे.
दक्खत्तं भंते ! साहू आलसियत्तं साह, जयंती! अस्थगतियाणे जीवाणं दक्खत्तं साह अत्येगतियाणं जीवाणं आलसियत साह, सेकेणटेणं भंते ! एवं बुखद तं चेव जाव साहू, जयंती। जे इमे जीवा अहम्मिया
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व्याख्याप्रसि
॥१०३८॥
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'जाव विहति एएसि णं, जीवाणं अलसियत्त साहू, एए णं जीवा अंलसा समांणा नो बहूणं जंहा सुता तहां अलसा भाणियब्बा, जहा जागरा तहा दक्खा भाणियब्वा जावं संजोएत्तारो भवंति, एए णं जीवा दक्खा समाणा बहूहिं आयरिवेयावच्चेहिं जाव उवज्झाय- थेर० तबस्सि० गिलाणवेया० सेहवे० कुलवेया० गणवेया० संघवेयाव० साहम्मियवेयावश्चेहिं अंताणं संजोएत्तारो भवंति, एएसि णं जीवाणं दक्वत्तं साहू, से तेणद्वेणं तं चैव जांव साहू ॥ सोदियवसट्टे णं भंते! जीवे किं बंधइ ?, एवं जहा कोहबसट्टे तहेब जाव अणुपरियहः । एवं चक्खि दियव सहेवि, एवं जाव फासिंदियवसट्टे जाव अणुपरियगृह । तए णं सा जयंती समणोवोसिया समणस्स भगवओ महावीरस्स अतियं एयमहं सोचा निसम्म हट्टतुट्ठा सेसं जहा देवाणंदाए तहेव पव्बया जाव सब्बदुक्खप्पहीणा । सेवं भंते!२ति ॥ (सू ४४३ ) ॥ १२-२ ॥
[प्र० ] हे भगवन् ! दक्षपणु-उद्यमीपणु सारुं के आलसुपणु सारुं १ [अ०] हे जयंती ! केटलाक जीवोनुं दक्षपणु सारं अने केटलाक जीवोनुं आलसुपणु सारुं [प्र०] हे भगवन् ! ए प्रमाणे शा हेतुथी कहो छो-इत्यादि तेज प्रमाणे कहेवु. [अ०] हे जयंती ! जे आजीवो अधार्मिंक (अधर्मानुसारी) यावद् विहरे छे, ए जीवोनुं आळसुपणु सारुं छे. ए जीवो जो आळसु होय तो घणा जीवोना दुःख माटे थता नथी - इत्यादि बधुं 'सूतेलानी पेठे कहेवु', तथा 'जागेला'नी पेठे दक्ष-उद्यमी जाणवा, यावत् - [ धार्मिक प्रवृत्तिओ साथै ] जोडनारा थाय छे. बळी ए जीवो दक्ष होय तो आचार्य, उपाध्याय, स्थविर, तपस्वी, ग्लान, शैक्ष (नव दीक्षित ) ' कुल, गण, संघ, अने साधर्मिकना घण्णा वैशवन्ध सेवा - साथै आत्माने जोडनारा थाय छे. तेथी ए जीवोनुं दक्षपणु सारुं छे. माटे हे जयंती !
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१२ शतके उद्देशः२ ॥१०३८||
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व्याख्या
प्रतिः १०३९ ॥
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ते हेतुथी एम कहुं छु - इत्यादि तेज प्रमाणे कहेतु, यावत् केटलाक जीवोनुं दक्षपणु सारुं छे. [प्र० ] हे भगवन् ! श्रोत्रेन्द्रियने वश थवा पीडित थयेलो जीव शुं बांधे ? [अ०] हे जयंती ! जेम क्रोधने वश थयेला जीव संबन्धे कह्युं तेम अहीं पण जाणवुं यावत् ते संसारमा भने छे. ए प्रमाणे चक्षुइन्द्रियने वश थयेला अने यावत् स्पर्शेन्यिवश थयेला जीव संबन्धे पण जाणवुं यावत् ते संसारमा भमे छे. त्यारबाद ते जयंती श्रमणोपासिका श्रमण भगवंत महावीर पासेथी ए वात सांभळी, हृदयमां अवधारी, हर्षवाळी अने संतुष्ट थई - इत्यादि ( बाकी ) वधुं देवानंदानी पेठे जाणवुं यावत् तेणे प्रब्रज्या ग्रहण करी अने सर्व दुःखी मुक्त थई. हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे छे, हे भगवन् । ते ए प्रमाणे छे. ॥। ४४३ ।।
भगवत् सुधर्मस्वामीप्रणी श्रीमदूत भगवतीसूत्रना १२ मा शतकमी वीजा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो.
उद्देशक ३.
रायगिहे जाव एवं वयासी कह णं भंते! पुढवीओ पन्नत्ताओ?, गोयमा ! सत्त पुढवीओ पण्णत्ताओ, तंजहापढमा दोचा जाव सत्तमा । पढमा णं भंते ! पुढवी किंनामा किंगोत्ता पण्णत्ता ?, गोयमा ! घम्मा नामेणं रयणभागोत्तणं एवं जहा जीवाभिगमे पढमो नेरयउद्देसओ सो चैव निरवसेसो भाणियच्वो जाव अप्पा बहुगंति । सेवं भंते! सेवं भंतेति ॥ ( सूत्रं ४४४ ) ॥
[प्र०] राजगृह नगरमां (भगवान् गौतमे) यावद् आ प्रमाण पूछं-हे भगवन् ! केटली पृथिवीओ कही छे ? [उ०] हे
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१२ शतके उद्देशा३
॥१०३९॥
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ॐ गौतम ! सात पृथिवीओ कही. हे, ते आ प्रमाणे-प्रथमा, द्वितीया यावत्-सप्तमी. [40] हे भगवन् ! प्रथम पृथिवी कया नामवाळी | व्याख्या
द अने कथा गोत्रवाळी कही छे ? [उ.] हे गौतम ! प्रथम पृथिवीनुं नाम 'धम्मा' छे अने गोत्र रत्नप्रभा छे-ए प्रमाणे 'जीवाभिगम'दाराने प्रवतिः सूत्रमा प्रथम नैरयिक उद्देशक कयो छे ते बधो यावद्-अल्पबहुत्व सधी अहिं कहेवो. हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे छे, हे भगवन् ! उद्देश '॥१.gon ए प्रमाणे छे. ॥ ४४४ ॥
13॥१०४०॥ भमवत् सुधर्मस्वामीप्रणीत भीमद् भगवतीसूत्रना १२ मा शतकमां त्रीजा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो.
उद्देशक ४. रायगिहे जाव एवं वयासी दोभंते! परमाणुपोग्गला एगयओ साहन्नंति एगयओ साहण्णित्ता किं भवति?, गोयमा । तुप्पएसिए स्वंधे भवह, से भिबमाणे दुहा कज्जइ एगयओ परमाणुपोग्गले पगयओ परमाणुपोग्गले भवद । तिन्नि भंते ! परमाणुपोग्गला एगयओ साहन्नति २ किं भवति?, गोयमा तिपएसिए खंघे भवति, से भिजमाणे दुहावि तिहावि कज्जइ, दुहा कत्रमाणे एगयओ परमाणुपोग्गले एगयओ दुपएसिए खंधे भवइ, तिहा कन्जमाणे तिणि परमाणुपोग्गला भवंति । चत्तारि भंते। परमाणुपोग्गला एगयओ साहन्नंति जाव पुच्छा, गोयमा! चउपएसिए खंधे भवद, से मिजमाणे दुहावि तिहावि चउहावि कजइ, दुहा कजमाणे एगयओपर-14 माणुपोग्गले एगयओ तिपएसिए वंधे भवइ, अहवा दो दुपएसिया खंधा भवति, तिहा कज्जमाणे एगयओ दो8 परमाणुपोग्गला. एगयओ दुप्पएसिए खंधे भवद, चउहा कजमाणे चत्तारि परमाणुपोग्गला भवंति।
R-ACCACCOS
SAHARASHARE
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. .] राजगृह नगरमा याबद्-आ प्रमाणे पूछयु-हे भगवन् ! बे परमाणुओ एकरूपे एकठा थाय, अने एकरूपे एकठा थइने व्याख्या
पछी ते मुं थाय ? [-] हे मौत! तेनो द्विप्रदेशिक स्कंध थाय, अने जो तेनो मेद थाय तो तेना ये विभाग पाय-एक तरफ १२शतके 18| एक परमाणुगल रहे, अने वीजी तरफ एक (बीजो) परमाणुपुद्गल रहे. [प्र.] हे भगवन् ! त्रण परमाणुपुद्गलो एकरूपे एकठा थाय! 18 उद्देशा४ १४ अ ने एकठा थईने तेनु शु थाय ? [उ०] हे गौतम ! तेनो त्रिप्रदेशिक स्कंध थाय. जो तेनो भेद-वियोग थाय तो तेना वे के त्रण १०४१॥
विभाग थाय, जो वे विभाग थाय तो एक तरफ एक परमाणुपुद्गल, अने वीजी तरफ एक द्विप्रदेशिक स्कंध रहे. तथा जो तेना त्रण विभाग थाय तो त्रण परमाणुपुद्गल रहे. [प्र०] हे भगवन् ! चार परमाणुपुद्गलो एकरूपे एकठा थाय :-इत्यादि प्रश्न. [उ०] हे गौतम ! चतुष्पदेशिक स्कंध थाय, अने जो ते स्कंधनो भेद थाय तो तेना वे, वण अने चार भाग थाय. जो वे भाग थाय तो एक
