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व्याख्या प्रज्ञप्ति
११शतके उद्देशा९ ॥९५९॥
॥९५९॥14
ए प्रमाणे विचार करी ज्यां तापसोनो मठ छे त्यां आवे छे. आत्री तापसोना मठमा प्रवेश करी घणी लोढी, लोढाना कडाया यावत् कावड वगेरे उपकरणोने लेइ तापसोना आश्रमथी नीकळे छे. नीकळीने विभंगानरहित ते शिवराजर्षि हस्तिनापुर नगरनी बच्चो | वच्च यईने ज्यां सहस्राम्रवन नामे उद्यान छे, ज्यां श्रमण भगवान महावीर छे त्यां आवे छे. आवीने श्रमण भगवान महावीरने त्रण वार प्रदक्षिणा करीने वांदे छे अने नमे छे. वांदी अने नमीने तेओथी बहु नजीक नहीं अने बहुदूर नहीं तेम उभा रही यावत् हाथ जोडी ते शिवराजर्षि श्रमण भगवंत महावीरनी उपासना करे छे. त्यार बाद ते शिवराजर्षिने अने मोटामां मोटी पर्षदने श्रमण भग वंत महावीर धर्म वीर धर्मकथा कहे छे. अने यावत् ते शिवराजर्षि आज्ञाना आराधक थाय छे. पछी ते शिवराजर्षि श्रमण भगवान् महावीरनी पासेथी धर्मने सांभळी अने अवधारी स्कंदकना प्रकरणमां कह्या प्रमाणे यावत् ईशान कोण तरफ जह घणी लोढी, लीढाना कडाया यावत् कावड वगेरे तापसोचित उपकरणोने एकांत जग्याए मूके छे. मूकीने पोतानी मेळे पंच मुष्टि लोच करी, श्रमण भगवंत महावीर पासे ऋपभदत्तनी पेठे प्रवज्यानो स्वीकार कर छे, अने ते प्रमाणे अग्यार अंगोन अध्ययन करे छे, तथा एज प्रमाणे यावत् ते शिवराजर्षि सर्व दुःखथी मुक्त थाय छे. ॥ ४१८॥
भंतेत्ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं बंदह नमसह बंदिसा नमंसित्ता एवं बयासी-जीवाण भंते ! सिज्ममाणा कयरंमि संघयणे सिमंति?, गोयमा! वयरोसभणारायसंघपणे सिझति एवं जहेव उववाहए तहेच संघयणं संठाणं उच्चत्तं आउयं च परिवसणा, एवं सिद्धिगंडिया निरवसेसा भाणियब्वा जाव अब्वायाहं सोक्खं अणुहवं (हंती) ति मामया सिद्धा । सेवं भंते! त्ति ।। (सूत्रं ४१९) सिवो समत्तो ॥११-९॥
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