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व्याख्या प्रज्ञप्ति ॥९३८॥
[प्र०) हे भगवन् ! एक पांदडावाळो शालूक (उत्पलकन्द) शुं एक जीववाळो छे के अनेक जीववाळो छ ? [३०] हे गौतम! ते एक जीववाळो छे; ए प्रमाणे उत्पलोद्देशकनी सघळी वक्तब्बता कहेवी, यावद् 'अनन्तवार उत्पन्न थया छे.' परन्तु विशेष ए छे के, शालूकना शरीरनी अवगाहना जघन्यथी अंगुलना असंख्यातमा भाग जेटली. अने उत्कृष्ट धनुपपृथक्त्व छे चाकी वर्षा पूर्ववत् जाणq. हे भगवन् ! ते एमत्र छे हे भगवन् ते एमन छे. ॥ ४१०।।
भगवद सुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीसूत्रना ११ मा शतकमां बीजा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो.
११शतके उद्देशः३ ॥९३८॥
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उद्देशक ३. पलासे ण भंते ! एगपत्तए कि एगजीवे अणेगजीवे !, एवं उप्पलुद्देसगवत्तब्बया अपरिसेसा भाणियब्वा, नवरं सरीरोगाहणा जहनेणं अंगुलस्स असंखेजइभागं उक्कोसेणं गाउयपुहुत्ता, देवा एगसुन उववजंति। लेसासु ते ण भंते! जीवा किं कण्हलेसे नीललेसे काउलेसे०?, गोयमा! कण्हलेसे वा नीललेस्से वा काउलेस्से वा छब्बीस भंगा, सेस तं चेव । सेवं भंते! २ त्ति ॥ (सूत्रं ४११) ।। ११-३ ।।
[1] हे भगवन् ! पलाशवृक्ष [ प्रारंभमां ] एक पांदडावाळो होय त्यारे | एक जीवदाळो होय के अनेक जीवत्राळो होय । [उ०] हे गौतम ! उत्पलउद्देशकनी वधी वक्तव्यता अहीं कहेवी. परन्तु विशेष ए छे के, पलाशना शरीरनी अवगाहाना जघन्यथी अंगुलनो असंख्यातमो भाग अने उत्कृष्ट गाउपृथक्त्व छे. वळी देवो च्यवीने ए पलाशवृक्षमा उत्पन्न थता नथी. [म० लेश्याद्वा
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