तरफ एक परमाणुपुद्गल अने एक तरफ एक त्रिप्रदेशिक स्कंध रहे. अथवा बे द्विपदेशिक स्कंध रहे. जो वण भाग धाय तो एक मातरफ वे इटा परमाणुपुद्गलो अने एक तरफ एक द्विप्रदेशिक स्कंध रहे. जो चार भाग थाय तो जूदा चार परमाणुपुदल रहे. हा पंच भंते! परमाणुपोग्गला पुच्छा, गोयमा! पंचपएसिए खंधे भवइ, से भित्रमाणे दुहावि तिहावि चउहावि | पंचहावि कजइ, दुहा कजमाणे एगयओ परमाणुपोग्गले एगयओ चउपएसिए खंधे भवई अहवा एगयओ दुपए. सिए संघे भवति एगयो तिपएसिए खंधेभवइ, तिहा कज़माणे एगयओ दो परमाणुपोग्गला एगयओ तिप्पा. सिए खंघे भवति अहवा एगयओ परमाणुपोग्गले गयओ दो दुपएसिया खंधा भवंति, चउहा कन्जमाणे एगमओ तिन्नि परमाणुपोग्गला एगयओ दुप्पएसिए खंघे भवति, पंचहा कजमाणे पंच परमाणुपोग्गला भवति । छम्भते ।
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व्याख्या-प्रज्ञप्तिः १०४२॥
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परमाणुपोग्गला पुच्छा, गोयमा ! छप्पएसिए खंधे भवइ, से भिज्नमाणे दुहावि तिहावि जाव छव्विहावि कज्जह, दुहा कज्ज माणे एगयओ परमाणुपोग्गले एगयओ पंचपएसिए खंधे भवइ अहवा एगयओ दुप्परलिए खंधे एगयओ चउपसिए खंधे भवइ अहवा दो तिपएसिया खंधा भवइ, तिहा कजमाणे एगयओ दो परमाणुपोग्गला एगयओ चउपए लिए खंधे भवइ अहवा एगयओ परमाणुपोग्गले एगयओ दुपएसिए खंधे एगयओ तिपएसिए खंधे भवइ अहवा तिन्नि दुपएसिया खंधा भवन्ति चउहा कज्ज्रमाणे एगयओ तिन्नि परमाणुपोग्गला एगयओ तिपएसिए खंधे भवइ अहवा एगयओ दो परमाणुपोग्गला भवंति एगयओ दो दुप्पएसिया खंधा भवंति, पंचहा कज्ज्रमाणे ए गयओ चत्तारि परमाणुपोग्गला एगयओ दुपए सिए बंधे भवति, छहा कज्ज्रमाणे छ परमाणुपोग्ला भवंति ।
[प्र०] हे भगवन् ! पांच परमाणुओ एकरूपे एकठा थाय १ [अने पछी शुं थाय १] इत्यादि प्रश्न. [अ०] हे गौतम ! पंचप्रदेशिक स्कंध था. जो ते भेदाय तो तेना बे, त्रण, चार अने पांच विभाग थाय. जो तेना वे विभाग थाय तो एक तरफ एक परमाणु पुट्रल अने एक तरफ चतुष्प्रदेशिक स्कंध थाय. अथवा एक तरफ द्विप्रदेशिक स्कंध अने एक तरफ त्रिप्रदेशिक स्कंध थाय. जो तेना त्रण विभाग थाय तो एक तरफ वे परमाणुपुलो अने एक तरफ त्रिप्रदेशिक स्कंध थाय. अथवा एक तरफ एक परमाणुपुद्गल अने एक तरफ जुदा जुदा वे द्विप्रदेशिक स्कंधो थाय. जो तेना चार विभाग थाय तो एक तरफ जुदा त्रण परमाणुओ अने एक तरफ एक द्विदेशिक स्कंध थाय. जो तेना पांच विभाग थाय तो जुदा पांच परमाणुओ थाय [प्र० ] हे भगवन्छ परमाणुपुद्गलो संबन्धे प्रश्न. [उ०] हे गौतम ! पद्मदेशिक स्कंध थाय. जो तेनो भेद धाय तो तेना बे, त्रण, चार पांच के छ विभाग थाय. जो तेना बे
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१२ शतके उद्देशः ४ ॥१०४२॥
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:०४३॥
भाग थाय तो एक तरफ एक परमाणुपुद्गल अने एक तरफ एक पंचप्रदेशिक स्कंध थाय. अथवा एक तरफ एक द्विप्रदेशिक स्कंध व्याख्या
अने एक तरफ एक चतुष्पदेशिक स्कंध थाय, अथवा वे त्रिप्रदेशिक स्कंधो थाय. जो तेना प्रण भाग थाय तो एक तरफ जुदा १२शतके प्रज्ञप्तिः 181 जुदा वे परमाणुपुद्गल अने एक तरफ एक चतुष्पदेशिक स्कंध थाय. अथवा एक तरफ एक परमाणुपुद्गल, एक तरफ एक द्विप्र- 151 उद्देशः४
देशिक स्कंध अने त्रिप्रदेशिक स्कंध थाय. अथवा त्रण द्विप्रदेशिक स्कंधो थाय, जो तेना चार भाग थाय तो एक तरफ जुदा त्रण | ॥१०४३॥
परमाणुपुद्गलो अने एक तरफ त्रिप्रदेशिक स्कंध थाय, अथवा एक तरफ बे परमाणुपुद्गलो अने एक तरफ द्विप्रदेशिक बे स्कंधो 3थाय. जो तेना पांच भाग थाय तो एक तरफ चार परमाणुपुद्गलो अने एक तरफ एक द्विप्रदेशिक स्कंध थाय. जो तेना छ भाग
थाय तो जुदा जुदा छ परमाणुपुद्गलो थाय. । सत्त भंते ! परमाणुपोग्गला पुच्छा, गोयमा! सत्तपसिए खधे भवइ, से भिजमाणे दुहावि जाव सत्तहावि कजइ, दुहा कजमाणे एगयओ परमाणुपोग्गले एगयओ छप्पएसिए बंधे भवइ अहवा एगयओ दुप्पएसिए खंधे भवइ एगयओ पंचपासिए खंधे भवइ अहवा एगयओ तिप्पएसिए एगयओ चउपएसिए खंधे भवइ, तिहा कन्जमाणे एगयओ दो परमाणुपोग्गला एगयओ पंचपएसिए खंधे भवति अहवा एगयओ परमाणुपोग्गले एगयओ दुपएसिए खंधे एगयओ चउपएसिए बंधे भवइ अहवा एगयओ परमाणु एगयओ दो तिपएसिया खंधा भवंति अहवा एगयओ दो दुपएसिया खंधा भवंति एगयओ तिपएसिए खंधे भवति, चउहा कन्जमाणे पगयओ तिन्नि परमाणुपोग्गला एगपओ चउप्पएसिए खंधे भवति अहवा एगयओ दो परमाणुपोग्गला एगपओ दुपएसिए
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व्याख्याप्रज्ञप्तिः १०४४॥
१२शतके उमेश ॥१०४७
खंघे एगयओ तिपएसिए खंधे भवह अहवा एयो परमाणु० एगयओ तिन्नि दुपएसिया खंधा भवंति, पंचहा | कलमाणे एगयओ चत्तारि परमाणुपोग्गला एगयओ निपएसिए बंधे भवह अहवा एगयओ तिन्नि परमाणु | एगयओ दो दुपएसिया खंधा भवंति, छहा कन्जमाणे एगयओ पंच परमाणुपोग्गला एगयओ दुपएमिए खधे | भवह, सत्तहा कन्जमाणे सच परमाणुपोग्गला भवंति ।
प्र०] हे भगवन् ! सात परमाणुपुद्गलो संवन्धे प्रश्न. [उ०] हे गौतम ! सप्तप्रदेशिक स्कंध थाय. जो तेना विभाम थाय तो बे, पण, यावत् सात विभाग थाय छे. जो वे विभाग थाय तो एक तरफ एक परमाणुपुद्गल अने एक तरफ छप्रदेशिक स्कंध थाय, अथवा एक तरफ द्विप्रदेशिक स्कंध अने एक तरफ पंचप्रदेशिक स्कंध थाय, अथवा एक तरफ त्रिप्रदेशिक स्कंध अने एक तरफ चतुष्पदेशिक स्कंध थाय. जो तेना त्रण भाग थाय तो एक तरफ वे परमाणुपुद्गलो अने एक तरफ पंचप्रदेशिक स्कंध थाय. अथवा एक तरफ एक परमाणुपुद्गल, एक तरफ द्विप्रदेशिक अने चतुष्पदेशिक स्कंध थाय. अथवा एक तरफ एक परमाणुपुदूगल अने एक तरफ त्रिप्रदेशिक स्कंध थाय. अथवा एक तरफ वे द्विप्रदेशिक स्कंधो अने एक तरफ एक त्रिप्रदेशिक स्कंध थाय. जो तेना चार भाग थाय तो एक तरफ त्रण परमाणुपुद्गलो अने एक तरफ एक चतुष्पदेशिक स्कंध थाय. अथवा एक तरफ ये पर माणुपुद्गलो, एक तरफ एक द्विप्रदेशिक स्कंध अने एक त्रिप्रदेशिक स्कंध थाय. अथवा एक तरफ एक परमाणुपुद्गल अने एक तरफ त्रण द्विप्रदेशिक स्कंधो थाय. जो तेना पांच विभाग थाय तो जुदा चार परमणुपुद्गलो, अने एक त्रिप्रदेशिक स्कंध थाय. अथवा एक तरफ त्रण परमाणुपुद्गलो अने एक तरफ बे द्विप्रदेशिक स्कंधो पाय. जो तेना छ भाग थाय तो एक तरफ जुदा पांच
पुद्गलो, एकतरफा एक तरफ वण परमाना एक तरफ वे निष्प
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१२शतक उद्देशा १०४५॥
&ी परमाणुपुद्गलो अने एक तरफ एक द्विप्रदेशिक स्कंध थाय. तथा जो तेना सात भाग थाय तो जुदा जुदा सात परमाणुपुद्गलो थाय. व्याख्या
