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________________ Shn Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsun Gyanmandir व्याख्याअप्रप्तिः १९३४॥ ११शसके उद्देश ॥१३॥ गतिरागतिं कजह?, गोयमा! भवादेसेणं जहन्नेणं दो भवग्गहणाई उकोसेणं अणंताई भवग्गहणाई, कालाएसेणं | जहन्नेणं दो अंनोमुहुत्ता उकोसेणं अणंतं कालं-तरुकालं, एचइयं कालं सेवेजा एचइयं कालं गतिरागतिं कज्जइ, 4] [प्र०] हे भगवन् ! ते उत्पलनो जीव उत्पलपणे कालथी क्यांसुधी रहे ! [उ०] हे गौतम ! जघन्यथी अंतर्मुहूर्त सुधी अने उत्कृष्टथी असंख्य काल सुधी रहे. [प्र०] हे भगवन् ! ते उत्पलनो जीव पृथिवीकायिकमां आवे, अने फरीथी पाछो उत्पलमां आवे-ए प्रमाणे केटलो काळ सेवे-केटला काळ सुधी गमनागमन करे ? [उ०] हे गौतम ! भवनी अपेक्षाए जघन्यथी वे भव अने, है। उत्कृष्टथी असंख्यात भव सुधी गमनागमन करे, कालनी अपेक्षाए जघन्यथी वे अंतर्मुहूर्त, अने उत्कृष्टथी असंख्यकाल; एटलो काल सेवे-नेटलो काल गमनागमन करे. [प्र०) हे भगवन् ! ते उत्पलनो जीव अप्कायिकपणे उपजे अने फरीथी ते पाछो उत्पलमां आवे, ए प्रमाणे केटलो काल गमनागमन करे ? [उ.] पूर्व प्रमाणे जाणवं. जेम पृथिवीना जीव संबन्धे (५० ३१) कबुतेभ यावत् वायुना जीव सुधी कहेवं. [१०] हे भगवन् ! ते उत्पलनो जीव वनस्पतिमा आवे, अन ते फरीथी उत्पलमां आवे ए प्रमाणे केटलो काल सेवे-केटलो काल गमनागमन करे ? [उ०] हे गौतम ! भवनी अपेक्षाए जघन्यथी वे भव, अने उत्कृष्टथी अनंत भव सुधी गमनागमन करे. कालनी अपेक्षाए जघन्यथी वे अंतर्मुहूर्त, अने उत्कृष्टथी अनंत काल-वनस्पतिकाल पर्यन्त; एटलो काळ सेवेडाएटलो काल गमनागमन करे. से णं भंते ! उप्पलजीवे बेइंदियजीवे पुणरवि उप्पलजीवेत्ति केवइयं कालं सेवेजा केवइयं कालं गतिरा-13 गतिं कजइ ?, गोयमा भवादेसेणं जहन्नेणं दो भवग्गहणाई उक्कोसेणं संखेजाई भवग्गहणाइं, कालादेसेणं जह-12 For Private And Personal
SR No.020109
Book TitleBhagvati Sutram Part 04
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1939
Total Pages235
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size6 MB
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