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व्याख्या
प्रज्ञप्तिः
॥९२८ ॥
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"लनो) एक जीव बंधक छे, २ एक जीव अबंधक छे, ३ अनेक जीवो बंधक छे, 2 अनेक जीवो अबंधक है, ५ अथवा एक बंधक अने एक अबंधक छे, ६ अथवा एक बंधक अने अनेक अबंधक छे, ७ अथवा अनेक बंधक अने एक अबंधक छे, ८ अथवा अनेक बंधक अने अनेक अबंधक छे. ए प्रमाणे ए आठ भांगा जाणवा.
ते णं भंते! जीवा णाणावर णिज्जस्स कम्मस्स किं वेदगा अवेदगा : गोयमा ! नो अवेदगा, वेदए वा वेदगा वा एवं जाव अंतराइयस्म, ते णं भंते! जीवा किं सायावेयगा असायचा, गोयमा । सायावेदए वा असायावेयर वा अट्ठ भंगा ६। ते णं भंते! जीवा णाणावरणिज्जस्स कम्मस्न के उदई अणुदई १, गोधमा ! नो अणुदई, उदई वा उदइणो वा, एवं जाव अंतराइयस्स ७ ॥ ते णं भंते ! जीवा वरणिजस्स कम्मस्स किं उदीरगा० ?, गोयमा ! नो अणुदीरगा, उदीरण वा उदीरगा वा, एवं जाव अंतरायन, नवरं बेयणिज्जाउ अभंग ८ | [प्र० ] हे भगवन् ! ते उत्पलना जीवो ज्ञानावरणीय कर्मना वेदक छे के १ [30] हे गौतम! तेओ अनेक नथी, पण एक जीव वेदक छे अथवा अनेक जीवो अवेदक छे. ए प्रमाणे या अंतराय कर्म सुधी जाण. [प्र० ] हे भगवन्ने (उत्प लना ) जीवो साताना वेदक छे के असाताना वेदक छे ? [अ०] हे गौतम! साताना वेदक छे अने असाताना पण वेदक छे. अहीं पूर्व प्रमाणे आठ भांगा कहेवा. [प्र० ] हे भगवन् ! ते ( उत्पलना ) जीव ज्ञानावरणीय कर्मना उदयवाळा हे के अनुदयवाळा छे. [उ०] हे गौतम! तेओ ज्ञानावरणीयकर्मना अनुदयबाळा नथी. पण एक जीव उदयवाळो छे अथवा अनेक जीवो उदय | वाळा छे. ए प्रमाणे यावत् अंतरायकर्म संबंध जाणवुं [प्र० ] हे भगवन्! शुं ते उत्पलना) जीवो ज्ञानावरणीयकर्मना उदीरक छे
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দলএ- ৯৮
1961
११ शरा के
उद्देशः १
॥९२८॥