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Shri Mahavir Jain Aradh
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Acharya
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॥९५५॥
यावत् अरुधुएं-ए प्रमाणे बंवृद्धीपादि द्वीपो अने लवणादि समुद्रो वषा (इचाकारे होवाथी) आकारे एक सरखा छे, पण विशालताए द्विगुण द्विगुण विस्तारवाळा होताथी अनेक प्रकारना छे-इत्यादि सर्व 'जीवाभिगम'मां कह्या प्रमाणे जाणवू, यावत् हे आयुष्मन् श्रमण! आ तिर्यग्लोकमां स्वयंभूरमण समुद्रपर्यन्त असंख्यात द्वीपो अने समुद्रो कसा थे.
उधार अस्थि णं भंते जंबुद्दीवे दीवे दवाइं सवाइंपि अवनाईपि सगंधाइंपि अगंधाईपि सरसाइंपि अरसाइंपि C९५५॥ सफासाइपि अफासाइंपि असमनवद्धाई अनमनपुटाई जाव घडताए चिट्ठति?, हंता अस्थि अस्थि णं भंते ! लव|णसमुहे दहाई सवन्नाइंपि अपनाइंपि सगंधाइंपि अगंधाइंपि सरसाइंपि अरसाइंपि सफासाइंपि अफासाइंपि अन्नमन्त्रबद्धाइं अन्नमनपुट्ठाई जाव घडताए चिट्ठति,हंता अस्थि । अस्थि णं भंते धायइसंडे दीचे दब्बाई सबनाइंपि. एवं चेव एवं जाव सयंभूरमणसमुद्दे ? जाप हता अस्थि । तए णं सा महतिमहालिया महचपरिसा समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं एयमढे सोचा निसम्म हहतुहा समणं भगवं महावीरं वंदड़ नमसह वंदित्ता नमंसित्ता जामेव दिसं पाउन्भूया तामेव दिसं पडिगया, तएणं हथिणापुरे नगरे सिंघाडगजावपहेसु बहुजणो अनमन्नस्स एवमाइक्खइ जाव परूवेह-जभ देवाणुप्पिया! सिवे रायरिसी एवमाइक्खह जाव परूवेइ-अस्थि णं देवाणुप्पिया ! ममं भतिसेसे नाणे जाद समुहा य तं नो इणढे समढे, समणे भगवं महावीरे एवमाइक्खा जाव परूवेह-एवं खल्लु एयरस सिवस्स रायरिसिस्स छटुंछट्टेणंतं चेव जाच भंडनिक्खेव करेइ भंडनिक्खेवं करेत्ता हत्थि| णापुरे नगरे सिंघाडग जाव समुद्दा य, तए णं तस्स सिवस्स रायरिसिस्स अंतिथं एयमहूँ सोचा निसम्म जाव
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