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१०शतके
है भगवन् ! असुरेंद्र अने असुरकुमारोनो राजा चमर पोतानी चमरचंचा नामनी राजधानीमा सुधर्मा सभामां चमर नामे सिंहासनमां भ्याख्या- | बेसी ते त्रुटिक (स्त्रीओना परिवार) साथे भोगवया लायक दिव्यभोगोने भोगववा समर्थ के ? [उ०] हे आर्य ! ए अर्थ योग्य नथी. प्रतिर [[प्र०) हे भगवन् ! ए प्रमाणे आप शा हेतुथी कहो छो के चमरचंचा राजधानीमा ते अमरेंद्र अने असुरकुमारनो राजा चमर दिव्य ||
| उद्देशा ॥९१२॥
| भोगोने भोगववा समर्थ नथी ? [३०] हे आर्यो ! असुरेंद्र अने अमुरकुमारना राजा चमरनी चमरचंचा नामनी राजधानीमा सुधर्मा ॥९११॥
नामे सभामां माणवक चैत्यस्तंभने विपे वज्रमय अने गोल-वृत्त डावडामा नांखेलां जिनना घणां अस्थिओ (हाडकांओ) के, जे 18 असुरेंद्र अने असुरकुमारना राजा चमरने तथा बीजा घणां असुरकुमार देवोने अने देवीओने अर्चनीय, वंदनीय, नमस्कार करवा
योग्य, पूजवा योग्य, सत्कार करवा योग्य अने समान करवा योग्य छे, तथा कल्याण अने मंगलरूप देव चैत्यनी पेठे उपासना करवा योग्य छ, माटे ते जिनना अस्थिओना प्रणिधानमा [संनिधानमां] ते असुरेंद्र पोतानी राजधानीमा यावत् [ भोगो भोगववा] समर्थ नथी. तेथी हे आर्यो ! एम कहेवाय छे के चमर असुरेंद्र यावत् चमरचंचा राजधानीमां यावत् [ ते देवीओ साथे दिव्य भोगो] भोगववा समर्थ नथी. पण हे आर्यो ! ते अमरेंद्र अमरकुमारराजा चमर चमरचंचा नामे राजधानीमां, सुधमा सभामां, चमरनामे सिंहासनमा बेसी चोसठ हजार सामानिक देवो, त्रायस्त्रिंशक देवो, अने बीजा घणा असुरकुमार देवो तथा देवीओ साये परिवृत थइ मोटा अने निरन्तर थता नाटय, मीत, अने वादित्रोना शब्दो बडे केवल परिवारनी ऋद्धिथी भोगो भोगवा समर्थ छे, परन्तु मैथुननिमित्तक भोगो भोगववा समर्थ नयी. [भ] हे भगवन् ! असुरकुमारना इंद्र अने असुकुमारना राजा चमरना (लोकपाल) सोम महाराजाने केटली पट्टराणीओ कही छे १ [उ.] हे आर्यो ! तेने चार पट्टराणीओ कही छे, ते आ प्रमाणे-कनका, कनकलता, चित्रगुप्ता |
AKSHABHARASTRORS-350
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