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व्याख्याप्रशतिः ॥९०६॥1
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१०सके उदेश | ॥९०६॥
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शाश्वत कह्या छे, जेथी तेओ कदी न हतां एम नथी, कदी न हशे एम नथी; कदी नथी एम पण नथी. यावत् (ो नित्य छ, अव्युच्छित्तिनय-(द्रव्यार्थिकनय-)नी अपेक्षाए अन्य च्यवे छे अने अन्य उत्पन्न थाय छे. (पण तेओनो विच्छेद थतो नथी.) [प्र०] हे भगवन् ! वैरोचनेंद्र, वैरोचनराजा बलिने त्रायात्रिंशकदेवो छ ? [उ.] हे गौतम! हा, के. [प्र०] हे भगवन् ! ए प्रमाणे आप शा हेतुर्थी कहो छो के वैरोचनेंद्र बलिने त्रायविंशक देवो छ ? [उ.] हे गौतम ! बलिना त्रायस्त्रिंशक देवोनो संबन्ध आ प्रमाणे ठे-ते काले-ते समये जंबुद्वीपना भारतवर्षमा विमेल नामे संनिवेश (कस्बो) हतो. वर्णन. ते विमेल सभिवेशमां परस्पर सहाय करनारा तेत्रीश श्रमणोपासको रहेता हता. इत्यादि जेम चमरेन्द्रना संबन्धे का तेम अहीं पण जाणवू. यावत् तेओ त्रायस्त्रिंशकदेवपणे उत्पन्न थया. ज्यारथी मांडीने ते विमेल संनिवेशना परस्पर सहाय करनारा तेत्रीश गृहपतिओ श्रमणोपासको वैरोचनेन्द्र बलिना त्रायविंशकदेवपणे उत्पन्न थण-इत्यादि पूर्वोक्त सर्व हकीकत यावत् 'तेओ नित्य हे, अव्यवच्छित्तिनयनी अपेक्षाए अन्य च्यवे छे अन्य उत्पन्न थाय के त्यांमुधी जाणवी.
अत्थि ण भंते ! धरणस्स णागकुमारिंदस्स नागकुमाररन्नो तायत्तीसगा देवा ता० २१, हंता अत्थि, से केणटेणं जाव तायत्तीसगा देवा २१, गोयमा ! धरणस्स नागकुमारिंदस्स नागकुमाररन्नो तायत्तीसगाणं देवागं | सासए नामोजे पन्नत्ते जं न कयाइ नासी जाव अन्ने चयंति अन्ने उववजंति, एवं भूयाणंदस्सवि एवं जाव महाघोसस्स । अत्थि णं भंते! सकस्स देविंदस्स देवरन्नो पुच्छा, हंता अस्थि, से केणटेणं जाव तायत्तीसगा देवा', एवं स्खल गोयमा ! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे पालासए नाम संनिवेसे होत्था
GREAK
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