. अट्ठ भंते ! परमाणुपोग्गला पुच्छा, गोयमा! अट्टपएमिए लंधे भवद जाव दुहा कजमाणे एगयओ परमाणु. प्रज्ञप्तिः एगयओ सत्तपएसिए बंधे भवद अहवा एगयओदुपएसिए बंधे पगयओ छप्पएसिए स्वधे भवइ अहवा एमयओ ॥१४॥ तिषपसिए० एगयओ पंचपएमिए बंधे भवह अहवा दो चउपएमिया खंधा भवंति, तिहा कन्जमाणे पगयओदो
परमाणु० एगयओ छप्पएसिप बंधे भवइ अहवा पगयओ परमाणु० एगयओ दुप्पएसिए खंधे एगयओपंचपएमिए काखधे भवद अहवा एगपयओ रमाणु० एगयओ तिपएमिए बंधे एगयओ चउपएसिए बधे भवद अहवा एगयओ
दो दुपएसिया खंधा एगयओ चप्पएमिए ग्बंधे मवइ अहवा एगयआ दुपएमिए खंधे एगयओ दो निपएसिया
खंधा भवंति, चउहा कन्जमाणे एगयओ तिन्नि परमाणुपोग्गला एगयओ पंचपएसिए बंधे भवति अहवा एगयओ मा दोन्नि परमाणुपोग्गला एगयो दुपएसिए बंधे एगयओ चउप्पएसिए खंधे भवति अहवा एगयओ दो परमाणु
एगयओ दो तिपएसिया खंधा भवति अहवा एगयओ परमाणु० एगयओदोदुपएसिया बंधा एगयओ तिपएसिप * बंधे भवति अहवा चत्तारि दुपसिया खंधा भवंति, पंचहा कजमाणे एगयओ चत्तारि परमाणुपोग्गला एगयओ
चउप्पएमिए खंधे भवति अहवा गगयओतिन्नि परमाणु एगयओ दुपएसिए एगयओतिपएसिए बंधे भवति अहवा एगयओ दो परमाणु० एगयओ-तिनि दुपएसिया खंधा भवंति, छहा कत्रमाणे एगयओ पंच परमाणु एगयओ तिपएसिए. वंधे भवह अहवा एगमओ चत्तारि परमाणु० एगयओ दो दुपएसिया खंधा भवइ, सत्तहा कजमाणे
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ध्याख्या अज्ञप्तिा
एगयओ छ परमाणुपोग्गला एगयओ दुपएसिए खंधे भवह अदुहा कजमाणे अट्ठ परमाणुपोग्गला भवंति ॥ | [प्र०] हे भगवन् ! आठ परमाणुपुद्गलो संवन्धे प्रश्न. [उ०] हे गौतम ! आठ प्रदेशनो एक स्कंध थाय. (जो तेना चिमाम है थाय तो चे, त्रण, चार, पांच, छ, सात के आठ विभाग थाय.) यावत् तेनावे विभाग थया तो एक तरफ एक परमाणुपुद्गल अने
उमेश | एक तरफ सात प्रदेशनो एक स्कंध थाय छे. अथवा एक तरफ के प्रदेशोनो एक स्कंध अने एक तरफ छ प्रदेशनो एक स्कंघ थाय
IND१०१६॥ के. अथवा एक तरफ त्रण प्रदेशनो एक स्कंध अने एक तरफ पांच प्रदेशनो एक स्कंध थाय ने. अथवा चार चार प्रदेशना वे स्कंध थाय छे. जो तेना त्रण विभाग थाय तो एक तरफ जुदा बे परमाणुपुद्गलो अने एक तरफ छ प्रदेशनो एक स्कंध याय छे. अथवा एक तरफ एक परमाणुपुद्गल, एक तरफ एक द्विप्रदेशिक स्कंध अने एक तरफ पंचप्रदेशिक स्कंध थाय छे. अथका एक तरफ एक परमाणुपुद्गल, एक तरफ एक त्रिप्रदेशिक स्कंध अने एक तरफ चतुष्प्रदेशिक स्कंध थाय छे. अथवा एक तरफ वे द्विप्रदेशिक स्कयो । अने एक चतुष्पदेशिक स्कंध थाय छे. अथवा एक तरफ एक द्विप्रदेशिक स्कंध अने एक तरफ चे त्रिप्रदेशिक स्कंध थाय छे. जो तेना चार विभग थाय तो एक तरफ जुदा त्रण परमाणुपुद्गलो अने एक तरफ पांच प्रदेशनो एक स्कंध थाय छे. अथवा एक तरफ जुदा व परमाणु पुद्गलो, एक तरफ एक द्विप्रदेशिक स्कंध अने एक चार प्रदेशनो स्कंध थाय छे. अथवा एक तरफ वे परमाणुपुद्गलो अने एक तरफ चे त्रिप्रदेशिक स्कंधो क्षय छे अथवा एक तरफ एक परमाणुपुद्गल, एक तरफ वे द्विप्रदेशिक स्कंधो अने एक त्रिप्रदेशिक एक स्कंध थाय छे अथवा चार द्विप्रदेशिक स्कंधो थाय छे. तेना पांच विभाग थाय तो एक तरफ जुदा चार परमाणुपुद्गलो, अने एक तरफ एक चतुष्पदेशिक स्कंध थाय छे. अथवा एक तरफ त्रण परमाणुओ अने एक तरफ एक द्विप्रदेशिक स्कंध अने एक
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न्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥१०४७॥
त्रिप्रदेशिक स्कंध चाय छे. अथवा एक तरफ वे परमाणुपुद्गलो, एक तरफ त्रण द्विप्रदेशिक स्कंधो थाय छे. जो तेना छ विभाग थाय तो एक तरफ जुदा पांच परमाणुपुद्गलो अने एक तरफ एक त्रिप्रदेशिक स्कंध थाय छे. अथवा एक तरफ चार परमाणुपुद्गलो
है|१२शतके म अने एक तरफ वे द्विप्रदेशिक स्कंधो थाय. छे. जो सेना सात विभाग थाय तो तो एक तरफ जुदा छ परमाणुपुनलो अने एक || उद्देश तरफ एक द्विप्रदेशिक स्कंध थाय छे. जो तेना आठ विभाग थाय तो जुदाजुदा आठ परमाणुपुद्गलो धाय छे.
॥१०४७॥ गोयमा ! जाव नवविहा कजंति. दुहा कत्रमाणे एगयओ परमाणु० एगयओ अट्ठपएसिए खंधे भवति, एवं एकेक संचारेंतेहिं जाव अहवा एगयओ चउप्पएसिए खंधे एगयओ पंचपएसिए खंधे भवति, तिहा कजमाणे एगयओ दो परमाणुपोग्गला एगयओ सनपएसिए खंधे भवइ अहवा एगयओ परमाणु० एगयओ दुपएमिए एगयओ छप्पएसिए खंधे भवई अहवा एगयओ परमाणु० एगयओ तिपासिए खंधे एगयओ पंचपएसिप खंधे भवह अहवा एगयओ परमाणु० एगयओ दो चउप्पसिया खंधा भवंति अहवा एगयओ दुपएसिए खंधे एगयओ तिपएसिए खंधे एगयओ चउपएसिए खंधे भवइ अहवा तिन्नि तिपएमिया खंधा भवंति, चउहा कन्जमाणे एगयओ तिन्नि परमाणु० एगयओ छप्पएमिए खंधे भवइ अहवा एगयओ दो परमाणु। एगयओ दुपएसिए संधे एगयओ पंचपएसिए खंघे भवति अहवा एगयओ दो परमाणु एगयओ तिपएसिए खंधे एगयओ चउप्पएसिए खंधे भवति अहवा एगयओ परमाणु० एगयओ दो दुपएसिया खंधा एगयओ चउप्पएसिए खंधे भवति अहवा एग-18 यओ परमाणु० एगयओ दुपएसिए खंधे एगयओ दो तिपएसिया खंधा भवंति अहवा एगयओ तिन्नि दुप्पएसिया
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CTES
१२शतके
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खंधा एगयओ तिपएसिए खंधे भवति, पंचहा कजमाणे एगयओ चत्तारि परमाणु० एगयओ पंचपएसिए संधे
भवइ अहवा एगयओ तिन्नि परमाणु पगयओ दुपएसिए० एगयो चउप्पएसिप खेधे भवइ अहवा एगयओ व्याख्या तिन्नि परमाणु० एगयओ दो तिपएमिया खंधा भवंति अहवा एगयओदो परमाणुपोग्गला एगयओ दो दुपएसिया प्रज्ञप्तिः खंधा एगयओ तिपएसिए खंध भवइ अहवा एगयो परमाणु० एगयओ चत्तारि दुपएसिया खंधा भवंति, छहा ||
| उद्देश ॥१०४८॥
॥१०४८ कजमाणे एगयओ पंच परमाणुपोग्गला एगयओ चउप्पएसिए खधे भवद अहवा एगयओ चत्तारि परमाणु० एगलायओ दुप्पएसिए पगयओनिप्पएमिए खंधे भवति अहवा पगयओ तिलि परमाणु एगयभो तिन्नि दुप्पएसिया | खंधा भवंति. सत्तहा कलमाणे एगयओ छ परमाणु, एगयओं तिप्पएमिए खंधे भवति अहवा एगयओ पंच परमाणु० गयओ दो दुपएसिया खंधा भवंति, अट्टहा कन्जमाणे गमयओ सत्त परमाणु एगयओ दुपएसिए खंधे भवति, नव हा क जमाणे नव परमाणुपोग्गला भवति ।।
[प्र.] हे भगवन् ! नव परमाणुगलो संबन्धे प्रश्न. [उ०] हे गौतम ! नवप्रदेशनो एक स्कंध थाय छे; अने जो तेना विभाग करवामां आवे तो (बे, व्रण, चार, पांच, छ, सात, आठ के) यावत नव विभाग थाय छे. तेना जो बे विभाग थाय तो एक तरफ
एक परमाणुपुद्गल अने एक तरफ एक अष्टप्रदेशिक स्कंध थाय छे. ए प्रमाणे एक एकनो संचार करयो; यावत्-अथवा एक तरफ हैं एक चार प्रदेशनो स्कंध अने एक तरफ पांचप्रदेशनो स्कंध थाय छे. जो तेना त्रण भाग करवामां आवे तो एक तरफ वे परमाणुपु.
