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व्याख्या प्रजाप्तिः ॥९७०॥
वाचाहं वा उप्पायति छविच्छेदं वा करेंति !, णो तिणढे सहढे, से केणट्टेणं भंते! एवं बुधइ लोगस्स णं एगमि आगासपएसे जे एगिदियपएसा जाब चिट्ठति णस्थि णं भंते! अत्रमन्नस्स किंचि आवाहं वा जाव करेंति ?, गोयमा! से जहानामए नहिया सिया सिंगारागारचारुवेमा जाव कलिया रंगट्टाणंसि जणसयाउलंसि जणसयस
११वतके हस्साउलंसि बत्तीसाविहस्स नहस्स अन्नयरं नविहिं उबदसेज्जा, से नूर्ण गोयमा! ते पेच्छगा तं नहियं अणि
उद्देशन
॥९७०॥ मिसाए दिट्ठीए सचओ समंतासमभिलोएंति, हंता समभिलोएंति, ताओ णं गोयमा! विट्ठीओ तंसि नहियसि सव्वओ समंता संनिवडियाओ?, हंता संनिवडियाओ, अत्थिणंगोयमा! ताओ दिद्वीओ तीसे नहियाए किंचिवि आवाहं वा वायाहं वा उप्पाएति छविच्छेदं घा करेंति ?, णो तिणढे समढे, अहवामा नहिया तासिं विट्ठीणं किंचि आवाहं वा वाचाहं वा उप्पाएंति छविच्छेदं वा करेइ , णो तिणद्वे समढे, ताओ वा दिट्ठीओ अन्नमनाए दिट्ठीए किंचि आवाहं वा वाबाहं वा उप्पाएंति छविच्छेदं वा करेन्ति ?, णो तिणवे समढे, से तेणडेणं गोयमान एवं वुचहतं चेव जाव छविच्छेदं वा करेंति ॥ (सूत्रं ४२२) ॥
[0] हे भगवन् ! लोकना एक आकाशप्रदेशमा जे एकेन्द्रिय जीवोना प्रदेशो छे, यावत् पंचेन्द्रियना प्रदेश अने अनिन्द्रि | यना प्रदेशो छे ते शु वधा परस्पर बद्ध छ, अन्योन्य स्पृष्ट छे, यावद् अन्योन्य संबद्ध छ ? वळी हे भगवन् ! ते बधा परस्पर एक वीजाने काइ पण आवाधा (पीडा) व्याबाधा (विशेष पीडा) उत्पन्न करे, तथा अवयवनो छेद करे। [उ०] हे गौतम ए अर्थ यथार्थ नयी. [प्र०] हे भगवन् ! ए प्रमाणे आप शा हेतुथी कहो छो के लोकना एक आकाशप्रदेशमा जे एकेन्द्रियना प्रदेशो यावद रहे छ,
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