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________________ Shri Mahavir Jain Archana Kendra www.kobatirth.org Achana Shn Kailashsagarsuri Gyanmandir प्राप्तिः १०शतके | उदेश ॥९०३॥ भंते! एवं वुच्चइ चमरस्स असुरिंदस्स असुरकुमाररपणो तायत्तीसगा देवा २१, एवं खलु सामहत्थी । तेणं प्याख्या कालेण तेणं समएणं इहेब जंबुद्दीवे २ भारहे वासे कायंदी नाम नयरी होत्था वन्नओ, तत्थ णं काय | दीए नयरीए तायत्तीसं सहाया गाहावई समणोवासगा परिवसन्ति अडा जाव अपरिभूया अभिगयजीवाजावा ॥९०३ उवलद्धपुण्णपावा जाव विहरंति तए णं ते तायत्तीस सहाया गाहावई समणोवासया पुन्धि उग्गा उग्गविहारी संविग्गा संविग्गविहारी भवित्ता तओ पच्छा पासस्थविहारी ओसन्ना ओसन्नविहारी कुसीला कुसीलविहारी अहाछंदा अहाछंदविहारी बहूई वासासमणोवासगपरियागं पाउणंति २ अद्धमासियाए संलेहणाए अत्ताणं सेंति अत्ताणं झूसेत्ता तीसं भत्ताई अणसणाए छेदेति २तस्स ठाणस्स अणालोइयपडिकंता कालमासे कालं किच्चा चमरस्स असुरिंदस्स असुरकुमाररन्नो तायत्तीसगदेवत्ताए उववन्ना, [प्र०] हे भगवन् ! असुरकुमारना इन्द्र चमरने त्रायस्त्रिंशक देवो छ। [उ०] हा, चमरेन्द्रने त्रायस्त्रिंशक देवो के. [प्र.] है भगवन् ! ए प्रमाणे आप शा हेतुथी कहो हो के असुरकुमारना इंद्र चमरने त्रायविंशक देवो के ? [उ०] हे श्यामहस्ती । ते त्रायविंशक देवोनो संबन्ध आ प्रमाणे छे-ते काले-ते समये आ जंबुद्वीपमां, भारतवर्षमां काकंदी नामे नगरी हती, वर्णन. ते काकंदी | नगरीमा परस्पर सहाय करनारा तेत्रीश श्रमणोपासक गृहपतिओ रहेता हता, जेओ धनिक, यवत् अपरिभूत (जेनो पराभव न थइ शके एवा समर्थ) हता, जीवाजीवने जाणनारा, अने पुण्य पापना ज्ञाता तेओ यावद् विहरे छे. त्यारपछी ते परस्पर सहाय करनारा है तेत्रीश श्रमणोपासक गृहपति ओ पूर्वे उग्र, उग्रविहारी (उग्रचर्याचाळा) संविग्न अने संविनविहारी हता, पण पाछळा पासस्था, पास SHREEKSHEEGRAPHEROE For Private And Personal
SR No.020109
Book TitleBhagvati Sutram Part 04
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1939
Total Pages235
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size6 MB
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