द्रलो, अने एक तरफ एक सप्तप्रदेशिक स्कंध थाय छे. अथवा एक तरफ एक परमाणुपुद्गल, एक तरफ द्विप्रदेशिक स्कंध, अने एक
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१२शतके
| तरफ छपदेशिक स्कंध थाय छे. अथवा एक तरफ एक परमाणु, एक तरफ त्रिप्रदेशिक स्कंध, अने एक तरफ पंचप्रदेशिक स्कंध थाय वाख्या
छे. अथवा एक तरफ एक परमाणुपुद्गल अने एक तरफ वे चतुष्प्रदेशिक स्कंधो धाय छे. अथवा एक तरफ एक द्विप्रदेशिक स्कंध, ज्ञप्तिः
माएक तरफ त्रिप्रदेशिक स्कंध अने एक तरफ चतुष्प्रदेशिक स्कंध थाय छे. अथवा त्रण त्रिप्रदेशिक कंधो थाय ने. तेना चार भाग 51 उदेशः४ १०५२८ थाए तो एक तरफ त्रण परमाणुपुद्गलो अने एक तरफ छप्रदेशनो एक स्कंधथाय के. अथवा एक तरफ ये परमाणुगलो एक तरफ T॥१०४९०
एक द्विप्रदेशिक अने एक तरफ पंचप्रदेशिक स्कंध थाय छे. अथवा एक तरफ वे परमाणुपुद्गलो, एक तरफ त्रिप्रदेशिक स्कन्ध अने एक तरफ चारप्रदेशिक स्कंध थाय छे. अथवा एक तरफ एक परमाणु पद्गल, एक तरफ वे द्विप्रदेशिक स्कंधो, अने एक तरफ चतु. प्रदेशिक स्कंध थाय छे. अथवा एक तरफ एक परमाणुपुद्गल, एक तरफ एक द्विप्रदेसिक स्कंध अने एक तरफ वे त्रिप्रदेशिक स्कंधो याय छे. अथवा एक तरफ त्रण द्विप्रदेशिक स्कन्धो अने एक तरफ एक त्रिप्रदेशिक स्कन्ध थाय छे. पांच भाग थाय तो एक तरफ जुदा चार परमाणुओ अने एक तरफ एक पंचनदेशिक स्कंध धाय छे. अथवा एक तरफ त्रण परमाणुओ अने एक तरफ द्विप्रदेशिक स्कन्ध अने एक तरफ चतुष्पदेशिक स्कंध थाय छे. अथवा एक त्रण परमाणुपुद्गलो अने एक तरफ चे त्रिप्रदेशिक स्कंधो थाय छे. अथवा एक तरफ के परमाणुपुद्गलो, एक तरफ वे द्विप्रदेशिक स्कंधो अने एक त्रिप्रदेशिक स्कंध थाय छे. 'अथवा एक तरफ एक परमाणुपुद्गल अने एक तरफ चार द्विप्रदेशिक स्कंधो थाप छे. जो तेना छ भाग करवामां आवे तो एक तरफ पांच परमाणुष गलो अने एक तरफ एक चतुष्प्रादेशिक स्कंध होय छे. अथवा एक तरफ चार परमाणुपुद्रलो, पक तरफ द्विप्रदेशिक स्कन्ध अने एक तरफ त्रिप्रदेशिक स्कंध होय छे. अथवा एक तरफ त्रण परमाणुओ अने एक तरफ त्रण द्विप्रदेशिक स्कंधो होय छे. जो तेना सान
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व्याख्या प्रज्ञाप्तिः ॥१.५०॥
ABHICHHAHIRAL
भाग करवामां आवे तो एक तरफ छ परमाणुपुद्गलो अने एक तरफ एक त्रिप्रदेशिक स्कंध होय छे.. अथवा एक तरफ पांच परमाः णुपुद्गलो अने एक तरफ के द्विप्रदेशिक स्कंधो होय छे. आठ भाग करवामां आवे तो एक तरफ सात परमाणुओ अने एक तरफ
शतके द्विप्रदेशिक एक स्कंध, होय छे जो तेना नव भग करवामां आवे तो जुदा नव परमाणुओ होय छे.
उवा दस भंते परमाणुपोग्गला! जाव दहा कन्जमाणे गयओ परमाणुपोग्गले एगयओ नवपासिए खंघ भव |१०५०। अहवा एगयओ दुपएसिए बंध एगयओ अट्ट पएसिए खंधे भवह एवं एकेक संचारेयवंति जाव अहवा दो पंच पएमिया खंधा भवंति, तिहा कजमाणे एगयओ दो परमाणु एगयओ अट्टपएमिए वध भवई अहवा एगया परमाणु पगयओ दुपरमिए, एगयओ सत्तपएसिए खंधे भव अहवा एगयओ परमाणु• एगपओ तिपसिए खधे भवइ एगयओ छप्पएसिए खंधे भवह अहवा एगयओ परमाणु. एगयओ चउप्पएसिए एगयओ पंचपएसिए खंधे भवति अहवा एगयओ दुपएसिए खधे० एगयओ दो चउपसिया खंधा भवंति अहवा एगपओ दो तिपएसिया खंधा एगयओ चप्पएसिए खंधे भवइ. चउहा कन्जमाणे गगयओ तिन्नि परमाणु• एगयओ सत्त* पएमिए खंधे भवद अहवा एगयओ दो परमाणु एगयओ दुपएसि.एगपओ छप्पएसिए ग्बधे भवह अहचा एग-12 यओ दो परमाणु० गयओ तिप्पएसिए बंधे गगयओ पंचपएसिए स्वधे भवति अहवा एगयओ दो परमाणु० एगयओ५ दो चउपएसिया बंधा भवंति अहवा एगयओ परमाणु० गयओ दुपएसिए एगयओ तिपएसिए एगयओ चउ. पासिए खंधे भवति अहवा एगयओ परमाणु० गयओतिन्नि तिपएसिया बंधा भवंति अहवा एगयओ तिन्नि
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व्याख्या प्रज्ञप्तिः १.५२॥
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दुपएसिया बंधा एगयओ चउपएसिए रखधे भवति अहवा एगपओ दो दुपएसिया बंधा एगपओ दो तिपएसिया।। खंधा भवंति, पंचहा कजमाणे एगयओ चत्तारि परमाणुपोग्गला एगयओ छपएसिए खंधे भवइ अहवा एगयओ | १२शतके तिग्नि परमाणु० गयओदुपएसिए खधे एगयओपंचपएसिए खंधे भवइ अहवा एगयओ तिन्नि परमाणु० एगयओ151 उदेशः४ |तिपएसिए खंधे एगयओ चउपएसिए बंधे भवति अहवा एगयओ दो परमाणु एगयओ दुपएसिए खंधे. एग-1 यओ दो तिपएसिया खंधा भवंति अहवा एगयओ परमाणु- एगपओ तिन्नि दुपएसिया. एगपओ तिपएमिए खंघे भवति अहवा पंच दुपएसिया खंधा भवंति, छहा कन्जमाणे एयओ पंच परमाणु० एगयओ पंचपएसिए खंघे भवति अहवा एगयओ चत्तारि परमाणु० एगयओ दुपएमिए० एगयओ चउपएसिए खधे भवति अहवा एगयओ चत्तारि परमाणु० एगयओ दो तिपएसिया खंधा भवंति अहवा एगयओ तिन्नि परमाणु एगयओ दो दुपएसिया खंधा० एगयओ तिपएसिए खंधे भवति अहवा एगयओ दो परमाणु० एगपओ चत्तारि दुपएमिया खंधा भवंति, मत्तहा कन्जमाणे एगयओ छ परमाणु पगयओ चउप्पएसिए खंधे भवति अहवा एगयओ पंच परमाणु प्रगपओ दुपएसिए एगयओ तिपएसिए खधे भवति अहवा एगयओ चत्तारि परमाणु० एगयओ तिन्नि दुपएसिया खंधा भवंति, अट्टहा कत्रमाणे एगयओ सत्त परमाणु० गयो तिपएसिए वंधे भवति अहवा एगयओछ परमाणु० एगयओ दो दुपएसिया खंधा भवंति, नवहा कजमाणे एगयओ अट्ट परमाणु० एगयओ दुपएसिए खंघे भवति अहवा एगयओ छ परमाणु० एगयओ दो दुपएसिया खंधा भवंति, दसहा कन्जमाणे
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ख्या
प्तिः •५२॥
CHESTERESARKAR
दस परमाणुपोग्गला भवति । [प्र०] हे भगवान ! दस परमाणुओ संबन्धे प्रश्न. [३०] (नेनो एक दसप्रदेशिक स्कंध थाय छे. अने जो तेना विभाग कर
१२शतके हैवामां आवे तो ,त्रण, चार, पांच, छ, सात, आठ, नब अने दश विभाग थाय छे.) यावत् बे भाग करवामां आवे तो एक तरफ
उद्देशा एक परमाणु अने एक तरफ नत्र प्रदेशनो एक स्कंध थाय छे. अथवा एक तरफ द्विप्रदेशिक स्कंध अने एक तरफ अटप्रदेशिक एका1१०५२॥ ४ा स्कंध होय छे. एप्रमाणे एक एकनो संचार करवो; यावत-अथवा वे पंचप्रदेशिक किंधो थाय छे. जो तेना त्रण विभाग करवामां
आवे तो एक तरफ वे परमाणुपुद्गलो अने एक तरफ एक आठ प्रदेशनो स्कंध होय छे. अथवा एक तरफ परमाणुपुद्रल, एक तरफ द्विप्रदेशिक स्कंध, अने एक तरफ सप्तप्रदेशिक स्कंध होय छे. अथवा एक तरफ परमाणुपद्रल, एक तरफ त्रिप्रदेशिक स्कंच अने एक छ प्रदेशिक स्कंध होय छे. अथवा एक तरफ एक परमाणुपुद्गल, एक तरफ एक चतुष्पदेशिक स्कंध अने एक तरफ पंचप्रदशिक स्कंध होय छ. अथवा एक तरफ एक द्विप्रदेशिक स्कन्ध, एक तरफ त्रिप्रदेशिक स्कंध अने एक तरफ पंचप्रदेशिक स्कंध होय छ..
अथवा एक तरफ एक द्विप्रदेशिक स्कन्ध अने एक तरफ वे चतुष्प्रदेशिक स्कंधो होय छे. अथवा एक तरफ वे त्रिप्रदेशिक स्कंधों ४ा अने एक तरफ एक चतुष्पदेशिक स्कंध होय छे. तेना चार विभाग करवामां आवे तो एक तरफ त्रण परमाणुपुद्गलो, अने एक तरफ | सप्तप्रदेशिक स्कंध होय छे. अथवा एक तरफ वे परमाणुपुद्गलो, एक तरफ द्विप्रदेशिक स्कट अने एक तरफ छप्रदेशिक स्कंध होप
छ, अथवा एक तरफ वे परमाणुपुद्गलो, एक तरफ एक त्रिप्रदेशिक स्कंध अने एक पंचप्रदेशिक स्कन्ध होय छे. अथवा एक तरफ जावे परमाणुपुद्गलो अने एक तरफ वे चतुष्प्रदेशिक स्कन्धो होय छ. अथवा एक तरफ एक परमाणुपुद्गल, एक तरफ द्विप्रदेशिक
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व्याख्यावासिः ॥१०५३॥
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स्कंध, एक तरफ त्रिप्रदेशिक स्कंध, अने एक चतुष्प्रदेशिक स्कंध होय छे. अथवा एक तरफ एक परमाणुवुगल अने एक तरफ त्रण त्रिप्रादेशिक स्कन्धो होय . अथवा एक तरफ त्रण द्विप्रदेशिक स्कन्धो अने एक तरफ एक चतुष्प्रदेशिक स्कंध होय . अथवा एक तरफ एक परमाणु हल अने एक तरफ त्रण त्रिप्रदेशिक स्कन्धो होय छे. अथवा एक तरफ वे द्विप्रदेशिक स्कन्धो अने एक तरफ वे त्रिदेशिक स्कन्धो होय ले, तेना पांच विभाग करवामां आवे तो एक तरफ चार परमाणुपुल अने एक तरफ एक छप्रदेशिक स्कन्ध होय छे. अथवा एक तरफ त्रण परमाणुपुद्गलो, एक तरफ एक द्विप्रदेशिक स्कन्ध अने एक तरफ एक पंचप्रदेशिक स्कंध होय छे. अथवा एक तरफ त्रण परमाणुपुद्गलो, एक तरफ एक त्रिप्रदेशिक स्कन्ध अने एक चतुष्प्रदेशिक स्कंध होय छे. अथवा एक तरफ वे परमाणुओं, एक तरफ वे द्विप्रदेशिक स्कन्धो अने एक तरफ एक चतुष्प्रदेशिक स्कन्ध होय छे. | अथवा एक तरफ वे परमाणुपुद्गलो, एक द्विप्रदेशिक स्कंध अने एक तरफ वे त्रिप्रदेशिक स्कन्धो होय छे. अथवा एक तरफ परमाणुपुल, एक तरफ त्रण द्विप्रदेशिक स्कन्धो अने एक तरफ एक त्रिप्रदेशिक स्कन्ध होय छे. अथवा पांच द्विप्रादेशिक स्कन्धो होय छे. तेना छ विभाग करवामां आवे तो एक तरफ जूदा पांच परमाणुओं अने एक तरफ एक पंचप्रदेशिक स्कन्ध होय छे. अथवा एक तरफ चारपरमाणुपुङ्गलो, एक तरफ एक द्विप्रदेशिक स्वस्थ तथा एक तरफ एक चतुष्प्रदेशिक स्कन्ध होय छे. अथवा एक तरफ चार परमाणुपुद्गलो, अने एक तरफ वे त्रिप्रदेशिक स्कन्धों होय छे. अथवा एक तरफ त्रण परमाणुपुद्गलो, एक तरफ बे द्विप्रदेशिक स्कन्धो अने एक त्रिप्रदेशिक स्कन्ध होय छे. अथवा एक तरफ वे परमाणुपुद्रलो अने एक तरफ चार द्विप्रदेशिक स्कन्धो होय . तेना सात विभाग करवामां आवे तो एक तरफ छ परमाणुपुद्गलो अने एक तरफ एक चतुःप्रदेशिक स्कन्ध होय छे.
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१२ शतके उद्देशः४
॥१०५२५
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व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥१०५४॥
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अथवा एक तरफ पांच परमाणुओ अने एक तरफ एक द्विप्रदेशिक स्कन्ध तथा एक त्रिःप्रदेशिक स्कन्ध होय छे, अबवा एक तरफ चार परमाणुओ, अने एक तरफ त्रण द्विप्रदेशिक स्कन्धो होय छे, तेना आठ विभाग करवामां आवे तो एक तरफ सात (जूदा ) परमाणुओ अने एक तरफ एक त्रिप्रदेशिक स्कन्ध होय है. अथवा एक तरफ छ परमाणुओ, अने एक तरफ वे द्विप्रदेशिक स्कन्धो होय, तेना व विभाग करवामां आवे तो एक तरफ आठ परमाणु अने एक तरफ एक द्विप्रदेशिक स्कन्ध होय े, अने जो तेना दश विभाग करवामां आवे तो जुदा दश परमाणुओ थाय छे.
संखेज्जा भंते! परमाणुपोग्गला एगयओ साहनंति एगयओ साहण्णित्ता किं भवति ? गोयमा ! संखेज्जपएसिए वे भवति, से भिनमाणे दुहावि जाव दसहावि संखेज्जहावि कज्जति, दुहा कजमाणे एगयओ परमाणुपोग्गले एगयओ संखेज्जपएसिए खंधे भवति अहवा एगयओ दुपएसिए खंधे एगयओ संखेज्जपएसिए खंधे भवति एवं अहवा एगयओ तिपएसिए एगयओ सं० खंधे भवति एवं जाव अहवा एगयओ दमपएसिए संघे एगयओ संखे
एसिए खंधे भवति अहवा दो संखेज्जपपसिया खंधा भवंति तिहा कज्रमाणे एगयओ दो परमाणु० एगयओ संखेज पसिएखंधे भवति अहवा एगयओ परमाणु एगयओ दुपएसिए संधे एगयओ संखेज्जपएसिए संघ भवति जहवा एगयओ परमाणु० एगयओ तिपएसिए खंधे० एगयओ संखेजपरसिए बंधे भवइ एवं जाव अहवा एगयओ परमाणु एगयओ दसपएसिए खंधे० एगयओ संखेबपएसिए खंघे भवति अहवा एगयओ परमाणु० एमयओ दो संखेज्जपएसिया संधा भवंति अहवा एगयओ दुपएसिए० एगपओ दो संखेज्जपएसिया संधा भवंति एवं
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१२ शतके उद्देशा ॥१०५४॥
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हजाब अहवा एगयओ दसपएसिए० एमयओ दो संखेजपएसिया खंधा भवंति अहवा तिन्नि संखेजपएसिया खंधा
भवंति, चउहा कज़माणे एगयओ तिन्नि परमाणु. एगयओ संखेजपएमिए भवति अहवा एगयओ दो परमाणु. प्रातिः
1* उद्देश एगयओ दुपएमिएएगयओ संखेजपएसिए भवति अहवा एगयओ दोपरमाणु० पगयओ तिप्पएसिए० एगयओ B॥१०५५॥ संखेजपएसिए भवति एवं जाव अहवा एगयओ दोपरमाणु० एमयो दसपएसिए एगयओ संखेजपएसिए भवति अहवा एगयओ दो परमाणु० एगयओ दो संखेजपएसिया खंधा भवंति अहवा एगयओ परमाणु० एगयओ दुपएसिए एगयओ दो संखेजपएसिया खंघा भवंति जाव अहवा एगयो परमाणु गगयओ दसपएसिए एगयओ
दो संखेजपएसिया खंधा भवंति अहवा एगयओ परमाणु० गगयओ तिन्नि संखेजपामिया खंधा भवंति अहवा #एगयओ दुपएसिए एगयओ तिन्नि संखेजपएसिया भवंति जाव अहवा एगयओ दसपासिए एगयओ तिन्नि ॐा संखेजपएसिया भवंति अहवा चत्तारि संखेज्जपएसियाभवंति पचं एएणं कमेणं पंचगसंजोगोवि भाणियब्वो जाव F| नवगसंजोगो, दसहा कन्जमाणे एगयओ नव परमाणु पगयओ संखेनपासिए भवति अहवा एगयओ अट्ट पर
माणु० एगयओ दुपएसिए एगयओ संखेजपपसिए खंधे भवति, पएणं कमेण एकेको पू० जाव अहवा एगपओ दसपएसिए पगयओ नव संखेजपएसिया भवंति अहया दस संखेज्जपणसिया खंधा भवंति मखेजहा कजमाणे संखेज्जा परमाणुपोग्गला भवंति।
[म.] हे भगवन् ! संख्याता परमाणुओ एक माथे मळे अने एक साथे मळीने तेनु शुं थाय ? [उ.] हे गौतम! तेनो
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व्याख्याप्रज्ञप्तिा ॥१.५६॥
४ार
की संख्याता प्रदेशनो स्कन्ध थाय. जो तेनो भेद-विभाग थाय तो तेना बे, यावत् दस के संख्याता विभाग थाय. जो तेना चे भाग र
