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दबाई अताई अजीवदयाई अणेता जीवाजीवदव्वा एवं तिरियलोयवेत्तलोएवि, एवं उड्डलोयखेत्तलोएवि, व्याख्या-दचओ णं अलोग णेवत्यि जीवदन्या नेवत्थि अजीवदव्वा नेवस्थि जीवाजीवदव्वा एगे अजीबदबदेसे जावत प्रज्ञप्तिः सव्वागासअणतभागूणे । कालओण अहेलोयखेत्तलोए न कयाइ नासि जाव निच्चे एवं जाव अहोलोगे। भावओ
उद्देशार. ॥९१५॥ ण अहेलोगखत्तलोए अणता वन्नरजवा जहा खदए जाव अणंता अगुरुयलहुयपजवा एवं जाव लोए, भावओ णं ॥९६५॥
अलोए नेवत्थि बन्नपजवा जाव नेवस्थि अगुरुलहुयपजवा एगे अजीवदञ्चदेसे जाव अर्णतभागणे (सूत्र ४२०)।
[प्र.] हे भगवन् ! तिर्यग्लोकक्षेत्रलोकना एक आकाश प्रदेशमां शुंजीयो छे ? इत्यादि [३०] जेम अघोलोकक्षत्रलोकना संबन्धे दाका तेम अहीं बधुं जाणवू. ए प्रमाणे ऊर्वलोकक्षेत्रलोकना एक आकाश प्रदेशने विषे पण जाणवू, परन्तु विशेष ए छे के, त्यां
अद्धासमय नथी, माटे अरूपी चार प्रकारना छ, लोकना एक आकश प्रदेशमा अधोलोकक्षेत्रलोकना एक आकाश प्रदेशमा जेम कडं छे तेम जाणवू. [प्र.] हे भगवन् ! अलोकना एक आकाश प्रदेश संबन्धे प्रश्न. [उ.] हे गौतम ! त्यां 'जीयो नथी, जीव देशो नथी'-इत्यादि पूर्वनी पेठे (सू. १४) कहेQ, यावत् अलोक अनन्त अगुरुलघुगुणोथी संयुक्त छे अने सर्वाकाशना अनंतमा भागे न्यून के. [प्र०] हे भगवन् ! द्रव्यथी अधोलोकक्षेत्रलोकमां अनन्त जीव द्रव्यो छे, अनंत अजीव द्रव्यो छे अने अनंत जीवाजीव द्रव्यो छे. ए प्रमाणे तिर्यग्लोकक्षेत्रलोकमां तथा ऊर्चलोकक्षेत्रलोकमां पण जाणवू. द्रव्यथी अलोकमां जीव द्रव्यो नथी, अजीव द्रव्यो नथी अने जीवाजीबद्रव्यो नथी, पण एक अजीवद्रव्यनो देश छ, यावत् सर्वाकाशना अनंतमा भागे न्यून छे. कालथी अधोलोकक्षेत्रलोक कोई दिवस न हतो एम नथी, यावत् नित्य छे. ए प्रमणे यावत् अलोक जाणवो. भावथी अधोलोकक्षेत्रलोकमां 'अनंत वर्ण पर्यवो
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