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मने अतिशयवालं ज्ञान अने दर्शन उत्पन्न थयु छ, अने देवलोकमां देवोनी जघन्य स्थिति दश हजार वर्षनी -इत्यादि पू-द भ्याल्पाका
वोक्त कहे, त्यार पछी देवो अने देवलोको म्युच्छिन्न थाय छे. त्यार बाद 'आलमिका नगरीमा'- अमिलापथी जेम शिव राजर्षिर प्रचप्तिः ।
दिउद्देशा१२ MATHMIS माटे पूर्व कर्वा [श० ११ उ.९०८] तेम अहीं कहेवु, यावद् ए प्रमाणे केवी रीते होय? हवे महावीरस्वामी समवसर्या अने
१.९ यावत् परिषद् वांदीने विसर्जित थइ, भगवान् गौतम तेज प्रमाणे मिक्षाचर्या माटे नीकळ्या अने तेओ घणा माणसोनो शब्द सांभळे
छे-इत्यादि वधु पूर्ववत् कहेवु, यावद् हे गौतम हुं पण ए प्रमाणे कहुँ छ, बोलुं छु, यावत् प्ररू' छु के देवलोकमां देवोनी जघन्य का स्थिति दस हजार वर्षनी कही छे, अने त्यार पछी एक ससयाधिक, द्विसमयाधिक यावत् उत्कृष्टथी तेत्रीश सागरोपम स्थिति कही
छे, अने त्यार बाद देवो अने देवलोको ब्युच्छिन्न थाय छे. ___अस्थि ण भंते । सोहम्मे कप्पे दवाई सवन्नाइपि अवआइपि तहेव जाव हंता अस्थि, एवं ईसाणेवि, एवं जाव अच्चुए, एवं गेवेवविमाणेसु अरत्तणुविमाणेसुवि, ईसिपम्भाराएवि जाच हं ता अस्थि, तए ण सा महतिमहालिया जाव पडिगया, तए णं आलंभियाए नगरीए सिंघाडगतिय अवसेंस जहा सिवस्स जाव सव्वदुक. खप्पहीणे नवरं तिदंडकुंडियं जाव धाउरत्तवत्थपरिहिए परिवडियविम्भंगे आलंभियं नगरं मज्झनिग्गच्छति जाव उत्तरपुरच्छिम दिसीभागं अवक्कमति अतिदंडकुंडियं च जहा खंदओ जाव पब्वइओ सेस जहा सिवस्स जाव अब्वाचा सोक्खं अणुभवंति सातयं सिद्धा । सेवं भंते!२ ति॥ (सूत्र ४३६) ॥११-१२ ॥ एक्कारसंमं सयं समत्तं ॥११-१२॥
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