करवामां आवे तो एक तरफ एक परमाणुपुद्गल अने एक तरफ संख्यातप्रदेशिक स्कन्ध थाय के अथवा एक तरफ एक द्विप्रदेशिक काउद्देशा स्कन्ध अने एक तरफ एक संख्यातप्रदेशिक स्कंध थाय . अथवा एक तरफ एक त्रिप्रदेशिक स्कन्ध अने एक तरफ एक संख्या- १०५६॥ तप्रदेशिक स्कन्ध थाय छे. ए प्रमाणे यावद् एक तरफ दशप्रदेशिक स्कन्ध अने एक तरफ संख्यातप्रदेशिक स्कन्ध होय छे. अथवा घे संख्यातप्रदेशिक स्कन्धो होय छे. तेना त्रण विभाग करवामां आवे तो एक तरफ वे परमाणुओ अने एक तरफ एक संख्यातप्रदेशिक स्कन्ध होय छे. अथवा एक तरफ एक परमाणु, एक तरफ एक द्विप्रदेशिक स्कन्ध अने एक तरफ एक संख्यातप्रदेशिक स्कन्ध होय . अथवा एक तरफ एक परमाणुपुद्गल, एक तरफ द्विप्रदेशिक स्कन्ध अने एक तरफ एक संग्ख्यातप्रदेशिक स्कन्ध होय छे. अथवा एक तरफ एक परमाणुपुद्गल, एक तरफ एक त्रिप्रदेशिक स्कन्ध अने एक तरफ संख्यातप्रदेशिक स्कन्ध होय छे. ए प्रमाणे यावत्-अथवा एक तरफ एक परमाणुपुद्गल, एक तरफ दश प्रेदशिक स्कन्ध अने एक संख्यातप्रदेशिक स्कन्ध होय छे. अथवा एक तरफ एक परमाणुपुद्गल, अने एक तरफ वे संख्यातप्रदेशिक स्कन्धो होय छे. अथवा एक तरफ एक द्विप्रदेशिक स्कन्ध अने एक तरफ वे संख्यातप्रदेशिक स्कन्धो होय छे, ए प्रमाणे यावत् -अथवा एक तरफ एक दशप्रदेशिक स्कन्ध अने बे संख्यातप्रदेशिक स्कन्धो होय , अथवा त्रण संख्यातप्रदेशिक स्कन्धो होय के. तेना चार भाग करवामां आवे तो एक तरफ त्रण परमाणुपुद्गलो, अने एक तरफ एक संख्यातनदेशिक स्कन्ध होय छे. अथवा एक तरफ वे परमाणुपुद्गलो, एक तरफ एक द्विप्रदेशिक स्कन्ध अने एक तरफ एक संख्यातप्रदेशिक स्कन्ध होय छे. अथवा एक तरफ बे परमाणुओ, एक त्रिप्रदेशिक स्कन्ध,
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CONT प्रसिः ॥१०५७।।
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अने एक संख्यातप्रदेशिक स्कन्ध होय छे. ए प्रमाणे यावद् अथवा एक तरफ वे परमाणुओ, एक तरफ दशप्रदेशिक स्कन्ध अने एक तरफ संख्यातप्रदेशिक स्कन्ध होय छे. अथवा एक तरफ वे परमाणुओ अने एक तरफ वे संख्यातप्रदेशिक स्कन्धो होय छे. अथवा एक तरफ एक परमाणुपुद्गल, एक द्विप्रदेशिक स्कन्ध अने में संख्यातप्रदेशिक स्कन्धो होय छ. ए प्रमाणे यावद् अथवा एक तरफ एक परमाणुपुद्गल, एक दशप्रदेशिक स्कन्ध अने वे संख्यातप्रदेशिक स्कन्धो होय छे. अथवा एक परमाणुपुद्गल अने त्रण संख्यातप्रदेशिक स्कन्धो होय छे. अथवा एक तरफ एक द्विप्रदेशिक स्कन्ध अने त्रण संख्यातप्रदेशिक स्कन्धो होय छे. ए प्रमाणे यावद् अथवा एक तरफ एक दश प्रदेशिक स्कन्ध अने एक तरफ त्रण संख्यातप्रदेशिक स्कन्धी होय छे. अथवा चार संख्यातप्रदेशिक स्कन्धो होय छे. ए प्रमाणे ए क्रमथी पंचसंयोग गण कडेवो; यावत् नत्र संयोग सुधी कहेवु. तेना दश विभाग करवामां आवे तो एक तरफ नव परमाणुपुद्गलो, एक तरफ एक संख्यातप्रदेशिक स्कन्ध होय छे. अथवा एक तरफ आठ परमाणुपुद्गलो, एक तरफ एक द्विप्रदेशिक स्कंध अने एक तरफ संख्यातप्रदेशिक स्कन्ध होय है, अथवा एक तरफ आठ परमाणुपुद्गलो, एक तरफ एक द्विप्रदेशिक स्कन्ध अने एक तरफ एक संख्यातप्रदेशिक स्कन्ध होय छे. ए क्रमवडे एक एकनी संख्या वधारवी, यावत् अथवा एक दशप्रदेशिक स्कन्ध अने एक तरफ नत्र संख्यातप्रदेशिक स्कन्धो होय छे, अथवा दश संख्यातप्रदेशिक स्कन्धो होय छे, जो तेना संख्यात भागो करवामां आवे तो संख्याता परमाणुपुद्गलो, थाय छे.
असंखेला भंते ! परमाणुपो गला एगयओ साहणंति एगयओ माहण्णित्ता किं भवति ?, गोयमा ! असंखेल एसिए खंधे भवति, से भिचमाणे दुहावि जाव दसहावि संखेज्जहावि असंखेज्जहावि कज्जइ, दुहा कमाणे
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१२ शतके उद्देश ४ ॥१०५७६॥
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पए
व्याख्याप्रवाप्तिा ॥१.५८॥
गयओ असंखेजप भवति अहवा दो अ
खेजपासिया
|एगयओ परमाणु एगयओ असंखेजपएसिए भवति जाव अहवा एगयओ दसपएसिए एगयओ असंखिजपए-II सिए भवति अहवा एगयओ संखेजपएसिए खंधे एगयओ असंखेजपएसिए खंधे भवति अहवा दो भसंखेजपएसिया बंधा भवंति, तिहा कन्जमाणे एगयओ दो परमाणु० एगयओ असंखेजपएसिए भवति अहवा एगयओ परमाणु एगयओ दुपएसिए एगयओ असंखेजपासिए भवति जान अहया गयओ परमाणु० एगयओ दसपएसिए एगयओ असंखेजपएसिए भवति अहवा एगे परमाणु० एगे संखेनपणमिए एगे असंखेजपर्णसए भवति अहवा एगे परमाणु० यएगओ दो असंखेजपएसिया खंधा भवंति अहवा एगे दुपएसिए एगयओ दो असंखेजपएसिया भवंति एवं जाच अहवा एगे संखेजपएसिए भवति एगयओ दो असंखेज्जपएसिया खंभा भवंति अहवा तिन्नि अमंखिजपएसिया भवंति, चउहा कजमाणे एगयओ तिन्नि परमाणु एग. असंखेजपएसिए भवति एवं चउक्कगसंजोगो जाव दमगसंजोगो एए जहेच संखेजपएसियस्म नवरं अमखेजग एग अहिगं भाणियन्वं ज्ञाच | अहवा दस असंखेजपएसिया खंधा भवंति, संखेनहा कन्जमाणे एगयओ संज्जा परमाणुपोग्गला एगयओ असंखेजपएसिए ग्बंधे भवति अहवा एगयओ मखेजा दुपएमिया खंधा एगयओ असंखेजपएसिए बंधे भवति एवं जाव अहवा पगयओ संखेज्जा दसपासिया खंधा एगपओ असंखेनपएमिए खंधे भवति अहवा एगयओ सखिला संखिजपसिया खंधा एगयओ असंखिजपएएसि खंघे भवति अहवा संखेजा असंखेजपएसिया खंधा भवंति, असंखिजहा कज्जमाणे असंखेजा परमाणुपोग्गला भवति ।
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प्रतिः I ॥१०५९॥
१२शतके
उदेश X॥१०५९४
SCREWARA
[प्र०] हे भगवन् ! असंख्याता परमाणुपुठूलो एकठा मळे, अने पछी तेनु शु धाग? [उ.] हे गौमन! तेनो असंख्यातप्रदेशिक स्कन्ध थाय. जो तेना विभाग करीए तो चे, यावत् दस, संख्याता के असंख्याता विभाग थाय. जो बे विभाग करवामां आवे तो एक तरफ एक परमाणुपुद्गल अने एक तरफ असंख्यातप्रदेशिक स्कंध होय . यावद्-अथवा एक तरफ दशप्रदेशिक स्कन्ध अने एक तरफ असंख्यातप्रदेशिक स्कन्ध होय हे. अथवा एक तरफ संख्यातप्रदेशिक स्कन्ध अने एक तरफ असंख्यातप्रदेशिक स्कन्ध होय छे. अथवा बे असंख्यातप्रदेशिक स्कन्धो होय . जो तेना त्रण विभाग करवामां आवे तो एक तरफ वे परमाणुपुद्गलो अने | एक तरफ असंख्यातप्रदेशिक स्कन्ध होय है. अथवा एक तरफ एक परमाणुगल, एक तरफ द्विप्रदेशिक स्कन्ध अने एक तरफ असंख्यातप्रदेशिक स्कन्ध होय छे. यावद्-अथवा एक तरफ परमाणुपद्ल, एक तरफ दशप्रदेशिक स्कन्ध अने एक तरफ असंख्यातप्रदेशिक स्कन्ध होय छे. अथवा एक तरफ ए परमाणु, अने एक तरफ वे असंख्यातप्रदेशिक स्कन्ध होय . अथवा एक तरफ द्विप्रदेशिक स्कन्ध अने एक तरफ वे असंख्यातप्रदेशिक स्कन्धो होय छे. ए प्रमाणे यावद्-अथवा एक तरफ संख्यातप्रदेशिक स्कन्ध अने एक तरफ चे असंख्यातप्रदेशिक स्कन्धो होय के. अथवा त्रण असंख्यातप्रदेशात्मक स्कन्धो होय के. जो तेना चार भाग करवामां आवे तो एक तरफ त्रण परमाणुओ अने एक तरफ एक असंख्यातप्रदेशात्मक स्कन्ध होय छे. ए प्रमाणे चतुष्कसंयोग, यावद् दशकसंयोग जाणवो. अने ए सर्व संख्यातप्रदेशिकनी पेठे जाणवू, परन्तु एक 'असंख्यात' शब्द अधिक कईवो. यावद्-अथवा दश असंख्यातप्रदेविक स्कन्धो होय के. जो संम्ख्याता विभाग करवामां आवे तो एक तरफ संख्याता परमाणुपुद्गलो अने एक तरफ असंख्यातप्रदेशात्मक स्कन्ध होय छे. अथवा एक तरफ संख्याता द्विप्रदेशिक स्कन्धो अने एक तरफ असंख्यात
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व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥१०६०॥
