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________________ Shri Mahavir Jain Aradh व्याख्याप्रतिः ॥९९७॥ www.kobatirth.org Acha Kailashsagarsuri Gyanmandir मुक्त करो, मुक्त करीने मान ( माप) अने उन्मानने (तोलाने) वधारो; त्यार बाद हस्तिनागपुर नगरनी बहार अने अंदरना भागमा छंटकात्र करो, साफ करो, संमार्जित करो, अने लींपो; तेम करी अने करावीने सहस्र यूपोनो अने सहस्र चक्रोनो पूजा, महामहिमा अने सत्कार करो, ए प्रमाणे करी मारी आ आज्ञा पाछी आपो. त्यार बाद ते बल राजाना कद्देवा प्रमाणे करी ते कौटुंबिक पुरुषो तेनी आज्ञा पाछी आपे छे. त्यार पछी ते बल राजा ज्यां व्यायामशाला छे त्यां आवे छे, त्यां आवीने-इत्यादि पूर्ववत् कहेतुं यावद् स्नानगृहथी बहार नीकळी जकात रहित, कररहित, प्रधान, (विक्रयनो निषेध करेलो होवाथी) आपना योग्य वस्तु रहित, मापवा योग्य वस्तुरहित, मेयरहित, सुभटना प्रवेशरहित, दंड तथा कुदंडरहित, (ऋण मुक्त करेल होवाथी) अधरिमयुक्त - देवारहित, उत्तम गणिकाओ अने नाटकीयाओथी युक्त, अनेक तालानुचरो वडे युक्त, निरंतर वागतां मृदंगोसहित, साजा पुष्पोनी माला युक्त, प्रमोद सहित, अने क्रीडा युक्त एवी स्थितिपतिता-पुत्रजन्ममहोत्सव पुर अने देशना लोको साथे मळीने दस दिवस सुधी करे छे. त्यार बाद दस दिवस सुधी स्थिति पतिता - उत्सव चालु हतो त्यारे ते बल राजा सो रूपियाना, हजार रूपियाना अने लाख रूपियाना खर्चबाळा भागो, दानो अने द्रव्यना अमुक भागोने देतो अने देवरावतो तथा सो रूपियाना, हजार रूपियाना तथा लाख रूपियाना लाभने मेळवतो, मेळवावतो ए प्रमाणे रहे छे. त्यार बाद वे छोकराना मातापिता प्रथम दिवसे स्थितिपतिता - कुलनी मर्यादा प्रमाणे क्रिया करे छे; त्रीजे दिवसे चंद्र अने सूर्यनुं दर्शन करावे छे, छट्ठे दिवसे धर्मजागरण करे छे अने अग्यारमो दिवस वीत्या बाद अशुचि जातकर्म करवानुं निवृच थया पछी बारमे दिवसे पुष्कळ असून, पान, खादिम अने खादिम पदार्थोंने तैयार करावे छे, अने जेम | शिव राजा संबन्धे का तेम क्षत्रियोने आमंत्रे छे. त्यार पछी स्नान तथा बलिकर्म करी इत्यादि पूर्वोक्त यावत् सत्कार अने सन्मान For Private And Personal ११ शतके उद्देशः ११ ॥९९७॥
SR No.020109
Book TitleBhagvati Sutram Part 04
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1939
Total Pages235
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size6 MB
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