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Shri Mahavir Jain Arad da
व्याख्याप्रमसः १०१३।
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आ प्रमाणे क- 'हे आयों ! ऋषिभद्रपुत्र श्रमणोपासक जे तमने आ प्रमाणे कहे छे, यावत् प्ररूपे छे के, देवलोकोयां देवोनी जघन्य स्थिति- दस हजार वर्षनी छे, अने ते पछी समयाधिक करता इत्यादि कहेवु यावत् त्यार पछी देवो अने देवलोको व्युच्छिन्न थाय छे. ए वात साची छे. हे आर्यो ! हुं पण एज प्रमाणे कहुं हुं, यावत् प्ररूपुं हुं के देवलोकमां देवोनी स्थिति जघन्य दस हजार वर्षनी छे- इत्यादि पूर्वोक्त कहेतुं यावत् त्यार बाद देवो अने देवलोको व्युच्छिन्न थाय छे, ए अर्थ सत्य छे. त्यार बाद ते श्रमणोपासको श्रमण भगवंत महारवीनी पासेथी ए बात सांभळी अने अवधारी श्रमण भगवंत महावीरने वांदी, नमी ज्यां ऋषिभद्रपुत्र श्रमणोपासक छे त्यां आवे छे, आवीने ऋषिभद्रपुत्र श्रमणोपासकने बांदी तथा नमी ए अर्थने ( सत्य वातने न मानवारूप अपराधने ) सारी रीते विनयपूर्वक वारंवार खमावे छे. त्यार बाद ते श्रमणोपासको तने प्रश्नो पूछे छे, अने पूछी अर्थने ग्रहण करे छे, ग्रहण करी श्रमण भगवंत महावीरने बांदी नमी जे दिशाथकी आव्या हता, पाछा तेज दिशा तरफ गया. ॥ ४३४ ॥
भंतेत्ति भगवं गोमे समणं भगवं महावीरं बंद णमंसइ वं० २ एवं वयासी पभू णं भंते ! इसि भद्दपुत्ते | समाणोवासए देवाणुप्पियाणं अंतियं मुंडे भवित्ता आगाराओ अणगारियं पव्वत्तए?, गोयमा ! णो तिट्टे सम गोयमा ! इसि भद्दपुत्ते समणोवासए बहहिं सीलव्वयगुणवयवेरमणपञ्चकखाणपोसहोववासेहिं अहापरिग्गहिए हिं तवोकम्मेहिं अप्पाणं भावेमाणे बहूई बासाई समणोवासगपरियागं पाउहिति ब०२ मासियाए संलेहणाए अत्तार्ण | झूसेहिति मा० २ सहिँ भत्ताई अणसणाई छेदेहिति २ आलोहयपडिते समाहिपत्ते कालमासे कालं किवा सोहम्मे कप्पे अरुणाभे विमाणे देवत्ताए उववजिहिति, तत्थ अत्थेगतियाणं देवाणं चत्तारि पलिओचमाई ठिती
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११ सबके उद्देशः १२ ॥१०१३॥