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प्रदेशिक स्कन्ध होय छे. ए प्रमाणे यावद् अथवा एक तरफ संख्याता दशप्रदेशिक स्कन्धो अने एक तरफ एक असंख्यातप्रदेशिक स्कन्ध होय छे. अथवा एक तरफ संख्याता संख्यातप्रदेशिक स्कन्धो अने एक तरफ एक असंख्य प्रदेशात्मक स्कन्ध होय थे. अथवा संख्याता असंख्यातप्रदेशिक स्कन्धो होय . जी तेना असंख्य विभाग करवामां आवे तो असंख्य परमाणुपुद्गलो थाय छे. अणताणं भंते! परमाणुपोग्गला जाब किं भवंति ?, गोयमा ! अनंतपएसिए बंधे भवति, से भिक्षमाणे दुहावि: तिहावि जाब दसहावि संखिज्जहा असंखिहा अणतहावि कज्जइ, दुहा कजमाणे एगयओ परमाणुपोग्गले एगयओ अणतपएसिए खंबे जाव अहवा दो अनंतपएमिया बंधा भवति, तिहा कज्रमाणे एगयको दो परमाणु एगयओ अनंतपएसिए भवति अहवा एग० परमाणु० एग० दुपएसिए एग० अणतपएसिए भवति जाव अहवा एग० परमाणु एगः असंखेच पएमए एग० अनंत एसिए भवति अहवा एग० परमाणु० एग० दो अत एसिया भवंति अहवा एग० दुपएसिए एग दो अपएसिया भवंति एवं जाव अहवा एगयओ दसएसिए एगयओ दो अनंतपएसिया स्वधा भवंति अहवा एग• संखेज्जपदे० एगओ दो अनंतपएसिया धा भवंति अहवा एग असंखेजपरसिए बंधे एगयओ दो अनंतपएसिया खंधा भवंनि अहवा तिन्नि अनंत एमिया खंधा भवति, चउहा कज्रमाणे एग० तिन्नि परमाणु एगयओ अनंतपसि भवति एवं चक्कसंजोगो जाव असंखेज्जगसंजोगो, एते सब्वे जहेब असंखेजाणं भणिया तहेव अनंताणवि भागिवव्या नवरं एवं अणतगं अमहियं भाणिपव्वं जाव अह्वा एगयथो संखेजा संखिजप एसिया बंधा एग० अणंएपएसिया भवंति अहवा
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१२ शतके उद्दे
॥१०६०॥
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ग. संखेज्जा असंखेजपएमिया खधा एग. अणतपएसिप खंधे भवति अहवा मंखिल्ला अणंतपएसिया खंधा पाल्पा- भवंति, असंखेज्जहा कजमाणे एगयओ असंखजा परमाणु एग. अणंतपएमिए खंधे भवड अवा एगयओ
11१२शतके प्रतिः
उद्देशा ॥१०६ 3 असंखिजा दुपएसिया खंधा एग• अणंतपएसिए भवति जाव अहवा एग० असंखेज्जा सग्विजपएमिया एग.
IPAR०६१० है| अणंतपएसिए भंवति अहवा एग. असंविला असंखिजपएमिया खंधा एग. अणतपमिग भवति अहवा| असंखेजा अणंतपएसिया खंधा भवति अणंतहा कन्जमाणे अर्णता परमाणुपोग्गला भवंति ।। (सूत्रं ४४५) ।
[प्र.] हे भगवन् ! अनन्त परमाणुपुद्गलो एकठा थाय अने एकठा थया पछी तेनु शु थाय ? (उ.] हे गौतम ! तेनो अन-131 न्तप्रदेशात्मक स्कन्ध थाय. जो तेना विभाग थाय तो , त्रण, यावत् दश, संख्यात. असंख्यात अने अनन्त विभाग थाय. बे! विभाग करवामां आवे तो एक तरफ परमाणुपुद्गल अने एक तरफ अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध होय छे. यावद-अथवा वे अनन्तप्रदेशिक स्कन्धो होय छे. जो तेना त्रण विभाग करवामां आवे तो एक तरफ वे परमाणुपुद्गलो अने एक तरफ अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध होय के. अथवा एकतरफ एक परमाणु, एक तरफ एक द्विप्रदेशिक स्कन्ध अने एक तरफ एक अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध होय छे. यावद्अथवा एक तरफ एक परमाणुपुद्गल, एक तरफ असंख्यातप्रदेशिक स्कन्ध अने एक तरफ अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध होय हे. अथवा एक तरफ एक परमाणु, अने एक तरफ चे अनन्तप्रदशिक स्कन्धो होय छे. अथवा एक तरफ एक द्विप्रदेशिक स्कन्ध अने एक तरफ वे अनन्तप्रदेशिक स्कन्धो होय . ए प्रमाणे पाबद्-अथवा एक तरफ एक दशप्रदेशिक स्कन्ध अने एक तरफ वे अनन्तप्रदेशिक स्कन्धो होय . अथवा एक तरफ एक संख्यातप्रदेशिक स्कन्ध अने एक तरफ वे अनन्त प्रदेशिक स्कन्धो होय छे. अथवा
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*१२शतके
प्राप्ति १.६२॥
॥१.६२॥
Filएक तरफ एक असंख्यातप्रदेशिक स्कन्ध अने एक तरफ बे अनन्तप्रदेशिक स्कन्धो होय छे. जो तेना चार भाग करवामां आवे का तो एक तरफ त्रण परमाणुओ अने एक तरफ एक अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध होय छे. ए प्रमाणे चतुष्कसंयोग, यावद्-संख्यातसंयोग
कहेवो. ए बधा संयोगो असंख्यातनी पेठे अनन्तने पण कहेवा; परन्तु एक 'अनन्त' शब्द अधिक कहेवो; याबद्-अथवा एक तरफ संख्याता संख्यातप्रदेशिक स्कन्धो अने एक तरफ एक अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध होय छे. अथवा एक तरफ संख्याता असंख्येयप्रदेशिक स्कन्धो अने एक तरफ अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध होय . अथवा संख्याता अनंतप्रदेशिक स्कन्धो होय . जो तेना असंख्याता विभाग करीए वो एक तरफ असंख्यात परमाणुपुद्गलो अने एक तरफ एक अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध होय छे. अथवा एक तरफ असंख्यात द्विप्रदेशिक स्कन्धो अने एक तरफ एक अनन्त प्रदेशिक स्कंध होय छे, यावद्-अथवा एक तरफ असंख्याता संख्यातप्रदेशिक स्कन्धो अने एक तरफ एक अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध होय . अथवा एक तरफ असंख्याता असंख्यातप्रदेशिक स्कन्धो अने एक तरफ अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध होय छे. अथवा असंख्याता अनन्तप्रदेशिक स्कन्धो होय छे. जो तेना अनन्त विभाग करवामां आवे तो अनन्त परमाणुपुद्गलो थाय छे. ॥ ४४५ ॥
एएमि पं भंते! परमाणुपोग्गलाणं साहणणाभेदाणुवाएणं अणताणता पोग्गलपरिया समणुगंतव्वा | भवंतीदि मक्खाया?, हंता गोयमा! एएसि णं परमाणुपोग्गलाण साहणणा जाब मक्खाया ।। कहविहे णं भंते! पोग्गलपरियट्टे पण्णत्ते, गोयमा! सत्तविहा पो परि० पण्णता, तंजहा-ओरालियपो. परि० वेउब्धियः तेयापो० कम्मापो० मणपो० परियट्टे वइपोग्गलपरियट्टे आणापाणुपोग्गलपरिअडे । नेरइयाण भंते! कतिविहे
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ध्याक्यायतिः
॥ १०६३।।
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पोग्गलपरियहे पण्णत्ते ?, गोगमा ! सत्तविहे पोग्गलपरिग्रहे पण्णत्ते, तंजहा-ओरालियपो० वेउब्बियपोग्गलपरियडे जाव आणापाणुपोग्गलपरियडे एवं जाब बेमाणियाणं एगमेगस्स णं भंते! नेरइयस्स केवइया ओरालिपोग्गल परिया अतीया ?, अजंता, केवइया पुरेक्वडा १, कस्सइ अस्थि कस्सह नत्थि जस्सत्थि जत्रेणं पको वा दो वा तिन्नि वा उक्कोसेणं संखेज्जा वा असंखेज्जा वा अनंता वा । एगमेगस्स णं भंते! असुरकुमारस्स केव | तिया ओरालियपोग्गला ?, एवं चेव, एवं जाव वैमाणियस्स । एगमेगस्स णं भंते । नेरइयस्स केवतिया वेडव्वियपोग्गल परियट्टा अतीया ?, अनंता, एवं जहेब ओरालियपोग्गलपरिपहा तहेब वेउब्वियपोग्गलपरियद्यावि भाणिपव्वा, एवं जाव वैमाणियस्स आणापाणुपोग्गलपरियडा, एते एगत्तिया सत्त दंडगा भवंति । नेरश्याणं भंते! केवतिया ओ० पोग्गल परियट्टा अतीता १, गोयमा ! अनंता, केवढ़या पुरेक्खडा ?, अनंता, एवं जाव वेमाणियाणं, एवं वेडव्वियपोग्गल परियद्वावि एवं जाव आणापाणुपोग्गल परियट्टा वैमाणियाणं, एवं एए पोहत्तिया' सत्त चडब्बी सति दंडगा ॥
