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ज्यां सुधी तारा पोताना शरीरमा रूप, सौभाग्य तथा यौवनादि गुणो के त्यांसुधी तेनो तुं अनुभव कर, अने अनुभव करी अमो. व्याख्या- IF कालगत थया पछी वृद्धावस्थामा कुलवंशरूप तन्तुनी वृद्धि करीने निरपेक्ष एवो तुं श्रमण भगवान् महावीर पासे दीक्षा लइने गृहवा-18९ शतके प्राप्तिः सनो त्याग करी अनगारिकपणाने स्वीकारजे. त्यारपछी ते जमालि क्षत्रियकुमारे पोताना माता-पिताने ए प्रमणे कयु के- उदेश ॥८४४॥
माता-पिता! ते बरोबर छे, पण जे तमे मने ए प्रमाणे कयु के-'हे पुत्र ! आ करुं शरीर (उत्तमरूप, लक्षण व्यंजन अने गुमोबी 116888 युक्त छे) इत्यादि यावत् (अमारा कालगत थया पछी) तुं दीक्षा लेजे.' पण ए रीते तो हे माता-पिता! खरेखर आ मनुष्यनुं शरीर दुःख घर छे, अनेक प्रकारना सेंकडो व्याधिोनुं स्थान छे, अस्थिरूप लाकडानुं बनेलं छे, नाडीओ अने स्नायुना समूहथी अत्यन्त विटाएल छे, माटीना वासणनी पेठे दर्बल छे, अशुचिथी भरपूर छे, जेनुं शुश्रूषा कार्य हमेशां चालु छे. जीर्ण मृतक अने जीर्ण घरनी
पेठे संड, पडवू अने नाश पामवो-ए तेनो सहज धर्मो छे. वळी ए शरीर पहेलां के पछी अवश्य छोडवानुं छे. तो हे माता-पिता! दाते कोण जाणे छ के कोण पहेलां (जशे अने कोण पछी जशे. १) इत्यादि.
तए णं जमालि खत्तियकमारं अम्मापियरो एवं क्यासी-इमाओ य ते जाया! विपुलकुलबालियाओसरित्तयाओसरिव्वयाओ मरिसलावन्नरूवजोवणगुणोववेगाओ सरिसएहितो कुलहितो आणिएल्लियाओ कलाकुसलसव्वकाललालियसुहोचियाओ मद्दगुणजुत्तनिउणविणओवयारपंडियवि यक्खणाओ मंजुलमियमहरभणियषिहसियविप्पेक्खियगतिविसालचिट्ठियविसारदाओ अविकलकुलसीलसालिणीओ विसुद्धकुलवंससंताणतंतुवद्धणप्पग (भु) भवप्पभाविणीओ मणाणुकूलहियइच्छियाओ अट्ठ तुज्झ गुणवल्लहाओ उत्समाओ निचं भावाणुत्त.
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