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९ शतके
| उद्देशान
शख्याराप्ति ८५३॥
पहाए कयलिकम्मे जाच सरीरे जेणेव जमालिस्स खत्तियकुमारस्स पिया तेणेव उवागच्छद तेणेव उवागच्छित्ता
अभिषेक कर्या बाद ने जमालि क्षत्रियकुमारना माता-पिता हाथ जोडी यावत् तेने जय अने विजयथी वधावे छे. वधावीने दू तेओए आ प्रमाणे कां के–'हे पुत्र ! तुं कहे के तने अमे शुं दइए, शुं आपीए, अथवा तारे कांड प्रयोजन छे ? त्यारे ते जमालि
क्षत्रियकुमारे पोताना माता-पिताने आ प्रमाणे कयु के-हे माता-पिता ! हुं कुत्रिकापणथी एक रजोहरण अने एक पात्र मंगाववा तथा एक हजामने वोलावघा इच्छु छु; त्यारे ते जमालि क्षत्रियकुमारना पिताए कौटुंबिक पुरुषोने बोलाव्या अने बोलावीने का के-'हे देवानुप्रियो ! शीघ्र आपणा खजानामांथी त्रण लाख (सोनैया) ने लड़ने तेमांथी वे लास (सोनया) वडे कुत्रिकापणी एक रजोहरण अने एक पात्र लावो, तथा एक लाख सोनैया आपीने एक हजामने बोलावो. ज्यारे जमालि क्षत्रिकुमारना पिताए ते कौटुंचिक पुरुषोने ए प्रमाणे आज्ञा करी त्यारे तेओ खुश थया, तुष्ट थया, अने हाथ जोडीने यावत् पोताना स्वामीनुं वचन स्वीकारीने तुरतज खजानामांथी त्रण लाख सुवर्णमुद्रा लइने यावत् हजामने बोलावे छे, त्यारबाद जमालि क्षत्रियकुमारना पिताए कौटुंबिक पुरुपो द्वारा बोलावेलो ते हजाम खुश थयो, तुष्ट थयो, न्हायो, अने बलिकर्म (देवपूजा) करी, यावत् तेणे पोतानुं शरीर शणगायु, अने पछी ज्यां जमालि क्षत्रियकुमारनो पिता छे त्यां ते आवे के.
करयल• जमालिस्म खत्तियकुमारस्स पियरं जगणं विजएणं बद्धावेइ जएणं विजएणं बद्धावित्ता एवं वया. सी--संदिसंतु ण देवाणुपिया! जमा करणिज्जं, ताण से जमालिस्स खत्तियकुमारस्स पियात कासवगं एवं वयासी-तुम देवाणुप्पिया! जमालिस्स खत्तियकुमारस्स परेणं जत्तणं चउरंगुलबजे निक्खमणपयोगे अग्गकेसे
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