हे भगवन् ! ए परमाणुपुद्गलोना संयोग अने भेदना संबंधथी अनन्वानव पुलपरिवर्तो जाणवा योग्य के माटे का छे ? [अ०] हा, गौतम ! संयोग अने भेदना योगधी ए परमाणुपुद्रलोना अनंतानंत पुद्गलपरिवर्तो जाणत्रा योग्य के माटे कला छे. [प्र० ] हे भगवन् ! पुलपरिवतों कटला प्रकारना कया छे ? [३०] हे गौतम! पुलपरिवत्तों सात प्रकारना कया छे, ते आ प्रमाणे- १ औदारिकपुद्गल परिवर्त, २ वैक्रियपुद्गल परिवर्त, ३ तेजसपुद्गलपरिवर्त, ४ कार्मणपुद्गल परिवर्त, ५ मनपुलपरिवर्त, ६ वचनपुद्गलपरिवर्त
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१२ शतके उद्देशः४
१६३
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व्याख्याप्राप्तिः
॥१६४॥
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॥१०६४॥
1. अने ७ आनप्राणपुद्गलपवर्त. [ प्र० ] हे भगवम् 1 नैरयिकोने केला प्रकारना पुलपरिवतों का है ? [३०] हे गौतम! तेओने १२ शतके सात पुलपरिवर्तो ह्या छे, ते आ प्रयाणे-१ औदारिकपुलपरिवर्त, २ वैक्रियपुद्गलपरिवत, यावद् ७ आनप्राणपुद्गलपरिवर्त. ए ४ उद्दे प्रमाणे यावद् वैमानिको सुधी नाग [प्र० ] हे भगवन् ! एक एक नैरयिकने कंटला औदारिकपुद्गलपरिवर्तो अतीत-थया छे १ [30] हे गौतम! अनन्त थया ले. [प्र० ] कटला घनारा छे ? [अ०] कोइने थवाना होय छे अने कोड़ने नयी; जेने थवाना हे तेने जघन्यथी एक, ये के ऋण थवाना छे; अने उत्कृष्टधी संख्याता, असंख्याता के अनन्ता थवाना होय छे [म] हे भगवन् ! - एक एक असुरकुमारने केटला औदारिकपुद्गलपरिवर्तो थया छे ? [३०] ए प्रमाणे उपर कक्षा प्रमाणे जाणवु, ए प्रमाणे यावद् वैमानिक सुधी जाणवु [प्र०] हे भगवन् ! एक एक नैरयिकने केटला वक्रियपुद्गल परिवर्ती थया है ? [] अनन्ता थया छे. ए प्रमाणे जेम औदारिकपुद्गल परिवर्त संबन्धे का तेम वैकिय पुगलपरावर्त संबन्धे पण जाणवु यावद् वैमानिक सुधी कहेनुं. ए प्रमाणे यावद् आनप्राणपुद्गलपरिवर्त संबन्धे पण जाणवु. ए प्रमाण एक एकने आश्रयी सात दंडको थाय छे. [प्र०] हे भगवन् ! नैरयिकोने केला औदारिकपुद्गल परिवर्तो थया छे ? [अ०] हे गौतम! अनन्ता थया छे. [प्र० ] केटला औदारिकपुद्गल परिवर्त थवाना छे ? [ उ ] अनन्ता थवाना छे. ए प्रमाणे यावद् वैमानिको सूधी जाणवु ए रीते वैक्रियपुद्गल परिवर्ती, याबद् आनप्राणपुद्गल परिवर्ती संबन्धे पण यावत् वैमानिको सुधी जाणवु एम (सात पुद्गलपरिवर्त संबन्धे ) बहुवचनने आश्रयी सात दंडको (नैरयिकादि ) चोवीश दंडके कहेवा.
एगमेगस्स णं भंते! नेरइयस्स नेर० केवतिया ओरालियपोग्गलपरिया अतीता है, नत्थि एक्कोवि
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माख्याप्राप्तिः
॥१०६९॥
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परिघट्टे अनंतगुणे आणापपोग्गल अनंतगुणे मणपोग्गल अनंतगुणे वपो० अनंतगुणे वेडब्बियपो० परियत्तिणाकाले अनंतगुणे (सूत्रं ४४७ ) ।
[प्र० ] हे भगवन ! 'औदारिकपुद्गल परिवर्त औदारिकपुद्गल परिवर्त'- एम सा हेतुधी कहेवाय छे ? [30] हे गौतम ! औदा• रिकशरीरमां वर्तता जीवे औदारिकशरीरने योग्य द्रव्यो औदारिकशरीरपणे ग्रहण करेला है, स्पर्शेलां छे, करेला छे, स्थिर करेला छे, स्थापन करेला छे, अभिनिविष्ट सर्वथा लागेलां छे, सर्वधा प्राप्त धवेलां छे, सर्व अवयववडे ग्रहण करावेलां छे, परिणाम पामेलां छे, निर्जरायेलां छे, जीवप्रदेशथी नीकळेलां छे, अने जीवप्रदेशथी जूदा थयेलां छे, माटे ते हेतुथी हे गौतम! एम 'औदारिकपुद्रलपरिवर्त औदारिकपुद्गलपरिवर्त' कहेवाय छे. ए प्रमाणे वैक्रियपुद्गलपरिवर्त पण जाणवो. परन्तु विशेष ए के के, वैक्रियशरीरमां वर्तता जीवे वैक्रियशरीरने योग्य पुद्गलोकदेवां, बाकी बधुं तेज प्रमाणे कहे. ए प्रमाणे यावद् आनप्राणपुलपरिवर्त सुधी जाणं; विशेष एछे के, त्यां 'आनप्राणयोग्य सर्व द्रव्यो आनप्राणपणे ग्रां है' इत्यादि कहेवु, बाकी बधुं पूर्वनी पेठेज जाणवु [प्र० ] हे भगवन् ! औदारिकपुद्गलपरिवर्त केटला काळे नीपजे १ [अ०] हे गौतम ! अनन्त उत्सर्पिणी अने अवसर्पिणीवडे-एटला काळे-औदारिकपुलपरिवर्त नीपजे. ए प्रमाणे वैक्रियपुद्गलपरिवर्त पण जाणवो. ए प्रमाणे यावत् आनप्राणपुद्गल परिवर्त पण जाणवो. [प्र०] हे भगवन् ! ए औदारिकपुद्गलपरिवर्तना निष्पत्तिकाळमां, वैक्रियपुद्गलपरिवर्त निष्पत्तिकाळमां, याबद्-आनप्राणपुद्गलप रिवर्तना निष्पत्तिकाळमां कयो काळ कोनाथी (अल्प), यावत् विशेषाधिक छे ? [अ०] हे गौतम 1 सर्वथी थोडो कार्मणपुद्गलपरिवर्तनो निष्पत्तिकाळ छे, तेनाथी अनन्तगुण वैजसपुद्गल परिवर्तनो निष्पत्तिकाळ छे, तेनाथी अनन्तगुण औदारिकपुद्गल परिवर्तनो
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१२ शतके उद्देश्४ ||१०३९॥
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ध्याल्याप्रवप्ति ॥१०७०॥
निष्पत्तिकाळ छे, तेनाथी आनप्राणपुद्गलनो निष्पत्तिकाळ अनन्तगुण ने, तेनाथी मनःपुद्गलपरिवर्तनो निष्पत्तिकाळ अनन्तगुण छ, तेनाथी वचनपुद्गलपरिवर्तनो निष्पत्तिकाळ अनन्तगुण छे, अने तेनाथी वैक्रियपुद्गलपरिवर्तनो निष्पत्तिकाळ अनन्तगुण छे. ।।४४७॥ श्त के एएसिणं भंते ! ओसलियपोग्गलपरियट्टाण जाव आणापाणुपोग्गलपरियघाम य कयरे २ हिंतो जाव वि.
उदेश सेसाहिया वा?, गोयमा! मवत्योवा वेउब्वियपो. वइपो० परि० अर्णतगुणा मणपोग्गलप. अणत. आणा
॥१०७०॥ |पाणुपोग्गल. अनंतगुणा ओरालियपो० अणंतगुणा तेयापो० अणत० कम्मपोग्गल० अणतगुणा । सेवं भंते ! सेवं भंतेत्ति भगवं जाव विहरइ (सूत्रं ४४८) ।। १२-४॥
[प्र०] हे भगवन् ! ए औदारिकपुद्गलपरिवर्त, यावद्-आनप्राणपुद्गलपरिवर्त-एओमां परम्पर कया पुद्गलपरिवर्त कोनाथी | यावद्-विशेषाधिक छे ? [उ०] हे गौतम ! सौथी थोडा वैक्रियपुद्गलपरिवतों छे, तेनाथी अनन्तगुणा वचनपुद्गलपरिवर्तो छ, |
तेनाथी अनन्तगुणा मनःपुद्गलपरिवतों छे, तेनाथी अनन्तगुणा आनप्राणपुद्गलपरिवों छे, तेनाथी अनन्तगुण औदारिकपुद्गल| परिवर्तो छे, तेनाथी अनन्तगुणा तैजसपुद्गलपरिवर्तो छे, अने तेनाथी अनन्तगुण कार्मणपुद्गलपरिवतों छे. 'हे भगवन् ! ते एक | प्रमाणे छे, हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे छे'-एम कही यावद्-भगवान् गौतम विहरे छे. ॥ ४४८ ।।
भगवत् सुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीमत्रना १२ मां शतकमां चोथा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो.
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॥ धर्मदासगणीप्रणीता ।। श्रीउपदेशमाला टीका-सिद्धर्षिगणि पत्राकारे, लेजर कागळ
किंमत रु. ३-०-० लखो-पंडित हीरालाल हंसराज जामनगर.
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