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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsun Gyanmandir व्याख्या प्रज्ञप्ति ११शतके रदेशात ॥९५६॥ AASAROSEX समुद्दा य तण्णं मिच्छा, समणे भगवं महावीरे एबमाइक्खइ.-एवं खलु जंबुद्दीवादीया दीवा लवणादीया समुद्दा तं चेव जाव असंखेना दीवसमुद्दा पन्नत्ता समणाउसो! [म.] हे भगवन् ! जंबुद्धीप नामे द्वीपमा वर्णवाळां, वर्णरहित, गंधवाळां, गंधरहित, रसवाळा, रसरहित, स्पर्शवाळी अने स्पर्शरहित द्रव्यो अन्योन्य बद्ध, अन्योन्य स्पृष्ट यावद् अन्योन्य संबद्ध छ ? [उ०] हे गौतम ! हा, मे. [प्र.] हे भगवन् ! लवण समुद्रमा वर्णवाळां, वर्णविनाना, गंधवाळा, मंध विनाना, रसवाला, रसविनाना, स्पर्शवाळां ने स्पर्शविनाना द्रव्यो अन्योन्य बद्ध, अन्योन्य स्पृष्ट, यावत् अन्योन्य संबद्ध छ ? [उ०] हे गौतम! हा, छे. [म०] हे भगवन् ! धातकिखंडमां अने ए प्रमाणे यावत् खयंभूरमण समुद्रमा वर्णवाळां ने वर्णरहित इत्यादि पूर्वोक्त द्रव्यो परस्पर संबद्ध छे इत्यादि यावत् ? [उ.] हे गौतम ! हा, छे त्यां सुधी जाणवू. त्यारबाद ते अत्यन्त मोटी अने महत्व युक्त परिषद् श्रमण भगवान् महावीर पासेथी ए अर्थ सांभळी अने अवधारी हृष्ट तुष्ट थइ श्रमण भगवंत महावीरने वांदी नमी जे दिशामाथी आवी हती ते दिशामा गइ. त्यारवाद इस्तिनापुर नगरमां शृंगादक यावद् बीजा मार्गोमा घणा माणसो परस्पर आ प्रमाणे कहे छे, यावत् प्ररूपे छे के हे देवानुनियो। शिवराजर्षि जे एम कई केयावत प्ररूपे के-'हे देवानुप्रियो ! मने अतिशयवाछु ज्ञान उत्पन्न ययु छ, यावत् बीजा द्वीप-समुद्रो नथी; ते वेर्नु कथन यथार्थ नथी. श्रमण भगवान महावीर ए प्रमाणे कहे छे, यावत् प्ररूपे छ के-छट्ठ छहना तपने निरंतर करता शिवराजर्षि पूर्वे कह्या प्रमाणे यावत् पोताना उपकरणो मूकीने हस्तिनापुर नामना नगरमां शृंगाटक यावत् बीना मार्गोमा ए प्रमाण कहे छे-यावत् सात द्वीपसमुद्रो छे, बीजा नथी. त्यारवाद ते शिवराजर्षिनी पासे ए वात सांभळीने अवधारीने घणा माणसो एम कहे छे-'शिवराजर्षि जे For Private And Personal
SR No.020109
Book TitleBhagvati Sutram Part 04
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1939
Total Pages235
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size6 MB
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