SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 75
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir व्याख्याप्राप्तिः ॥९०८॥ 1.9 १०शतके उद्देशन ॥९०८ SCIRCLEA4%AGNEX विहारी थइने घणा वर्ष सुधी श्रमणोपासकपर्यायने पालीने मासिक संलेखनावडे आत्माने सेवे छे, सेवीने साठ भक्तो अनशान बडे व्यतीत करीने आलोचन, प्रतिक्रमण करीने समाधिने प्राप्त थाय छे, अने मरणसमये काळ करी यावत् त्रायस्त्रिंशकदेवपणे उत्पन्न थाय छे. ज्यारथी आरंभीने पलाशक संनिवेशना निवासी परस्पर सहाय करनारा तेत्रीश गृहपतिओ श्रमणोपासको शकना त्रायखिंशकपणे उत्पन्न थया इत्यादि सर्व वृत्तान्त चमरेन्द्रना प्रमाणे यावत् 'अन्य छे च्यवे के अने अन्य उत्पन्न थाय छै' त्यांसुधी जाणवो. _ अस्थि णं भंते! ईसाणस्स एवं जहा सक्कस्स नवरं चपाए नयरीए जाव उववन्ना, जप्पभिई च णं भंते ! चंपिज्जा तायत्तीसं सहाया, सेसं तं चेव जाव अन्ने उववजंति । अस्थि णं भंते ! सणकुमारस्स देविंदस्स देवरन्नो पुच्छा, हंता अत्थि, से केणटेणं जहा धरणस्स तहेव एवं जाव पाणयस्स एवं अच्चुयस्स जाव अन्ने उववजंति । सेवं भंते ! सेवं भंते ! ॥ (सूत्रं ४०४)॥दसमस्स चउत्थो ।।१०। । [प्र.] हे भगवन् ! ईशान इंद्रने त्रायस्त्रिंशक देवो छ । [उ०] शकनी पेठे ईशानेन्द्रने पण जाण; परन्तु विशेष ए छे के ते गृहपतिओ श्रमणोपासको पलाशक संनिवेशने बदले चंपानगरीमा उत्पन्न थयेला छे. 'ज्यारथी चंपाना निवासी त्रायस्त्रिंशकपणे उत्पन्न त्थ या'-इत्यादि पूर्वोक्त सर्व वृत्तान्त यावत् 'अन्य उपजे छे' त्यांमुधी जाणवो. [प्र०) हे भगवन् ! देवोना राजा देवेंद्र सनत्कुमारने त्रायस्त्रिंशक देवो छ [उ०] हा, गौतम! छे. [प्र०हे भगवन् ! आप एप्रमाणे शा हेतुथी कहो छो के सनत्कुमार देवेंद्रने त्रायविंशक देवो छ? [उ०] हे गौतम! जेम धरणेन्द्र संवन्धे कछुते प्रमाणे अहीं जाणवु. ए रीते यावत् प्राणतथी मांडीने अच्युतपर्यन्त यावत् है 'बीजा उत्पन्न थाय छे' त्यांमुधी कहे. हे भगवन् ! ते एमज छे, हे भगवन् ! ते एमज छे. (एम कही भगवान् गौतम विहरे छे.) भगवत सुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीसूत्रना २ मा शतकमां चोथा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो. SORRENCE For Private And Personal
SR No.020109
Book TitleBhagvati Sutram Part 04
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1939
Total Pages235
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy